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सारावली

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कल्याणवर्म द्वारा विरचित सारावली ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। अह ज्योतिष के त्रिस्कन्ध में से होरा स्कन्ध के अन्तर्गत आता है।

ग्रन्थकार ने अपने जन्म स्थान एवं ग्रन्थ रचनाकाल के विषय में स्पष्ट रूप में कुछ भी निर्देशित नहीं किया है, परन्तु कुछ श्लोकों के आधार पर पता चलता है कि देवग्राम नगर निवासी श्रीमद् व्याघ्रपदीश्वर कल्याणवर्मा इस प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता हैं। अतः व्याघ्रपदीश्वर शब्द से ग्रन्थकार बघेल वंशीय सिद्ध होते हैं।

इस ग्रन्थ में कुल 54 अध्याय हैं, जिनमें फलित ज्योतिष से जुड़े मूलभूत तत्त्वों का उल्लेख छन्दोबद्ध तरीके से अत्यन्त सरलतया किया गया है। वस्तुतः ज्योतिष शास्त्र का मुख्य उद्देश्य शुभ-अशुभ फलों का प्रतिपादन ही है । इस ग्रन्थ में फलादेश में उपयोगी राजयोगादि का उल्लेख है, जिनकी सहायता से गणक सरलतापूर्वक फलादेश करने में समर्थ होते हैं। ग्रन्थ के शास्त्रावतार संज्ञक प्रथम अध्याय का आरम्भ ज्योतिष के अष्टादश प्रवर्तक आचार्यों में अग्रगण्य भगवान सूर्यनारायण की स्तुति से हुआ है , तत्पश्चात होराशब्दार्थचिन्तादि 53 अध्यायों में ग्रन्थ आबद्ध हैं।

सारावली मे ज्योतिष का जो रूप प्रस्तुत किया गया है, उसके द्वारा हमें पूर्ण रूप से भूत काल वर्तमान काल और भविष्य काल का ज्ञान करने मे कोई परेशानी नही होती है।ज्योतिष की जानकारी के लिये सारावली मे कल्याण वर्मा ने जो कथन अपनी लेखनी से संवत १२४५ मे (आज से ८२० साल पहले) किया था, वह आज भी देश काल और परिस्थिति के अनुसार शत प्रतिशत खरा उतरता है। इनके द्वारा लिखे गये ग्रंथ सारावली मे ५४ अध्यायों जो भी ज्योतिष मे है, सब कुछ लिख दिया गया है, और जो लिखा है वह ऐसा लगता है कि वह भी आज को ही देख्कर लिखा गया है, भले ही यह सारावली अन्य देश, काल, और परिस्थिति के अनुरूप सही मिले, पर भारतीय परिस्थितियों मे यह पूरी तरह से फलादेश करने पर सही उतरता है। इस ग्रंथ में हर वैदिक ग्रंथ की तरह पहले अध्याय में मंगलाचरण का समावेश किया गया है और दूसरे अध्याय से ज्योतिष की हर राह को बताया गया है। इनके द्वारा लिखी गई सारावली का सूक्ष्म विवरण इस प्रकार से है:-

  • ३. १२ राशियों के नाम, राशियों के स्वरूप, कालपुरुष के अवयव, अवयवों का प्रयोजन, १२ राशियों के नामांतर, राशि के पर्याय, मण्डल व चक्रार्ध स्वामी, चक्रार्ध स्वामी के अनुसार फल, १२ राशियों के स्वामी और नवांशधिपति, स्पष्टार्थ स्वामी चक्र, स्पष्टार्थ नवांश चक्र, भवनाधिप के बिना फलादेश नही होता, वर्गोत्तम नवांश तथा द्वादशांश का वर्णन, द्रेष्कांण एवं होरा स्वामी, स्पष्टार्थ द्रेष्काण चक्र, स्पष्टार्थ होरा चक्र, त्रिशांश के स्वामी, स्पष्टार्थ त्रिशांश चक्र, सप्तमांश के स्वामी, स्पष्टार्थ सप्तमांश चक्र, राशियों मे वर्ग भेद संख्या का ज्ञान, वर्ग भेद का आनयन, राशियों की क्रूराक्रूरादि पुरुष, स्त्री, चर, स्थिर, द्विस्वभाव, तथा गण्डान्त संज्ञायें, गण्डान्त में जायमान का फल, राशियों की दिशा व फल, कौन कौन राशि किस दिशा व समय मे बली, राशियों की दिन रात्रि पॄष्ठोदयादि संज्ञा, राशियों का बल, १२ भावों के नाम, १२ भावों के नामान्तर, चतुरस्त्र, केंद्रादि संज्ञा, चतुर्थ व दसम के नामान्तर, नवम, सप्तम, पंचम के नामान्तर, ६, ३, १२, २, भावों के नामान्तर, फणफर, आपोक्लिम सज्ञा, उपचय और अनुपचय संज्ञा, ग्रहों की मूल त्रिकोण राशि, उच्च नीचादि ज्ञान, राशियों की ह्रस्व, दीर्घ, मध्योदय संज्ञा, ह्रस्वोदयादि का फल, राशियों का प्लव व प्रयोजन, राशियोम के वर्ण तथा प्रयोजन.
  • ४. कालपुरुष के आत्मादि विभाग, आत्मादि का प्रयोजन, द्रेष्काणवश कालावयवों की उतपत्ति, लगन के आधार पर वाम, दक्षिण अंग तथा निर्बल सबल संज्ञा, लग्न द्रेष्काणवश कालावयव का ज्ञान, अंग का प्रयोजन, ग्रहों के राजत्वादि अधिकार व प्रयोजन, कौन ग्रह किस दिशा का स्वामी, ग्रहों की शुभ पाप संज्ञा, सूर्य, चन्द्र, बुध, मंगल के नामान्तर, गुरु, शुक्र, शनि के नामान्तर, सूर्यादि ग्रहों के वर्ण और अधिदेवता, अधिदेवताओं का प्रयोजन, ग्रहों की पुरुष, स्त्री, नपुंसक, तथा विप्रादि संज्ञा एवं तत्वों के अधिपति, ग्रहों के रस तथा स्थान, ग्रहों के वस्त्र तथा धातु, काल एवं ॠतुओं के स्वामी ग्रह, कालाधिपति प्रयोजन, वेदों के अधिपति, लोक स्वामी ग्रह, सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि का स्वरूप और गुण, नैसर्गिक मित्र, शत्रु और सम का ज्ञान, ग्रहों के तत्कालिक मित्र और शत्रु, पंचधा मैत्री विचार, ग्रहों की साधारण और पूर्ण द्रष्टि, ग्रहों के चार प्रकार के बल, दिग्बल, स्थान बल, काल बल, चेष्टा बल, आयन बल, द्रेष्काण बल, दिन रात्रि विभाग बल, नैसर्गिक बल, सात प्रकार के बल का कथन, ग्रहों की असफलता.
  • ५. ग्रहों की दीप्तादि ९ प्रकार की अवस्था कथन, दीप्तादि का ज्ञान, दीप्त अवस्थागत ग्रह फल, स्वस्थ, मुदित, शान्त, शक्त, पीडित, भीत, विकल, खल, उच्च राशि में वक्री होने पर ग्रह फल, उच्चादि बल में प्रेष्ठादि कथन, पूर्ण चन्द्र में राजा, आयु मध्य मे सुख योग, राशि भेद फल कथन, फल भेद का निर्णय, मूल त्रिकोण व स्वगॄह के अंश, उच्च नीचादि राशि स्थित शुभ ग्रहों में फल का न्यूनाधिक्य, नीचादि राशि स्थित पाप ग्रहों के अशुभ फलों मे न्यूनाधिक्य, शुभ फल का अभाव और अशुभ फल की प्राप्ति, उच्च मूल और त्रिकोण मे स्थित ग्रह फल, स्वराशि फल, मित्र राशि व होरा में स्थित ग्रह का फल, स्वद्रेष्काण व स्वनवांश बल से युक्त ग्रह का फल, त्रिशांश बल से युक्त व शुभ ग्रह से द्र्ष्ट ग्रह का फल, पुरुष राशि, स्त्री राशि, बल से युक्त ग्रह का फल, स्थान बल, चेष्टा बल, दिग बल, अयन बल, युत ग्रह का फल, शुभ, पाप, वक्री ग्रह का फल, निष्कण्टक राज्य प्रद ग्रह का फल, दिन रात्रि बल से युक्त ग्रह का फल, वर्शेषादि ग्रह फल, पक्षबल से युक्त ग्रह का फल, बलवान शुभ ग्रहों का फल, बलवान पाप ग्रहों का फल, स्वमित्रादि राशिगत ग्रहों की दशा मे नाम, बलादि दशा के फल, विषम राशिगत ग्रह का फल, समराशिगत ग्रह का फल
  • ६. परस्पर कारक ग्रह कथन, कारक ग्रह का उदाहरण, अन्य कारक ग्रह कथन, कारक ग्रह का फल, समस्त योगों मे कारक की प्रधानता.
  • ७. वारेशादि कथन, प्रथम वर्षेश व होरेश से द्वितीयादि तथा अभीष्ट दिन में वारेश कथन, सौर चन्द्र मास कथन, भावोक्त कर्म करने का समय, सूर्य के विषय, चन्द्रमा के विषय, मंगल के विषय, बुध के विषय, गुरु के विषय, शुक्र के विषय, शनि के विषय, ग्रहों के देश.
  • ८. आधानाध्याय का कथन, गर्भाधान योग्य रजोदर्शन कथन, रजोदर्शन का कारण, गर्भाधान में अक्षम रजोदर्शन, स्त्री पुरुष संयोग कथन, सम्भोग ज्ञान प्रकार, गर्भ सम्भव योग, प्रकारान्तर, गर्भस्थिति का स्वरूप, गर्भ मे पुत्र या कन्या का ज्ञान, अन्य प्रकार, गर्भ मे यमल (जुडवां) का योग, गर्भ मे तीन संतान के जन्म का योग, माता पिता मौसी, चाचा ग्रह, मातादि संज्ञा का प्रयोजन, गर्भाधान के बाद प्रत्येक मास में गर्भ का स्वरूप, गर्भ के दस मासों के स्वामी, गर्भपात योग, गर्भ पुष्टि ज्ञान, गर्भ के साथ गर्भवती मरण योग, अन्य प्रकारान्तर से गर्भवती मरण योग, गर्भ वॄद्धि योग ज्ञान, गर्भ के समय से प्रसव के मास का ज्ञान, अन्य प्रकार से ज्ञान, जन्म राशि का ज्ञान, तीन व बारह वर्ष के बाद प्रसव योग का ज्ञान, प्रसव के दिन रात्रि काल का ज्ञान, प्रसव के लग्नादि का ज्ञान, नेत्रहीन योग का ज्ञान, पुन: नेत्रहीन योग का ज्ञान, मूक योग का ज्ञान, जड सदन्त योग का ज्ञान, अधिकान्ग योग का ज्ञान, बामन व कुब्ज योग, पंगु योग ज्ञान.
  • ९. मस्तकादि से जन्म योग का ज्ञान, प्रसव स्थान का ज्ञान, प्रकारान्तर से प्रसव स्थान का ज्ञान, प्रसव देश का ज्ञान, अन्य प्रकार से प्रसव देश का ज्ञान, सूतिका के गॄह का ज्ञान, सूतिका के शयन स्थान का ज्ञान, प्रसव स्थान मे बरामदे का ज्ञान, सूतिका के गॄह स्वरूप का ज्ञान, सूतिका के गॄह के द्वार, व समीप के घर का ज्ञान, सूतिका की शय्या का ज्ञान, सूतिका का भूमि शयन, व उपसूतिका (दाई) का ज्ञान, सूतिका के घर में दीपक स्थान व स्वरूप, दीपक की बत्ती व तेल का ज्ञान, अधिक दीप ज्ञान, प्रसव समय के अन्धकार का ज्ञान, पिता की अनुपस्थिति में प्रसव का ज्ञान, कष्ट में प्रसव व माता सुख ज्ञान, परजात (दूसरे के द्वारा) जन्मयोग ज्ञान, माता से त्यक्त योग ज्ञान, नालवेष्टित जन्म योग ज्ञान, सर्पवेष्टित जन्म योग ज्ञान, यमल जन्म योग ज्ञान, जातक के शरीर व वर्ण का ज्ञान, जातक की प्रकॄति का ज्ञान, जातक के माता पिता के मरण योग का ज्ञान, माता पिता के सुख योग का ज्ञान.
  • १०. पुरुष वनिता ग्रहों के बल का ज्ञान, तीन प्रकार के अरिष्टों का कथन, दूसरे व तीसरे वर्ष में अरिष्ट का ज्ञान, नवम वर्ष के बाद अरिष्ट का ज्ञान, एक मास मे अरिष्ट का ज्ञान, एक, छ:, चार वर्ष मे अरिष्ट का ज्ञान, मास में अरिष्ट व शीघ्र अरिष्ट ज्ञान, शरीर पीडा ज्ञान, जन्माधिपति के द्वारा शरीर पीडा का ज्ञान, शीघ्र मरण ज्ञान, माता या जातक मे एक का मरण योग का ज्ञान, जन्मांग से अरिष्ट ज्ञान, मॄत जातक योग का ज्ञान, कथित अंशों मे मरण समय का ज्ञान.
  • ११. पूर्ण चन्द्र होने पर अरिष्टनाश योग का ज्ञान, प्रकारन्तर से अरिष्टभंग योग.
  • १२. गुरु के द्वारा अरिष्टभंग योग, राहु से अरिष्टभंग योग, केन्द्र में गुरु व शुक्र से अरिष्ट भंग योग, अमितायु योग ज्ञान.
  • १३. सुनफ़ा, अनफ़ा, दुरुधरा योग लक्षण, केमद्रुम योग का ज्ञान, दुरुधरा योग के १०८ भेदों की सारणी, सुनफ़ा योग फल, अनफ़ा, दुरुधरा योग फल, सुनफ़ा आदि योगों का केन्द्र मे प्रधानत्व, सुनफ़ा योग कारक मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि का फल, अनफ़ा योग कारक मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि का फल, स्वल्प मध्यम उत्तम धनादि योग का ज्ञान, चन्द्रामदि से उत्तमादि धन योग का ज्ञान, प्रकारान्तर से उत्तमादि धन योग का ज्ञान
  • १४. वेशि योग, उभयचरी योग, वेशि और उभयचरी योग के लक्षण, वेशि योग कारक गुरु, शुक्र, बुध मंगल, शनि का फल ज्ञान, उभयचरी योग का फल.
  • १५. सूर्य चन्द्र युति का फल, सूर्य भौम युति का फल, सूर्य बुध युति का फल, सूर्य गुरु युति का फल, सूर्य शुक्र युति का फल, सूर्य शनि युति का फल, चन्द्र मंगल, चन्द्र बुध, चन्द्र गुरु, चन्द्र शुक्र, चन्द्र शनि, मंगल बुध, मंगल गुरु, मंगल शुक्र, मंगल शनि, बुध गुरु, बुध शुक्र, बुध शनि, गुरु शुक्र, गुरु शनि, शुक्र शनि
  • १६. सूर्य चन्द्र मंगल, सूर्य चन्द्र बुध, सूर्य चन्द्र गुरु, सूर्य चन्द्र शुक्र, सूर्य चन्द्र शनि, सूर्य मंगल बुध, सूर्य मंगल गुरु, सूर्य मंगल शुक्र, सूर्य मंगल शनि, सूर्य बुध गुरु, सूर्य बुध शुक्र, सूर्य बुध शनि, सूर्य गुरु शुक्र, सूर्य गुरु शनि, सूर्य शुक्र शनि, चन्द्र मंगल बुध, चन्द्र मंगल गुरु, चन्द्र मंगल शुक्र, चन्द्र मंगल शनि, चन्द्र बुध गुरु, चन्द्र बुध शुक्र, चन्द्र बुध शनि, चन्द्र गुरु शुक्र, चन्द्र गुरु शनि, चन्द्र शुक्र शनि, मंगल बुध गुरु, मंगल बुध शुक्र, मंगल बुध शनि, मंगल गुरु शुक्र, मंगल गुरु शनि, मंगल शुक्र शनि, बुध गुरु शुक्र, बुध गुरु शनि, गुरु शुक्र शनि
  • १७. सूर्य चन्द्र मन्गल बुध, सूर्य चन्द्र मन्गल गुरु, सूर्य चन्द्र मन्गल शुक्र, सूर्य चन्द्र मन्गल शनि, सूर्य चन्द्र बुध गुरु, सूर्य चन्द्र बुध शुक्र, सूर्य चन्द्र बुध शनि, सूर्य चन्द्र गुरु शुक्र, सूर्य चन्द्र गुरु शनि, सूर्य चन्द्र शुक्र शनि, सूर्य मन्गल बुध गुरु, सूर्य मन्गल बुध शुक्र, सूर्य मन्गल बुध शनि, सूर्य बुध गुरु शुक्र, सूर्य बुध गुरु शनि, सूर्य गुरु शुक्र शनि, चन्द्र मन्गल बुध गुरु, चन्द्र मन्गल बुध शुक्र, चन्द्र मन्गल बुध शनि, चन्द्र मन्गल गुरु शुक्र, चन्द्र मन्गल गुरु शनि, चन्द्र मन्गल शुक्र शनि, चन्द्र बुध गुरु शुक्र, चन्द्र बुध गुरु शनि, चन्द्र गुरु शुक्र शनि, मन्गल बुध गुरु शुक्र, मन्गल बुध गुरु शनि, मन्गल गुरु शुक्र शनि, बुध गुरु शुक्र शनि.
  • १८. सूर्य चन्द्र मन्गल बुध गुरु, सूर्य चन्द्र मन्गल बुध शुक्र, सूर्य चन्द्र मन्गल बुध शनि, सूर्य मन्गल बुध गुरु शुक्र, सूर्य मन्गल बुध गुरु शनि, सूर्य बुध गुरु शुक्र शनि, चन्द्र मन्गल बुध गुरु शुक्र, चन्द्र मन्गल बुध गुरु शनि, चन्द्र बुध गुरु शुक्र शनि, मन्गल बुध गुरु शुक्र शनि.
  • १९. सूर्य चन्द्र मन्गल बुध गुरु शुक्र, सूर्य चन्द्र मन्गल बुध गुरु शनि, सूर्य मन्गल बुध गुरु शुक्र शनि, एकत्रित पांच या छ: ग्रहों का फल.
  • २०. सन्यास योगों का वर्णन, तपस्वी योग का ज्ञान, प्रव्राजक योग का ज्ञान, तपस्वी योग, व्रती योग का ज्ञान, वन पर्वत का तपस्वी योग, अन्न त्यागी योग, व्रती योग ज्ञान, यशश्वी मुनि योग ज्ञान, तपस्वी मुनि योग ज्ञान, फल मूल भक्षक तपस्वी मुनि योग ज्ञान, वल्कल चीरधारी मुनि योग ज्ञान, शान्त तपस्वी मुनि योग ज्ञान, दुखी मुनि योग ज्ञान, प्रव्रज्या योग ज्ञान, नॄप योगी ज्ञान, प्रव्रज्या कारक सूर्य, चन्द्र, मन्गल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ज्ञान.
  • २१. ३२ नाभस योगों का ज्ञान, "७" की संख्या संज्ञा का कथन, दल व आकॄति संज्ंयक योग का ज्ञान, आश्रय, आकॄति, संख्या, नौ कूट, छत्र, चाप, यूप, शर, शक्ति, दंड, अर्ध चन्द्र, बज्र, यव, शकट, [विहग, हल, श्रंगाटक, चक्र व समुद्र, नल, मूसल, रज्जु, माला, सर्प, नाभस योग फल प्राप्ति ज्ञान, नौका, कूट, छत्र, चाप, अर्ध चन्द्र, वज्र, यव, कमल, वापी, शकट, विहग, गदा, श्रंगाटक, हल, चक्र, समुद्र, यूप, शर, शक्ति, दंड, माला, सर्प, रज्जु, मूसल, नल, गोल, युग, शूल, केदार, पाश, दामिनी और वीणा योगों का फल.
  • २२. मेषस्य सूर्य का फल, मंगल की राशियों में सूर्य पर ग्रहों की द्रिष्टि का फल, वॄष राशि के सूर्य का फल, शुक्र की राशियों में सूर्य पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, मिथुन राशि के सूर्य का फल, बुध की राशियों मे स्थित सूर्य पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, कर्क राशि में सूर्य का फल, कर्क राशि मे स्थित सूर्य पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, सिंह राशि में सूर्य का फल, सिंह राश मे स्थित सूर्य पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, कन्या राशि मे सूर्य का फल, तुला राशि मे सूर्य का फल, वॄश्चिक राशि मे सूर्य का फल, धनु राशि मे सूर्य का फल, गुरु राशियों मे स्थित सूर्य पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, मकर राशि में सूर्य का फल, शनि की राशियों में स्थित सूर्य पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, कुम्भ राशि के सूर्य का फल, मीन राशि में सूर्य का फल.
  • २३. मेष राशि के चन्द्रमा का फल, मेष राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, वॄष राशि के चद्रमा का फल, वृष राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, मिथुन राशि के चन्द्रमा का फल, मिथुन राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, कर्क राशि के चन्द्रमा का फल, कर्क राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, सिंह राशि के चन्द्रमा का फल, सिंह राशि पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, कन्या राशि के चन्द्रमा का फल, कन्या राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, तुला राशि के चन्द्रमा का फल, तुला राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, वॄश्चिक राशि के चन्द्रमा का फल, वॄश्चिक राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, धनु राशि के चन्द्रमा का फल, धनु राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, मकर राशि के चन्द्रमा का फल, मकर राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, कुम्भ राशि के चन्द्रमा का फल, कुम्भ राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, मीन राशि के चन्द्रमा का फल, मीन राशि के चन्द्रमा पर अन्य ग्रहों की द्रिष्टि का फल, कथित फलों का निर्णय.
  • २४. नवांशों पर चन्द्रमा और उसके ऊपर अन्य ग्रहो के पडने वाले प्रभाव.
  • २५. सभी राशियों में स्थित मंगल के फल और अन्य ग्रहों का मंगल पर प्रभाव.
  • २६. सभी राशियों मे स्थित बुध के फल और अन्य ग्रहों का बुध पर प्रभाव.
  • २७. सभी राशियों में स्थित गुरु के फल और अन्य ग्रहों का गुरु पर प्रभाव.
  • २८. सभी राशियों में स्थित शुक्र के फल और अन्य ग्रहों का शुक्र पर प्रभाव.
  • २९. सभी राशियों में स्थित शनि के फल और अन्य ग्रहों का शनि पर प्रभाव.
  • ३०. भावों का वर्गीकरण, सभी भावों मे सूर्य, सभी भावों में चन्द्र, सभी भावों में मंगल, सभी भावों में बुध, सभी भावों मे गुरु, सभी भावों मे शुक्र, सभी भावों में शनि.
  • ३१. केन्द्र के सूर्य, चन्द्र युति का फल, केन्द्र में अन्य सभी ग्रहों की आपस में युती का फल.
  • ३२. भाग्य भाव और अन्य ग्रहों की युती आदि का विचार.
  • ३३. फल कथन की विशेषता का ज्ञान.
  • ३४. सातों ग्रहों से द्रिष्ट लगन का फल, अपनी राशि को देखने का फल, अपनी राशि को लगन मे नहीं देखने का फल, लगन मे अच्छे और खराब ग्रहों का फल, सभी भावों मे अपने भावानुसार देखने का फल, भाइयों की संख्या का ज्ञान, तीसरे भाव में शनि शुक्र का फल, संतान प्राप्ति और अप्राप्ति का ज्ञान, पंचम भाव मे गुरु के और शुभ राशि षडवर्ग का फल, दत्तक पुत्र का योग, कन्या संतान की प्राप्ति का समय, संतान हीन योग, स्त्री नाश, स्त्री संख्या का ज्ञान, वन्ध्या योग ज्ञान, स्त्री के साथ व्यभिचार योग का ज्ञान, अधिक धनाढ्य योग का ज्ञान, ग्रहों से लाभ का ज्ञान, शरीर के अंग विनाश का ज्ञान.
  • ३५. कुलों मे उत्पन्न होने का ज्ञान, विदेश यात्रा का ज्ञान.
  • ३६. ग्रहों की रश्मि संख्या का ज्ञान.
  • ३७. पंचमहापुरुष लक्षण,
  • ३८. राज योग, राजयोग भंग योग.
  • ३९. दशाध्याय का कथन, दशाध्याय के विभिन्न मत,
  • ४०. अन्तर्दशा पाक ज्ञान,
  • ४१. पाप ग्रह की अन्तर्दशा का फल.
  • ४२ दशारिष्ट भंग का ज्ञान.
  • ४३. उच्च, मूल त्रिकोण, स्वराशि ग्रहों का फल ज्ञान
  • ४४. नीच राशि में ग्रह फल
  • ४५. स्त्री जातक अध्याय
  • ४६. मॄत्यु और उसके प्रकार, स्थान, समय आदि.
  • ४७. नष्ट जातक अध्याय
  • ४८. राशियों में होरा फल.
  • ४९. राशियों में द्रेष्काण का फल
  • ५०. सभ्र्र राशियों के नौ नवांशों का फल.
  • ५१. प्रश्न लगन से जन्म के अयन का ज्ञान, समस्त नष्टजातक ज्ञान प्रकार
  • ५२. ग्रह और उनके अष्टक वर्ग
  • ५३. वियोनि जन्माध्याय, सॄष्टि के समय और उसका योग ज्ञान, पशु, पक्षी, पेड पौधों का जन्म योग ज्ञान
  • ५४. प्रस्तार चक्र का ज्ञान, सॄष्टि वर्ग

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