बहुपद समीकरणों के सिद्धान्त

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x के किसी n घातीय व्यंजक (इक्सप्रेशन) को शून्य के बराबर रखने पर प्राप्त समीकरण को n घात का बहुपद समीकरण (polynomial equation) कहते हैं।

एक चर वाला सामान्य बहुपद समीकरण है। एक त्रिघाती बहुपद समीकरण है। इसी तरह द्विघात समीकरण भी बहुपद समीकरण है।

एक से अधिक राशियों में भी बहुपद समीकरण हो सकते हैं। जैसे -

गणित के परम्परागत बीजगणित का एक बड़ा भाग समीकरण सिद्धान्त (Theory of equations) के रूप में अध्ययन किया/कराया जाता है। इसके अन्तर्गत बहुपद समीकरण के मूलों की प्रकृति का अध्ययन किया जाता है एवं इन मूलों को प्राप्त करने की विधियों एवं उससे सम्बन्धित समस्याओं का विवेचन किया जाता है। दूसरे शब्दों में, बहुपद, बीजीय समीकरण, मूल निकालना एवं मैट्रिक्स एवं सारणिक का प्रयोग करके समीकरणों का हल निकालना शामिल हैं।

विज्ञान एवं गणित की सभी शाखाओं में समीकरण सिद्धान्त का बहुत उपयोग होता है।

बहुपद समीकरणों के प्रमुख सिद्धान्त[संपादित करें]

  1. बीजगणित का मौलिक प्रमेय (Fundamental theorem of Algebra): एक या अधिक घात वाले सभी बहुपद समीकरणों का कम से कम एक मूल अवश्य होता है। यह वास्तविक या समिश्र (complex) हो सकता है। दूसरे शब्दों में इसी चीज को कहते हैं कि - किसी n घातीय समीकरण के अधिकतम n मूल हो सकते हैं। इनमें से कुछ मूल पुनरावृत्त (repeated) हो सकते हैं।
  2. यदि a1, a2, a3, .. an किसी n घातीय समीकरण के मूल हों तो उस समीकरण को (x-a1)(x-a2)(x-a3)...(x-an)=0 के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
  3. वास्तविक मूल प्रमेय (real root theorem) : यदि किसी विषम घात वाले बहुपद समीकरण के सभी गुणांक वास्तविक (रीयल) हों तो उस समीकरण का कम से कम एक मूल वास्तविक होगा।
  4. परिमेय मूल प्रमेय (rational root theorem) : यदि किसी बहुपद समीकरण के सभी गुणांक पूर्णांक हों तो इसका कोई वास्तविक मूल यदि होगा तो वह p/q रूप का होगा, जहाँ p/q अपने सरलतम रूप में है जिसमें p, a0 का गुणक (फैक्टर) होगा और q, an का फैक्टर। उदाहरण के लिये का वातविक मूल (यदि कोई है) तो उसका अंश (न्युमेरेटर) १, २, ३, ६ में से कोई हो सकता है तथा हर (डिनॉमिनेटर) केवल १ हो सकता है। अतः इस समीकरण के वास्तविक मूल ±१, ±२, ±३, ±६ में से ही कोई हो सकता है। इनमें से सबको बारी-बारी से समीकरण में रखने पर हमें पता चलता है कि केवल १, २ तथा -३ ही इस समीकरण को संतुष्ट करते हैं।
  5. समिश्र युग्म मूल का प्रमेय (complex conjugate root theorem) : किसी बहुपद समीकरण के सभी गुणांक वास्तविक हों और उसका एक मूल (a+bi) हो तो (a-bi) भी उसका एक मूल होगा।
  6. अपरिमेय करणी मूल युग्म प्रमेय (Irrational surd root pair theorem) : यदि किसी बहुपदी समीकरण के सभी गुणांक परिमेय राशियाँ (रेशनल नम्बर) हों और उसका एक मूल a + कर्णी (b) हो तो a - कर्णी (b) भी उसका एक मूल होगा।
  7. शेषफल प्रमेय (remainder theorem) : यदि किसी बहुपद f(x) को (x-a) से भाग दिया जाय तो शेष का मान वही होगा जो f(x) में x=a रखने पर मिलता है; अर्थात, शेष = f(a). दूसरे शब्दों में यदि f(a)=0 तो (x-a), f(x) का एक गुणनखण्ड होगा। या f(x) = (x-a) Q(x) यदि f(a)= 0. इसे गुणनखण्ड का प्रमेय (factor theorem) भी कहते हैं।
  8. यदि किसी समीकरण के सभी गुणांक धनात्मक हों तो उसके सभी मूलों के वास्तविक भाग ऋणात्मक होंगे।
  9. मूलों को समीकरण के गुणांकों के के फलन के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

8.5% of x=34

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • [www.sinclair.edu/academics/sme/departments/mat/pub/CourseInformation/Resources/Math116/TheoryofEquations.pdf Theory of Polynomial Equations]