सदस्य वार्ता:जबसा चारण

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   शीर्षक -- " उल्लू कौन है "

लेखक : - जबरदान चारण " सुहागी "

           भूमिका 

साहित्य की दृष्टि से देखे तो सम्पूर्ण जीवन महज एक कहानी ही है और जिसमे खुद के अलग-अलग किरदार है तथा कुछ हमारे साथ भी किरदार जुडते है मैं उन्हीं में से एक किरदार की आज बात करने वाला हूँ । एक अनचाहा किरदार जो जीवन का एक अटूट हिस्सा बन चुका था मै कहानी के एक किरदार को अपनी कलम के माध्यम से एक साहित्यिक रूप दे रहा हूँ। यह एक काल्पनिक कहानी है जिसका आधार प्रेम है लेकिन इसका किसी वास्तविक घटना से कोई संबध नहीं है आप इसको पढ़ कर आनंद लीजिए मैं आशा करता हूं आपको यह कहानी पसंद आयेगी।


आश्विन मास की शरद रात्री में एक लड़का रात में अपने खेत पर एक लकड़ी की बनी माली पर बैठा रो रहा था  तभी उसके पास आकर एक उल्लू बैठता है वो उस लड़के से पूछता है कि वो रो क्यों रहा हैं तब वह  लड़का उस उल्लू को अपनी कहानी सुनाता है जब मैं विद्यालय में पढ़ता था तब ऐसा हुआ कि एक दिन मैं मेरे विद्यालय की एक लड़की से टकरा गया और जैसे तैसे मैं खुद को संभालते हुए खड़ा तो हुआ लेकिन उसकी आखों के अपार समुंद्र के दलदल में फिसल गया । मैं उस पर मोहित हो गया । मैं समझ नहीं पा रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है लेकिन अब मैं मैं नहीं रहा था। अब मैं कल्पना के संसार में जीने लगा था जो इतना विशाल था की मैं खुद जान ही नहीं पा रहा था कि " मैं कौन हूँ ?" (उल्लू) :- फिर क्या हुआ उस लड़की को दिल की बात बताई! (लड़का) :- नही , बता नही पाया था लेकिन यह बात धीरे धीरे उसको भी समझ में आ रही थी कि मैं एक ऐसा आशिक बन चुका था जिसको केवल वही दिखाई दे रही थी। एक वक्त पर हमारा एक दूसरे के सामने आना भी मुश्किल हो गया था । हमारा एक दूसरे से आंख मिलाना भी मुश्किल हो गया था। ये सब चलते चलते दो साल बीत गए।लेकिन वो दिन दूर नही थे कि हम अलग होने वाले थे जो उसको देखने का सुकून था वो भी मुझसे छीनने वाला है देखते ही देखते विद्यालय का समय खत्म हो गया मैं अपने घर चला गया और हम एक दूसरे से अलग हो गए। बस यही पर मेरी उम्मीद खत्म हो गई थी। लेकिन उसकी अंतिम मुलाकात मुझे आज भी याद है उसे देर हो रही थी लेकिन वो दूर खड़ी एक टूक निहार रही थी।  (उल्लू):- फिर क्या हुआ। क्या यही पर तुम्हारा प्यार बिछड़ गया ? (लड़का) :- नही ऐसा नहीं हुआ। (उल्लू) :- तो फिर क्या हुआ आगे... (लड़का) :- आगे यह हुआ कि जैसे जैसे वक्त बीतता गया वैसे वैसे मुझे उससे ज्यादा प्रेम होने लगा। मेरे बिस्तर की सिलवट्टे मेरी तन्हाई भरी रातों का प्रतीक थी।कुछ सालों के बाद फिर एक बार हमारी मुलाकात हो गई इस बार मैंने बिना देर के सारी दिल की बात बता दी और उसने भी इस बात को स्वीकार कर लिया कि उसको भी मेरे से प्रेम है (उल्लू) :- भगवान जो करता है अच्छा ही करता है तुझे तेरी प्रेमिका मिल गई मुझे तेरे जैसा दोस्त। (लड़का) :- लेकिन कुछ समय के बाद उसने मना कर दिया कि वो मुझसे प्रेम नही करती है । जो उसने कहा था वो एक फरेब था (उल्लू) :- फिर क्या हुआ ? (लड़का) :- उसने कहा था कि मैं आपसे प्रेम नही करती हूं लेकिन मैं एक अच्छी दोस्त बनकर रह सकती हूं । (उल्लू) :- फिर उसको छोड़ देना चाहिए था ( लड़का):- नही मैं उसके प्रेम से इतना प्रभावित हो गया था  कि मैं उसको किसी भी रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार था ताकि मैं उसके साथ समय व्यतित कर सकूं। उस समय मेरे पास और कोई विकल्प ही नही था मैं खुद को मार कर एक दिल के लिए जी रहा था उसकी सारी इच्छा पूरी कर रहा था। (उल्लू) :- फिर आगे... (लड़का) :- लेकिन एक समय के बाद उसने जिस प्रकार से मेरे प्रेम के फूल को अपने पैरो तले रौंद दिया था ठीक उसी प्रकार दोस्त रूपी रिश्ते को भी एक समय बाद नष्ट कर दिया। "  ऐसा लग रहा था जैसे पहले काजल कहकर पलकों पर सजाया फिर दाग समझ कर पोंछ दिया। " (उल्लू) :- ओह! बहुत बुरा। लेकिन उसके बाद क्या ? (लड़का):- मुझे एक समय के बाद यह अहसास हो गया था कि हम कभी भी दोस्त बनकर नहीं रह सकते थे उससे सारी उम्मीदें खत्म हो रही थी। हमारे बीच सब कुछ खत्म हो गया और हमारे बीच जो रिश्ता बचा था उसमें ना उम्मीद थी ना विश्वास था और ना ही उसका कुछ नाम दिया जा सकता था जैसे ना प्रेम ना ही दोस्ती। (उल्लू) :- मैं समझ सकता हूं दोस्त। एक वक्त बाद यही होता है (लड़का):-  हां! क्योंकि एक प्रेमी को चांद से मिलने की चाहत होती है एक प्रेमी की चाह को पूरी करने के लिए सूरज डूब जाता है ताकि प्रेमी चांद से मिल सके लेकिन आने वाला सूर्योदय भी इस बात का प्रतिक होता है की आप उसे कभी भी भुला नहीं सकते हो। वह एक ना एक दिन आपके दिल में सूर्योदय की तरह जरूर निकलेगा। (उल्लू) :- फिर........! (लड़का): - मैने उसको कहा कि "मैने सोचा नहीं था इतनी जल्दी अलविदा कहूंगा तुम जिंदा होगी और मैं तुमसे जुदा रहूंगा मेरे बगैर तुम्हारी जिंदगी का आगाज-ए-वजम होता है अब आगे की कहानी जो चाहे लिख लो मैडम यहां से मेरा रोल खत्म होता है " (उल्लू):-  हां सही बात है दोस्त! मैने तेरी कहानी सुनी लेकिन मुझे एक बात समझ में नहीं आई कि " उल्लू कौन है " (लड़का) :- उल्लू का तो पता नहीं लेकिन हां इतना पता है की एक प्रेमी को चांद की चाहत होती है उसको भी चांद की चाहत थी वो चांद से मिलने के लिए हमेशा सूरज के ढलने का इंतजार करती थी क्योंकि चांद हमेशा तारों की चक्का चौंध में निकलता है उसको चक्का चौंध अच्छी लगती थी वो उस सूरज के ढलने का इंतजार करती थी जो उसे प्रकाशमय करता था। छोटे बच्चो की तरह हसाता था। कल्लियों की तरह उसे प्रफुल्ल करता था। लेकिन उसे पता नहीं था की चांद हर दिन थोड़ा थोड़ा बढ़ता है पूर्णिमा को पूरा दिखता है बस उसी दिन से वापस कम दिखना प्रारंभ कर देता है वो दिन दूर नही था जब अमावस्या की रात को वो अकेली होगी क्योंकि चांद नही आयेगा। उसे रात को अंधेरे ने चारो तरफ से घेर लिया होगा वो डरी सहमी सी  एक कोने में सिकुड़ कर बैठ जायेगी और उस सूरज के निकलने का इंतजार कर रही होगी जिसके अस्त होने पर वो खुश होती थी। ये तारों की चक्का चौंध में निकलने वाला चांद एक दिन गायब हो जाता है फिर वही याद आता है जो आपके साथ हमेशा रहता है एक पुराना प्रेमी जो आपसे एक वक्त पर बेइंतहा मोहब्बत करता था वो वाली बात है की वो जीत कर भी पछताएगी कुछ इस मैं हार जाऊंगा । । । [  प्रतिक :-    ( सूरज - पुराना प्रेमी )    (चांद- नया प्रेमी )    ( तारा - दिखावा )     ]

वो चाँद मेरा[संपादित करें]

मेरा प्यारा सा एक सपना