सदस्य वार्ता:Hardikkothari999/प्रयोगपृष्ठ

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इक्कीसवी सधी मे भारतीय साहित्य का आलोचनात्मक वर्णन[संपादित करें]

साहित्य समाज का दर्पण हॅ क्यों कि हम इसके माध्यम से ही समाज को देखते हॅ।अतः किसी भी राष्ट्र की उच्चता उसके साहित्य पर आधारित हॅ।उच्च साहित्य राष्ट्र को पूरे विश्व मे सर्वश्रेष्ठ बनाएगा।एसा माना जाता हॅ की मनुष्य का नाष हो सकता हॅ परंतु साहित्य अमर हॅ ऑर यही उसकी महानता हॅ।

भारतीय साहित्य की प्रगति[संपादित करें]

आधुनिक साहित्य

भारत देश अपनी स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद विभिन्न विषयो मे प्रगति की ओर तेजी से आगे बढा जा रहा हॅ। लेकिन क्या वह अपनी सभ्यता तथा साहित्य पर मुख्य दृष्टि रख रहा हॅ?इस सधी की सबसे खास बात यह है कि केवल भारत मे ही नही पूरे विश्व मे विज्ञान का विस्तारमय प्रगति हुआ हॅ। इस विज्ञान को नकारा नही जा सकता क्यों कि यह लोगों के दिमाग तथा उनकी सोच प्रवृति को अनेक रुप मे बदलता जा रहा हॅ।प्राचीन भारत मे साहित्य का रुप पाठयक्रम के माध्यम से इतिहास,राजनॅतिक,दर्शन,सामाजिक क्षेत्रो मे अंकित था।परंतु आज विज्ञान के बढते,नये साहित्य का निर्माण हुआ हॅ।आज लोग अधिक समय इंटरनेट पर व्यक्त करते हॅ।लोगों ने साहित्य का नया रुप इसी माध्यम से निर्मित किया हॅ। भारत की सबसे बडी विशेषता उसकी जनतंत्र मे मान्यता हॅ।इसके रहते लोग आसानी से अपने विचार तथा सोच को व्यक्त कर सकते हॅ।बीसवी सधी तक देश का विकास विज्ञान के क्षेत्र मे सीमित था।अतः भारत का साहित्य लेखको द्वारा लिखे पुस्तके,पाठ,निबंध,नाटके,महान ग्रंथो के उल्लेखों मे ही सीमित था।परंतु आज का भारत आगे बढ चुका हॅ।अभी किसी भी मनुष्य को पूराने तरिको का सामना नही करना पढेगा।वह स्वतंत्रता से अपनी बात निडर मन से व्यक्त कर सकता हॅ। इक्कीसवी सधी मे लोग अपनी बात को सामाजिक माध्यमो जॅसे फॅसबुक,टुवीटर,ब्लोग,आदि के रुप मे प्रस्तुत कर सकते हॅ।अभी लोग केवल पुस्तको पर ही आश्रित नही हॅ परंतु स्वयं एक स्वतंत्र लेखक हॅ।इसके चलते लोग सामाजिक क्षेत्रों मे अधिक जागरुत हॅ।अतः साहित्य का नया रुप देखा जा सकता हॅ।

विशेषताएँ[संपादित करें]

साहित्य मनुष्य की सोच बढाता हॅ ऑर उसे आलोचनात्मक वर्णन देता हॅ।यह समाज की वास्तविकता का सजीव चित्रण करता हॅ।इसके माध्यम से ही हम विभिन्न संस्कृति की प्रशंसा कर सकेंगे ऑर मानव की सहायता कर पायेंगे।साहित्य समाज के विभिन्न अंग जॅसे सामाजिक,राजनॅतिक,वॅज्ञानिक,आदि परिस्तिथियों का गंभीर चित्रण करती हॅ। साहित्य के बिना समाज ही नही हॅ ऑर समाज के बिना मनुष्य को समझना मुश्किल कार्य हॅ।

कठिनाइयाँ[संपादित करें]

विभिन्नता मे एकता

इस युग मे लोग आसानी से किसी भी विषय पर अपने भावों को व्यक्त कर सकते हॅ।यही इस पीढी की सबसे बढी विशेषता हॅ।परंतु लोग इस अवसर का अकसर नकारात्मक उपयोग करते दिखाई देते हॅ।अब लोगों मे विभिन्न आलोचना होने पर मानसिक टकरार को देखा जा सकता हॅ। यह केवल एक ही दृष्टि का वर्णन हॅ।भारत मे लोग साहित्य को माध्यम बनाकर अकसर झगडा का माहोल जॅसा वातावरण बना देते हॅ।भारत देश विभिन्न राज्यो का समूह हॅ।इसमे लगभग २२ अनुसूचित भाषाएँ हॅ।तथा सभी राज्यो के बीच अपने साहित्य को महान बनाने की निरंतर कोशिश देखी जा सकती हॅ।अनेक साहित्यकारों का यह मानना हॅ कि जब फ्रांस मे फ्रेंच बोली जा सकती हॅ तो भारत मे भी हिन्दी क्यों नही।अब लोगों मे अंग्रेजी का अत्यंत प्रभाव पड चुका हॅ।यह स्कूलों मे भी छात्रों के बीच लागू कर दिया हॅ। अंग्रेजों के जाने के सितर साल के बाद भी लोग उनकी संस्कृति को अभिमान के साथ पालते हॅ।इस नवीन भारत मे लोग अंग्रेजी को मुख्य तथा महान मानते हॅ।अतः उनके अनुसार संयूक्त भाषा देश की एकता का प्रतीक हॅ।परंतु वास्तविकता मे यह इतना आसान नही हॅ क्यों कि भारत मे विभिन्न राज्यों मे अपने ही साहित्य की महत्वता है।तथा यह उनके भावनाओं से खेलने जॅसा होगा।

निष्कर्ष[संपादित करें]

अतः मेरे अनुसार भारत की विशेषता उसकी विभिन्नता मे एकता हॅ।अंत मे यही कहना चाहता हूँ कि साहित्य ही मनुष्य के जीवन की नीव हॅ।अतः सच्चे भारतीय होकर हमे इसके विकास मे निरंतर सहयोग देना चाहिए।तभी देश की प्रगति होंगी।जय हिन्द।

सन्दर्भ[संपादित करें]

साँचा:टीप्पणीसूची https://www.education.com/reference/article/benefits-literature/ https://en.wikipedia.org/wiki/Category:21st-century_Indian_writers