सदस्य वार्ता:Macbhat97/गुड़िया नृत्य

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गुडिया नृत्य एक बंगाली शास्तीय नृत्य परंपरा हैं। इसका जन्म बंगाल के गौडा अथवा गौर से होता हैं। महुआ मुखर्जी के द्वारा इसे खंगाला गया हैं। संगीत नाटक आकाडमी ने इस कला को भारतीय शास्त्रीय नृत्य के रुप में पहचान लिया हैं। भारत के संस्कृतिक मंत्रालय ने इसके अध्ययन में छात्रवृत्ति के योग्य समझा।

गुडिया नृत्य भारत के शास्त्रीय नृत्यों में से एक हैं। इस नृत्य का जन्म भारत के राज्य बंगाल में हुआ। "गुडिया" शब्द का अर्थ ही पुराना बंगाल हैं। इस नृत्य की जडे पोराणिक नात्यशस्त्र से आती हैं, जिसमें चार प्रवत्तियाँ हैं:

१) दिक्षीनाट्या

२) औद्रामगधि

३) अवति

४) पंचाली

सदियौं से चलती आ रहीं पोराणिक संस्कृतियाँ ब्रिटिश राज के कारण उनका पतन हो गया।

बीसवीं सदी में औद्रामगधि संस्कृति के द्वारा गुडिया नृत्य दोबारा लाया गया। चौथी सदी के मंदिरों में इस संस्कृति की छवि झलकती हैं। अन्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य के समान गुडिया नृत्य देवदासी प्रथा के द्वारा बंगाल में लाया गया। यह नृत्य एतिहास, साहित्य, कविता, संगीत और धुन का अनोखा मिलन हैं। गुडिया नृत्य "छाऊ", " नचनी", "कुशान" और "कीर्तन" के भागों से बना हुआ हैं।

आधुनिक काल में डाक्टर महुआ मुखर्जी जैसे कलाकार इस नृत्य को "रविंद्र भारती संस्थान" में आगमन करवाया। ब्रिटिश राज के दौरान यह सारे पौरानिक नृत्य का पतन हो चुका था। केवल बीसवीं सदी में इन सारे नृत्यों को भारत में वापस लाया। भरतनाट्यम, कुचिपुडी, मोहिनीअट्टम का आरंभ प्रवृत्ति नाम के दक्षिण नाट्य से हुआ था। औद्रामगधि, औद्रा और मगधा का प्रतीक हैं। अंगा, बंगा और उत्तर के कलिंग और वत्सा इस तरह के नृत्य का पूर्वीय भाग विस्तुत हुआ। इसके कारण ओडिसा में ओडिस्सी, असाम में सत्रिया और बंगाल में गुडिया का जन्म हुआ। गौडा बंगा के देवदासी नृत्याकार जो शमयरित्र काव्य के पाला साम्राज्य के समय से जाने जातें हैं। पदमावती, कवि जयदेवा की पत्नी भी एक शास्त्रीया नर्तकी थीं।