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-- 07:25, 7 नवम्बर 2011 (UTC)

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जहाँ आसा तहाँ बासा[संपादित करें]

इन चार शब्दों “जहाँ आसा तहाँ बासा” में सन्तों ने ज़िन्दगी का पूरा फलसफा भर दिया है। सन्तों के अनुसार मनुष्य जीवन का केवल एक ही लक्ष्य है – परम पिता परमात्मा से मिलाप; जो कि केवल मनुष्य जीवन में ही संभव है। उपरोक्त चार शब्दों में संत यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य की मृत्यु के समय जो भी विचार उसके मन में होते हैं, जिसके बारे में वह सोच रहा होता है, उसका अगला जन्म उसी स्थान पर होता है। इस लिए संत कहते हैं कि हमेशा अपने मन को परमात्मा के साथ लगाये रखो ताकि मरते वक्त और किसी की याद न आये और हम परमात्मा में ही समा सकें। संत नामदेव जी कहते हैं “हथ कार वल दिल यार वल" यानि कि दुनिया के काम करते हुए भी अपने मन को परमात्मा की तरफ़ लगा कर रखो। यदि ज़िन्दगी भर हम दुनियावी चीज़ों – बाल बच्चे, कारोबार, धन-दौलत, इत्यादि के बारे में ही सोचते रहेंगे तो मरते वक्त यही चीज़ें हमारे ज़हन में आयेंगी और उनसे बंधे हुए हम फिर इस दु:ख से भरी दुनिया में वापिस आ जायेंगे।

एक कथा है कि कोई सन्त अपने चेलों के साथ जंगल में अपने मठ में रहता था । संत ने अच्छी कमाई कर रखी थी । संत जी बीमार हो गये । चेलों का विश्वास था कि गुरु जी सीधे स्वर्ग में ही जायेंगे । फिर भी एक दिन चेलों ने पूछा कि गुरु जी आपके इस संसार से जाने के बाद हमें कैसे पता चलेगा कि आप स्वर्ग में गये है। संत ने कहा कि मेरी मृत्यु के तीसरे दिन आप लोगों को आकाश में ढ़ोल की आवाज़ सुनाई देगी तो तुम समझ लेना कि मैं स्वर्ग में गया हूँ। कुछ दिनों के बाद गुरु जी ने आखरी सांस ले ली। चेले हर समय आकाश की ओर ध्यान लगाये रहते कि कब ढ़ोल की आवाज़ सुनाई दे और हमें पता चले कि गुरु जी स्वर्ग में गये हैं। चार पांच दिन बीत गये, ढ़ोल की आवाज़ सुनाई नहीं दी। तभी संत के एक गुरु-भाई का मठ में पदार्पण हुआ। चेलों ने सारी बात गुरु-भाई को बताई और कहा कि अभी तक तो ढ़ोल की आवाज़ सुनाई नहीं दी है। गुरु-भाई जी ने अपनी आँखें बन्द करके ध्यान लगाया तो पाया कि जब संत जी आखरी सांस ले रहे थे तो वे एक बेर के पेड़ के नीचे लेटे हुए थे और ऊपर एक पका हुआ बेर दिखाई दे गया। संत जी की इच्छा उस बेर को खाने की हो गई। इसलिए वे एक कीड़ा बन कर उस बेर में पैदा हुए हैं। गुरु -भाई ने यह बात चेलों को बताई और कहा कि उस बेर पर ध्यान रखो। जब भी वह बेर पक कर नीचे गिरेगा, उस कीड़े की मौत होगी तो गुरु जी की आत्मा स्वतंत्र होकर स्वर्ग को जायेगी और तुम्हें आकाश में ढ़ोल की आवाज़ सुनाई देगी। चेलों ने गुरु-भाई के निर्देशों का पालन किया। तीन दिन बाद बेर नीचे गिरा और चेलों को आकाश से ढ़ोल की आवाज़ सुनाई दी। तो इस प्रकार से आप देख सकते हैं एक पहुँचे हुए संत को भी आखरी समय की दुनियावी इच्छा के वशीभूत होकर एक कीड़े की योनि में जन्म लेना पड़ा ।

इस लिए हमें भी चाहिए कि संतों की नसीहत के अनुसार दुनिया में साक्षी भाव बन कर अपने दुनियावी कर्तव्यों को निभायें तथा परमात्मा को हर वक्त याद रखें । ताकि मरते वक्त हमारा ध्यान दुनियावी चीज़ों की तरफ न जाकर परमात्मा की ओर जए और हम इस दुनिया में वापिस जन्म न लें ।