सिपाही बहादुर सरकार
सिपाही बहादुर सरकार भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 6 अगस्त 1857 को मध्य प्रदेश की सीहोर छावनी में विद्रोह के बाद स्थानीय सिपाहियों द्वारा स्थापित अपनी स्वतंत्र सरकार का नाम था।[1] मेरठ की क्रान्ति का असर मध्य भारत में भी आया और मालवा के सीहोर में अंग्रेज पॉलीटिकल ऐजेन्ट का मुख्यालय होने के कारण यहां के सिपाहियों ने भी विद्रोह कर दिया और इस छावनी को पूरी तरह अंग्रेजों से मुक्त करवा लिया।[2]
किंतु यह सरकार मात्र ६ महीने ही चली। झांसी की रानी के विद्रोह को कुचलने के लिए बर्बर कर्नल हिरोज को एक बड़े लाव लश्कर के साथ भेजा गया।[3] इन्दौर में सैनिकों के विद्रोह को कुचलने के बाद कर्नल हिरोज 13 जनवरी 1858 को सीहोर पहुंचा और अगले दिन 14 जनवरी 1858 को 356 विद्रोही सिपाहियों को सीहोर की सीवन नदी के किनारे घेर कर गोलियों से छलनी कर दिया।[1]
क्रांतिकारियों के इस सामूहिक हत्याकाण्ड के बाद सीहोर छावनी पर पुनः अंग्रजों का आधिपत्य हो गया। इस बर्बर हत्याकांड के कारण इस स्थान को मालवा के जलियांवाला के रूप में जाना जाता है।[4]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ "सीहोर के 356 क्रांतिकारियों की शहादत की कहानी". प्रेम चंद्र गुप्ता. पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 20 अगस्त 2016. Archived from the original on 8 अक्तूबर 2014. Retrieved 24 अगस्त 2016.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 10 मार्च 2016. Retrieved 28 अगस्त 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति" (PDF). Archived from the original (PDF) on 29 अगस्त 2018. Retrieved 15 जून 2020.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 30 दिसंबर 2016. Retrieved 28 अगस्त 2018.
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