सनाढ्य ब्राह्मण

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सनाढ्य का शाब्दिक अर्थ दो शब्दों से मिलकर बना है,सन्+आढय जिसका अर्थ सन् अर्थात तप और आढ्य अर्थात ब्रम्हा। ब्रम्हा के तप से उत्पन्न ब्राम्हण और तपस्या में रत रहने बाले अर्थात तपस्वी। सनाढ्य ब्राह्मणों को श्रेष्ट माना जाता है। सनाढ्य ब्राह्मणों का निवास क्षेत्र प्रमुखता से उत्तर प्रदेश, ब्रज क्षेत्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों में है। सनाढ्य ब्राह्मण पांडित्य कार्य का करते हैं इनका मुख्य कार्य वेद पढ़ना और वेद पढ़ाना है अर्थात् शिक्षक

उत्तर प्रदेश में सनाढ्य ब्राह्मणों का मूलत: जिला बदायूं और बरेली है वर्तमान में भी सनाढ्य ब्राह्मणों के सभी मूल गांव बदायूं जिले और बरेली में ही हैं बाद में स्थानांतरित होकर अन्य जिलों में रहने लगे

सनाढ्य ब्राह्मणों के कुछ प्रमुख आसपद (टाइटल) निम्न हैं-

भारद्वाज, शंखधार, पांडे, कपरेले, मिश्रा, लवानिया, पाराशर, शर्मा, दीक्षित,भट्ट, कौड़िन्य, सहारिया जोशी, गौतम, कश्यप, विधोलिया, तिवारी, त्रिपाठी,गर्ग, पाठक, वेदी, द्विवेदी, त्रिवेदी, मरईया, त्रिगुणायत, शुक्ला, उपाध्याय, उपमन्यु, कौशिक, धनंजय, दुबे, नागर , कामवार, उत्प्रती, आदि प्रमुख हैं।