सदस्य वार्ता:Brijesh kumar meena

पृष्ठ की सामग्री दूसरी भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
स्वागत!  नमस्कार Brijesh kumar meena जी! आपका हिन्दी विकिपीडिया में स्वागत है।

-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 10:45, 12 नवम्बर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

आदर्श नारी चरित्र मन्दोदरी[संपादित करें]

आदर्श नारी चरित्र मन्दोदरी

डॉ शोभा भारद्वाज
मन्दोदरी की कथा वहीं से शुरू होती है जब रावण हाथ में फरसा कमर में मृग चर्म लपेटे ऋषि एवं शूरवीर के वेश में राक्षस संस्कृति का प्रचार करते हुए कुछ उत्साही युवकों के समूह का नेता बन कर एक के बाद एक दक्षिण पूर्व एशिया के द्वीपों पर अधिकार जमा जा रहा था | मय दानव ने रावण की प्रतिभा एवं महत्वकांक्षा को पहचाना वह समझ गये यह युवक एक दिन राक्षसों का प्रतापी सम्राट बनेगा ऐसे संघर्ष के समय में उन्होंने अपनी अपूर्व सुंदरी ,गौर वर्ण, बुद्धिमती पुत्री मन्दोदरी रावण को सौंप दी रावण ने शुभ महूर्त में अग्नि को साक्षी मान कर विवाह किया |मन्दोदरी को ऐसे राज्य की महारानी के पद पर आसीन किया जिसका नक्शा अभी रावण के मस्तिक्ष में ही था मन्दोदरी ने जीवन पर्यन्त रावण का हर परिस्थिति में साथ दिया |
विवाह के बाद मन्दोदरी का जीवन रावण के परिजनों के साथ पति का इंतजार एवं उसकी महत्वकांक्षाओं से जूझते बीत रहा था | रावण ने धीरे -धीरे हिन्द महासागर में स्थित द्वीपों पर अधिकार जमा लिए उसका साम्राज्य अफ्रीका के समुद्र तल तक फैल गया| उसके नाना की नगरी सोने की लंका पर कुबेर यक्षों के साथ राज्य करता था वह रिश्ते में रावण का सौतेला भाई था उससे छीन कर वह लंका का अधिपति बन गया मय दानव ने लंका एवं समुद्र के बीच में स्थित त्रिकूट पर्वत को रावण के लिए मणियों से सुसज्जित कर अत्यंत लुभावने वैभव शाली नगर में बदल दिया लंका को राजधानी बना कर वह विजित प्रदेशों पर राज करने लगा| रावण की महत्वकांक्षा दिनों दिन बढ़ती जा रही थी उसने कुबेर से उसका पुष्पक विमान छीन लिया जिस पर पर सवार होकर वह संपूर्ण बिश्व में युद्ध के उन्माद से रत होकर भ्रमण करता एक के बाद एक राजमुकुट रावण के सामने गिरने लगे दानवों के पक्ष में उसने देवासुर संग्राम में हिस्सा लिया देवताओं को हराने के बाद रावण अजेय था उसकी सेना जिधर से निकल जाती हाहाकार क्षेत्र मच जाता |रावण के प्रथम पुत्र ने जन्म लिया ,’मेघनाथ’ युद्ध में कोई उसका सामना नहीं कर सकता था देवराज इंद्र पर विजय पाकर वह इंद्रजीत कहलाया | ऐसे प्रतापी पुत्र को पाकर रावण का मद बढ़ता गया अधिकाँश सुंदरिया उसका वरण करने के लिए स्वयं उत्सुक रहती थीं देवता, किन्नर ,यक्ष गंधर्व, नागों की उतम सुन्दरियों को उसने भुजाओं के बल पर जीत लिया | रावण पुष्पक विमान से विचरण कर रहा था इसकी नजर अपूर्व सुन्दरी पर पड़ी वह रम्भा थी जिसने मन ही मन कुबेर के पुत्र नककुबेर को अपना पति मान लिया था वह उससे मिलने जा रही थी उसे देख कर रावण का मद जागा उसने कन्या की एक न सुनी उसे अपना शिकार बनाया| रम्भा रोती हुई नल कुबेर के पास पहुँची उसने कहा में स्त्री हूँ मेरी शक्ति रावण के सामने कम थी नल कुबेर भी रावण के सामने असमर्थ था रावण जा चुका था | नलकुबेर की आँखों से आसूँ बह कर पत्थर पर गिरने लगे उसने वृक्ष की डंडी तोड़ी उसके क्रोध की अग्नि से शाखा जल उठी उस पर उसके आंसू गिर रहे थे क्षोभ में उसने रावण को शाप दिया ‘रावण जब भी तुम किसी दूसरी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध अपना शिकार बनाओगे तुम्हारे दसों सिर फट कर जल जायेंगे’’ |रम्भा अन्याय सहन नहीं कर सकी उसने आत्महत्या कर ली रावण शापित हो गया |
श्रीराम का दंडक वन में अंतिम वर्ष था रावण की बहन शूर्पणखा  वन में विचरण कर रही थी उसने श्री राम को देखा उनके सौन्दर्य को देख कर उन पर मुग्ध हो गयी उसने अपना रूप बदल कर उनसे प्रणय निवेदन किया श्री राम ने उसे संकेत से समझाया वह विवाहित हैं लेकिन उनका भाई वन में स्त्री विहीन है वह लक्ष्मण की तरफ गयी उन्होंने उसे सेवक का धर्म समझाया पुन: राम की और भेज दिया अंत में क्रोधित शूर्पणखा राक्षसी का रूप धारण कर सीता को मारने दौड़ी सीता को मार कर वह श्री राम को पाना चाहती थी श्री राम के संकेत पर लक्ष्मण ने उसके नाक कान काट दिए |राम की रावण के कुकर्मों के कारण उसकी सत्ता को सीधी चुनोती थी| अपमानित शूर्पणखा पहले अपने मौसेरे भाई खर एवं दूषण के पास गयी लेकिन श्री राम ने सेना सहित दोनों भाईयों का वध कर दिया अब वह भरे दरबार में रावण के पास क्रन्दन करती हुई पहुँची उसने रावण को बताया वन में दो राजपुत्र ठहरे हैं बड़े राजकुमार साक्षात काम के अवतार हैं उनकी पत्नी सीता अद्भुत सौन्दर्यवती है उसके सामने रति का सौन्दर्य भी फीका है | रावण ने प्रत्यक्ष युद्ध के बजाय छल द्वारा सीता का हरण कर उन्हें राक्षसियों के सघन पहरे में अशोक वाटिका में कैद कर लिया |
|सीता के लंका में प्रवेश के साथ ही बुद्धिमती मन्दोदरी समझ गयी पराई स्त्री के हरन के पाप से राक्षस कुल का विनाश अधिक दूर नहीं है |रावण जब भी सीता को धमकाने जाता अपने साथ सजी धजी रानियों के साथ मन्दोदरी को ले जाता मन्दोदरी ही रावण पर अंकुश लगा सकती थी इससे बड़ा दुर्भाग्य किसी प्रतिव्रता स्त्री के जीवन क्या होगा जैसा मन्दोदरी ने झेला उसका पति परस्त्री को मनाने के लिए अपनी पटरानी को उसकी सेविका बनाने की अनुनय कर रहा था |  ले सीता ने रावण को ऐसी फटकार लगाई वह विवेक भूल कर उसने मारने के लिए तलवार उठा ली उसके बीस नेत्र क्रोध से लाल हो गये बीसों भुजायें फड़कने लगीं मन्दोदरी ने रावण को रोका वह उसे महल में ले गयी रावण के साथ आई बेबस रानियाँ कुछ देर तक खड़ीं रहीं उनकी आँखों में आंसू थे|
रावण का छोटा भाई विभीषण राज्य मंत्री मंडल का प्रमुख विवेकी एवं मन्दोदरी का सलाहकार था उसने सीता के अपहरण का विरोध किया हनुमान जब सीता की खोज में लंका आये उसने उन्हें अशोक वाटिका का मार्ग बताया |हनुमान ने लंका जला कर श्री राम के प्रभाव का परिचय दिया लेकिन हठी अभिमानी रावण अपनी जिद पर अड़ा रहा |श्री राम वानर सेना के साथ समुद्र में पुल बांध कर लंका के द्वार पर पहुँच गये | रावण द्वारा अपमानित होने के बाद विभीषण राम का शरणागत हो गये |अब सेना सीधे नगर पर आक्रमण कर सकती थी | हर बलिष्ट बानर के हाथ में उखाड़े हुए वृक्ष थे क्रोध में उन्मत्त भीड़ राक्षसों द्वारा सताये, प्रतिशोध के लिए मरने मारने को तैयार थे | अब मन्दोदरी शांत नहीं रह सकी| उसने मंत्रणा कक्ष से लौटे रावण का हाथ पकड़ कर अपने कक्ष में ले आई उसके चरणों में बैठ कर आंचल पसार कर समझाने का प्रयत्न करने लगी रावण सुनना ही नहीं चाहता था एक निपुण मंत्री के समान नीति समझाई वैर ऐसे शत्रू से करो जो बल एवं बुद्धि में आपसे हल्का हो रावण का चारो दिशाओं में डंका बजता था उसने उसे चेतावनी देते हुए कहा श्री राम के प्रभाव के सामने आपकी सामर्थ्य कुछ भी नहीं रघुकुल  तिलक सूर्य के समान हैं आप उनके सामने टिमटिमाते जुगनू वह स्वयं श्रीहरी हैं |आप जगतमाता को हर लाये सीता ने तिनके द्वारा संकेत से आपके विनाश की सूचाना दी थी |

आप राम की शरण में जाकर सीता उन्हें सौंप दीजिये पुत्र का राजतिलक कर कुटुम्ब एवं प्रजा की रक्षा कीजिये | आपने अपने आप को संसारिक भोगों में लिप्त रखा है भोग का मोह त्याग दीजिये| रावण नहीं माना या यूँ कहिये जिनको पाने के लिए ज्ञानी जन अपना संपूर्ण जीवन लगा देते हैं जिसने भोग विलास महत्वकांक्षा के पीछे भागते जीवन बिताया हो जब श्रीहरि स्वयं समुद्र में पुल बाँध कर उसे मारने आये हैं वह शुभ अवसर कैसे जाने दे श्री हरी के हाथो वध सीधे मोक्ष का मार्ग है| लंकेश रंग सभा में बैठा था राम के एक बाण से रावण का मुकुट और मन्दोदरी के कर्ण फूल काट कर धरती पर गिरा दिये मन्दोदरी विचलित हो गयी उसने श्री हरी के विराट स्वरूप का वैसा वर्णन किया वर्णन जैसा कुरुक्षेत्र के मैदान में भ्रमित अर्जुन को विराट रूप दिखा कर श्री कृष्ण ने दिव्य ज्ञान दिया था | उसने रावण सामर्थ्य को ललकारा आपके सामने शिव का धनुष था लेकिन राम ने तोड़ कर सीता का वरन किया था |

कुम्भकर्ण के वध के बाद मेघनाथ एवं राम का युद्ध हुआ उन्होंने आदर्श माता की तरह पुत्र को युद्ध क्षेत्र में विदा किया |रावण अंतिम युद्ध के लिए तैयार था उसने अपनी कैद से काल एवं समय को मुक्त कर दिया युद्ध पर जाने से पूर्व वह मन्दोदरी से मिला रूपवती मन्दोदरी सिल्क के प्रधान में सजी हुई थी उसने पति को विदा करते हुए कहा जब मैने आपको पहली बार देखा था मेरे हृदय पर आपका अधिकार हो गया प्रथम दृष्टि का प्रेम रावण के हर नेत्र से प्रेम झलक रहा था दोनों जानते थे यह अब अलविदा है | रावण अकेला महल की छत पर था अंधेरी रात में आकाश तारों से जगमगा रहा था रावण ने नृत्य की मुद्रा में पैर उठाये वह अपनी बीस भुजाओं को फैला कर नृत्य करने लगा अपने सिर को पीछे झुका कर नृत्य की हर मुद्रा में घूम रहा था हर दिशाओं की हवाए उसकी बाहों में समा रही थीं उसकी बीस भुजाएं लहरा रहीं थी अंत में रावण ने दस जोड़ी हाथों से करतल ध्वनि से ताल देते हुए पैरों से तीन बार थिरकते हुए नृत्य को समाप्त किया |
राम रावण का भयंकर युद्ध , अद्भुत युद्ध अपने समय के हर प्रकार के शस्त्रों एवं युद्ध कलाओं का प्रदर्शन दोनों शत्रु महा पराक्रमी थे अंत में राम ने रावण के धनुष को काट दिया उसका रथ तोड़ दिया वह धरती पर शस्त्र हाथ में लेकर युद्ध कर रहा था राम ने देखा रावण के पीछे मृत्यू खड़ी थी राम ने अगस्त मुनि के दिये तीक्ष्ण बाण धनुष पर चढ़ा कर तीन कदम आगे और तीन कदम पीछे चल कर सांस खीच कर पूरी शक्ति से लक्ष्य का संधान किया सनसनाते तीर सीधे रावण के सीने में हृदय स्थल को बेध गये रावण का पार्थिव शरीर धरती पर गिर पड़ा संध्या का समय था सूर्य धीरे धीरे अस्ताचल की और जाने लगे रावण शांत अचल पड़ा था चार वेदों छह विद्याओं का ज्ञाता हर कला में निपुण रावण के युग का अंत हो गया| 
युद्ध का अंत हो गया| मन्दोदरी विलाप करने लगी लेकिन यह नही भूली रावण का अंत उसके अपने कर्मों से हुआ है उसे मारने स्वयं विधाता ने मानव के रूप में जन्म लिया, उसने श्री राम को नमश्कार किया मेरे पति जन्म से परद्रोही थे फिर भी आपने इनको अपना परम धाम दिया मन्दोदरी ने सफेद वस्त्र धारण कर मृत रावण के हाथों को पकड़े चुपचाप रोती रही शांत होने के बाद वह पहाड़ी के शिखर पर बहती नदी में नहाई अपने पूर्वजों को याद कर उन्हें जलांजलि अर्पित कर शिला पर बैठ गयी उसकी आँखे बंद थी अपने आंसुओं को रोक कर उसने अपने नेत्र खोले सामने उसके पिता मय दानव खड़े थे पिता को देख कर मन्दोदरी बिलखने लगी रावण के शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा लेकिन वर्षों पहले उसने अपने हृदय में मुझे बसाया था उसका हृदय सदैव मेरे हृदय में धडकता रहेगा| मय(भ्रम ) अपनी पुत्री का हाथ पकड़ कर लंका की महारानी को छोटी कन्या की तरह अपनी नगरी में ले गये same  (वार्ता) 19:29, 28 अक्टूबर 2023 (UTC)[उत्तर दें]