सदस्य वार्ता:डॉ.विजेंद्र प्रताप सिंह

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व7 • साफ़ प्रचार

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☆★आर्यावर्त (✉✉) 10:06, 29 दिसम्बर 2016 (UTC)[उत्तर दें]

प्रतिशोध[संपादित करें]

(थर्ड जेंडर पर आधारित कहानी)

आज ईश्वरी प्रसाद की तीसरी बेटी रेखा की शादी थी। घर आंगन में खुशी का वातावरण था। सारे रिश्तेदारों) घरातियों तथा बरातियों की उपस्थिति से खूब चहल-पहल थी। नियत समय एवं महुरत के अनुसार सारी रस्में पूरी हो गई) बस दुल्हन को विदा किया जाना शेष था। तभी भोर में ही हिजड़ों की टोली आ पहुंची। किन्नरों के सूचना तंत्र की तारीफ करनी होगी कि बच्चा पैदा होने) शादी विवाह आदि की सूचना मिल जाती है और वे अपना नेग मांगने सुबह भी आ धमकते हैं। ढोलक की थाप और हाय....हाय.......रे... बधाई हो दूल्हे राजा) दूल्हे के पापा) दूल्हे के मौसा आदि की आवाज ने सभी का ध्यान अभी ओर खींचा। सारे लोग वहां जमा हो गये। पांच हिजड़ों ने बधाई गीत शुरू कर दिया और ‘‘मेरे भोले बाबा आओ मेरे प्यारे बाबा आओ मेरे मकान में डम डम डम डमरू बाजे सारे जहान में‘‘ गीत पर राखी के नाच पर तो सारे लोग भाव विभोर होकर मुक्तकंठ से प्रशंसा करने लगे। कई मनचले भले ही आमतौर पर हिजड़ों के सामने भी न आए पर उस समय खूब चिपक-चिपक के नाचे। हिजड़ों में से किसी ने कुछ नहीं कहा। सब खुशी खुशी नाचते गाते रहे। सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था और अंत में बारी आई नेग देने की।

नेग के नाम हिजड़ों की टोली की प्रमुख राखी ने दस हजार एक रूपया की रकम देने को कहा। दूल्हे सहित सभी बारातियों के चेहरे का रंग उड़ गया। ईश्वरी प्रसाद तो विगत सप्ताह उनके एक मित्र के घर हुई घटना से अच्छे खासे नाराज थे हिजड़ों से। हुआ ये था कि हिजड़ों द्वारा मांगा गया नेग न देने पर एक हिजडे ने बहन-बेटी तथा अन्य स्त्रियों के सामने ही पूरे कपड़े उतार कर तमाशा खड़ा कर दिया था। हिजड़ों का यह रूप किसी भी नहीं भा सकता। बहन बेटी का सम्मान न करना इस समुदाय बहुत ही अप्रिय बात है। गुस्से में, वे भूल गये कि उनके यहां भी ऐसा कुछ हो सकता है जैसा उनके मित्र के घर हो चुका था और हिजड़ों को गालियां देते हुए भगाने लगे। पहले तो हिजड़े अनुनय, विनय करते रहे और ईश्वरी प्रसाद ने बद्व्यहार बहुत ज्यादा कर दिया और दोनों पक्षों में जिरहबाजी बहुत बढ़ गई तो हिजड़े नाराज हो गए और वह घटित हो गया जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। पांचों हिजड़ों ने गालियों पूर्ण गाने गाते हुए एक-एक कपड़ा उतारना शुरू कर दिया और सभ्य कहे जाने वाले मुख्यधारा के सुसभ्य लोग तमाशाबीन बने रहे। औरतें शर्म के मारे अंदर चली गई। अंत में, और भी ज्यादा बुरा होना शायद नियति में लिखा था। दूल्हे ने आव देखा न ताव उठकर हिजड़ों को पीटना शुरू कर दिया। राखी सहित सभी हिजड़ों को काफी चोट लग गई। राखी का मुंह फट गया उसने रोते हुए कहा-‘अरे साहब! क्या हम हिजड़ों पर मर्दांनगी दिखाते हो। यही काम रह गया है तुम मर्दों का। घर में औरतों पर हाथ उठाकर अपनी मर्दानगी दिखाते हो और आज मुझ हिजड़ी को मार कर दिखा रहे हो। याद करो तीन साल पहले की घटना......जब आगरा से हाथरस के रास्ते में तुम खून से लथपथ पड़े थे, सड़क के किनारे। तुम जैसे इन मर्दों में से किसी ने नहीं उठाया था तुम्हें। तब ये राखी ही थी, ये हिजड़ी.......जो तुम्हें हमारी गाड़ी में डालकर सरकारी अस्पताल छोड़ आई थी।.....एहसान गिनाने वाली बात नहीं है.....साहब! हममें थोड़ी बहुत इंसानियत बची है ......पर तुम लोगों में........अरे! तुम बड़े लोगों को तो जब अपने मां बाप का एहसान तक याद नहीं रहता तो मुझे हिजड़े की मदद कैसे याद रहेगी। अपने मुंह पर गये खून को पोंछते हुए उसने पुनः कहा-भीख मांगना.......तुम लोगों के सामने हाथ फैलाना, दर-दर बेइज्जती सहना, हमें भी अच्छा नहीं लगता .......पर करें तो क्या करें........न कोई काम देता है न दाम देता है। ईश्वर ने सब कुछ छीन लिया पर इस पापी पेट को रख छोड़ा है......इसे भरने के लिए........सहते हैं हम आप सभी जलालत। आखिर इस पाप पेट का सवाल है। इस जगत में सारी समस्याएं पेट से शुरू होती हैं और इसी पेट पर खत्म हो जाती हैं। हम हिजड़ों पर तो, किस्मत की मार ही इतनी बड़ी पड़ी है कि क्या कहें। जिसने पैदा किया उसने घर से निकाल दिया......वो भी मर्द था....मेरा बाप और तुम लोग भी मर्द हो.......उसे दया नहीं आई .....तुम लोग क्या करोगे।.......गलती क्या की है हमने......जिसकी सजा, ईश्वर हमें किश्तों में दे रहा है रोज.........इतना कहते कहते सभी ने अपने कपड़े जैसे-तैसे ठीक किए और निकलने लगे जाने के लिए। जाते....जाते....राखी एक बार पलटी और कातर भाव से बोली- साहब! .... ऊपर वाला आपकी जोड़ी बनाए रखे। ओ गाली वाले बूढ़े बाबा तेरी बेटी सदा सुहागन रहे.............ईश्वर आप सबको खुश रखे।

राखी और अन्य साथी अपनी गाड़ी में बहुत ही बोझिलता से बैठे और आगे बढ़ चले, किसी और जगह जलालत,बेइज्जती, अपमान झेलने के लिए। पढ़ी लिखी राखी को रह-रहकर कृष्णमोहन झा की कविता की पंक्तियां याद आ रही थीं- ‘उनकी गालियों और तालियों से भी उड़ते हैं खून के छींटे और यह जो गाते बजाते उधम मचाते हर चैक चैराहे पर वे उठा देते हैं अपने कपड़े ऊपर दरअसल उनकी अभद्रता नहीं उस ईश्वर से प्रतिशोध लेने का अपना तरीका है जिसने उन्हें बनाया है या फिर नहीं बनाया।’


द्वारा-डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह