साधु सीताराम दास बैरागी
साधु सीताराम दास (जन्म:1883) एक भारतीय क्रांतिकारी थे। वह पहले व्यक्ति थे[1] जिन्होंने बिजौलिया आंदोलन में किसानों का नेतृत्व किया।[2] साधु सीताराम दास को बिजौलिया किसान आंदोलन का जनक माना जाता हैं।[3]
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]सीताराम दास जी का जन्म बिजौलिया के बैरागी परिवार में १८८३ में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा बिजौलिया में पूरी की और फिर उच्च शिक्षा के लिए बनारस चले गए। उन्होंने 1905 में बिजौलिया में एक मित्र मंडल (फ्रेंड्स एसोसिएशन) शुरू किया, और इसके माध्यम से ब्रिटिश भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन के बारे में प्रचार किया गया। सीताराम दास ने इसे 1907 में बंद कर दिया, जब उन्होंने राव (बिजौलिया के सरदार) के साथ एक पद संभाला लेकिन असहमति के कारण 1908 में इस पद से इस्तीफा दे दिया। फिर उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा का अभ्यास किया, जिससे वह किसानों के संपर्क में आ गए। एक किसान का उन्होंने इलाज किया, उस किसान से सीतारामदास को उनके उत्पीड़न के बारे में पता चला और वे उनकी दुर्दशा के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए गांवों का दौरा करने लगे। और सीताराम दास ने अपना पूरा जीवन गरीब किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए समर्पित कर दिया।
बिजौलिया आंदोलन और साधु सीताराम दास
[संपादित करें]बिजौलिया आजादी से पहले मेवाड़ का हिस्सा था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कस्बे में किसान आंदोलन ने आम आदमी की शक्ति की कहानी सुनाई। यह आंदोलन 1897 में साधु सीताराम दास के नेतृत्व में शुरू हुआ था। साधु सीताराम दास ने मेवाड़ के शाही दरबार में आम आदमी (ज्यादातर गरीब किसान) की आवाज उठाने की कोशिश की। नेतृत्व के आधार पर बिजौलिया आंदोलन को तीन चरणों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहले चरण (1897-1914) का नेतृत्व साधु सीताराम दास ने किया था। मार्च १९१३ में साधु सीताराम दास के नेतृत्व में लगभग १००० किसानों ने जागीरदार के सामने अपनी शिकायतें प्रस्तुत कीं और जब उन्होंने किसानों को देखने से इनकार कर दिया, तो किसानों ने भूमि पर खेती नहीं करने का फैसला किया। 1913-1914 के वर्षों में बिजौलिया भूमि को परती छोड़ दिया गया था। १९१५ में उनकी मुलाकात विजय सिंह पथिक से हुई और वे पहली मुलाकात में ही विजय सिंह पथिकसे प्रभावित हुए। साधु सीताराम दास ने विजय सिंह पथिक को बिजौलिया के किसान आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए कहा। 1915 में सीताराम दास ने विजय सिंह पथिक को अग्रणी किसानों की जिम्मेदारी दी। इसके कारण बिजौलिया आंदोलन के अगले चरण (1916–23) का नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Sharma, Brij Kishore (1990). Peasant Movements in Rajasthan, 1920-1949 (in अंग्रेज़ी). Pointer Publishers. ISBN 978-81-7132-024-0.
- ↑ https://books.google.co.in/books?id=GnUyAAAAMAAJ&newbks=0&printsec=frontcover&dq=Sadhu+Sitaram+Das&q=Sadhu+Sitaram+Das&hl=en&redir_esc=y
- ↑ Kanakk, Atul (2020-10-11). "Bijolia's resonance". The Hindu (in Indian English). ISSN 0971-751X. Retrieved 2021-05-27.