सालबेग
| सालबेग ସାଲବେଗ Sālabega | |
|---|---|
| जन्म |
१६०७/१६०८ पुरी, ओड़िशा, भारत |
| मौत | पुरी, ओड़िशा, भारत |
| समाधि | पुरी एवं दाण्डमुकुन्दपुर, पिपिली |
| आवास | पुरी, ओड़िशा |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| जाति | ओड़िया |
| शिक्षा | अनौपचारिक |
| पेशा | कवि, साहित्यकार |
| प्रसिद्धि का कारण | जगन्नाथ भजन, आहे नीला शैल |
| धर्म | इस्लाम (जन्म से) |
| माता-पिता | लालबेग (पिता), फातिमा (माता) |
| समाधि | पुरी एवं दाण्डमुकुन्दपुर, पिपिली |
सालबेग (ओड़िया: ସାଲବେଗ, उच्चारण: Sālabega; जन्म: १६०७/१६०८ - मृत्यु: ?) १७वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत के एक ओड़िया धार्मिक कवि थे, जिन्होंने जगन्नाथ भजनों की रचना की।[1][2] जन्म से मुसलमान होते हुए भी हिन्दू देवता जगन्नाथ के प्रति उनकी गहरी भक्ति के कारण, ओडिशा में भगवान जगन्नाथ ने अपनी रथयात्रा रोककर उन्हें दर्शन दिए थे।[3][4][5][6] उनका प्रसिद्ध भजन 'आहे नीला शैल' आज भी लोकप्रिय है।
जीवन परिचय
[संपादित करें]सालबेग का ओडिशा के भक्ति कवियों में विशिष्ट स्थान है। उनका जन्म १६०७-१६०८ ईस्वी के आसपास हुआ। वे मुग़ल सूबेदार लालबेग के पुत्र थे। लालबेग ने एक सैन्य अभियान के दौराण दंडमुकुंदपुर गाँव पर हमला किया, जहाँ उन्होंने ब्राह्मण विधवा ललिता का अपहरण कर उन्हें इस्लाम कबूल करवाया और विवाह किया। ललिता ने हिन्दू धर्म का पालन जारी रखा। सालबेग इसी संबंध की संतान थे।

युवा होने पर सालबेग ने पिता के सैन्य अभियानों में भाग लेना शुरू किया। एक युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने पर उनकी माँ के कहने पर उन्होंने विष्णु नाम का जाप किया, जिससे वे चमत्कारिक रूप से ठीक हो गए। इस घटना ने उन्हें हिन्दू धर्म की ओर आकर्षित किया। माँ से जगन्नाथ (विष्णु के अवतार) के बारे में जानकर वे पुरी गए, किंतु जन्म के धर्म के कारण मन्दिर में प्रवेश न मिला।[7]
तब वे वृंदावन चले गए, जहाँ साधुओं के साथ रहकर कृष्ण भजनों में समय बिताया। एक वर्ष बाद जगन्नाथ की रथयात्रा देखने पुरी लौटते समय वे बीमार पड़ गए। उन्होंने जगन्नाथ से प्रार्थना की: "मेरे आने तक प्रतीक्षा करें!" अगले दिन नंदीघोष रथ (जगन्नाथ का रथ) तब तक नहीं हिला जब तक सालबेग नहीं पहुँचे। इस स्थान पर बाद में सालबेग ने अनेक भजन रचे। उनकी समाधि आज भी पुरी की बड़ादंड (महामार्ग) पर स्थित है। प्रति वर्ष रथयात्रा के दौरान जगन्नाथ का रथ उनकी समाधि के पास कुछ समय रुकता है।
रचनाएँ
[संपादित करें]
सालबेग की भक्ति-भावना भक्ति कालीन साहित्य में भी असाधारण है। मन्दिर में प्रवेश न मिलने के बावजूद उनके भजनों में जगन्नाथ मन्दिर के आंतरिक परिसर और गर्भगृह का विस्तृत व सटीक वर्णन मिलता है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- 'आहे नीला शैल' जगन्नाथ को समर्पित सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रार्थना है।
- उनके गीतों में तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं (जैसे पुरी पर हमले, मन्दिर की मूर्तियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना) का वर्णन है।
- अधिकांश रचनाएँ जगन्नाथ और कृष्ण की स्तुति में हैं।
- कुछ रचनाएँ राधा-कृष्ण की प्रेमलीला और माता यशोदा के वात्सल्य भाव पर आधारित हैं।
सालबेग के भजन ओडिसी संगीत की राग-ताल परंपरा में गाए जाते हैं।
प्रसिद्ध भजन: "आहे नीला शैल"
[संपादित करें](मूल ओड़िया भजन के अंशों का हिन्दी भावार्थ)
आहे नीला शैल, प्रबल मत्त वारण
हे नीले पहाड़ (जगन्नाथ)! तुम प्रचण्ड मदमस्त हाथी हो,
मेरे कमल-सदृश हृदय को रौंदने वाले...
गजराज चिन्ता कला थाइ घोर जलेण
गजराज (गजेन्द्र) की चिंता सुनकर भयंकर जल में,
चक्र से मगर का नाश कर उसे बचाया।
घोरवने मृगुणीकु पडिथिला कषण
घोर वन में हिरणी के संकट में पड़ने पर,
असंख्य विपत्तियों से तुमने उसका उद्धार किया।
द्रौपदीर जणाण कोटि वस्त्र देइ
द्रौपदी की लज्जा रक्षा हेतु सभा में,
कोटि वस्त्र देकर उसकी प्रतिष्ठा बचाई।
विभीषण गला शरण, लङ्के कल राजन
विभीषण को शरण देकर लंका का राज्य दिया,
शरणागत की रक्षा करने वाले प्रभु!
प्रहल्लाद पिता से ये बडदुष्टदारुण
प्रह्लाद के पिता (हिरण्यकशिपु) जैसे दुष्ट का,
स्तंभ से प्रकट होकर तत्क्षण वध किया।
सांस्कृतिक संदर्भ
[संपादित करें]- "नीला शैल": जगन्नाथपुरी के मन्दिर को "नीला पहाड़" कहा गया है।
- "श्रीरंग": जगन्नाथ का दूसरा नाम, जो विष्णु के "रंगनाथ" स्वरूप का संकेत है।
- जाति-व्यथा: मुस्लिम होकर हिन्दू देवता की भक्ति करने की पीड़ा व्यक्त की गई है।
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Muslim-born Salabeg, the Jagannath devotee who brought the Lord to the masses". The Indian Express (अंग्रेज़ी भाषा में). 2017-03-29. अभिगमन तिथि: 2022-07-20.
- ↑ "The Story of Lord Jagannath and the Mazar". Times of India Blog (अंग्रेज़ी भाषा में). 2020-06-23. अभिगमन तिथि: 2022-07-20.
- ↑ "The Story of Lord Jagannath and the Mazar". Times of India Blog (अंग्रेज़ी भाषा में). 2020-06-23. अभिगमन तिथि: 2022-07-20.
- ↑ "Muslim-born Salabeg, the Jagannath devotee who brought the Lord to the masses". The Indian Express (अंग्रेज़ी भाषा में). 2017-03-29. अभिगमन तिथि: 2022-07-20.
- ↑ "Story of Salabega and his beautiful songs". Utkal Today (अमेरिकी अंग्रेज़ी भाषा में). 2020-08-03. मूल से से 2022-07-20 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 2022-07-20.
- ↑ Sujit Mahapatra (2022-01-02). Bhakta Salabega.
- ↑ Niranjan Mohanty (1996). Salabega. Sahitya Akademi. p. 26.