सदस्य वार्ता:Thakurkalyan/प्रयोगपृष्ठ

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मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से Jump to navigationJump to search भरमौर जिला चम्बा के हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है , आज हम वात करने जा रहे हैं उन अनाजों की जो भरमौर में प्राकृतिक रूप से तैयार होते है , जिनका प्रयोग पहले कैसे होता था , और आज कैसे होता है , वर्तमान समय में ये आनाज कौन सी स्थिति में है , सर्वपर्थम वात करते हैं आनाज जो प्रकृतिक तौर पर भरमौर में तैयार होते है : - चनेई ( चनै) , कोदरा, चौला ( सिंयुल) सालन, जौ, गेहूं, मक्की सबसे पहले में अपना ध्यान आकर्षित करवाना चाहूंगा चनैई पर ये एक किस्म का देशी धान है , जो धान की तरह ही होता है , आकार में गोल होता है , थोड़ा फिसलने वाला होता है , इसको कूट कर चावल निकाला जाता है , जब चाबल बन जाता है तो इसकी फिसलन नहीं होती मतलब ये हाथ में नहीं फिसलता | प्राचीन समय में जब बाजारीकरण नहीं था तो इसी चावल का भात बनाया जाता था , आज भी बनाया जाता है लेकिन काफी कम मात्रा में , उत्पादन भी कम ही किया जाता है | अब कारण जानते हैं कि क्यों इसका इस्तेमाल कम किया जाता है : पहले बाजारीकरन नहीं था तो इसी चाबल का भात खाया जाता था , ओखली में डालकर हाथ से ही कूटना पड़ता है , समय जायदा लगता है , बाजारीकरण हो जाने से लोगो ने इसे खाना छोड़ दिया और इसके स्थान पर दूकान में मिलने वाले कुटे - कुटाये चावल खाना शुरू कर दिए हैं | अफ़सोस जनक ये कि अभी तक इस चनैई के धान को कूटने कि मशीन बाजार में उपलब्ध न है | इसी कारण लोगो ने इसे बोना कम मात्रा में शुरू कर दिया है , और इसका उपभोग भी कम ही कर रहे हैं | दूसरे नंबर पर वात करते हैं कोदरे की : ये आनाज भी बहुत ही बढ़िया है इसकी रोटी बनाई जाती है , खाने में बढ़िया होता है , लेकिन इसका उर लगाना पड़ता है , मेहनत बहुत है , लोगों ने पता नहीं क्यों इसका प्रयोग करना छोड़ दिया है , मुख्या कारण बाजारीकरण ही है , आजकल इसका प्रयोग शुर ( अम्ल है , शादी समारोह में जम कर प्रयोग होता है ) को लगाने में किया जाता है | प्राचीन समय में लोग इसकी रोटी वनाते थे, कभी कवार बहुत ही कम मात्रा में आज भी होता है | चौला ( सिंयुल ) बहुत ही कीमती और शिवरात्रि के दिन इसके लडू बनाये जाते हैं बर्तमान समय में , लेकिन प्राचीन समय में इसका प्रयोग खाने में शामिल किया जाता था , इसकी घींगी बनाई जाती थी , जो की लस्सी के साथ मिक्स करने से बनती है | कही कही आज भी कभी कबार लोग कर लेते हैं , लेकिन पहले की अपेक्षा इसका प्रयोग कम हो गया है | नई पीढ़ी सब भूल रही है | सालन : ये भी देशी धान की एक किस्म है , इसका प्रयोग भी कम ही होता है , इसको हाथ से कूटना पड़ता है ओखली में डालकर , मेहनत जयादा है , अधिकतर लोगों के पास इसका बीज भी नहीं होगा , बिलुप्त होने की कगार पर है | अफ़सोस यह है की इस आनाज का छिलका उतारने की मशीन भी उपलब्ध नहीं है | जौ : जौ को तो भला कौन नहीं जानता , जानते सभी हैं लेकिन जौ की रोटी प्राचीन समय में भरपूर मात्रा में खाई जाती थी , लेकिन आज इसकी रोटी कोई नहीं खाता है | शायद टेस्टी नहीं लगती होगी | अधिकतर इसका प्रयोग वर्तमान समय में गाय भैंस को दरकल के रूप में प्रयोग करते हैं | गेहूं की बिजाई तो की जाती है , लेकिन उन्नत किस्म की गेहूं नहीं बोई जाती है | मक्की : प्राचीन समय में लोग मक्की की फसल की बहुत विजाइ करते थे , लेकिन वर्तमान समय में इसकी बजाई भरमौर में कम हो गयी है , क्योंकि पहले लोग खेतों में रात को जा कर पहरा देते थे , लेकिन आज के जमाने में भालू की उजाड़ बढ़ गयी है , जमीन में पहरा देने बाला कोई नहीं है , बच्चों ने स्कूल का रूख किया है , पहले सयुंक्त परिवार होते थे सभी मिलकर काम निपटा लिया करते थे | निष्कर्ष : बाजरीकरण और समय अभाब व् संसाधनों का अभाब होने के कारण भरमौर में प्राकृतिक अनाज का उत्पादन नहीं हो रहा है , चनैई और सालन को कूटने की मशीन हो तभी ये सम्भव है , कोदरे की फसल को बोने के लिए लोगो को ध्यान देने की जरूरत है | प्रकृति ने तो भरमौर को बहुत कुछ दिया है लेकिन इसका प्रयोग नहीं हो रहा है , जो कि चिंता का विषय है | चौला की घींगी खाएं सेहत वनाये|