सिलाई

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शर्ट, कोट, कुर्ता, ब्लाउज, पेंट आदि में बटन लगाने की परंपरा कितनी पुरानी है?...

अमृतम पत्रिका amrutam, ग्वालियर बटन का अविष्कार केसे हुआ?..

बटनों का शौकीन सिंधिया घराना... सन् १८५० के करीब ग्वालियर के सिंधिया राजपरिवार द्वारा मोती, माणिक्य के बटन बनवाया और बाद में प्लास्टिक का बटन बनवाया गया।

मोती, हीरा, माणिक्य के बटन सर्वप्रथम सिंधिया परिवार ने किस्से बनवाए थे...

बटन के निर्माण में सिंधिया राजीघराने का क्या योगदान है...

बटन की सर्वप्रथम खोज भारत के ग्वालियर के किस राजा महाराजाओं ने की।

क्या आपको एक दिलचस्प जानकारी है कि हम अपने जीवनकाल में करीब ३०० बटन तोड़ देते हैं और ४५० बटन, कपड़ों के बदलने के साथ ही बदल देते हैं।

बटन ही वस्त्र की खूबसूरती बढ़ाते हैं। अगर कपड़ों में बटन तथा खाने में मटन न हो, तो कुछ अधूरा सा महसूस होता है।

महारानी बैजाबाई सिंधिया ने गहने पिघलाकर बनवाये बटन.... तरह-तरह के लोगों को बटनों के साथ भी विशेष लगाव रहता है। ग्वालियर राजीघ्रने को स्वर्ण, हीरे आदि से स्वनिर्मित बटनों से इतना प्यार था कि अपने खजाने के कई गहनों को पिघलवाकर बटन बनवा लिये।

सिंधिया परिवार की राज्यशाही पुस्तक दरबार ऐ हॉल के अनुसार महारानी बैजाबाई के पास बटनों का पूरा खजाना था।

एक ओर बटन जहां कपड़ों को बांधे रखने के काम आते हैं, वहीं बटन से फैशन, सौंदर्य और कपड़ों के स्तर का भी पता चलता है । लेकिन क्या आपको पता है, हमारे जनजीवन में रचे-बसे ये छोटे-बड़े बटन कैसे बने ?

बटन का अविष्कार चार हजार वर्ष पूर्व..... बटन का आविष्कार करीब चार हजार वर्ष पूर्व ही हो गया था। उस समय कपड़ों पर लगने वाले साधारण से बटन होते थे, जो शंख, हड्डी या पेड़ की छाल के बने होते थे।

ये बटन कपड़ों पर बिना किसी कारण के लगाये जाते थे- अर्थात इनसे कपड़े बांधकर नहीं रखे जा सकते थे केवल सुंदरता अथवा सजावट के लिए प्राकृतिक चीजों को कपड़ों पर टांककर - लोग अपने कपड़ों को डोरी-धागे आदि से लपेटकर बांध लिया करते थे जैसे आजकल 'गाउन' बांधा जाता है।

कपड़ों पर बटन लगाने की विधि भारत से सीखकर तेरहवीं सदी के अंत तक बटन का वास्तविक प्रयोग यूरोपवासियों की समझ में आया और वे इसका विधिवत प्रयोग करने लगे।

इस समय के बटन विभिन्न धातुओं बने होते थे, लेकिन इनका प्रयोग भी सिर्फ धनाढ्य वर्ग के लोग करते थे । आम जनता के द्वारा बटन का उपयोग किया जाना वर्जित था। बटन लगाना गैर कानूनी.... फ्रांस में तो एक कानून बनाया गया था, जिसमें मुंशी और उसके नीचे के दरजे के लोगों को केवल कपड़े और डोरे के बटन प्रयोग करने की इजाजत थी। धीरे-धीरे बटन का प्रचलन बढ़ा और आम नागरिकों में भी बटन का प्रचलन शुरू हुआ। रेशमी शुरू हुआ। बटन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से ही फ्रांस में कई कानून बनाये गये।

कपड़े में मढ़े बटन पहनने का कानून सर्वप्रथम फ्रांस में बना। १६८८ में ब्रिटेन ने धातुओं के बटन बनाने का कानून पास कराया।

भिन्न-भिन्न प्रकार के बटन.... इसके बाद बटन ने काफी विकास किया । कपड़े और धातु के अलावा हाथी दांत, सीपी, कांच, हीरे, लकड़ी, मोम, पत्थर और अन्य प्राकृतिक वस्तुओं के भिन्न-भिन्न प्रकार के बटन बनने लगे।

बटनों का आकार प्रकार भी काफी बदलता रहा। सूई की नोंक-जैसों से लगाकर साइकिल के पहिये-जैसे बटन भी कुछ विशेष प्रयोजन से बनाये गये।


वैसे इससे पहले १८४० में कठोर रबर के बटन भी बने थे पर प्रयोग में हुई असुविधा के कारण उनका प्रचलन कम ही रहा। १९वीं सदी में धातुओं के बटन में सेल्युलाइड का प्रयोग भी शुरू हो गया।

बीसवीं सदी की शुरुआत के साथ ही भारी मात्रा में ऑटोमेटिक मशीनों की सहायता से पीतल, लोहे और प्लास्टिक के सुंदर और कलात्मक बच्न तैयार किये जाने लगे।


फ्रांस के सम्राट लुई चौदहवें जब ग्वालियर आए, तो सिंधिया परिवार के बटन का एक सैट इतना भा गया कि उसकी कीमत चार लाख चुका दी थी। प्रायः सभी राजा-महाराजाओं को ग्वालियर के बटन बड़े ही भव्य कीमत और आकर्षक लगते थे।

मैनहट्टन न्यूयार्क के एक बटन व्यवसायी ने तो एक दुकान खोल रखी है, जहां केवल ५००० तरह के नवीन वी प्राचीन बटन ही बिकते हैं। इनके पास कपड़े, मोती, चमड़े, लकड़ी, सीपी से लेकर हीरे और सोने से बने तरह-तरह के बटनों का एक विशालतम संग्रह है। यहां प्रतिदिन लगभाग बीस हजार बटन रोज बिकते हैं। बटनों के शौकीन लोग...

जिस प्रकार डाक टिकटों का संग्रह करने का शौक होता है, उसी प्रकार बटन संग्रह करने का शौक भी पाया जाता है। भारत और अमरीका में हर चौथा व्यक्ति बटन संग्रह करता है। इनके पास अजब-अनोखे, नये-पुराने, ऐतिहासिक बटनों का संग्रह होता हैं।

अमरीका के जैकी ओनसिया के पास बटनों का वह सैट है, जो अमरीकी राष्ट्रपति भवन के सैनिकों की वर्दी में सवा सौ वर्ष पूर्व लगाया जाता था।

फ्रांस के एक म्यूजियम में नेपोलियन बोना पार्ट,लिंकन और कई नामी-गिरामी हस्तियों के बटनों का संग्रह है। 

बटनों की सहायता इतिहासकार पुराने से वस्त्र व्यवसाय, फैशन और उस समय की सभ्यता के बारे में भी ज्ञान प्राप्त करते हैं।

बटनों से जासूसी...बटनों की सहायता से कई प्रकार के अंधे कत्ल का पर्दाफाश हुआ। बटन की जासूसी के सहारे अपराधियों का पता लगाने के लिए कई बार बटन बड़े सहायक सिद्ध होते हैं।

बटनों की सहायता से इतिहासकार पुराने वस्त्र-व्यवसाय, फैशन और उस समय की सभ्यता के बारे में भी ज्ञान प्राप्त करते हैं। बटनों की सहायता से कई प्रकार की जासूसी भी की जाती है। अपराधियों का पता लगाने के लिए कई बार बटन बड़े सहायक सिद्ध होते हैं ।

कई बार बटनों का निर्माण विशेष प्रयोजन से भी होता है। कई सरकारों और राजा-महाराजाओं ने अपनी याद में सिक्कों की तरह बटन भी बनवाये हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध में सैनिकों के लिए ऐसे बटन बनाये गये, जो ब्लैक आउट में भी चमकते थे।

आजकल कई आधुनिक किस्म के बटनों का आविष्कार भी हो रहा है। बटन में घड़ी और अलार्म होना आम बात हो गयी है। जरमनी में ऐसे बटन भी बनाये गये हैं, जो व्यक्ति का तापमान, ब्लड प्रेशर और अन्य स्वास्थ्य संबंधी जानकारी बताते हैं।

दरजियों की सुविधा के लिए धागे के अलावा कुछ बटन स्टीकर और हथौड़े की चोट(हलकी दाब) से भी चिपकते हैं।

कोट में बटन का कैसे शुरू हुआ प्रचलन.... कोट का कपड़ा चाहे कितना भी महंगा हो, पर उसकी असली सुंदरता उसके बटनों से ही आती है।

क्या आपको पता है— कोट की बाढ़ पर बटन लगाने की शुरुआत कैसे हुई । एक किवदंती के अनुसार एक राजा के सैनिक अपनी बहती नाक को कोट की बांह से पौंछ देते थे बार-बार मना करने पर भी जब सैनिकों ने बाह से नाक पोंछना बंद नहीं किया, तो राजा ने बांह के ऊपर बड़े-बड़े तीखे बटन लगवा दिये।

उसके बाद सैनिक जैसे ही नाक पौंछते कोट की बांह पर लगे बटन उनकी नाक में गड़ जाते।
धीरे-धीरे सैनिकों ने यह गंदी आदत छोड़ दी। वैसे आज के जमाने में कोई भला मानुष अपनी कोट की बांह से नाक नहीं पौंछता है, फिर भी उसी समय से परंपरा बन गयी कि कोट की बांह पर बटन लगाये जाते हैं। 

अमेरिका में सन १९९९ को ४०००० हजार बटनों का संग्रह १,८०,००० डॉलर में बिका था।

कुछ वर्षों पूर्व एक फ्रांसीसी कुलीन के चार संग्रह का सैट दो लाख रुपयों में बिका।

जिस प्रकार कपड़े हमारी सुंदरता का हिस्सा है, ठीक उसी प्रकार बटन भी हमारे रोजमर्रा के जीवन का अभिन्न अंग हैं।

एक ओर जहां खुले बटन असभ्यता की निशानी माने जाते हैं, वहीं दूसरी ओर दादा किस्म के कई लोगों की मुख्य पहचान ही ये खुले बटन कराते हैं। लड़ाई-झगड़े में भी सबसे पहले बटन ही टूटते हैं।

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सिलाई का एक नमूना
सिलाई एक प्राचीन प्रौद्योगिकी, कला,और संस्कृति है। सभी संस्कृतियों में सिलाई की विभिन्न तकनीकें और विधियाँ प्रचलित थीं। आजकल अधिकांश सिलाई मशीनों से की जाती है।

कपड़ा, चमड़ा, फर, बार्क या किसी अन्य लचीली वस्तु (flexible material) को आपस में सूई एवं धागों की सहायता बांधना सिलाई (Sewing or stitching) कहलाती है।

घरेलू सिलाई[संपादित करें]

घरेलू सिलाई अधिकतर मरम्मत, रफू, कपड़ों को ठीक करना तथा बच्चों के कपड़ों से संबंधित होती है। इसके लिये उचित साधन, उचित कपड़े और उचित तरीके का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है।

उचित साधन[संपादित करें]

सिलाई के आवश्यक साधनों में सर्वप्रथम सूई का स्थान आता है। सूइयाँ कई प्रकार की होती हैं, कुछ मोटी, कुछ बारीक, इनकों नंबरों द्वारा विभाजित किया गया है। जितने अधिक नंबर की सूई होगी उतनी ही बारीक होगी। मोटे कपड़े के लिये मोटी सूई का प्रयोग होता है और बारीक कपड़े के लिये पतली सूई का। मोटे कपड़े को बारीक सूई से सीने से सूई टूटने का डर रहता है तथा मोटी सूई से बारीक कपड़े को सीने से कपड़े में मोटे मोटे छेद हो जाते हैं, जो बड़े भद्दे लगते हैं। अधिकतर पाँच नंबर से आठ नंबर तक की सूई का प्रयोग होता है।

साधन में दूसरा स्थान धागे का है। धागा कपड़े के रंग से मिलता हुआ होना चाहिए तथा कपड़े के हिसाब से ही मोटा या बारीक भी होना चाहिए। वैसे अधिकतर सिलाई के लिये ४० और ५० नंबर के धागे का ही प्रयोग किया जाता है।

तीसरा स्थान कैंची का है। कैंची न तो बहुत छोटी हो और न बड़ी। उसकी धार तेज होनी चाहिए, जिससे कपड़ा सफाई से कट सके।

चौथा स्थान इंची टेप का होता है, जो कपड़ा नापने के काम में आता है; फिर निशान लगाने के रंग या रंगीन पेंसिलों का प्रयोग होता है। सीधी लाइनों के लिये यदि स्केल भी पास हो तो बहुत अच्छा होता है। सिलाई के लिये अब अधिकतर मशीन का प्रयोग होता है। इससे सिलाई बहुत शीघ्र हो जाती है। सिलाई के लिये अंगुस्ताने की भी आवश्यकता होती है। इससे उंगलियों में सूई नहीं चुभने पाती।

सिलाई का ढंग[संपादित करें]

सिलाई करते समय हाथ से कपड़े को ठीक पकड़ना तथा सूई को ठीक स्थान पर रखना अत्यंत आवश्यक है। सिलाई करते समय आप दाहिने हाथ से बाएँ हाथ की ओर चलते हैं। कसीदे में इसके विपरीत बाएँ हाथ से दाएँ की ओर जाया जाता है।

सिलाई की तुरपन तीन प्रकार की होती है : धागा भरना, तुरपन और बाखिया करना।

धागा भरना (Running Stitch)[संपादित करें]

इसमें कपड़े को ठीक से पकड़ना अत्यंत आवश्यक है। यदि कपड़ा ठीक नहीं पकड़ा गया तो धागा भरने में काफी समय लग जाता है। आप दोनों हाथों में कपड़ा पकड़ दाएँ हाथ के अँगूठे और प्रथम उँगली के बीच सूई रख, दाएँ से बाई ओर चलते हैं। यह कपड़ों को जोड़ने के काम में लाया जाता है।

तुरपन (Hemming Stitch)[संपादित करें]

यह किनारे या सिलाई को मोड़कर सीने के काम आती है।

बखिया (Back Stitch)[संपादित करें]

यह भी दो कपड़ों को जोड़ने के काम में लाया जाता है। पर यह तुरपन धागा भरने से अधिक मजबूत होती है। इसका उधेड़ना अत्यंत कठिन होता है। इस तुरपन में पहले सूई को पिछले छेद में डालकर दो स्थान आगे निकाला जाता है और इस प्रकार बखिया आगे बढ़ता जाता है।

सिलाई के प्रकार[संपादित करें]

सिलाई के उपर्युक्त तीन प्रकार होते हैं। इनके अतिरिक्त गोट लगाना, दो कपड़ों को जोड़ने के विभिन्न तरीके, रफू करना, काज बनाना एवं बटन टाँकना घरेलू सिलाई के अंतर्गत आते हैं।

गोट लगाना (Piping)[संपादित करें]

गोट लगाने के लिये कपड़े को तिरछा काटना अत्यंत आवश्यक है। गोट दो प्रकार से लगती है। एक तो दो कपड़ों के बीच से बाहर निकलती है। दूसरी एक कपड़े के किनारे पर उसको सुदंर बनाने के लिय लगती है। प्रथम प्रकार की अधिकतर रजाइयों इत्यादि में यहाँ जहाँ दोहरा कपड़ा हो वहीं, लग सकती है। गोट को दोहरा मोड़कर दो कपड़ों के बीच रखकर सी (सिल) दिया जाता है। दूसरे प्रकार की गोट लगने के लिये पहले कपड़े पर गोट धागा भरकर टाँक दी जाती है। इसमें गोट को खींचकर तथा कपड़े को ढीला लेना होता है। फिर दूसरी ओर मोड़कर तुरपन कर दी जाती है।

दो कपड़ों को जोड़ने के लिये विभिन्न प्रकार की सिलाइयों का प्रयोग होता है।

(क) सीधी सिलाई - इनमें दो कपड़ों को एक दूसरे पर रख किनारे पर १/४ से १ इंच दूर तक सीधा धागा भर दिया जाता है, या बखिया लगा दी जाती है।

(ख) चौरस सिलाई (Flat Fell Seam) - इसमें एक कपड़े को ज्यादा तथा दूसरे को उसने थोड़ा कम आगे निकाल कर धागा भर दिया जाता है। फिर इस सिलाई को मोड़कर उस पर तुरपन कर दिया जाता है।

(ग) दोहरी चौरस सिलाई (Stitehed Fell Seam) - इसमें चित्र की भाँति दो कपड़ों के किनारों को दूसरे के ऊपर रख दोनों ओर से तुरपन कर दी जाती है।

(घ) उलटकर सिलाई (French Seam) इसमें दो कपड़ों को मिलाकर बिलकुल किनारे पर धागा भर देते हैं और फिर उन्हें उलटकर एक और धागा भर देते हैं। इससे कपड़े के फुचड़े (कपड़े का धागा निकालता है) सब सिलाई के अंदर हो जाते हैं और सिलाई पीछे की ओर से भी अत्यंत साफ और सुंदर दिखती है।

रफू करना (Mending)[संपादित करें]

रफू के लिये जहां तक संभव हो धागा उसी कपड़े में से निकालना चाहिए तथा कपड़े के धागों के रुख के अनुसार सूई को चलाना चाहिए, जैसा चित्र ९ में दिखाया है। इस प्रकार सीधे फटे में सीधी सीधी सिलाई की जाती है, पर यदि कपड़ा तिरछा फटा हो तो आड़ा सीधा दोनों और सीना होता है।

पैवंद लगाना (Patching)[संपादित करें]

जहाँ पर आपको पैवंद लगाना हो वहाँ फटे स्थान से बड़ा एक अन्य चौकोर कपड़ा काटकर उसको फटे स्थान पर तुरपन से टाँक दीजिए। इसके पश्चात्‌ उलटकर फटे स्थान को चौकोर काटकर किनारे मोड़कर तुरपन कर दीजिए।

काज (Button-hole) बनाना[संपादित करें]

आवश्यकता के अनुसार काज काटकर, काज के दोनों ओर धागा भरकर काज की तुरपन से उसे चित्र ११. की भांति जींद देते हैं। बटन का जोर जिस ओर पड़ता है उसके दूसरी ओर से काज प्रारंभ कर पुन: वहीं सिलाई समाप्त की जाति है। इस प्रकार यदि खड़ा काज है तो आरंभ नीचे किया जाता है, पर पड़े काज को किनारे के दूसरी ओर से आरंभ करते हैं।

बटन टाँकना aur hook[संपादित करें]

बटन में सदैव दो या अधिक छेद बने होते हैं। उन छेदों में से सूई निकालनकर बटन को कपड़े पर सी देते हैं।

सिलाई की जरूरत वाले व्यवसाय[संपादित करें]

Seamstresses at a factory, 1904

सिलाई के औजार (Sewing tools and accessories)[संपादित करें]

Sewing box with sewing notions

सिलाई के सहवर्ती कार्य[संपादित करें]

सिलाई के साथ लगने वाले सामान (Finishing and embellishment)[संपादित करें]

तरह-तरह की सीवन (List of stitches)[संपादित करें]

The two main stitches that sewing machines make of which the others are derivatives are lockstitch and chain stitch.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]