सिकन्दर लोदी
सिकंदर खान लोदी(बचपन का नामः निजाम खां, मृत्यु २१ नवंबर, १५१७) लोदी वंश का द्वितीय शासक था। अपने पिता बहलूल खान लोदी की मृत्यु जुलाई १७, १४८९ उपरांत यह सुल्तान बना। इसके सुल्तान बनने में कठिनई का मुख्य कारण था इसका बडा़ भाई, बारबक शाह, जो तब जौनपुर का राज्यपाल था। उसने भी इस गद्दी पर अपने पिता के सिकंदर के नामांकन के बावजूद, दावा किया था। परंतु सिकंदर ने एक प्रतिनिधि म्ण्डल भेज कर मामला सुलझा लिया और एक बडा़ खून-खराबा बचा लिया। असल में इसने बारबक शाह को जौनपुर सल्तनत पर राज्य जारी रखने को कहा, एवं अपने चाचा आलम खान से भी विवाद सुलझा लिये, जो कि तख्ता पलट करने की योजना बना रहा था।
सिकंदर एक योग्य शासक सिद्ध हुआ। उसने अपने राज्य को ग्वालियर एवं बिहार तक बढा़या। उसने अल्लाउद्दीन हुसैन शाह एवं उसकी बंगाल के राज्य से संधि की। वह अपने देश के अफगान नवाबों को नियंत्रण में रखने में सफल हुआ, एवं अपने राज्य पर्यन्त व्यापार को खूब बढा़वा दिया। सन 1504 में, उसने वर्तमान आगरा शहर की नींव रखी।
• उसके आदेश पर संस्कृत के एक आयुर्वेद ग्रंथ का फारसी में "फरहंगे सिकंदरी"
नाम से अनुवाद किया गया।
- उसने मुसलमान स्त्रियों को पीरों एवं सन्तों के मजार पर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया।
- मुसलमानों को ‘ताजिया’ निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया
- अपने व्यक्तित्व की सुन्दरता बनाये रखने के लिए वह दाढ़ी नहीं रखता था।
- सिकन्दर ने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की मूर्ति को तोड़कर उसके टुकड़ों को कसाइयों को माँस तोलने के लिए दे दिया था।
- सिकंदर लोदी ने गुलरूखी उपनाम से अपनी कविताओ कि रचना फारसी में करवाई।
उदार व्यक्ति के रूप में -
- सिकन्दर लोदी सल्तनत काल का एक मात्र सुल्तान हुआ, जिसमें खुम्स(लूट से मिली रकम) से कोई हिस्सा नहीं लिया। जबकि अलाउद्दीन खिलजी ने अपने काल में 3/4 भाग लेना शुरू कर दिया था.
- उसने निर्धनों के लिए मुफ़्त भोजन की व्यवस्था करायी।
- निष्पक्ष न्याय के लिए मियां भुआं को नियुक्त किया।
शासन व्यवस्था एंव सुधार कार्य -
[संपादित करें]- सिकन्दर शाह ने भूमि के लिए एक प्रमाणिक पैमाना ‘गज-ए-सिकन्दरी’ का प्रचलन करवाया, जो 30 इंच का था।
- उसने अनाज पर से चुंगी हटा दी और अन्य व्यापारिक कर हटा दिये, जिससे अनाज, कपड़ा एवं आवश्यकता की अन्य वस्तुएँ सस्ती हो गयीं।
- सिकन्दर लोदी ने खाद्यान्न पर से जकात कर हटा लिया तथा भूमि में गढ़े हुए खज़ाने से कोई हिस्सा नहीं लिया।
- सिकन्दर लोदी ने अफ़ग़ान सरदारों से समानता की नीति का परित्याग करके श्रेष्ठता की नीति का अनुसरण किया।
- उसने आन्तरिक व्यापार कर को समाप्त कर दिया तथा गुप्तचर विभाग का पुनर्गठन किया।
- सिकन्दर शाह लोदी गुजरात के महमूद बेगड़ा और मेवाड़ के राणा सांगा का समकालीन था। उसने दिल्ली को इन दोनों से मुक़ाबले के योग्य बनाया।
- उसने उन अफ़ग़ान सरदारों का दबाने की कोशिश भी की, जो स्वतंत्रता के आदी थे और सुल्तान को अपने बराबर समझते थे।
- सिकन्दर ने सरदारों को अपने सामने खड़े होने का हुक्म दिया, ताकि उनके ऊपर अपनी महत्ता प्रदर्शित कर सके। जब शाही फ़रमान भेजा जाता था तो सब सरदारों को शहर से बाहर आकर आदर के साथ उसका स्वागत करना पड़ता था। जिनके पास जागीरें थीं, उन्हें नियमित रूप से उनका लेखा देना होता था और हिसाब में गड़बड़ करने वाले और भ्रष्टाचारी ज़ागीरदारों को कड़ी सजाएँ दी जाती थीं। लेकिन सिकन्दर लोदी को इन सरदारों को क़ाबू में रखने में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई। अपनी मृत्यु के समय बहलोल लोदी ने अपने पुत्रों और रिश्तेदारों में राज्य बांट दिया था। यद्यपि सिकन्दर एक बड़े संघर्ष के बाद उसे फिर से एकत्र करने में सफल हुआ था, लेकिन सुल्तान के पुत्रों में राज्य के बंटवारे का विचार अफ़ग़ानों के दिमाग़ में बना रहता था।
बाहरी कडि़याँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- https://web.archive.org/web/20080223213215/http://sify.com/itihaas/fullstory.php?id=13233620
- https://web.archive.org/web/20170217020010/http://www.indhistory.com/lodi-dynasty.html
- https://web.archive.org/web/20080513093840/http://www.webindia123.com/history/MEDIEVAL/delhisultanate/delhi%20sultanate4.htm
- https://web.archive.org/web/20180412212340/http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%B0_%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80
पूर्वाधिकारी बहलोल लोदी |
दिल्ली के सुल्तान 1489-1517 |
उत्तराधिकारी इब्राहिम लोदी |
दिल्ली सल्तनत के शासक वंश |
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