सदस्य वार्ता:अब्दुल क़ादिर

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 19:01, 5 अक्टूबर 2019 (UTC)[उत्तर दें]

नबी अल्लाह का दूत आदम[संपादित करें]

-Hazrat Aadam Alaihissalam- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम

बिस्मिल्लाहिर्रहमानीर्रहीम हज़रत आदम अलैहिस्सलाम Hazrat Aadam Alaihissalam

           उन रिवायत करने वालों ने जिन पर भरोसा किया जा सकता है रिवायत किया है की जब अल्लाह का इरादा आदम अलैहिस्सलाम को खलीफा बनाने का हुआ ,तब हज़रत इजराइल को  हुक़्म हुआ की जमीन से हर   किस्म की यानी लाल,सफ़ेद  काली मिट्टी सिर्फ एक मुट्ठी लाएं।  
         इजराइल एक मुट्ठी रंग-बिरंगी मिटटी जमीन से जमा करके उठा लाये और अल्लाह के हुक़्म के मुताबिक ताइफ़ और मक्का के दरमियान में रख दी। अल्लाह ने उस मिटटी पर अपने रहमत की बारिश की और अपनी क़ुदरत से हज़रत  आदम अलैहिस्सलाम का पुतला उस मिट्टी के खमीर से बनाया।
          चालीस वर्ष तक वह पुतला बे-जान वहां पड़ा रहा।  फिर अल्लाह ने चाहा की हज़रत आदम  अलैहि० के इक़बाल का सितारा रोशन हो और उनकी औलाद का रुतबा पूरी कायनात की मखलूक पर जाहिर हो , तो उसने रूहे पाक को हुक़्म दिया  की आदम के पुतले में दाखिल हो।  उस वक़्त नर्म  व नाजुक रूह जिस्म में दाखिल न हो सकी। परवर दीगर ने रूह को दोबारा हुक़्म दिया की ऐ  जान !  इस बदन में दाखिल हो।  
               जब रूह आदम के जिस्म में सर की तरफ से दाखिल हुई ,तो हुक्मे इलाही से   वह  जहां पहुँचती थी ,वह हिस्सा गोस्त-पोस्त में बदल जाता था।जब रूह सीने तक पहुंची तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने उठने का  इरादा किया।उठते ही वहीं जमीन पर गिर पडे|इसीलिये अल्लाह तआला ने कुरान शरीफ में फ़रमाया है कि इंसान बड़ा जल्दबाज़ है|इसी हालत में हजरत आदम अलिहिस्सलम ने छीक मारी,बोले “अल्हम्दुलिल्लाह” तो उस करीम-रहीम जात ने अपनी रहमत से, फरमाया “यार्ह्कुमुल्लाह” |
      हजरत आदम अलैहिस्सलाम के साथ सबसे पहले अल्लाह की यही रहमत नाजिल हुयी |इसके बाद एक फ़रिश्ता अल्लाह के हुक्म से जन्नत से एक सजा-सजाया जोड़ा लाया|उन्हें पहनाया और इज्जत और अजमत (बडाई) पर बिठाया |कहा जाता है कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाईश के वक़्त आपस में कहते थे कि जिसको अल्लाह तआला मिट्टी से पैदा करके खलीफा बनाएगा तो वह हमसे ज्यादा उसके करीबी व प्यारा न होगा |इसलिए हम अल्लाह के दरबार में दिन-रात रहते हैं, हमारे पास इस खलीफा से ज्यादा इल्म है,इसलिए हम उससे बढ़कर हैं |
Farishton ka Hazrt aadam ko sajda--हजरत आदम को सज्दा---:    लेकिन अल्लाह को तो आदम अलैहिस्सलाम को बरतरी देनी थी,उसने उन्हें चीजों के नाम बता दिए औरहुक़्म दिया की फरिश्तो को खबर दो कि अगर वे सच्चे हैं तो चीजों के नाम बताएं |फ़रिश्ते जवाब में कुछ न बता सके,अपनी गलती मानकर बोले, ऐ अल्लाह ! तू तो पाक है, हमारे पास तो तेरा ही दिया हुआ और सिखाया हुआ इल्म है,इसके अलावा कुछ नहीं |तब अल्लाह ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम से कहा कि तुम चीजों के नाम बताओ |अल्लाह के बताये हुए इल्म के मुताबिक़ हजरत आदम ने नाम बता दिए इस तरह अल्लाह तआला ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम को फरिश्तों के मुकाबले में ज्यादा इज्जत व बुजुर्गी बख्शी |
     फिर अल्लाह ने फरिश्तों को,जो आदम के चारों तरफ लाइनों में अदब के साथ खड़े थे,हुक़्म दिया की आदम को सज्दा करो।  अल्लाह का हुक़्म पाकर तमाम फरिश्तों ने, बिना कुछ कहे-सुने हज़रत आदम को सजदा किया,मगर इब्लीस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया,लानत हो उसपर। बोला मैं आदम से बेहतर हूँ,इसलिए की तूने मुझे आग से पोएइड किया है और आदम को मिट्टी से पैदा किया है। यह अल्लाह के हुक्म की नाफरमानी थी |अल्लाह ने उसे अपने दरबार से निकाल दिया और हमेशा के लिए उस पर लानत डाल दी | 

Hazrat Hawwa--हज़रत हव्वा ---: हजरत आदम जन्नत में रहने लगे | फिर उनका जी चाहा कि कोई उनका साथी हो,जो साथ रहे-सहे |उनपर ख्वाब की सी हालत पैदा हो गयी |इसी बीच अल्लाह ने अपनी कुदरत से हजरत आदम के पहलू से हजरत हव्वा को पैदा फरमा दिया |हजरत आदम जागे तो देखा कि एक पाक-साफ औरत उनके पास बैठी है |उन्हें देखकर वे बहुत खुश हुए,पूछा तू कौन है?

     हजरत हव्वा ने कहा कि मै तेरे जिस्म का हिस्सा हूँ,इसलिए की अल्लाह ने तेरी पसली से मुझे पैदा किया है।कहा जाता है की हज़रत हव्वा इतनी खूबसूरत थी कि पूरी दुनियां में जितनी ख़ूबसूरती पायी जाती है,उसमे से नव्वे हिस्सा हज़रत हव्वा को मिला हुआ था और दस हिस्से में पूरी दुनिया थी। 
 हज़रत हव्वा को देखकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम बहुत खुश हुए,सजदे में गिर पड़े और अल्लाह का शुक्रबजा लाये |फिर अल्लाह ने अर्श उठाने वालों और आसमानी फरिश्तों के सामने इन दोनों का निकाह किया और हुक्म किया कि ,ऐ आदम व हव्वा ! तुम दोनों इस जन्नत में रहो और जन्नत के तमाम मेवे खावो |हाँ यह एक गेहूं का पौधा है, इसके पास न जाना, न इसमें से कुछ खाना |
     जब इब्लीस ने आदम को सजदा न किया , उस पर लानत भेज भेजी गयी, वह फरिश्तो से नीकाल दिया गया, तो उसके दिल में हजरत आदम के के खिलाफ जलन पैदा हो गथी थी | चुनांचे वह इसी चक्कर में रहने लगा कि किसी तरह जन्नत में दाखिल होकर वह वहा से निकलवा दे |पहले मोर से दोस्ती कि और कहा कि मेरी दोस्ती के हक़ तेरे उपर साबित है, हम-तुम दोनों पहले भी साथ रहा करते थे |
मेरी तुझसे दर्ख्वस्त है कि तु मुझको अपने बाजु पर बैठकर जन्नत में पहुंचा दे कि में अपने दुश्मन से बदला ले लू | मोर ने इस बात से इन्कार कर दिया और कहा कि यह बात साप से कह | तब शैतान साप के पास गया, उस पर अपना जादू चलाया | साप उसके झांसे में आ गया | उसको मुह में लेकर जन्नतमें पहुंचा, इस तरह कि जन्नत कि निगरानी करने वालो को ज़रा भी खबर नहीं हुई |
   फिर इब्लीस हजरत आदम और हव्वा के पास गया और रोना शुरू कर दिया | हजरत आदम और हव्वा ने पूछा क्यों रोता है ? असल में उन्होंने शैतान को नहीं पहचाना था | तब शैतान ने कहा, मै तुमको नसीहत करता हूँ, मुझे तुम्हारे हाल पर रोना आरहा है कि तुमज इस जानत से निकाले जाओगे और जन्नत कि नेमतें तुमसे सब ले ली जाएंगी और जिंदगी मजे के साथ ही मौत के दर्द को भोगोगे |
     उन दोनो ने इस बात के सुनने से बहुत गम किया | इब्लीस ने कहा, अगर तुम मेरा कहना मानो तो तुमको एक पौधा बताऊ | अगर थोड़ा मेवा तुम उसका खाओगे,  तो हमेंशा जिन्दा रहोगे और मौत कि सूरत हरगिज न देखोगे |हजरत आदम ने पूछा, वह पौधा कौनसा है ?
   शैतान ने कहा, वही पेड़ है कि जिसके खाने से अल्लाह तआला ने मन किया है | हजरत आदम ने इसे माना नहीं, कहा, मुझसे खुदा कि ना-फ़रमानी हरगिज न होगी | शैतान ने बार-बार कसम खाई कि मै तुम्हारी भलाई चाहने वाला हु, तुम मेरी बात मानो, तो भी हजरत आदम ने उसकी बात मान कर न दी |आख़िरकार वह उठकर चले गए |

फिर शैतान हजरत हव्वा कि खिदमत में पंहुचा और उनके दिल में शक पैदा करने में कामयाब हो गया | सांपने शैतान के कहने पर गवाही भी दे दी कि उसकी बात सही है | हजरत हव्वा ने हजरत आदम से फरमाया कि सांप तो जन्नत का खिदमत करने वाला है और वह भी इसा शख्स यानी कि बात कि तस्दीक कर रहा है, तो उसकी बात न मानने का कोई तुक नहीं |

     अब तो मै पहले इस पौधे का फल खाती हु |अगर कुछ गड़बड़ हो तो मेरे लिए खुदा से माफ़ी मांगो,नहीं तो तुम भी खाओ कि हम-तुम दोनों तमाम उम्र जन्नत कि नेमते चैन से खाया करे|

हजरत आदम अलै० जन्नत से निकाले गए नक़ल है कि अल्लाह तआला ने तो शुरू में यह तैकर दिया था कि आदम कि मुस्लिम औलाद जन्नत में और ना-फरमान औलाद जहन्नम में जाएगी |और अगर सब औलाद जन्नत में पैदा होती तो जहन्नम कैसे भरी जाती | इसीलिए जन्नत से इनके निकाले जाने कि वजह गेहूं का पौधा बना, ताकि दोस्त और दुश्मन में फर्क किया जा सके कसौटी पर कसकर खरे-खोते कि पहचान कि जा सके |

   कुरआन कि ताफ्सिरलिखने वाले उलेमा ने लिखा है कि जब हज़रत हव्वा ने गेंहू के थोड़े फल खाए और इनकी ताकीद से हज़रत आदम ने भी कुछ खाए, तो गेहूं के खाने का असर अभी बाकि था अज़रत आदम अलै० के मेंदे में यह पूरी तरह हजम नहीं हुआ था कि उनके जिस्म पर से जन्नत का कपडा गिर पड़ा और जिस्म नंगा हो गया मजबूर हो कर अपनी शर्म्गाह ढांकने का काम इन्जिर के पत्तो से लिया | पूछा गया ऐ आदम ! तेरे नंगे होने कि वजह क्या है ?
  कहा कि ऐ खुदा ! इसकी वजह ये है कि तेरे हुक्म पर न चले | उस मना  किये  गए पौधे से गेहू का फल  खा लिया | फिर आदम ने बहुत बेक़रार हो कर अर्ज़ किया कि, इलाही ! सांप और मोर जो जन्नत के अमानतदार है उनके बहकाने और कसम खाने से यह गलती हो गई |
   रिवायत है कि सांप कि शक्ल ऐसी पाकीजा और खुबसूरत थी कि कोई जानवर जन्नत में ऐसा न था | अल्लाह तआला ने इस जुर्म कि वजह से इसकी सूरत को बिगाड़ दिया, इसकी गिज़ा मिट्टी-धुल बनी और पेट-सीने के बाल ज़मीं को रगड़ने और छीलने वाला बना दिया |

हज़रात हौव्वा और उनकी बेटियों को ये सजा मिली कि उन्हें जनने का दर्द मिला, हैज़ कि गन्दगी मिली खावादों केहुक्म में रहना नसीब हुआ, ताबेदारी करना फ़र्ज़ ठहरा | फिर दोनों जुदा कर दिए गये | इन दोनों के गुनाहों को मशहूर कर दिया गया, उनकी में रंज व दुःख, मेहनत व मशक्कत लिख दिया गया |

     मोर को भी सजा दी गयी | उसकी शक्ल बदल गयी, चुनांचे पांव तो उसके बाद-सूरती में कहावत हैं | फिर दोनों को हुक्म हुआ कि दोनों जन्नत से जमीं कि तरफ निकल जाओ और आपस में तुम सब एक दुसरे के दुसमन हो | पस आदम, हव्वा , शैतान, सांप और मोर जन्नत से दुनिया में बड़ी ज़िल्लत व रुसवाई के साथ पहुंचे |
     रिवायत में आता है कि आदम सरांद्विप में, हव्वा जछा में, शैतान सिस्तान में, सांप अस्फ़हान में और मोर काबुल में उतरे और क़ियामत तक इब्लीस और आदम कि औलाद में दुश्मनी चलती रहेगी | कहते है कि हज़रत आदम ने चालीस दिन न खाना खाया, न पानी पीया, हजरत हव्वा कि जुदाई का जो गम था, वह अलग |
   इसी तरह तीन सौ वर्ष गुज़ार दिए, रोते रहे, माफ़ी कि दुआ  करते रहे | अल्लाह तआला कि रहमत को जोश आया, उन्होंने आदम अलै० को माफ़ी मंगाने का तरिका बताया | जब हजरत आदम ने बा-क़ायदा माफ़ी माँगी, तो हज़रत जीब्रिल आये, उन्होंने खुशखबरी दी कि अल्लाह तआला ने आपका जुर्म माफ़ कर दिया | यह सुनकर हज़रत आदम बहुत खुश हुए, सुख-चैन नसीब हुआ | फिर अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ तीन रोज़े, तेरवही, चौदवही, पंद्रहवी  के रखे, तो इनका जिस्म, जो गुनाह कि मुसीबत और रंज-दुःख से काला पड़ गया था, इन रोजो कि बरकत से साफ़ और रोशन हो गया |

फायदा-दुआ और रोजो के बयान का मतलब यह है कि जब अल्लाह तआला ने हजरत आदम का गुनाह इस दुआ कि बरकत से माफ़ किया और इन तीनो रोज़ो के असर से इनके मुबारक जिस्म को Roohon ki Gawahi -- रूहों की गवाही --: हज़रत आदम हमेशा काबे को हज के लिए जाया करते थे। एक बार अरफ़ात पहाड़ पर सोये। अल्लाह तआला उनकी पीठ से तमाम औलाद को, जो क़ियामत तक पैदा होगी ,उनमे से भलों को सीधी तरफ और बुरों को उलटी तरफ खड़ा कर दिया। उन सब को हुक्मे इलाही हुआ,क्या मैं तुम्हारा रब नाब नहीं हूँ ? सब ने कहा -"हाँ तू ही हमारा रब है " . अल्लाह ताला ने उनके इस इकरार पर फरिश्तों की गवाही लिखी और इसे हज़रत अस्वद में अमानत रखी। इसीलिए हज़रत अली रजि० से रिवायत है कि जो कोइ है करेगा, हजरे अस्वद उसकी गवाही देगा। जब हज़रत आदम ने औलाद की कसरत (ज्यादती) देखी तो अल्लाह के दरबार में अर्ज किया ,ऐ अल्लाह !यह बढ़ती मखलूक दुनियां में कहाँ समाएगी? इरशाद हुआ, मेरी कुदरत से कुछ तो जमीन पर , कुछ को माओं के पेट में , कुछ बाप की पुस्त में और कुछ को मरने के बाद जमीन के अंदर रहेंगे। हज़रत आदम ने अपनी उम्र के चालीस वर्ष दिए --: हदीस में आया है कि अपनी नस्ल में से एक जवान पर, जो सीधे हाथ पर था, जब हज़रत आदम की नज़र पड़ी तो देखा कि वह है तो बहुत खूबसूरत लेकिन रोता चला जा रहा है। हज़रतय आदम ने जिब्रील से पूछा की यह कौन है ?कहा एक जवान है, जो तुम्हारी औलाद में से है नाम दाऊद है। ये पैगम्बर हैं और अल्लाह के यहाँ बेहद मक़बूल है,उनका रोना सिर्फ चूक की वजह से है, जो उनसे होने वाली है। हज़रत आदम ने फिर पूछा, उनकी उम्र कितनी है , कहा साठ वर्ष। हज़रत आदम ने क़िबले की तरफ मुंह करके दुआ की कि ऐ अल्लाह ! मेरी उम्र तूने एक हज़ार वर्ष मुकर्रर की है. चालीस वर्ष मेरी उम्र में से इसको दे दे। खुद ने यह दुआ क़ुबूल कर ली। जब हज़रत आदम की उम्र के नौ सौ साठ वर्ष पूरे हो गए और इज़राईल रूह कब्ज़ करने आ पहुंचे , तो हज़रत आदम ने फ़रमाया ,अभी तो चालीस साल उम्र के बाकी हैं। हज़रत इज़राईल ने कहा ,ये चालीस वर्ष तो अहद के दिन आपने हज़रत दाऊद को दे दिए हैं। हज़रत आदम को यह बात याद नही थी ,इसी वजह से उन्होंने इंकार कर दिया था। यह अलग बात है की अल्लाह तआला ने उनकी उम्र पूरी कर दी ,लेकिन हुकमे इलाही से सभी मामलो को गवाहों के साथ लिखा जाने लगा, ताकि कोइ इंकार न कर सके दुनिया से रुखसत - Duniyan se Rukhsat---: जब हज़रत आदम बहुत ज्यादा बीमार हुए, तब उनको जन्नत के मेवों की बड़ी ख्वाहिश हुई। उन्होंने अपनी औलाद से जन्नत के मेवे लाने के लिए कहा भी। वे जब बाहर निकले तो देखा कि जिब्रील और कई फ़रिश्ते जन्नत से कफ़न और खुशबू लिए आ रहे हैं। औलाद ने हज़रत आदमकी ख्वाहिश का जिक्र उनसे किया। हज़रत जिब्रील ने फ़रमाया कि हम इसीलिए आये हैं कि उनकी ख्वाहिश पूरी की जाए। इसके बाद हज़रत आदम ने बीबी हव्वा और लड़कों से फ़रमाया कि तुम सब यहाँ से जाओ और मुझे अब फरिश्तों पर छोड़ दो। उन सबके जाने के बाद मलकुल मौत रूह कब्ज करने में लग गए। हज़रत आदम अल्लाह की याद में लगे रहे ,यहाँ तक की फरिश्तों ने अपना काम पूरा कर लिया। नहलाने -कफ़नाने के बाद हज़रत जिब्रील के सीखाने के मुताबिक हज़रत शीस अलै० ने जनाजे की नमाज पढ़ी और हज़रत आदम अलै० को दफ़न कर दिया। जनाजे की नमाज की रस्म उसी वक़्त से तै हो गयी। अब्दुल क़ादिर (वार्ता) 21:05, 9 अक्टूबर 2019 (UTC)[उत्तर दें]