सदस्य वार्ता:Tiwariji1995
प्रस्तावना
Tiwariji1995 जी इस समय आप विकिमीडिया फाउण्डेशन की परियोजना हिन्दी विकिपीडिया पर हैं। हिन्दी विकिपीडिया एक मुक्त ज्ञानकोष है, जो ज्ञान को बाँटने एवं उसका प्रसार करने में विश्वास रखने वाले दुनिया भर के योगदानकर्ताओं द्वारा लिखा जाता है। इस समय इस परियोजना में 8,10,225 पंजीकृत सदस्य हैं। हमें खुशी है कि आप भी इनमें से एक हैं। विकिपीडिया से सम्बन्धित कई प्रश्नों के उत्तर आप को अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों में मिल जायेंगे। हमें आशा है आप इस परियोजना में नियमित रूप से शामिल होकर हिन्दी भाषा में ज्ञान को संरक्षित करने में सहायक होंगें। धन्यवाद।
विकिनीतियाँ, नियम एवं सावधानियाँ
विकिपीडिया के सारे नीति-नियमों का सार इसके पाँच स्तंभों में है। इसके अलावा कुछ मुख्य ध्यान रखने हेतु बिन्दु निम्नलिखित हैं:
|
विकिपीडिया में कैसे योगदान करें?
विकिपीडिया में योगदान देने के कई तरीके हैं। आप किसी भी विषय पर लेख बनाना शुरू कर सकते हैं। यदि उस विषय पर पहले से लेख बना हुआ है, तो आप उस में कुछ और जानकारी जोड़ सकते हैं। आप पूर्व बने हुए लेखों की भाषा सुधार सकते हैं। आप उसके प्रस्तुतीकरण को अधिक स्पष्ट और ज्ञानकोश के अनुरूप बना सकते हैं। आप उसमें साँचे, संदर्भ, श्रेणियाँ, चित्र आदि जोड़ सकते हैं। योगदान से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण कड़ियाँ निम्नलिखित हैं:
अन्य रोचक कड़ियाँ
| |
(यदि आपको किसी भी तरह की सहायता चाहिए तो विकिपीडिया:चौपाल पर चर्चा करें। आशा है कि आपको विकिपीडिया पर आनंद आएगा और आप विकिपीडिया के सक्रिय सदस्य बने रहेंगे!) |
-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 08:54, 20 फ़रवरी 2018 (UTC)
रुद[संपादित करें]
महान सन्तोषस्य विषयोSयं यदस्माकं प्रवेशोSद्यात्र सञ्जातः।एवञ्चायं महदुपकारक स्यादित्याशास्महे Tiwariji1995 (वार्ता) 09:11, 20 फ़रवरी 2018 (UTC)
गीरेव मन्त्रो भवेत्[संपादित करें]
।।गीरेव मन्त्रो भवेत्।। भगवता मानवेभ्यःप्रदत्ताद्भुतातीवचमत्कारकारिकेयं सततन्नाम गीरिति। निखल प्रपञ्चमानेSस्मिन्विश्वे भाव्यमानानां सुखदुःखानां प्राधान्येन गीरेव कारणत्वं विदधाति।इत्येवाभिलक्ष्योक्तञ्च-“गीरेव स्वर्गः,गीरेव नरकं,गीरेव सुखं,गीरेव मृत्युः,गीरेव रत्नमिति। वाचेयं मानवानां समर्जितं महद्धनं वर्तते,मानवःअनेनैव स्ववचसा गीर्प्रभावेण समस्तमिमं प्रपञ्चं जयति। अनयैव वाचा मनुष्यःसम्पूर्णमिदं विश्वं स्वर्गमिव परिवर्तयितुं शक्यते।भगवत्प्रदीयमानया वाचैव मानवःसाध्यासाध्योभयमपि यत्किञ्चिदपि कार्यं सम्पादयितुं क्षमः।यदि परिणाममज्ञात्वैव कोपतापेन पौर्वापर्यमनालोच्यैव यत्किमप्युच्यते चेत् तर्हि तया वाण्या कियान्ननर्थःस्यादितग।अथ च सहसा प्रयुक्तेन एकेनाSपि शब्देनाजीवन पर्यन्तमपि तस्याहतस्य मानवस्य दुःखाय एव भविष्यति।अतःस्ववचसा केषामपि जनसामान्यानां हेयन्न करणीयम्।इति धियैवोक्तञ्च मुनिना यत्
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः। तस्मात्प्रियञ्चवक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।
प्रपञ्चीभूतेSखिलेSस्मिन् विश्वे वर्तमानाःजीवधारिणःसुखप्रदेयया गीर्वाण्यैव तुष्यमानाःभवन्ति अतस्तेषां सर्वेषामपि जीवमात्राणां प्रियवाचा व्यवहरणीया प्रदेयेत्यर्थः।विपत्तिवेलायां,दुःखापन्ने,संकटपरिस्थतावपि मानवेन विवेकिना संयमोSचरणीयम्।सदा सर्वदा प्रिया वाक्प्रयोक्तव्येत्यर्थः।तत्र दारिद्र्यं स्यादेव नहि.सर्व जनीनोSयं पक्षःयन्मानवस्य संस्कारः,योग्यता,सारल्य,मानवीयतादि शीलगुणाःतस्यैव वाचा ज्ञायते।कारणन्तत्र मानवःमृदुना शब्देन वाक्येन वा अत्यन्तक्रूरमपि मनुष्यं जीवमात्रं वा आशुःतोषयितुं शक्नुयात्।अतोSस्माकङ्गीःमन्त्रात्मिका भवेदिति।वस्तुतस्तु आह्लादजनिकया वाचयैव विश्वकल्याणं विश्वशान्तिञ्चावाप्तुंशक्यते।अथ च प्रीतिपूर्विकया वाचैवेदमस्माकं राष्ट्रं रामराष्ट्रं कर्तुं कारयितुं वा क्षमः। “सर्वे भवन्तु सुखिनः”पङ्तेरस्याःचारितार्थ्यमपि वस्तुतःसम्भवतीति।एवञ्चातीव चमत्कारकारिकात्मिका वागूपलक्षितेयं जिह्वापि सादरणीया सुपूज्यनीया चेत्यभिप्रेत्योक्तञ्च-
लक्ष्मी वसति जिह्वाग्रे,जिह्वाग्रे मित्र बान्धवः। जिह्वाग्रे बन्धनं प्राप्तं जिह्वाग्रे मरणं ध्रुवम्।।
जिह्वा विषये एतादृशी संकल्पना परिकल्पना च विषये भणितमिति।अतोSस्माकं वाणी सुखदा,शुभदा च भवेत्।अस्योत्पादन विषये प्रस्तोतुमुपक्रमते तच्च पाणिनिशिक्षायामुक्तं यत्-,
आत्मा बुध्या समेत्यर्थान्,मनो यूङ्क्ते विवक्षया। मनःकायाग्निमाहन्ति स प्रेरयति मारुतम्।।
एवं प्रकारेण वागुत्पत्तिदशा प्रयुक्तेति।अस्मिन् एव क्रमे चतुर्भिश्चप्रकारैर्वाणी विभक्ता तच्चोक्तं महर्षिपाणिनिना-
परावाङ्मूल चक्रस्थ पश्यन्ति नाभि मण्डले। हृद्देशे मध्यमा ज्ञेया स्पष्ट वाणी तु वैखरी।। आसु चतुष्षु वाणिषु वाणित्रयस्यावबोधःयोगीगम्येति मन्ये।एवञ्च ताष्वेव वैखर्यात्मिका स्पष्टरूपा चेयं जनसामान्यस्यावबोध्यमाना वैखरीति।अथ च एतासां चतसृणां तत्तत्स्थानेषु स्थीयमानत्वात् प्रकार चतुष्टयं ते च परावागिति मूलचक्रे,पश्यन्ति नाभि मण्डले पश्यन्तीत्यभिधीयमाना,मध्यमा हृद्देशे,चतुर्थी च वैखरीत्यख्या स्पष्टवाणी कण्ठस्थीया चेत्यलम्। प्रस्तोता संजय तिवारी राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान भोपाल परिसर