सदस्य वार्ता:Yamuna shankar panday

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हिन्दी १५:१९, ३ जून २०१० (UTC) आज कई वर्षों पूर्व बनाया हुआ खाता याद आया , अब बूढा हो चला हूं , पर अभी भी युवाओं की तरह जीवन जीने पर लालयित रहना स्वाभाविकतयः और जीने की कामना उद्यत करती है । वस्तुतःसमाज की ऐसी ही संरचना है , ब्यथित जीवन जीने वाले भी लम्बी आयु की ओर देखते हैं । हां लम्बी आयु उनके लिए सार्थक है जो अराष्ट्रीय कर्मों में लिप्त है , या फिर राष्ट्र के प्रति कोई उन्नत कार्य मे दत्तचित्त हो संलग्न हैं । मेरी भी अभिलाषा रही है कि मेरा राष्ट्र सभी राष्ट्रों का सिरमौर बने , पर राजनैतिक लोग जो हैं वे स्वार्थी तथा धन की लिप्सा में दिनरात रत हैं । राष्ट्र के लिए चिन्तन कोई नहीं कर रहा बल्कि उसके विपरीत राष्ट्र- द्रोह कर रहे हैं कभी कभी मन बड़ा द्रवित हो जाता है । आज का समय देश के प्रति उत्तरदायी है पर भृष्ट नेतृत्व नहीं वह अपने को समय से ऊपर का मानता है । सर्बप्रथम हमें अधिक से अधिक कोशिश कर देश हित मे कार्य करने वाले वे लोग जोड़ने होंगे , जो वास्तव में संकठकालीन स्थिति में देश से भागे नहीं । हम ऐसे देशभक्तों का एक समूह चयन कर सकते हैं । क्योंकिं देश भयावह स्थिति से गुजर रहा है विदेशी षडयन्त्र करता दिनरात इसे तोड़ने में लगें हैं । कुछ देशद्रोही स्वयं के देश से हैं जिन्हें पंथनिरपेक्षता के कारण कुछ कहना भी एक भयानक नरक में डालना जैसा है । कांग्रेस ने इस देश की गति को भृष्टाचरण से अब द्रोह के रूप में ले लिया है। अब ज्ञात हुआ है कि नेहरूजी कभी भी पण्डित नहीं थे वे तो मुसलमान थे जिसने कभी भारत को सुदृढ रूप में देखना ही नहीं पसन्द किया । कितना आश्चर्यजनक था ये --Yamuna Shankar Panday (वार्ता)

यमुनाशंकरपाण्डेय

           एडवोकेट

भिटौरा जनपद , फतेहपुर उत्तरप्रदेश वर्तमान - 22 शताब्दीपुरम , गाजियायाबाद । उत्तरप्रदेश । 9891012279. _____________________________________________क्या सुप्रीमकोर्ट को भंग कर देना चाहिए -_______________________________

आज एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य आपसबके समक्ष रखना चाहते हैं । यह विधिक है पर जनसामान्य से जुड़ी हुई है अतः यह बार बल देकर कहना चाहता हूं , की सुप्रीमकोर्ट को क्या अब भंग कर दिया जाय ..? एक विधिक संस्था जो प्रीवीकौंशील के प्रकार की हो वह यहतो सुप्रीमकोर्ट की निर्णयों को समझकर समीक्षा करे या फिर सुप्रीमकोर्ट भंग कर कोई नवीन ब्यवस्था स्थापित हो । कारण यह है कि वर्तमान में सुप्रीमकोर्ट के निर्णय अनेकाकानेक निर्णय विधिक न होकर , स्वार्थगत हैं या परोक्ष में हैं । न्यायालय के निर्णय अनेक रुलिंग्स एक दुसरे को काटते हैं , कश्मीरी पंडितों के मामले में सुप्रीमकोर्ट सम्बन्धित याचिका खारिज करदी जो उनके आशुओं को सोख सकती थी , बलात्कार , हत्याओं का कोई अपराध न पंजिकृत करना , और रोहिंग्या जो अपने देश विधिकक्षेत्र के भी नहीं है उनकी याचिका विचारार्थ स्वीकार करना क्या सन्देश देता है ..? । यह तो सुप्रीमकोर्ट राजनीतिक हो गया है या मनमानी कार्य करने का ब्यक्ति और वह ब्यक्ति सरकार का बेतन लेता है । यदि वह बेटनभोगी है तो अपने दायित्व से अलग कार्य नहीं कर सकता और न ही हीला हवाला कर सकता है और दण्ड का पात्र है । अनुच्छेद 19 (1 ) a वाक स्वातंत्र्य भी अन्तरभूत है नेशनल एन्थेम मामला जो सुप्रीमकोर्ट ने निर्णीत किया है , न्यायालय भी यही समझता है वाक स्वतन्त्रता होना आवश्यक है , पर हो क्या रहा है ..? भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला और आतंकवादियों का महिमामंडन लोक स्वतंत्रता से जुड़ा है या वाक स्वतंत्रता से ...? न तो देश के नेता दायित्व समझते हैं न ही न्यायपालिका अतः पहले सुप्रीमकोर्ट को भंग किया जाना आवश्यक है । उसके बाद निचले न्यायलय के कार्यों में अमूल्य परिवर्तन होना चाहिए । भारत पूर्ण रूप से भृष्ट और अनैतिक हो चुका है देशीय नेता उनका चरित्र का पूर्णरुपेण पतन हो चुका है । यह नहीं है कि कोई राजनेता अभी ईमानदार नहीं रहा है , अरुणांचलप्रदेश के मुख्यमंत्री कालिखोपूल से सचिवालय से सुप्रीमकोर्ट तक मैनेज वाली संस्कृति से त्रस्त होकर आत्महत्या कर लिया उनका इस ब्यवस्था से विश्वाश इस कदर डगमगाया की मृत्यु को ही गले लगा लिया ।

न्यायपालिका अपना दायित्व निभा नहीं पा रही है - _________________________________________

अब कहना यह अतिशयोक्ति नही होगा कि सुप्रीमकोर्ट तक सभी जज भृष्टाचार के आगार में बैठे हैं । कोई भी जज ईमानदार नहीं है , यह सब इन पोथियों में बंद विधि की ब्याख्यात्मक रुलिंग्स में सब न्याय बन्द है । न्यायाधीश को मनोवैज्ञानिक झूण्ठ पकड़ने की कल पकड़ने में सिद्धहस्त होना पड़ेगा आंग्लन्याय भारत मे सर्बात्म मान्य नहीं है भले ही दिखावे के नाटक हो । आचार्य गौतम - के न्याय के सोलह सिद्धांन्त स्वीकार कर न्यायाधीशों को मनोवैज्ञानिक निर्माण कर आरक्षण ऐसी सुबिधा से हटाकर योग्य और दक्ष बनाने होंगे । भारत मरने के कगार पर स्थित है । आप यह भली भांति समझे कालिखोपूल मुख्यमंत्री अरुणांचलप्रदेश अपनी आत्महत्या से पूर्व मुखन्यायाधीश भारत , राष्ट्र- पति भारत प्रधानमंत्री भारत को एक पत्र लिखा था , जो अपनी मृत्यु से पूर्व का कथन था उसमें एक सुप्रीमकोर्ट का कोई ब्यक्ति उनकी सरकार न गिरे निर्बाध चले जज के लिए रिश्वत की मांग की , बस यही एक बात एक गरीबी से पले गरीबी दूर करने का सपना संजोए वह मुख्यमंत्री मृत्यु की गोद मे चला गया । इसलिये की राज्य से केंद्र तक सुप्रीमकोर्ट तक सभी भृष्ट हैं , यहां कोई सही नहीं है , और वे आत्महत्या कर गए । वह पत्र कौन गुम कर गया कहां है वह पत्र जो पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी आत्महत्या करने से पूर्व लिखकर उसकी सूचना दी किसने दबाया उसे कौन है उसका उत्तरदायी ..? आज सम्पूर्ण भारत भृष्ट है कहीं कोई जगह शेष नहीं है जहाँ ईमानदारी देखने को मिल जाए । आखिर क्या हो गया है इस देश को , आजकल कोई रिक्शे वाला किसी सवारी का छूटा हुआ बैग या कोई भी सामान देने को उस सवारी को ढूंढती है यदि वह नहीं मिलता तो वह रिक्शे वाला पुलिस अधिकारी के पास किसी थाने में जमा कर देता है इस आशय से की उसे मिलने पर दे दिया जाय वह उसकी ईमानदारी को दर्शाता है , पर उसके लिए तीनदिनों तक समाचार पत्रों में उसके पवित्र होने ईमानदारी से कार्य करने का विज्ञापन जारी होगा । लोग जानकर प्रंसन्सा करेंगे फिर भूल जाएंगे । अरे भाई यह आज की शिक्षा का ही दुष्परिणाम है कि ईमानदार ब्यक्ति के मिलने पर हम ढिंढोरा पीटते हैं कभी ऐसे हमारा पूरा समाज था , क्या कभी सोचा है ...?

क्या यही वास्तविकता है आज हर भारतीय में उसके अंतर्मन में एक शाश्वत भय बैठा लगता है ...? वह अपने मे कुछ भी सुधार चाहता ही नहीं क्योंकिं हजार साल की दाशता ने उनके मन मे भृष्ट और अनैतिक होने के बीज बड़ी गहराई में रोंप दिए हैं ! उपरोक्तानुसार सम्पन्न हुआ ______________________ क्या भारत के दुर्दिन कुछ और रहेंगे ..?

काफी दिनों से भारत के सुप्रीमकोर्ट के विरुद्ध अभियान छेंडने का मन कर रहा है , कारण यह नहीं है कि आप न्यायाधीश बन गए हैं तो निरंकुश हो चुके हैं । सामान्यतः आज परिवारों में न्यायालय को लेकर उनकी अच्छी छवि नही हैं उनके विचारों में और न मनमें । न्यायपालिका आज गर्त में जा रही है देश की क्यों ..? कोई न्यायाधीश इसपर विचार नहीं करना चाहता क्यों ..?सभी श्रम के बदले धनवान होना चाहते हैं , राजनीति अलग अपनी पहचान निर्मित करते हुए देशद्रोहियों का पोषण कर रहे हैं सबमिलाकर देश की हालत दयनीय है होती जा रही है , नेता वोट बैंक के चक्कर मे देश के विरुद्ध विघटन कारी लोगों से हाँथ मिला रहे हैं । ऐसे में न्यायालय की ओर हर मनुष्य देखता है , वहां पहले ही अजगर फन फैलाए हुए बैठे हैं । किसपर भरोसा किया जाय आज स्वाभाविकतयः यह प्रश्न उतपन्न होता है । वर्तमान में कांग्रेस की दशा और दिशा दोनों ही दिशाहीन हैं , इनके अध्यक्ष को कोई उचित मार्ग दर्शन वाला ही नहीं है यह दल केवल अपने नकारात्मक विचारों के लिए मुख्य पृष्ठ में बना है भारत मे यह १८८५ कि बनी पार्टी अपने सूर्यास्त का दिन गिन रही है और इसके नेता अगाध गलेतक भृष्टाचार में डूबे हुए हैं । अब इसके बनाने वसले ए ओ ह्यूम की आत्मा भी इसे नही बचा सकती है । ..Yamuna Shankar Panday (वार्ता) भारत के विपक्षीदलों को देश के साथ गद्दारी करने का लाइसेंस इसलिए मिला है कि वह एक राजनीतिज्ञ दल हैं क्या इनपर किसी भी प्रकार कठोर विधिकदायरे के अंतर्गत लाया जा सकता है ..? आज न्यायपालिका अपने ही आदेश में समान आदेश नहीं करती,सबरीमाला मन्दिर में प्रवेश वाले वाद में एक पक्ष को प्रवेश अनुमति द्वारा माननीय सर्बोच्च न्यायालय दिया जाता है उसके उलट मस्जिद प्रवेश मुस्लिम पक्ष को प्रवेशानुमति नही मिलती कहा जाता है कि यह उनका धार्मिक अधिकार में आता है । जबकि हिंदुओं का कोई अधिकार ही नही ये माना जाना चाहिए ।--2409:4063:208B:C5CA:0:0:2833:80A0 (वार्ता) 06:04, 8 नवम्बर 2019 (UTC)[उत्तर दें]