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छिरकथूर पूरम[संपादित करें]

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परिचय[संपादित करें]

छिरकथूर पूरम पलक्काड़ का एक् वार्षिक त्योहार है। पालक्काड़ उत्तरी केरल का एक जिला है। यह त्यौहार एक मंदिर में होता है जिसक नाम है - श्री छिरकथूर भगवती मंदिर। इस त्योहार का मुख्य आकर्षण है - झूल से अलंकृत किए हुए सत्ताईस हाथियों के भव्य जुलूस। बड़े पैमाने पर अलंकृत पोशाक में ख्डे हुए इन शांत दिग्गजों की यह दृष्टि अति मनोहर और लुभावनी होते है। केरल के पारंपरिक ऑर्केस्ट्रा, जिसको पंचवाद्यम नाम से जान जाते है, और पंडीमेलाम जब शुरू होता है तब लोगों के मन में जोश उमड़ आता है। वे इस उत्सव को ज़्यादा उत्साहित बनाने मॅ मदद क्र्रते है। थेय्यम, कालवेला, कथकली, कुम्भकाली, ठट्टीमेल कूथू आदि जैसे विभिन्न कला रूपों का भी प्रदर्शन किया जाता है जो इस त्योहार को और भी मनोरंजित बनाते है।छिरकतूर पूरम मलयालम महीना 'कुम्भं' में 'मेडम' दिवस में मनाया जाता है । इस महीने में गरमी अधिक होता है, फिर भी लोग गर्मी को भूलकर उत्सव के जोश में डूबे रहते हैं। मंदिर इस समय बहुत रंगीन और सुंदर दिखता है। इस महोत्सव में सात क्षेत्रों भाग लेते हैं - ओट्टपालम्, पल्लड़मंगलम, पालप्पुरम, एरककोत्तिरि, मिटना, उत्तरी और दक्षिणी मंगलम। वे केरल की समृद्ध और जीवंत संस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।

विवरण[संपादित करें]

छिरकतूर पूरम एक रंगीन त्यौहार है । पूरम के बाद 'मोलाईडल पूथन' और 'थिरा' ह्र्र एक हिदू घर मॅ जाते हैं। वह दोनों ही इस क्षेत्र के ग्राम त्योहारों का एक अनिवार्य हिस्सा है। पूथन बजाने वाले आमतौर पर उज्ज्वल (आमतौर पर लाल) में पहनते हैं, सोने के रंग के ट्रिंकेट के साथ सुशोभित कसकर वेशभूषाएं भी पहनते हैं। उनका बढा मुरेठा, जिसमें मोर पंख हैं, उनके प्रभावशाली मुखौटे आदि सब दिलचस्प हैं। थिर बजाने वाले अर्धविराम काली ताज पहनते है जिसमे देवी के चित्र होते है। ज्यादातर थिरा बजाने वाले लोग क़लाबाज़ी में बहुत प्रतिभाशाली होते हैं। यह उनके प्रदर्शन को और अधिक रोचक बनाता है। नायादियों - लोगों की एक विशेष जनजाति भी घरों में जाते हैं। वे अपने आदिवासी गीतों को गाते हुए जाते हैं। अगला रिवाज है - पराएदुप्पू। 'वेळीचापाडु', जिन्हे प्रकाश का खुलासा माना जाता हैण्, देवता और भक्तों के मध्य मध्यस्थ है। वेळीचापाडु' शब्द का मतलब है - जो हर समस्या पर प्रकाश डालता है। जब देवता उनमे , प्रवेश करता है, वे एक उन्माद में नृत्य करते है। वे भी घर-घर में जाकर एक पतीला में धान, केला आदि स्वीकार कर लेते हैं।अगले आने वाले समारोह है - कुतिरक्कु थालावेककाल। कई बड़े घोड़े बांस की छड़ें और केनेन पत्ते कए उपयोग करके बनाए जाते है। प्रत्येक घोड़ा सेना के एक सैनिक को दर्शाता है। जब शरीर निर्माण खत्म हो जाता है, तब सर लगाना शुरु हो जाता है। प्रत्येक क्षेत्र के इस प्रसंग का अपना स्वयं का रूप होता है। पूरम के दिन लोग अपने घोड़ों को चिरकतूर मंदिर में ले जाते हैं और कुथिरकली का प्रदर्शन करते है.। ये घोड़े एक-दूसरे के साथ पूरम में प्रतिस्पर्धा करते हैं। जो सबसे ज्यादा घोड़े को फेंकता है या उठता है वह सबसे अच्छा खिलाड़ी माना जाता है। पूरम घोड़े की रैली से शुरु होत है। इसके बाद हाथी रैली होती है। इन सबके बाद आतिशबाजी शुरू होत्ता हैं। ज्यादातर लोग इसके बाद जाते हैं, लेकिन कुछ लोग सुबह के पूर्कम के लिए पीछे रह जाते हैं।

मंदिर[संपादित करें]

श्री छिरकतूर भगवती मंदिर पालपुराम में हैं, जो ओट्टपलम से पांच किलोमीटर दूर हैं। यहाँ हर साल यह पूरम का कार्यक्रम होता है। यह मंदिर एक विशाल जमीन के बीच में स्थित है। मंदिर दो खंडों में विभाजित है। ऊपरी भाग को निचले खंड से पुराने होना माना जाता है। ऊपरी भाग के पुजारी परंपरागत रूप से पलप्पुरम के कुलंगारा नायर परिवार से आते हैं। पूरम के दस दिनों में ऊपरी खंड के पुजारियां निचली खंड में आकर पूजा करते हैं ।

सन्दर्भ[संपादित करें]

[1] [2]

  1. https://www.keralatourism.org/event/chinakkathoor-pooram/4
  2. https://www.revolvy.com/main/index.php?s=Chinakathur%20pooram/