सिकंदर
अलेक्जेंडर द ग्रेट | |
---|---|
मानव इतिहास के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक विश्वप्रसिद्ध सिकंदर महान, हेगेमॉन ऑफ द हैलेनिक लीग, फारस, मिश्र, मेसोपोटामिया के राजा | |
प्रथम शताब्दी ईसवी में निर्मित सिकंदर महान की प्रतिमा | |
शासनावधि | 336–347 ई पू |
राज्याभिषेक | 349 ई पु |
पूर्ववर्ती | फिलिप द्वितीय, मैसेडोन |
उत्तरवर्ती | सिकंदर चतुर्थ, मैसेडोन |
जन्म | २० जुलाई, ३५६ ईसा पूर्व[a] पेला, मैसेडोन, यूनान |
निधन | १० या ११ जून ३२३ ईसा पूर्व बेबीलोन |
समाधि | एलेक्इजेंड्रिया, इजिप्ट |
जीवनसंगी | रुखसाना, बैक्ट्रिया, स्ट्रैटेयरा द्वितीय |
संतान | सिकंदर चतुर्थ, मैसेडोन |
पिता | फिलिप द्वितीय, मैसेडोन |
माता | ओलंपियस |


सिकंदर महान या अलेक्जेंडर द ग्रेट (अंग्रेज़ी: Alexander) (यूनानी: Αλέξανδρος)[b] (356 ईपू से 323 ईपू) ग्रीक मेसोपोटामिया, फारस ओर मिस्र के राजा थे। के वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। सिकंदर को मानव इतिहास का सर्वश्रेष्ठ राजा तथा सैन्य नायक माना जाता है। अपने अनोखे युद्धकौशल और राजनीतियो के कारण मात्र 25 वर्ष की आयु में वह विश्व का सबसे शक्तिशाली इंसान बन चुके थे।
बचपन से ही सिकंदर को विश्वविजेता बनने की चाह थी, अपनी मृत्यु तक वह उन सभी भूमि मे से लगभग आधी भूमि जीत चुका था, जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी (सत्य ये है की वह पृथ्वी के मात्र 15 प्रतिशत भाग को ही जीत पाया था)[उद्धरण चाहिए][4]
उसने अपने कार्यकाल में इरान, सीरिया, मिस्र, मसोपोटेमिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया और भारत के कंधार प्राचीन भारतीय हिस्सा पर विजय के लिए आया, यहां उसने हिन्दू राजा पोरस को भी हराया। सिकंदर महान ने अपने युद्धकौशल से उस समय की महासत्ता फारस साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंका।
सिकंदर महान ग्रीक बहुदेववाद धर्म के अनुयायि थे। सर्व धर्मों का आदर करने के कारण वे धर्म सहिष्णु राजा के तौर पे प्रसिद्द है। फारसी में सिकंदर को एस्कंदर-ए-मक्दुनी (मॅसेडोनिया का अलेक्ज़ेंडर, एस्कन्दर का अपभ्रंश सिकन्दर है) औऱ हिन्दी, संस्कृत अलक्षेन्द्र कहा गया है।
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]अलेक्जेंडर का जन्म 356 ईसा पूर्व मैसेडोनिया के पेला में हुआ था, वह राजा फिलिप द्वितीय और रानी ओलंपियास का बेटा था । किवदंतियों के अनुसार सिकंदर के वास्तविक पिता ग्रीक देवता स्यूस थे, जिसके कारण सिकंदर को देवपुत्र माना जाता था।वह किशोरावस्था में ही महान दार्शनिक अरस्तु शिष्य बन गया, सिकंदर गणित, मल्लयुद्ध, इतिहास, भूगोल, तर्क में माहिर था। हालाँकि, वह सैन्य मामलों में ही श्रेष्ठ था।

मित्र देशों के ग्रीक राज्यों के खिलाफ युद्ध में, 18 साल के अलेक्जेंडर ने घुड़सवार सेना का नेतृत्व किया, जिसने फिलिप को युद्ध में मदद की। 336 में राजा फिलिप की हत्या कर दी गई।
विश्वविजयी सिकंदर के युद्ध अभियान
[संपादित करें]336 ईसा पूर्व में, सिकंदर के पिता फिलिप की हत्या उसके अंगरक्षक पॉसनीस ने कर दी थी। मात्र 20 वर्ष की आयु में, सिकंदर ने मैसेडोनिया की गद्दी पर अपना दावा किया और अपने प्रतिद्वंद्वियों को मार डाला, इससे पहले कि वे उसकी संप्रभुता को चुनौती दे सकें।
उन्होंने उत्तरी ग्रीस में स्वतंत्रता के लिए विद्रोह को भी दबा दिया। सिकंदर को पूरी दुनिया पर अपनी सत्ता स्थापित करने की इच्छा थी, इसी लिए ग्रीस विजय के बाद वो पूरी दुनिया जितने के लिए निकल पडे।

- फारस पर सिकंदर महान का आक्रमण | Alexander the Great’s Invasion on Persia
सिंहासन के अपने परिग्रहण से, सिकंदर फारस पर आक्रमण करने के विचार के साथ बड़ा हुआ था। अचमेनिद साम्राज्य पर विजय प्राप्त करने के पीछे उनका आधिकारिक कारण यूनानियों को मुक्ति में नेतृत्व करना था, अनातोलियन तट के साथ ग्रीक शहरों और साइप्रस द्वीप पर फारसी नियंत्रण से मुक्त करना और राजा ज़ेरक्स के तहत ग्रीस पर फारसियों के आक्रमण का बदला लेना था। सिकंदर फारस के खिलाफ व्यापक रूप से सफल रहे।
- ग्रैनिकस की लड़ाई (Battle of Granicus)
यह 334 ईसा पूर्व में आधुनिक पश्चिमी तुर्की में लड़ा गया था। सिकंदर ने पश्चिमी तुर्की के तट पर आगे बढ़ते हुए 20,000 फारसी घुड़सवारों की एक सेना को हराया, शहरों को जीत लिया और फारसी नौसेना को ठिकानों से वंचित कर दिया।
- इस्सुस की लड़ाई (Battle of Issus)
यह महत्वपूर्ण लड़ाई 333 ईसा पूर्व में दक्षिणी तुर्की के प्राचीन शहर इस्सस के पास लड़ी गई थी। फारसियों का नेतृत्व राजा डेरियस III ने किया था। सिकंदर की सेना ने अपने से दोगुनी बड़ी फारसी सेना को हराया और राजा डेरियस को मृत्यु दंड देकर विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य पर अपनी सत्ता स्थापित की।
- मिस्र का फिरौन के साथ युद्ध (Pharaoh of Egypt)
सिकंदर भूमध्यसागर के पूर्व में दक्षिण की ओर चले गए और फारसियों को उनके नौसैनिक ठिकानों से वंचित कर दिया। हालांकि, कई शहरों ने आत्मसमर्पण कर दिया, जैसे टायर, जो आधुनिक समय के लेबनान में एक द्वीप पर था, ने सिकंदर को उस पर कब्जा करने के लिए मजबूर किया। सिकंदर ने मिस्र में प्रवेश किया जो 332 ईसा पूर्व में गाजा पर कब्जा करने के बाद दो शताब्दियों तक फारसी शासन के अधीन था उसने मिस्र के उत्तरी तट पर अलेक्जेंड्रिया शहर की स्थापना की। सिकंदर ने मिस्र की राजधानी मेम्फिस में खुद को फिरौन के रूप में ताज पहनाया था और एक पारंपरिक समारोह के माध्यम से खुद को मिस्र के शासकों की पंक्ति से जोड़ने की कोशिश की थी।

- गौगामेला की लड़ाई (Battle of Gaugamela)
यह 331 ईसा पूर्व में उत्तरी इराक में एरबिल के पास लड़ा गया था। इसी युद्ध में सिकंदर ने विशाल फारस साम्राज्य का अंत किया था।
- सिकंदर का पोरस से युद्ध | Alexander’s battle with Porus
सिकंदर ने 327 ईसा पूर्व में उज्बेकिस्तान में सोग्डियन रॉक नामक स्थान पर एक स्थानीय शासक की बेटी रोक्साना से शादी की। फिर वह भारत की ओर बढ़ा, जहां एक स्थानीय शासक, टैक्साइल्स ने सिकंदर को अपने शहर तक्षशिला को एक ऑपरेशन बेस के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी और उसे अपनी जरूरत की सभी आपूर्ति देने के लिए भी सहमत हो गया। बदले में, सिकंदर पोरस नाम के एक स्थानीय शासक से लड़ने के लिए सहमत हो गया, जिसने सिकंदर के खिलाफ सैन्य बल के साथ 200 हाथी शामिल किए। दोनों सेनाएं 326 ईसा पूर्व में हाइडस्पेस नदी में युद्ध लड़ी। सिकंदर के सैनिकों ने हाथियों पर हमला किया और घायल हाथियों ने सैनिकों को रौंदते हुए भगदड़ मचा दी । अंत में पोरस की सेना सिकंदर युद्धनीति के सामने टिक नहीं पाए, ओर सिकंदर ने राजा पोरस को हरा दिया।
सिकंदर ने पोरस के मंत्रियों को तत्काल मार दिया, लेकिन पोरस उसकी वीरता से प्रभावित होकर पोरस को अपना सहयोगी बना लिया।
सिकंदर का भारतविजय अभियान
[संपादित करें]सिकन्दर मेसीडोन के क्षत्रप फिलिप द्वितीय (३५९-३३६ ईसा पूर्व) का पुत्र था। पिता की मृत्यु के पश्चात् २० वर्ष की आयु में वह राजा बना। वह एक महत्वाकांक्षी शासक था। बचपन से ही उसको इच्छा विश्व सम्राट बनने की थी। कहा जाता है कि विश्व विजय करने को प्रेरणा उसे अपने पिता से ही प्राप्त हुई थी। उसमें अदम्य उत्साह, साहस तथा वीरता विद्यमान थी।
मेसीडोनिया तथा यूनान में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर लेने के बाद उसने दिग्विजय की एक व्यापक योजना तैयार की। इस प्रक्रिया में उसने एशिया माइनर, सीरिया, मिस्र, बेबीलोन, बैक्ट्रिया, सोण्डियाना आदि को जीता।
३३१ ईसा पूर्व में आरबेला के प्रसिद्ध युद्ध (Battle of Arbela or Gaugamela) में दारा तृतीय के नेतृत्व में उसने विशाल पारसी वाहिनी को परास्त किया। पारसी वाहिनी को हराने के बाद सिकंदर ने भारत को जीतने का संकल्प कर भारत पर आक्रमण किया।
पुष्कलावती तथा सिन्धु के बीच स्थित सभी छोटे-छोटे प्रदेशों को जीतकर उसने निचली काबुल घाटी में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली। सिन्धु पार करने के पूर्व कुछ स्थानीय सहायकों की मदद से सिकन्दर ने एओर्नोस (Aornos) के सुदृढ़ गढ़ पर कब्जा कर लिया। यहाँ उसने शशिगुप्त को शासक नियुक्त किया। इस स्थान से सिकन्दर वर्तमान ओहिन्द के समीप सिन्धु नदी के तट पर आया जहाँ उसके सेनापतियों ने पहले से ही नावों का पुल बना रखा था। यहाँ एक महीने विश्राम करने के पश्चात् ३२६ ईसा पूर्व के वसन्त में सिकंदर महान ने सिन्धु नदी पार कर भारत भूमि पर कदम रखे।
सिन्धु नदी के पार सिकन्दर की गतिविधियाँ सिन्धु नदी पार करने के बाद तक्षशिला के शासक आम्भी, जिसका राज्य सिन्धु तथा झेलम नदियों के बीच फैला ने अपनी पूरी प्रजा तथा सेना के साथ सिकन्दर के सम्मुख आत्म-समर्पण कर दिया तथा अपनी राजधानी में सिकन्दर का भव्य स्वागत किया। तक्षशिला में एक दरबार लगा जहाँ पास-पड़ोस के अनेक छोटे-छोटे राजाओं ने सिकन्दर के सामने बहुमूल्य सामग्रियों के साथ आत्म-समर्पण किया। इस प्रकार तक्षशिला में खुशियाँ मनाते हुए सिकन्दर ने झेलम तथा चिनाव के मध्यवर्ती प्रदेश के शासक पोरस (पुरु) से आत्म समर्पण की माँग की। पोरस के लिये यह शर्त मर्यादा के विरुद्ध लगी। उसने यह संदेश भेजा कि वह यूनानी विजेता के दर्शन रणक्षेत्र में ही करेगा। यह सिकन्दर को खुली चुनौती थी। अतः वह युद्ध के लिए तैयार हुआ। यह युद्ध झेलम नदी के तट पर ३२६ ई०पू० सिकन्दर महान और पोरस के मध्य लड़ा गया था। इसको ‘वितस्ता का युद्ध’, ‘झेलम का युद्ध’ और ‘हाइडास्पीज का युद्ध’ ( Hydaspes Battle ) आदि नामों से जानते हैं।
पोरस की सेना झेलम नदी के पूर्वी तट पर तथा सिकन्दर की सेना झेलम नदी के पश्चिमी तट पर आ डटीं। बरसात के कारण झेलम नदी में बाढ़ आ गयी थी। अतः सिकन्दर के लिये नदी पार करना कठिन था। दोनों पक्ष कुछ दिनों तक अवसर की प्रतीक्षा करते रहे। अंत में एक रात जब भीषण वर्षा हुई, सिकन्दर ने अपनी सेना को झेलम नदी के पार उतार दिया। उसके इस कार्य से भारतीय पक्ष स्तम्भित रह गया।
पोरस की सेना बड़ी विशाल थी। एरियन के अनुसार इस सेना में चार हजार बलिष्ठ अश्वारोही, तीन सौ रथ, दो सौ हाथी तथा तीस हजार पैदल सिपाही थे।
सर्वप्रथम पोरस ने अपने पुत्र मलयकेतु के नेतृत्व में २,००० सैनिकों को सिकन्दर का सामना करने तथा उसका मार्ग अवरुद्ध करने के लिये भेजा। परन्तु सिकंदर महान के सामने वे नहीं टिक सके तथा उसका पुत्र मारा गया।
अंत में युद्ध करने पोरस स्वयं आया। पोरस और उसकी धनुर्धारी सेना ने सिकंदर को युद्ध में कड़ी टक्कर दी। लेकिन अंत में सिकंदर महान ने पोरस की पूरी सेना को ध्वस्त कर दिया और पोरस को बंदी बनाया! इस प्रकार झेलम के इस युद्ध में भी सिकंदर की विजय हुई।

युद्ध पश्चात घायल पोरस को सिकंदर के सामने प्रस्तुत किया गया। सिकन्दर ने पोरस की वीरता को प्रशंसा की तथा पूछा, “तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव किया जाय?” पोरस ने गर्व के साथ उत्तर दिया – “जैसा एक वीर राजा दूसरे वीर राजा के साथ करता है।” इस उत्तर को सुनकर सिकन्दर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने पोरस को जीवनदान दिया और अपना सहयोगी बना लिया।
इसके पश्चात् सिकन्दर ने युद्ध मे वीरगति पाने वाले सैनिकों का अन्त्येष्टि संस्कार किया तथा यूनानी देवताओं की पूजा की। उसने दो नगरों की स्थापना की। पहला नगर रणक्षेत्र में ही विजय के उपलक्ष्य में बसाया गया और उसका नाम “निकैया” (विजयनगर) रखा गया। दूसरा नगर झेलम नदी के दूसरे तट पर उस स्थान पर बसाया गया जहाँ सिकन्दर का प्रिय घोड़ा ‘बउकेफला’ मरा था। घोड़े के नाम पर इस नगर का नाम भी ‘बउकेफला’ रखा गया।
झेलम के युद्ध में पोरस को परास्त करने के पश्चात् सिकन्दर ने चिनाब नदी के पश्चिमी तट पर स्थित ‘ग्लौचुकायन राज्य’ पर आक्रमण किया, ओर ग्लूचुकायनो हराया।
तत्पश्चात् सिकन्दर ने चिनाब नदी पार कर ‘गान्दारिस’ राज्य में प्रवेश किया। यहाँ पोरस का भतीजा ‘छोटा पुरु‘ शासन करता था। वह अपना राज्य छोड़कर भाग गया तथा सिकन्दर ने चेनाब और रावी नदियों के बीच के उसके राज्य पर अधिकार कर लिया। इसके बाद सिकन्दर ने रावी नदी पार किया तथा गणजातियों पर आक्रमण कर दिया। अद्रेष्ट्राई (आद्रिज) लोगों ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा सिकन्दर ने उसकी राजधानी ‘पिम्प्रमा’ पर अधिकार कर लिया।
दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब में अम्बष्ठ, क्षतृ तथा वसाति नामक छोटे-छोटे गणराज्य थे। उन्होंने भी सिकन्दर की अधीनता स्वीकार की।
इसके बाद सिकन्दर पाटल पहुँचा जहाँ सिन्धु नदी दो धाराओं में विभक्त होती है। डियोडोरस के अनुसार स्पार्टा के ही समान यहाँ दो राजाओं का शासन (द्वैराज्य) था तथा कुलवृद्धों की एक सभा द्वारा उसका संचालन होता था।* सिकंदर महान के आगमन का समाचार सुनते ही यहाँ के नागरिकों ने नगर खाली कर दिया तथा सिकन्दर ने उस पर पूर्ण अधिकार कर लिया। यहाँ उसने एक नयी क्षत्रपी (प्रांत) बनायी जिसका शासक (क्षत्रप) पिथोन (Pithon) को नियुक्त किया।
सिकंदर भारत में लगभग ११ मास तक रहा, इसी काल में उसने अपनी वीरता से भारत के अनेक राज्यों को जीत लिया और अपने भारत विजय का स्वप्न साकार किया। सिकंदर और उसकी सेना को स्वदेश छोड़े कई वर्ष हो चुके थे, ओर लगातार युद्ध करने के कारण अब वे थक चुके थे। पोरस और अन्य भारतीय राजाओं को हराने के बाद अंततः सिकंदर ने अपनी मातृभूमि यूनान में जाने का निश्चय किया। [5]
मृत्यु
[संपादित करें]विश्व के सबसे महान विजेता सिकंदर की मृत्यु इतिहास के सबसे विवादास्पद विषयों में से एक है। भारत विजय के बाद सिकंदर वर्षों बाद अपनी मातृभूमि यूनान में जाने के लिए उत्सुक थे। लेकिन यूनान पहुंचने से पहले ही इजिप्ट के बेबीलोन नामक शहर में उसकी रहस्यमई तौर पर मृत्यु हो गई।

बेबीलोनियन खगोलीय डायरी के अनुसार, सिकंदर महान की मृत्यु ३२ वर्ष की आयु में बेबीलोन में नबूकदनेस्सर महल में 10 जून, 323 ईसा पूर्व में हुई थी। उनकी मृत्यु का कारण मलेरिया अथवा ज्वार रोग को बताया जाता है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]टिप्पणी
[संपादित करें]उद्धरण
[संपादित करें]- ↑ Plutarch, Life of Alexander 3.5: "The birth of Alexander the Great". Livius. मूल से 20 March 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 December 2011.
Alexander was born the sixth of Hekatombaion.
- ↑ David George Hogarth (1897). Philip and Alexander of Macedon : two essays in biography. New York: Charles Scribner's Sons. पृ॰ 286–287.
- ↑ Diana Spencer (2019-11-22). "Alexander the Great, reception of". Oxford Research Encyclopedias. अभिगमन तिथि 2021-11-09.
Alexander enjoys the epithet the Great for the first time in Plautus's Roman comedy Mostellaria (775–777).
- ↑ "सिकंदर को कांटे की टक्कर देने वाले राजा पोरस कौन थे". मूल से 4 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 नवंबर 2018.
- ↑ https://www.prabha001.com/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%A3/
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Marshal Zhukov on Alexander’s failed India invasion Archived 2014-01-08 at the वेबैक मशीन
-->