सरफ़रोश (1999 फ़िल्म)

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सरफ़रोश

सरफ़रोश का पोस्टर
निर्देशक जॉन मैथ्यू माथन
लेखक जॉन मैथ्यू माथन
निर्माता जॉन मैथ्यू माथन
अभिनेता आमिर ख़ान,
सोनाली बेंद्रे,
नसीरुद्दीन शाह
छायाकार विकास सिवारमन
संपादक जेठु मुंदुल
संगीतकार गीत:
जतिन-ललित
पार्श्व संगीत:
संजय चौधरी
निर्माण
कंपनी
सिनेमैट पिक्चर्स
वितरक एरोस इंटरनेशनल
प्रदर्शन तिथि
30, अप्रैल 1999
लम्बाई
174 मिनट
देश भारत
भाषा हिन्दी

सरफ़रोश 1999 में बनी निर्देशक-निर्माता एवं लेखक जॉन मैथ्यू माथन की एक्शन-थ्रिलर आधारित हिन्दी भाषा की फिल्म है। फिल्म में नसीरुद्दीन शाह, आमिर खान एवं सोनाली बेंद्रे मुख्य भूमिका में है। फिल्म की पटकथा एवं विषय-वस्तु के निर्माण के लिए निर्देशक मैथ्यू वर्ष 1992 से ही गहन शोध में कार्यरत रहे फिर सात वर्ष बाद सन् 1999 में फिल्म तब रिलीज हुई जब भारत-पाकिस्तान के मध्य कारगिल युद्ध का संघर्ष चल रहा था। फिल्म का विषय भी एक बहादुर भारतीय पुलिस अफसर और सीमा-घुसपैठ के गुप्त अभियान पर केंद्रित है। फिल्म की सकारात्मक समीक्षा के साथ व्यावसायिक रूप से भी काफी सफल रही। फिल्म का दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी पुनर्निर्माण हुआ जिनमें से कन्नड़ संस्करण में सत्यमेव जयते अभिनीत देवाराज तथा तेलुगु संस्करण में अस्त्रम (2006) अभिनीत विष्णु मंचु एवं अनुष्का शेट्टी प्रमुख है।

कथानक[संपादित करें]

फिल्म अपने पहले दृश्य में भारत में गुपचूप तरीके से अवैध हथियारों की तस्करी से शुरू होती है। भारतीय सीमांत प्रदेश राजस्थान से यह हथियारों का जखीरा कई दलालों के सहयोग से गुजरता है। चंद्रपुर के बाला ठाकुर इन्हीं सारे हथियार को दक्षिणवर्ती जंगलो में बसे डकैत वीरन तक पहुँचाता हैं। जिसे वीरन बाद में अपने हथियारबंद दल साथ एक शादी की आरक्षित बस पर हमला करता है जिनमें सभी बारातियों को उतारकर बड़ी निर्दयता से बच्चों एवं औरतों की हत्या कर दी जाती है। सरकार एक स्पेशल एक्शन टीम का गठन कर घटना से जुड़े सूत्रों की जाँच के लिए मुम्बई रवाना करती है। टीम घटना के तार जोड़ते हुए बाला ठाकुर तक पहुँचती, वो गिरफ्तारी से पहले ही फरार हो जाता है।

इस दरमियान एसीपी अजय सिंह राठौड़ (आमिर खान) मुम्बई में आयोजित मशहूर गजल गायक गुलफ़ाम हुसैन (नसीरुद्दीन शाह) की महफिल पर शिरकत करते हुए अपनी काॅलेज सहपाठिका, सीमा (सोनाली बेंद्रे) से भी मिलता है। वह जब दिल्ली में एक साथ पढ़ाई करते थे तो अजय उसे चाहता था लेकिन हिम्मत कर के उसे कभी बता नहीं पाया। लेकिन दुबारा मुलाकात की खुशी के एहसास में समझ जाते हैं कि दोनों एक-दूसरे को चाहते हैं। वहीं गुलफ़ाम अपना परिचय अपने जन्मस्थान भारत से करता है जो विभाजन के बाद कम उम्र में परिवार समेत पाकिस्तान को चले गए थे। इस गमगीन अतीत के बावजूद उन्हें खुशी हैं कि भारत सरकार उन्हें बाइज्ज़त आयोजन करने को न्यौता देती है। गुलफ़ाम को अजय की उनकी गजलों के प्रति बचपन की दिवानगी काफी प्रभावित करती है। उम्र में बराबरी ना होने पर भी दोनों अच्छे दोस्त बनते हैं।

वहीं स्पेशल एक्शन टीम अब इंस्पेक्टर सलीम (मुकेश ऋषि) एक मुस्लिम पुलिसकर्मी का सहयोग लेती है जिसके चंगुल से कुख्यात अपराधी सुल्तान फरार होता है। इस प्रयास में दो अफसर मारे जाते हैं जिससे उसे नाकामी का जिम्मेदार मानते हुए उसके वरिष्ठ अफसर की उलेहना झेलनी पड़ती है। सलीम के अपने विभाग के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और गुप्त नेटवर्क की विशेषज्ञता होने बावजूद एक मुसलमान होने के नाते दोहरा बर्ताव सहना पड़ा क्योंकि अपराधी सुल्तान के निकल जाना दोनों के मुसलमान होने पर शक किया गया। वहीं उसकी नाराजगी तब भी कम नहीं होती जब अजय उसके टीम प्रमुख में आता है जो कभी प्रशिक्षण के दौरान उसका जुनियर रहा था। अजय टीम में सलीम को जुड़ने का प्रस्ताव रखता है, जिसे सलीम बेरुखी से नकार देता हैं। अजय बताता है आईएएस बनने की वजह अपने पिता द्वारा कुछ संदिग्धों के खिलाफ बयानबाजी से है जिसके बदले में आतंकवादी उसके बड़े भाई की हत्या करते हैं। अगले प्रकरण में अजय के पिता का अपहरण कर इतनी यातना दी जाती है कि वो गूंगा हो जाते हैं। इस जुल्म से प्रतिकार लेना उसकी पुलिस अफसर बनने की प्रेरणा बनती है।

वहीं अजय की जानकारी से बाहर गुलफ़ाम पाकिस्तानी गुप्तचर विभाग का काम करता है जो भारत में गुपचूप तरीके से दोनों ओर आतंक और तबाही मचाने की अगुवाई करता है। जब तक गुलफ़ाम अजय का पसंदीदा रहता है अजय उसके लिए मुसीबत नहीं है क्योंकि उसकी हर गतिविधियों की सूचना का पता होने उसे रहेगा। वहीं सलीम, बाला ठाकुर के ठिकाने का पता उसके चंगुल से छूटे सुल्तान को दुबारा पकड़कर, ढुंढ़ निकालता है। सलीम यह जानकारी अजय को सौंप अपनी नाराजगी मिटने का संकेत देता है और सलीम टीम से जुड़ने का प्रस्ताव को स्वीकृति देता है। बाला को दबोचने के मुठभेड़ में अपराधी बाला ठाकुर की हत्या होती है और अजय गंभीर रूप से जख्मी होता है। उधर सुल्तान फरार होने के लिए अपने खास आदमी शिवा के साथ तैयारी करता है। जिन हथियारों और गोला-बारूदों की बड़ी खेप को वीरन और उसके आतंकी साथियों तक पहुँचाना था वो पकड़ी गई इसलिये ऑपरेशन सफल माना जाता है। सुल्तान की इसी नाकामी पर गुलफ़ाम उसकी मौत का फरमान देता है और उसके पाकिस्तान भाग जाने की गलत जानकारी देता है।

वहीं स्वास्थ्य ठीक होने पर अजय को ज्योतिष संबंधी पर्ची मिलती है जिसके सूत्र पर टीम राजस्थान के बाहिद क्षेत्र के रामबंधु गुप्त उर्फ 'मिर्ची सेठ' से मिलती है। जाँच दल अजय और सलीम को गुप्त कैंप इंतजाम कराने और मिर्ची सेठ की प्रत्येक सूचना पहुंचाने की हरसंभव कोशिश करती है। अजय निरिक्षण के लिए बाहिद पहुँच संयोगवश गुलफ़ाम से भी मिलता है जो अस्थायी तौर पर अपने पूर्वजों के किले में ठहरता है जो बाहिद के नजदीकी क्षेत्र में है। बाला को दबोचने के मुठभेड़ में अपराधी बाला ठाकुर की हत्या करते हैं और अजय गंभीर रूप से जख्मी होता है। उधर सुल्तान फरार होने के लिए अपने खास आदमी शिवा के साथ तैयारी करता है जिसके विचार से जिन हथियारों और गोला-बारूदों की बड़ी खेप को वीरन और उसके आतंकी साथियों तक पहुँचाना था वो ऑपरेशन असफल हो चुका है। सुल्तान की इसी नाकामी पर गुलफ़ाम उसकी मौत का फरमान देता है और उसके पाकिस्तान भाग जाने की गलत जानकारी देता है।

वहीं स्वास्थ्य ठीक होने पर अजय को ज्योतिष संबंधी पर्ची मिलती है जिसके सूत्र पर टीम राजस्थान के बाहिद क्षेत्र के रामबंधु गुप्त उर्फ 'मिर्ची सेठ' से मिलती है। जाँच दल अजय और सलीम को गुप्त कैंप इंतजाम कराने और मिर्ची सेठ की प्रत्येक सूचना पहुंचाने की हरसंभव कोशिश करती है। अजय निरिक्षण के लिए बाहिद पहुँच संयोगवश गुलफ़ाम से भी मिलता है जो अस्थायी तौर पर अपने पूर्वजों के किले में ठहरता है बाहिद के नजदीकी क्षेत्र में है। गुलफ़ाम राजनीतिक हितों के लिए इस निरिक्षण को किसी भी तरह स्थगित कराने की कोशिश करता है और अजय को इस इंसवेस्टिगेशन से हटाने के लिए जानलेवा हमले का आदेश भी देता है, लेकिन कोई फायदा नहीं मिलता। दुबारा नाकामयाबी मिलने से गुलफ़ाम को पाकिस्तानी इंटेलिजेंस के वरिष्ठ अफसर, मेजर असलग बेग़ की नाराजगी सुननी पड़ती है, जो इस पूरे व्यवसाय की खबर रखते है।

वहीं, अजय काफी सारी जानकारियाँ जुटा लेता हैं और पर जिन सूत्रों से संबंधित संदिग्ध शख्स गुलफ़ाम को वह ढुंढ़ रहा हैं वह सिरा उसे नजर नहीं आ रहा। आखिर में इन्वेस्टिगेटिव टीम को एक निर्णायक हमले का अभियान को हथियारों द्वारा खत्म करने का अवसर मिलता है, और मिर्ची सेठ के अवैध कारोबार को तबाह कर, उसका पीछा करते हुए वे सब गुलफ़ाम की हवेली पहुँचते हैं। वहीं अजय को गुलफ़ाम के अब तक के दिए धोखे का एहसास होता है, पर वो जानता है कि पुख्ता प्रमाण के अभाव में गुलफ़ाम को आरोपी सिद्ध नहीं कर सकता। इसके लिए वह उकसाने की तरकीब लगाता हैं और गुलफ़ाम को चाल में फांसते हुए बेग़ को मरवाकर, उसे गिरफ्तार करता है। गुलफ़ाम इन सबकी वजह विभाजन से उपजे कड़वाहट को दोष देता है, जिसके चलते उसे ये सब किया। उसके इस प्रतिशोध पर अजय उसे समझाता हैं उसका फर्ज किसी के हित ना होकर सभी मजहबों की हिफाजत करने को कहता है। इससे पहले कि अजय राह में उसकी गलत हरकत जान पाता, गुलफ़ाम अपनी बेइज्जती और शर्मिन्दगी से आहत खुदकुशी कर लेता है।

गुलफ़ाम के आत्महत्या पर सभी स्तब्ध हो जाते है और अंत में अजय अपनी टीम के साथ इस आतंकवादी गिरोह को खत्म करने की कामयाबी में मुम्बई लौटता है। वहीं मुम्बई एअरपोर्ट पर, सलीम को उसके मुखबिर के जरिए वीरन के गतिविधियों के बारे में जानकारी मिलती हैं और अजय इस नए अभियान पर अपनी टीम के साथ निकल पड़ता है।

मुख्य कलाकार[संपादित करें]

संगीत[संपादित करें]

क्र॰शीर्षकगीतकारगायकअवधि
1."होश वालों को क्या खबर"निदा फ़ाज़लीजगजीत सिंह5:07
2."इस दीवाने लड़को को"समीरअलका याज्ञिक, आमिर ख़ान4:46
3."जो हाल दिल का"समीरकुमार सानु, अलका याज्ञिक5:32
4."जो हाल दिल का"N/Aवाद्य संगीत5:33
5."मेरी रातों की नींद उड़ा दे"इंदीवरअलका याज्ञिक4:37
6."ये जवानी हद कर दे"समीरकविता कृष्णमूर्ति4:43
7."जिंदगी मौत ना बन जाए"इसरार अंसारीसोनू निगम, रूप कुमार राठोड़6:17

नामांकन और पुरस्कार[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]