सदस्य वार्ता:Piyush Kumar Nahata

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अवधि ज्ञान[संपादित करें]

इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना आत्मा से होने वाला रूपी पदार्थों का ज्ञान अवधि ज्ञान कहलाता है। यह एक प्रकार का अतीन्द्रिय ज्ञान है।

अवधिज्ञान : निर्वाचन और परिभाषा[संपादित करें]

जो अवधान से जानता है, वह अवधि ज्ञान है। अंगुल के असंख्यातवें भाग क्षेत्र को जानने वाला अवधि ज्ञानी आवलीका के असंख्येय भाग तक जानता है- इस प्रकार जो परस्पर नियमित द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि को जानता है, वह अवधि ज्ञान है।[1] अव शब्द का अर्थ है - अधः। अधो-अधोवर्ती रूपी द्रव्यों को जो विशेष रूप से जानता है, वह अवधि ज्ञान है। अवधि का अर्थ है मर्यादा। जिस ज्ञान की मर्यादा है केवल रूपी पदार्थों को जानना, वह अवधिज्ञान है। अर्थ को साक्षात् करने का जो आत्म प्रयत्न है, अवधान है, वह अवधि ज्ञान है। [2]

अवधि ज्ञान के २ प्रकार[संपादित करें]

अवधिज्ञान के २ प्रकार हैं--१. भवप्रत्ययिक --जो जन्म से प्राप्त होता है। २. क्षयोपशमिक --जो विशेष साधना से उपलब्ध होता है। [3] देवता और नरक के जीवों को जन्म से ही अवधि ज्ञान होता है। मनुष्य एवं पशु पक्षियों को विशेष साधना से ही उपलब्ध होता है। [4]Piyush Kumar Nahata (वार्ता) 12:14, 28 नवम्बर 2017 (UTC)[उत्तर दें]

  1. विभा ८२
  2. नंदी मलगिरिया वृत्ति पृष्ठ ६५
  3. नंदी ७
  4. नंदी ७