समसूत्रण

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समसूत्रण

समसूत्री कोशिका विभाजन या समसूत्रण साधारण कोशिका विभाजन है। इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया दो चरणों में पूर्ण होती है, प्रथम चरण में कोशिका के केन्द्रक का विभाजन होता है। इस प्रक्रिया को केन्द्रक-विभाजन कहते हैं। विभाजन के द्वितीय चरण में कोशिका-द्रव्य का विभाजन होता है। इस प्रक्रिया को कोशिका-द्रव्य विभाजन कहते हैं। विभाजन के अन्त में मातृकोशिका, पुत्री-कोशिका में बदल जाती है। सर्वप्रथम इस विभाजन का वर्णन वाल्टर फ्लेमिङ ने सन् 1882 में किया। [1]

समसूत्रण केवल द्विगुणित कोशिकाओं में होता है। यद्यपि कुछ निम्न श्रेणी के पादपों एवं सामाजिक कीटों में अगुणित कोशिकाएं भी समसूत्रण द्वारा विभाजित होती हैं। समसूत्रण का एक प्राणी के जीवन में क्या महत्त्व है, इसको समझना काफी आवश्यक है।

इस विभाजन से निर्मित द्विगुणित सन्तति कोशिकाएँ साधारणतः समान में आनुवंशिक अवयव वाली होती है। बहुकोशिकीय जीवधारियों की वृद्धि समसूत्रण के कारण होती है। कोशिका वृद्धि के फलस्वरूप केन्द्रक व कोशिकाद्रव्य के बीच का अनुपात अव्यवस्थित हो जाता है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि कोशिका विभाजित होकर केन्द्रक कोशिकाद्रव्य अनुपात को बनाए रखे। समसूत्रण का एक महत्त्वपूर्ण योगदान यह हैं कि इसके द्वारा कोशिका की मरम्मत होती हैं। अधिचर्म की उपरी स्तर की कोशिकाएँ, आहार नाल की भीतरी स्तर की कोशिकाएँ एवं रक्त कोशिकाएँ निरन्तर प्रतिस्थापित होती रहती है।

केन्द्रक-विभाजन[संपादित करें]

कोशिका के प्रत्येक विभाजन के पूर्व उसके केन्द्रक का विभाजन होता है। केन्द्रक विभाजन रीति के अनुसार होने वाली सुतथ्य घटना है, जिसे कई अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है। ये अवस्थाएँ निम्नवत् हैं :

  • पूर्वावस्था
  • मध्यावस्था
  • पश्चावस्था
  • अन्त्यावस्था
  • कोशिकाद्रव्य विभाजन

पूर्वावस्था[संपादित करें]

अन्तरावस्था की संश्लेषण व पूर्वान्तराल प्रावस्थाओं के बाद पूर्वावस्था केन्द्रक विभाजन का पहला अवस्था है। संश्लेषण व पूर्वान्तराल में डीएनए के नुतन सूत्र बन तो जाते हैं, किन्तु आपस में गुँथे होने के कारण स्पष्ट नहीं होते। गुणसूत्रीय पदार्थ के संघनन का प्रारम्भ ही पूर्वावस्था की पहचान हैं। गुणसूत्रीय संघनन की प्रक्रिया के दौरान ही गुणसूत्रीय द्रव्य स्पष्ट होने लगते हैं। तारककाय व तारक केन्द्र जिसका अन्तरावस्था की संश्लेषण प्रावस्था के दौरान ही द्विगुणन हुआ था, अब कोशिका के विपरीत धुव्रों की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है।

पूर्वावस्था के पूर्ण होने के दौरान जो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं उनकी निम्न विशेषताएँ हैं:

  • गुणसूत्रीय द्रव्य संघनित होकर ठोस गुणसूत्र बन जाता है। गुणसूत्र दो अर्धगुणसूत्रों से बना होता है, जो आपस में गुणसूत्रबिन्दु से जुड़े रहते हैं।
  • अन्तरावस्था के समय जिस तारककाय का द्विगुणन हुआ है वह कोशिका में विपरीत ध्रुव की ओर जाने लगता है। प्रत्येक तारककाय सूक्ष्म नलिकाओं को विकरित करता है, जिसे तारक कहते हैं। ये तर्कुतन्तु व तारक मिलकर समसूत्रण यन्त्र बनाते हैं। पूर्वावस्था के अन्त में यदि कोशिका को सूक्ष्मदर्शी से देखा जाता है तो इसमें गॉल्जीकाय, अन्तर्द्रव्यीय जालिका, केन्द्रिका व केन्द्रकावण दिखाई नहीं देता हैं।

मध्यावस्था[संपादित करें]

केन्द्रकावरण के पूर्णतः विघटित होने के साथ समसूत्रण की द्वितीय अवस्था प्रारम्भ होती हैं, इसमें गुणसूत्र कोशिका के कोशिका द्रव्य में फैल जाते हैं। इस अवस्था तक गुणसूत्रों का संघनन पूर्ण हो जाता है और सूक्ष्मदर्शी से देखने पर ये स्पष्ट रूप से दिखने लगते हैं। यही वह अवस्था हैं जब गुणसूत्रों की आकृति का अध्ययन बहुत ही सरल तरीके से किया जा सकता है।

मध्यावस्था गुणसूत्र दो सन्तति अर्धगुणसूत्रों से बना होता है जो आपस में गुणसूत्रबिन्दु से जुड़े होते हैं। गुणसूत्रबिंदु के सतह पर एक छोटा बिंब आकार की संरचना मिलती है जिसे गतिबिन्दु कहते हैं। सूक्ष्म नलिकाओं से बने हुए तर्कुतन्तु के जुड़ने का स्थान ये संरचनाएँ हैं, जो दूसरी ओर कोशिका के केन्द्र में स्थित गुणसूत्र से जुड़े होते हैं। मध्यावस्था में सभी गुणसूत्र मध्यरेखा पर आकर स्थित रहते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र का एक अर्धगुणसूत्र एक ध्रुव से तर्कुतन्तु द्वारा अपने गतिबिन्दु के द्वारा जुड़ जाता है, वहीं इसका संतति अर्धगुणसूत्र तर्कुतन्तु द्वारा अपने गतिबिन्दु से विपरीत ध्रुव से जुड़ा होता है। मध्यावस्था में जिस तल पर गुणसूत्र पंक्तिबद्ध हो जाते हैं, उसे मध्यावस्था पट्टिका कहते हैं। इस अवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् है :

  • तर्कुतन्तु गुणसूत्र के गतिबिन्दु से जुड़े रहते हैं।
  • गुणसूत्र मध्यरेखा की ओर जाकर मध्यावस्था पट्टिका पर पंक्तिबद्ध होकर ध्रुवों से तर्कुतन्तु से जुड़ जाते हैं।

पश्चावस्था[संपादित करें]

पश्चावस्था के प्रारम्भ में मध्यावस्था पट्टिका पर आए प्रत्येक गुणसूत्र एक साथ भिन्न होने लगते हैं, इन्हें सन्तति अर्धगुणसूत्र कहते हैं जो कोशिका विभाजन के बाद बनने वाले नूतन सन्तति केन्द्रक का गुणसूत्र बनेंगे, वे विपरीत ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं। जब प्रत्येक गुणसूत्र मध्यावस्था पट्टिका से काफी दूर जाने लगता है तब प्रत्येक का गुणसूत्रबिन्दु ध्रुवों की ओर होता है जो गुणसूत्रों को ध्रुवों की ओर जाने का नेतृत्व करते हैं, साथ ही गुणसूत्र की भुजाएँ पीछे आती हैं। पश्चावस्था की निम्नवत् विशेषताएँ हैं:

  • गुणसूत्रबिन्दु विखण्डित होते हैं।
  • अर्धगुणसूत्र भिन्न होने लगते अर्धगुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं।

अन्त्यावस्था[संपादित करें]

सूत्री विभाजन की अंतिम अवस्था के प्रारंभ में अन्त्यावस्था गुणसूत्र जो क्रमानुसार अपने ध्रुवों पर चले गए हैं; असंघनित होकर अपनी सम्पूर्णता को खो देते हैं। एकल गुणसूत्र दिखाई नहीं देता है व अर्धगुणसूत्र द्रव्य दोनों ध्रुवों की तरफ एक समूह के रूप में एकत्रित हो जाते हैं। इस अवस्था की मुख्य घटनाएँ निम्नवत् हैं:

  • गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर एकत्रित हो जाते हैं और इनकी पृथक् पहचान समाप्त हो जाती है।
  • गुणसूत्र समूह के परितः केन्द्रक झिल्ली का निर्माण हो जाता है।
  • केन्द्रिका, गॉल्जीकाय व अन्तर्द्रव्यीय जालिका का पुनर्निर्माण हो जाता है।

कोशिकाद्रव्य विभाजन[संपादित करें]

समसूत्रण के दौरान द्विगुणित गुणसूत्रों का सन्तति केन्द्रकों में पृथक्करण होता है जिसे केन्द्रक विभाजन कहते हैं। कोशिका विभाजन सम्पन्न होने के अन्त में कोशिका स्वयं एक भिन्न प्रक्रिया द्वारा दो सन्तति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती हैं, इस प्रक्रिया को कोशिकाद्रव्य विभाजन कहते हैं।

प्राणी कोशिका का विभाजन कोशिका झिल्ली में एक खाँच बनने से सम्पन्न होता है। खाँचों के लगातार गहरा होने व अन्त में केन्द्र में आपस में मिलने से कोशिका का कोशिकाद्रव्य दो भागों में बँट जाता है। यद्यपि पादप कोशिकाएं जो अपेक्षाकृत अप्रसारणीय कोशिका भित्ति से घिरी होती हैं अतः इनमें कोशिकाद्रव्य विभाजन दूसरी भिन्न प्रक्रियाओं द्वारा सम्पन्न होता है।

पादप कोशिकाओं में नूतन कोशिका भित्ति निर्माण कोशिका के केन्द्र से शुरू होकर बाहर की ओर पूर्व स्थित पार्श्व कोशिका भित्ति से जुड़ जाता है। नूतन कोशिका भित्ति निर्माण एक साधारण पूर्वगामी रचना से प्रारंभ होता है जिसे कोशिका पट्टिका कहते हैं, जो दो सन्निकट कोशिकाओं की भित्तियों के बीच मध्य पट्टिका को दर्शाती है। कोशिकाद्रव्य विभाजन के समय कोशिकांग जैसे सूत्रकणिका व लवक का दो सन्तति कोशिकाओं में वितरण हो जाता है। कुछ जीवों में केन्द्रक विभाजन के साथ कोशिकाद्रव्य विभाजन नहीं हो पाता है; इसके फलस्वरूप एक ही कोशिका में कई केन्द्रक बन जाते हैं। ऐसी बहुकेन्द्रीय कोशिका को संकोशिका कहते हैं, उदाहरणार्थ, नारिकेल का तरल भ्रूणपोश।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

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सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. यादव, रामनन्दन (जुलाई २००5). अभिनव जीवन विज्ञान. कोलकाता: निर्मल प्रकाशन. पृ॰ 26. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)