साहित्य-लहरी

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साहित्यलहरी ११८ पदों की एक लघु रचना है। इसके अन्तिम पद में सूरदास का वंशवृक्ष दिया है, जिसके अनुसार सूरदास का नाम 'सूरजदास' है और वे चन्दबरदायी के वंशज सिद्ध होते हैं। अब इसे प्रक्षिप्त अंश माना गया है और शेष रचना पूर्ण प्रामाणिक मानी गई है।

इसमें रस, अलंकार और नायिका-भेद का प्रतिपादन किया गया है। इस कृति का रचना-काल स्वयं कवि ने दे दिया है जिससे यह संवत् १६०७ विक्रमी में रचित सिद्ध होती है।[1] रस की दृष्टि से यह ग्रन्थ विशुद्ध श्रृंगार की कोटि में आता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. हिन्दी साहित्य का इतिहास Archived 2015-04-16 at the वेबैक मशीन (गूगल पुस्तक ; लेखक - श्याम चन्द्र कपूर)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]