सदस्य वार्ता:Vijay Thakur
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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 08:27, 4 मई 2017 (UTC)
कमलाह किला का इतिहास:[संपादित करें]
कमलाह किले का इतिहास:-
जिला मंडी के सरकाघाट उपमंडल में स्थित कमलाह गढ़ रियासत का सबसे मजबूत अजय गढ है। यह किला मंडी से 101 किलोमीटर की दुरी पर है आज कल इस किल्ले तक पहुंचने के लिए बस सेवा उपलब्ध है। इस किले की ऊंचाई लगभग 4500 फूट है किले के ऊपर भाग मैंने बाबा कमलहिया जी का मंदिर है। मंडी रियासत के राजा हरिसेन जिनका शासन काल 1605 ई. से शुरू हुआ।उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से का,लैह किले का निर्माण शुरू किया। पर वह अपने जीवनकाल में कमलाह किले का काम पूरा नहीं कर पाया। उसके बाद उनके बेटे सूर्य सेन ने 1625 ई. में अपने अपने पिता के अधूरे कार्य को पूरा किया। राजा सूर्य सेन ने ईष्वरी सेन के राज्य काल तक कमलाह गढ़ में समस्त सम्पति का भंडार रहा। सूर्य सेन के बाद उसके भाई श्याम सेन मंडी का शासक बन गया , श्याम सेन के बाद गुरु सेन , ईष्वरी सेन , सिद्ध सेन , जोगिन्दर सेन , मंडी के राजा रहे। राजा ईष्वरी सेन के शासनकाल के दौरान (1726-1788) काँगड़ा के राजा संसार चाँद ने कमलाह गढ़ के सेनापति मुरली , मन्कु के साथ मिलकर किले को जितने की शाजिस रची। परन्तु सफल नहीं हो पाए। राजा ने मुरली व मन्कु का सर कटवा दिया। ईश्वरी सेन के बाद जालिम सेन मंडी के राजा रहे। बलवीर सेन जो जालिम सेन का पुत्र था को मंडी का राजा बनाया गया। इसके बाद महाराजा खड़क सेन के पुत्र राजकुमार नौ निहाल सिख सेना को साथ लेकर मंडी व् कमलाह गढ़ में आक्रमण किया , लेकिन व् कमलाह गढ़ पर कब्ज़ा नहीं कर सके। 1840 ई. में राजा नौ निहाल सिंह ने जनरल वेंचुरा जो फ्रांस का रहने वाला था को विशाल सेना सहित कमलाह गढ़ पर कब्ज़ा करने के लिए भेजा। जनरल वेंचुरा सेना ने सेना सहित मंडी सी ७ मील की दुरी पर राजा बलबीर सेन को रास्ते में बंदी बनाकर अमृतसर के गोविन्द गढ़ में नज़र बंद कर दिया गया। जनरल वेंचुरा कमलाह गढ़ को जीत नहीं पाया। 5 नवंबर 1840 ई. को नौ निहाल सिंह की मृत्यु हो गयी और जनरल वेंचुरा अपनी सेना सहित कुल्लू चला गया। अंत में सिखों ने बड़ी कठिनाई से कमलाह गढ़ पर विजय पाई 1841 ई. में शेर सिंह लाहौर ले राजा बनते ही उसने मंडी के राजा बलबीर सेन को आजाद करने के आदेश दिया 1845 ई. में राजा बलवीर सेन ने अंग्रेजों से सिखों के विरुद्ध सहायता मांगी और 1846 ई. में बलबीर सेन ने अंग्रेजों से सहयता से कमलाह गढ़ को मुक्त करा लिया। कुछ समय के बाद सरदार मंगल सिंह ने कमलाह गढ़ पर आक्रमण करके कुछ गांव जला दिये। 9 मार्च 1846 ई. को एक संधि के अनुसार यह किला ब्रिटिश सर्कार के अधीन मंडी रियासत का गौरव बना।
HISTORY OF PUNJAB HILL STATE PAGE NO. 374 में लिखा है कि कमलाह गढ़ के (6) महत्वपूर्ण स्थान हैं:-(1) सूरजपुर (2) शमशेर सिंह (3) नरसिंहपुर । यह किला 360 बीघा क्षेत्र में फैला था इस किले की संरचना मजबूत और विशालकाय दीवारों पर है हाल ही में यहां खुदाई के दौरान कुछ कंकाल मिले थे किले में राजाओं के समय के तोफ व् गोले मौजूद है इस किले का कुछ भाग राजाओं ने दान के रूप में दे दिया है। अब यह किल्ला 101 बीघा क्षेत्र में रह गया हैं। जो अब भाषा व् संस्कृतिं विभाग के अधीन हैं।
सवतंत्रा सेनानी हीरा सिंह हिमालयन ने इस किल्ले को विभाग के अधीन करवाने में अहम् भूमिका निभाई है
सादर धन्यवाद नाम: विजय ठाकुर गांव: पारली परयाल पोस्ट ऑफिस : समौड़
कमलाह किला का इतिहास :-[संपादित करें]
यह संस्कृति-सम्बन्धी लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
कमलाह किला का इतिहास:-
जिला मंडी के सरकाघाट उपमंडल में स्थित कमलाह गढ़ रियासत का सबसे मजबूत अजय गढ है। यह किला मंडी से 101 किलोमीटर की दुरी पर है आज कल इस किल्ले तक पहुंचने के लिए बस सेवा उपलब्ध है। इस किले की ऊंचाई लगभग 4500 फूट है किले के ऊपर भाग मैंने बाबा कमलहिया जी का मंदिर है। मंडी रियासत के राजा हरिसेन जिनका शासन काल 1605 ई. से शुरू हुआ।उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से का,लैह किले का निर्माण शुरू किया। पर वह अपने जीवनकाल में कमलाह किले का काम पूरा नहीं कर पाया। उसके बाद उनके बेटे सूर्य सेन ने 1625 ई. में अपने अपने पिता के अधूरे कार्य को पूरा किया। राजा सूर्य सेन ने ईष्वरी सेन के राज्य काल तक कमलाह गढ़ में समस्त सम्पति का भंडार रहा। सूर्य सेन के बाद उसके भाई श्याम सेन मंडी का शासक बन गया , श्याम सेन के बाद गुरु सेन , ईष्वरी सेन , सिद्ध सेन , जोगिन्दर सेन , मंडी के राजा रहे। राजा ईष्वरी सेन के शासनकाल के दौरान (1726-1788) काँगड़ा के राजा संसार चाँद ने कमलाह गढ़ के सेनापति मुरली , मन्कु के साथ मिलकर किले को जितने की शाजिस रची। परन्तु सफल नहीं हो पाए। राजा ने मुरली व मन्कु का सर कटवा दिया। ईश्वरी सेन के बाद जालिम सेन मंडी के राजा रहे। बलवीर सेन जो जालिम सेन का पुत्र था को मंडी का राजा बनाया गया। इसके बाद महाराजा खड़क सेन के पुत्र राजकुमार नौ निहाल सिख सेना को साथ लेकर मंडी व् कमलाह गढ़ में आक्रमण किया , लेकिन व् कमलाह गढ़ पर कब्ज़ा नहीं कर सके। 1840 ई. में राजा नौ निहाल सिंह ने जनरल वेंचुरा जो फ्रांस का रहने वाला था को विशाल सेना सहित कमलाह गढ़ पर कब्ज़ा करने के लिए भेजा। जनरल वेंचुरा सेना ने सेना सहित मंडी सी ७ मील की दुरी पर राजा बलबीर सेन को रास्ते में बंदी बनाकर अमृतसर के गोविन्द गढ़ में नज़र बंद कर दिया गया। जनरल वेंचुरा कमलाह गढ़ को जीत नहीं पाया। 5 नवंबर 1840 ई. को नौ निहाल सिंह की मृत्यु हो गयी और जनरल वेंचुरा अपनी सेना सहित कुल्लू चला गया। अंत में सिखों ने बड़ी कठिनाई से कमलाह गढ़ पर विजय पाई 1841 ई. में शेर सिंह लाहौर ले राजा बनते ही उसने मंडी के राजा बलबीर सेन को आजाद करने के आदेश दिया 1845 ई. में राजा बलवीर सेन ने अंग्रेजों से सिखों के विरुद्ध सहायता मांगी और 1846 ई. में बलबीर सेन ने अंग्रेजों से सहयता से कमलाह गढ़ को मुक्त करा लिया। कुछ समय के बाद सरदार मंगल सिंह ने कमलाह गढ़ पर आक्रमण करके कुछ गांव जला दिये। 9 मार्च 1846 ई. को एक संधि के अनुसार यह किला ब्रिटिश सर्कार के अधीन मंडी रियासत का गौरव बना।
HISTORY OF PUNJAB HILL STATE PAGE NO. 374 में लिखा है कि कमलाह गढ़ के (6) महत्वपूर्ण स्थान हैं:-(1) सूरजपुर (2) शमशेर सिंह (3) नरसिंहपुर । यह किला 360 बीघा क्षेत्र में फैला था इस किले की संरचना मजबूत और विशालकाय दीवारों पर है हाल ही में यहां खुदाई के दौरान कुछ कंकाल मिले थे किले में राजाओं के समय के तोफ व् गोले मौजूद है इस किले का कुछ भाग राजाओं ने दान के रूप में दे दिया है। अब यह किल्ला 101 बीघा क्षेत्र में रह गया हैं। जो अब भाषा व् संस्कृतिं विभाग के अधीन हैं।
सवतंत्रा सेनानी हीरा सिंह हिमालयन ने इस किल्ले को विभाग के अधीन करवाने में अहम् भूमिका निभाई है
सादर धन्यवाद नाम: विजय ठाकुर गांव: पारली परयाल पोस्ट ऑफिस : समौड़ Mail ID Vickysaklani101@gmail.com