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सैयद वंश

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सैयद राजवंश
سید
सैयद राजवंश का क्षेत्र
देश दिल्ली सल्तनत
स्थापना28 मई 1414
संस्थापकख़िज़्र ख़ाँ
अंतिम शासकआलम शाह
परम्पराएँइस्लाम
अंत20 अप्रैल 1451

सैयद राजवंश (फ़ारसी: سید) दिल्ली सल्तनत का चतुर्थ वंश था जिसका कार्यकाल 1414 से 1451 तक रहा। उन्होंने तुग़लक़ वंश के बाद राज्य की स्थापना किए थे।

यह परिवार सैयद अथवा मुहम्मद के वंशज माने जाता है। तैमूर के लगातार आक्रमणों के कारण दिल्ली सल्तनत का केन्द्रीय नेतृत्व पूरी तरह से हतास हो चुका था और उसे १३९८ तक लूट लिया गया था। इसके बाद उथल-पुथल भरे समय में, जब कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी, सैयदों ने दिल्ली में अपनी शक्ति का विस्तार किया। इस वंश के विभिन्न चार शासकों ने ३७-वर्षों तक दिल्ली सल्तनत का नेतृत्व किया।

इस वंश की स्थापना ख़िज्र खाँ ने की जिन्हें तैमूर ने मुल्तान (पंजाब क्षेत्र) का राज्यपाल नियुक्त किया था। खिज़्र खान ने २८ मई १४१४ को दिल्ली की सत्ता दौलत खान लोदी से छीनकर सैयद वंश की स्थापना की। लेकिन वो सुल्तान की पदवी प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाये और पहले तैम्मूर के तथा उनकी मृत्यु के पश्चात उनके उत्तराधिकारी शाहरुख मीर्ज़ा (तैमूर के नाती) के अधीन तैमूरी राजवंश के रयत-ई-अला (जागीरदार) ही रहे।[1] ख़िज्र खान की मृत्यु के बाद २० मई १४२१ को उनके पुत्र मुबारक खान ने सत्ता अपने हाथ में ली और अपने आप को अपने सिक्कों में मुइज़्ज़ुद्दीन मुबारक शाह के रूप में लिखवाया। उनके क्षेत्र का अधिक विवरण याहिया बिन अहमद सरहिन्दी द्वारा रचित तारीख-ए-मुबारकशाही में मिलता है।[2] मुबारक खान की मृत्यु के बाद उनका दतक पुत्र मुहम्मद खान सत्तारूढ़ हुआ और अपने आपको सुल्तान मुहम्मद शाह के रूप में रखा। अपनी मृत्यु से पूर्व ही उन्होंने बदायूं से अपने पुत्र अलाउद्दीन शाह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।[3]

इस वंश के अन्तिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह ने स्वेच्छा से दिल्ली सल्तनत को १९ अप्रैल १४५१ को बहलोल खान लोदी के लिए छोड़ दिया और बदायूं चले गये। वो १४७८ में अपनी मृत्यु के समय तक वहाँ ही रहे।[4]

  • ख़िज़्र खाँ (1414-1421)
  • मुबारक़ शाह (1421-1434)
  • मुहम्मद शाह (1434-1445)
  • आलमशाह शाह (1445-1451)

कालक्रम

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ख़िज्र खाँ

खिज्र खाँ, सैयद वंश के संस्थापक थे।[5] वो फिरोजशाह तुगलक के अमीर मलिक मर्दान दौलत के दतक पुत्र सुलेमान का पुत्र थे। तैमूर ने वापस लौटते समय उन्हें रैयत-ए-आला की उपाधि के साथ मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर का शासक नियुक्त किया था।[6] उन्होंने तैमूर वंश की सहायता से दिल्ली की सत्ता सन् १४१४ में प्राप्त की और जीवन भर रैयत-ए-आला की उपाधि के साथ सन्तुष्ट रहे।[7] उन्हें तैमूर ने भारत में अपने प्रतिनिधि के रूप में मुल्तान में नियुक्त कर रखा था। सन् १४१० में मुल्तान से सेना लेकर उन्होंने तुगलक वंश पर हमला किया और छः माह में रोहतक पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इस समय दिल्ली सल्तनत पर मोहम्मद शाह तुगलक का शासन था। सन् १४१३ में मोहम्मद शाह का निधन हो गया। मोहम्मद शाह के कोई पुत्र नहीं था और न ही पहले से कोई तुगलक उत्तराधिकारी घोषित था अतः दिल्ली में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई। इस समय के लिए दौलत खान लोदी को दिल्ली की सता सौंपी गयी। मार्च १४१४ में खिज्र खाँ ने दिल्ली पर हमला कर दिया और चार माह में जीत दर्ज करते हुये दिल्ली पर अपना शासन आरम्भ कर दिया।[8]

मुबारक शाह

खिज्र खाँ की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनका पुत्र मुबारक शाह ने दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में ली। अपने पिता के विपरीत उन्होंने अपने आप को सुल्तान के रूप में घोषित किया।[9]

मुहम्मद शाह

मुबारक शाह की मृत्यु के बाद मुहम्मद शाह ने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। उनका शासनकाल १४३४ से १४४५ तक रहा।[10]

आलमशाह
१४४४-५१ (Alam Shah ) - जब १४४४ में मुहम्मद शाह मृत्यु हो गई तो उसका पुत्र अलाउद्दीन गद्दी पर बैठा जिसने श्रालम शाह की उपाधि धारण की । यह नया सुल्तान अपने पिता से भी अधिक कमज़ोर निकला. किन्तु इस पर भी उसके सिंहासनारोहण को बहलोल ने स्वीकार कर लिया । १४४७ में आलम शाह बदायूँ¨ गया । उसे यह नगर इतना अच्छा लगा कि उसने दिल्ली की जगह वहाँ ही रहना अच्छा समझा । उसने अपने किसी सम्बन्धी को दिल्ली का प्रांताध्यक्ष बना दिया और १४४८ से स्थायी रूप से वह वहीं रहा । वहाँ उसने अपने को पूर्णतया विलासी जीवन में डाल दिया। दिल्ली से श्रालम शाह के चले जाने के बाद, उन लोगों के बीच संघर्ष छिड़ गया जो उसका शासन चला रहे थे। हिसाम खाँ व हामिद खाँ दिल्ली के भाग्य के निर्णायक बन गए । विभिन्न व्यक्तियों की अभियाचनानों पर विचार किया गया और अन्त में बहलोल लोदी को ही चुना गया । उसे दिल्ली ग्रामं- त्रित किया गया । उसने निमन्त्रण इतनी जल्दी स्वीकार किया कि वह दिल्ली में अपनी शक्ति जमाने के लिए काफी सेना तक साथ नहीं लाया । उसने हामिद खां से नगर की कुंजियाँ लीं । उसने बदायूँ में आलम शाह को एक पत्र भी लिखा और उसका उत्तर यह मिला कि उसे अपनी गद्दी से कोई लाभ या फल की आशा नहीं है । उसके पिता ने बहलोल को अपना पुत्र मान लिया था, इसलिए उसने स्वतन्त्र रूप से व प्रसन्नता के साथ बहलोल अपने बड़े भाई, के पक्ष में अपना सिंहासन त्याग कर दिया । इस प्रकार जब १६ अप्रैल १४५१ को बहलोल का सिंहासनारोहण हुआ, तो उसने सिंहासन किसी सफल गुट की सहायता से ही प्राप्त नहीं किया, अपितु एक ऐसे सुल्तान के उत्तराधिकारी के रूप में भी प्राप्त किया जिसने ऐच्छिक रूप से अपनी “गद्दी का परित्याग कर दिया था । श्रालम शाह १४७८ में अपनी मृत्यु के समय तक बदायूँ ही में रहा ।

टिप्पणी

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  1. वी॰डी॰ महाजन, पृष्ठ २३७
  2. शैलेन्द्र सेनगर, पृ॰ ९
  3. रेहाना ज़ैदी, ७६-७७
  4. वी॰डी॰ महाजन, पृष्ठ २४४
  5. कृपाल चन्द्र यादव, पृ॰ ३७
  6. मनोज कुमार शर्मा, पृ॰ १४२
  7. एम॰ हसन, पृ॰ २३८
  8. एम॰ हसन, पृ॰ २३७
  9. एम॰ हसन, पृ॰२४०
  10. शैलेन्द्र शेगर (भाग २) पृ॰ ८४

सन्दर्भ

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  • "Arabic and Persian Epigraphical Studies - Archaeological Survey of India" [अरबी और फ़ारसी पुरालेखीय अध्ययन - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण] (अंग्रेज़ी भाषा में). Asi.nic.in. मूल से से 29 सितंबर 2011 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: १५ दिसम्बर २०१४.
  • वी॰डी॰ महाजन (१९९१, पुनःप्रकाशित २००७), History of Medieval India [मध्यकालीन भारत का इतिहास] (अंग्रेज़ी में), भाग I, नई दिल्ली: एस॰ चाँद, ISBN 81-219-0364-5
  • कृपाल चन्द्र यादव (१९८१). हरियाणा का इतिहास. मैकमिलन (मूल प्रकाशक: मिशिगन विश्वविद्यालय). 21 दिसंबर 2014 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 21 दिसंबर 2014.
  • प्रो॰ एम॰ हसन (१९९५). History of Islam [इस्लाम का इतिहास] (अंग्रेज़ी भाषा में). आदम पब्लिशर्स. ISBN 9788174350190.
  • शैलेन्द्र सेनगर (२००५). मध्यकालीन भारत का इतिहास. अटलांटिक पब्लिशर्स. ISBN 9788126904648. 21 दिसंबर 2014 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 21 दिसंबर 2014.
  • शैलेन्द्र सेनगर. भारतीय इतिहास. आत्माराम एण्ड सन्स. ISBN 9788189362171. 21 दिसंबर 2014 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 21 दिसंबर 2014.
  • डॉ॰ रेहाना ज़ैदी (१९९५). मध्य हिमालय के पर्वतीय राज्य एवं मुग़ल शासक. वाणी प्रकाशन. ISBN 9788170554035. 21 दिसंबर 2014 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 21 दिसंबर 2014.
  • मनोज कुमार शर्मा (२००९). भारतीय इतिहास: एक समग्र अध्ययन. पीयर्सन एजुकेशन, इंडिया. ISBN 9788131727690. 21 दिसंबर 2014 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 21 दिसंबर 2014.


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