सफ़ेद गिद्ध
सफ़ेद गिद्ध[1] | |
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चित्र:Neophron percnopterus -Dighal, Jhajjar, Haryana, भारत-8.jpg | |
वयस्क भारतीय सफ़ेद गिद्ध | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | रज्जुकी |
वर्ग: | पक्षी |
गण: | ऍक्सिपिट्रिफ़ॉर्मिस |
कुल: | ऍक्सिपिट्रिडी |
वंश: | निओफ़्रॉन सैविन्यी, १८०९ |
जाति: | ऍन. पर्क्नॉपटॅरस |
द्विपद नाम | |
निओफ़्रॉन पर्क्नॉपटॅरस (लिनीयस, १७५८) | |
सफ़ेद गिद्ध की उपजातियों का फैलाव |
सफ़ेद गिद्ध (Egyptian Vulture) (Neophron percnopterus) पुरानी दुनिया (जिसमें दोनों अमरीकी महाद्वीप शामिल नहीं होते) का गिद्ध है जो पहले पश्चिमी अफ़्रीका से लेकर उत्तर भारत, पाकिस्तान और नेपाल में काफ़ी तादाद में पाया जाता था किन्तु अब इसकी आबादी में बहुत गिरावट आयी है और इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त घोषित कर दिया है।[2] भारत में जो उपप्रजाति पाई जाती है उसका वैज्ञानिक नाम (Neophron percnopterus ginginianus) है। उत्तर भारत के अलावा भारत में अन्य जगह यह प्रवासी पक्षी है।
विवरण
[संपादित करें]इसकी विभिन्न उपजातियों के रंगों में मामूली फेरबदल दिखने को मिलती है तथा जिन क्षेत्रों में यह रहता है उसके आधार पर भी रंगों में अन्तर पाया जाता है जैसे चेहरे का रंग ज़र्द पीले से लेकर नारंगी तक हो सकता है और पंखों का रंग सलेटी से लेकर कत्थई रंग का हो सकता है। इसके डैनों का अन्दरुनी अगला भाग और गले से लेकर पूँछ तक का अन्दरुनी भाग सफ़ेद होता है और उड़ते समय निचे से देखने वाले को यह सफ़ेद नज़र आता है। इसी कारण से इसका हिन्दी नाम सफ़ेद गिद्ध पड़ा।
आहार
[संपादित करें]सफ़ेद गिद्ध अपने अन्य प्रजाति के पक्षियों की तरह मुख्यतः लाशों का ही सेवन करता है लेकिन यह अवसरवादी भी होता है और छोटे पक्षी, स्तनपायी और सरीसृप का शिकार कर लेता है। अन्य पक्षियों के अण्डे भी यह खा लेता है और यदि अण्डे बड़े होते हैं तो यह चोंच में छोटा पत्थर फँसा कर अण्डे पर मारकर तोड़ लेता है।
आवास
[संपादित करें]दुनिया के अन्य इलाकों में यह चट्टानी पहाड़ियों के छिद्रों में अपना घोंसला बनाता है लेकिन भारत में इसको ऊँचे पेड़ों पर, ऊँची इमारतों की खिड़कियों के छज्जों पर और बिजली के खम्बों पर घोंसला बनाते देखा गया है। पत्थर से अण्डे तोड़ने के अलावा इसको एक अन्य औज़ार का इस्तेमाल करते हुये भी देखा गया है। घोंसला बनाते समय यह छोटी टहनी चोंच में पकड़कर जानवरों की खाल के बालों को टहनी में लपेटकर अपने घोंसले में रखता है जिससे घोंसले का तापमान बाहर के तापमान से अधिक रहता है।
पतन
[संपादित करें]यह जाति आज से कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में पर्याप्त आबादी में पायी जाती थी। १९९० के दशक में इस जाति का ४०% प्रति वर्ष की दर से ९९% पतन हो गया। इसका मूलतः कारण पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको सफ़ेद गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई मॅलॉक्सिकॅम meloxicam आ गई है और यह हमारे गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं। जब इस दवाई का उत्पादन बढ़ जायेगा तो सारे पशु-पालक इसका इस्तेमाल करेंगे और शायद हमारे गिद्ध बच जायें।
संरक्षण
[संपादित करें]भारत सरकार ने अब पशुओं के लिए डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) दवाई का इस्तेमाल बन्द करवा दिया है।[2][3]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- भारतीय गिद्ध (Gyps indicus)
- लंबी चोंच का गिद्ध (Gyps tenuirostris)
- लाल सिर वाला गिद्ध (Sarcogyps calvus)
- बंगाल का गिद्ध (Gyps bengalensis)
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ anonymous. Indian Bird Names. ENVIS centre Bombay Nat. Hist. Society. पृ॰ ६७. मूल से 3 अप्रैल 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २२ अगस्त २०१३. नामालूम प्राचल
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की उपेक्षा की गयी (मदद) - ↑ अ आ इ BirdLife International (2012). "Neophron percnopterus". IUCN Red List of Threatened Species. Version 2012.2. International Union for Conservation of Nature. अभिगमन तिथि २० अगस्त २०१३.
- ↑ "Drugs firms told to do more to prevent vulture extinctions". BirdLife International. २७ अगस्त २००८. मूल से 29 जुलाई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २२ अगस्त २०१३. Cite journal requires
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(मदद)