सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह/वक्त-समय-टाइम

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अनुनाद जी, आपको पहले भी यह समझने में ग़लती हुई थी और अपने हाल में लिखे उल्लेख में भी आपने यह ग़लती की है। चलिए, फिर कहता हूँ।

  • किसी भी समृद्ध भाषा में एक ही चीज़ के लिए कई शब्द होते हैं। हर शब्द की अपनी लय और अपना प्रयोग होता है। कौन सा शब्द भाषा में जड़ पकड़ेगा इसे आप पहले से नहीं कह सकते। आम हिन्दी में जो शब्द आएँ हैं वे इस भाषा के ८०० वर्षों का नतीजा हैं। इसमें 'वक्त' और 'समय' दोनों हैं। अगर आप एक 'शुद्धीकरण' की प्रक्रिया से 'वक्त' निकाल दें तो एक रिक्ति पैदा हो जाती है। यह कौनसा शब्द भरेगा उसपर आपका नियंत्रण नहीं है। आजकल सभी ओर अंग्रेज़ी का बोलबाला है इसलिए होगा यह कि यह अधिकतर रिक्तियाँ अंग्रेज़ी शब्दों द्वारा भरी जाएँगी। इसका 'समय' के प्रयोग से कुछ लेनादेना नहीं बल्कि 'वक्त' निकाले जाने से बनी रिक्ति से है। अगर आप 'हर' निकाल दें तो देखियेगा कि 'एवरी' मज़बूती से आ जाएगा। मैने गाँवों तक में '५०० रू फ़ी एकड़' से भाषा परिवर्तित होकर '५०० रू पर (per) एकड़' होते सुना है। लिखित औपचारिक में तो 'प्रति-एकड़' आ गया लेकिन बोलचाल में पर (per) ने जड़ पकड़ ली क्योंकि सार्वजनिक भाषा की लय ने उसे चुना। इसका चुनाव कोई सरकार या संस्थान करने में अक्षम है।
  • इसके अलावा आपकी मुहावरी भाषा (idiomatic language) को जो हानि होगी वह असहनीय होगी क्योंकि यह सैंकड़ों सालों में बनते-फैलते हैं। इनमें अंग्रेज़ी जड़ नहीं पकड़ सकती क्योंकि यह अधिक ढांचा रखते हैं लेकिन इनके ग़ायब होने से भाषा की शक्ति हीन होती है। 'हरफ़न मौला' अब प्रयोग कम होता है। देखें कि 'सर्वगुण सम्पन्न' है लेकिन इसका प्रयोग अलग है। यह अब भाषा में एक रिक्ति बन चुकी है। यह भी ध्यान दें कि इसमें विदेशज मूल के शब्द थे लेकिन यह भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर कहीं विस्तृत प्रयोग में नहीं था। यह केवल हमारी भाषा के लय के साथ बैठता था। अब मृत है। पूरा असर यह है कि आपकी प्राकृतिक भाषा सिकुड़ जाती है। यही हिन्दी के साथ हो रहा है।
  • अत्याधिक शुद्धीकरण वास्तव में अंग्रेज़ीकरण का सबसे बड़ा सहायक है।
  • अंग्रेज़ी इसके ठीक विपरीत है। जरमैनी भाषा होने के बावजूद इसमें फ़्रान्सीसी के शब्द भरे हुए हैं - ध्यान दें कि फ़्रान्स और ब्रिटेन सदियों शत्रु रहे। लेकिन अंग्रेज़ी इस से भी आगे जाती है - हिन्द-यूरोपी भाषा-परिवार में यूनानी भाषा संस्कृत की तुलना में अंग्रेज़ी से अधिक दूर है - अंग्रेज़ी के कई वैज्ञानिक शब्द यूनानी से आते हैं जो संस्कृत के अधिक क़रीब हैं और अंग्रेज़ी की मातृ-जरमैनी जड़ों से कोसों दूर है। यूनानी में हाथ का शब्द केइर/ख़ेइर (χειρ) है - यह संस्कृत के 'कर' का सजातीय है। लेकिन अंग्रेज़ी ने इसे बेहिचक en:Chirality में अपना लिया। हिन्दी, जापानी और अन्य भाषाओं के शब्द वह आराम से अपनाकर अपने आप को विस्तृत करती है। यह प्रक्रिया प्राकृतिक है - वह किसी शब्द पर पाबन्दी नहीं करती। हवाईवी भाषा का 'विकि' शब्द प्रचलित हो गया तो उसे चलने दिया। और हम इसके विपरीत हिन्दी के प्राकृतिक शब्दों पर ही आक्रमण करते रहते हैं। उर्दु वाले भी यही करते हैं जो उर्दु की मृत्यु-समीप अवस्था का एक बड़ा कारण है।
  • फ़ारसी वाले इसके विपरीत विदेशज शब्दों को खुलकर अपनाते हैं हालांकि उनमें भी कुछ हद तक अरबी भाषा के लिए घृणा और हिन्द-ईरानी शब्दों के लिए आकर्षण है। जापानी, अंग्रेज़ी, रूसी, फ़ारसी, तुर्की - सबमें विदेशज शब्दों की भरमार है और उनमें लिखित सामग्री दैनिक बोली से मिलती-जुलती है। इनके बोलने वाले अपनी साधारण भाषा में लेख लिखते हैं और इनकी लेख-संख्याओं में वृद्धि स्वभाविक है। अपनी प्राकृतिक भाषा को ग़लत बताना एक प्रकार की स्वघृणा है। मेरे लिए आम हिन्दी बोलने वाले ही ठीक हैं - उनकी माँबोली को किसी सम्भ्रांत वर्ग द्वारा दुरुस्ती की आवश्यकता नहीं।
  • लेकिन यह विशेष ध्यान दें कि मेरे लेख मेरे इस मत पर आधारित नहीं हैं - वे केवल २०१० की लेखन शैली नीति पर आधारित हैं। 'हरफ़न मौला' रोज़मर्रा की हिन्दी में प्रचलित नहीं है और न ही मैं इसे किसी लेख में डालता हूँ। हाँ, इसके लिए अगर कोई अन्य लेख विषय उचित होता तो इसके लिए अनुप्रेषण अवश्य बनाता क्योंकि वह केवल स्पष्ट रूप से इसे ढूंढने वाले को ही मिलते और उसे लेख के साथ-साथ प्रचलित आधुनिक शीर्षक से अवगत भी कराते।

फिर दोहराऊँगा कि यहाँ हमारी शुद्धि से सम्बन्धित विचारधाराओं की बात हो रही है - लेखों में क्या ठीक है और क्या नहीं, उसकी नहीं। वह केवल नीति द्वारा ही निर्धारित है, मेरे या आपके मतो द्वारा नहीं। धन्यवाद! --Hunnjazal (वार्ता) 09:15, 6 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

हुन्नजजाल जी, मेरा संदेश बहुत सही जगह पर था। बहुत ही प्रासंगिक था क्योंकि आपके समय-भ्रान्ति के बारे में चर्चा चली थी। बहुत सारस्वरूप और संक्षिप्त था। इसलिए इसे यहाँ औचित्यहीन है क्योंकि जब आप 'वरुणा नदी', 'सुन्दरलैण्ड', 'बीजगणित' की चर्चा उस पृष्ट पर कर सकते हैं तो दूसरा आपके समय-भ्रान्ति का आंकड़ा क्यों पेश नहीं कर सकता? इसके अलावा आपने जो ऊपर लिखा है उसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि आपको याद होगा आप उस समय भी किसी को 'अपना सिद्धान्त' नहीं समझा सके थे। जब आप समझा ही नहीं पाए थे तो लोग समझते कैसे?-- अनुनाद सिंहवार्ता 09:50, 6 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]
Hunnjazal जी, आपको लगता नहीं है कि आप किसी को मूल बिन्दु से भटकाने के लिए या तो मूल प्रश्न के अलावा अन्य प्रश्नों के उत्तर देते हो अथवा उत्तर देते ही नहीं हो। वक्त-समय-टाइम का नाम अनुनाद जी ने उठाया, यह एक संयोग की बात है लेकिन मैंने जब यह पढ़ा था तो मुझे आपके विचार कुछ अजीब लगे थे। आपको यह ध्यान रखना चाहिए की शब्द केवल रिक्ती के कारण दूसरी भाषा के नहीं आते बल्कि समय के साथ-साथ अपने आप आ जाते हैं। यदि आपका रिक्ति-सिद्धांत सही होता तो संस्कृत कहाँ गयी। संस्कृत केवल हिन्दू और जैन धर्म के कुछ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित क्यों रह गयी? चूँकि संस्कृत में न ही तो कोई रिक्ति है और न ही कभी रही होगी। प्रत्येक शब्द के जन्म का कारण भी होता है जो एक आधारभूत ज्ञान के बाद इतनी आसान है कि आपकी रुचि दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जायेगी और शब्दों की कमी महसूस होने का तो प्रश्न ही नहीं उठेगा। लेकिन आपने जो सिद्धान्त बनाया, आप उसके दूसरे पहलू नहीं देखते। आपका रिक्ति-सिद्धान्त सही नहीं है, बल्कि ये समय का बदलाव है।☆★संजीव कुमार (बातें) 10:50, 6 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]
  • हालाँकि मैं भाषा-संबंधित किसी भी चर्चा सक्रिय भाग लेने के लिए योग्य नहीं पाता, परन्तु हुन्न्जज़ल जी द्वारा उठाय गए कुछ मुद्दे बिलकुल ही ठीक हैं जैसे कि "अत्याधिक शुद्धीकरण वास्तव में अंग्रेज़ीकरण का सबसे बड़ा सहायक है"।
  • संस्कृत ज्ञान यदि संजीव जी हिन्दू-जैन तक सिमित समझें तो आप मैक्स म्युलर जैसे व्यक्तियों को किस श्रेणी में देखते हैं। आपको इस पी डी एफ पर ग़ौर करना चाहिए। या कम से कम हमको गनिजी पर एक लेख तो लिखना ही चाहिए। Hindustanilanguage (वार्ता) 13:03, 6 अगस्त 2013 (UTC).[उत्तर दें]
'अत्यधिक शुद्धीकरण' की बात बिलकुल अप्रासंगिक है। इसके अलावा 'अत्यधिक' का अपना-अपना नाप है। मैं 'ग़ौर' में नुक्ते को 'अत्यधिक शुद्धीकरण' मानता हूँ जबकि आप शायद इसे 'परमावश्यक' मानते हैं। 'समय' जैसे सरल और प्राचीन काल से प्रचलित शब्द में शुद्ध/मिश्रित/अशुद्ध की बात कहाँ से आ गई? मैक्समूलर भी बिना प्रसंग ही यहाँ आ गए हैं।-- अनुनाद सिंहवार्ता 13:28, 6 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

पहले फिर कहे दूँ कि यह नीति की चर्चा नहीं है - केवल हमारी विचारधाराओं की है। उत्तर:

  • आप फिर ग़लत समझ रहे हैं। 'टाइम' के प्रवेश का 'समय' को मिले प्रोतसाहन से लेनादेना नहीं है। इसका लेनादेना 'वक्त' के निकाले जाने से है। पाकिस्तानियों ने इसका विपरीत करा और 'समय' निकाल दिया। वहाँ भी 'टाइम' ने तुरंत धावा बोल दिया। आप किसी अन्य भाषा का नाम बताईए जिसमें ऐसा शुद्धिकरण हुआ हो और जो जीवित बच गई है। यही एक मुख्य कारण है कि ४० करोड़ की मातृभाषा होते हुए और इतनी शक्तिशाली फ़िल्म उद्योग की मालिक होते हुए भी हिन्दी विकि की यह दुर्दशा है।
  • संजीव जी, यह प्राकृतिक शब्द का उत्पन्न होना नहीं है। अंग्रेज़ी शब्द हिन्दी से उत्पन्न नहीं हैं। हाँ, संस्कृत, दार्दी, नूरिस्तानीफ़ारसी जैसी सभी आर्य भाषाएँ हमारी पूर्वज हिन्द-ईरानी भाषा से प्राकृतिक उत्पन्न हुए जिस से उनमें एक-समान शब्दों की भरमार है। हिन्दी संस्कृत से प्राकृतिक ही उत्पन्न हुई। भाषावैज्ञानिक हिन्द-ईरानी को जरमैनी भाषा-परिवार की बराबरी का एक ही परिवार मानते हैं। इसमें अंग्रेज़ी, तुर्की और अरबी शब्द विदेशज हैं।
  • संजीव जी ने किसी अन्य स्थान पर यह सोलह आने सही कहा है कि हिन्दीभाषियों के लिए उर्दु कोई मुश्किल नहीं। यह इसलिए क्योंकि प्रचलित उर्दु हिन्दी का हिस्सा पहले से है। जो दैनिक हिन्दी का हिस्सा नहीं है, वह उर्दु में भी प्रचलित नहीं है और ज़बरदस्ती ठूँसा जा रहा है। हम एक मरती हुई भाषा का अनुसरण क्यों करें?
  • नुक्तों पर ज़ोर देना या न देना लिपि का मसला है, भाषा का नहीं। संस्कृत में 'ड़' और 'ढ़' नहीं थे, जबकि वैदिक संस्कृत में 'ख़' का उच्चारण था। कई भारतीय भाषाओं (जैसे कि असमिया, कुड़ुख़ और अन्य) में 'ख़' आज भी है। 'ज़' का उच्चारण हिमाचल और कश्मीर की कई हिन्द-आर्य भाषाओं में देशज है। प्रश्न यह है कि नागरी को हम ध्वनात्मक विधि से प्रयोग करते हैं या नहीं। मैं करता हूँ। पारम्परिक भाषा में 'गौर' (गोरा वर्ण) और ग़ौर (ध्यान) में अन्तर है। अगर हम जर्मन सेना en:Wehrmacht या रूसी नगर en:Khabarovsk या बौद्ध मंगोल सम्प्रदाय en:Khalkha Mongols पर लेख बनाए तो क्या अपने हथियार डालकर बोल दें कि हमारी वर्णमाला में इन ध्वनियों को दर्शाने की क्षमता नहीं है? यह मुझे दो पैर सलामत होते हुए एक काटकर लंगड़ाने जैसा लगता है। en:Khazars को 'खजर' कहें, जबकि इसे पूर्ण ध्वनियों के साथ 'ख़ज़र' लिखने की क्षमता हमारे पास है? 'सड़क' को भी 'सडक' लिखें क्योंकि यह ध्वनि संस्कृत में नहीं थी? ध्यान दें कि हमारे पूर्वज जिस आदिम हिन्द-यूरोपी भाषा को बोलते थे, उसमें यह सभी ध्वनियाँ थीं। नुक्तों को लेकर यही प्रथा है कि कुछ प्रयोग करते हैं और कुछ नहीं। लेकिन इसका अंग्रेज़ीकरण से वास्ता कम है।

मैं अपने विवेकानुसार ही चर्चा करता हूँ। किसी को भ्रमित करके मुझे कोई लाभ नहीं। तर्क का उत्तर कृप्या तर्क से दें, व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क से नहीं। धन्यवाद। --Hunnjazal (वार्ता) 15:43, 6 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

सर्वप्रथम मैं एचएल जी से पुछना चाहता हूँ कि कोई पीएवडी कर ले उससे क्या भाषा को जीवन मिल जाता है। संस्कृत को जीवन कहाँ मिला हुआ है उसकी मैंने बात की थी। आप अपने चर्चा के विषय को किस और मोड़ रहे हो मैं समझ नही पाया।
आगे की पूर्ण चर्चा Hunnjazal से है: आप शब्द निकालने की बात करते हो तो मैं यह कहुँगा कि वह आपका व्यक्तिगत विचार है। इसका एक और उदाहरण मैं देता हूँ। आपने ये वक्त-समय-टैम वाली बात जहाँ लिखी थी वहाँ शायद आपने कहा था कि यह परिवर्तन खासकर भारत के पश्चिमी भागो में देखने को मिलता है। वहाँ आजकल कुछ और शब्द भी अपने पैर जमाने लग गये हैं वो हैं, जैसे: "शोल्टेज" इस शब्द को सामान्यतः कमी या बिल्कुल न होने के लिए काम में लिया जाता है। जबकि अपने पास पहले से "कमी" शब्द है और उसे कहीं से निकाला भी नहीं गया है और बोलने में भी मुश्किल नहीं है। मुझे आश्चर्य हुआ कि जयपुर में एक बार चप्पल क्रय करते समय मेरे साथ के एक लड़के ने दुकानदार को कहा - "चप्पल फ्लक्सीबल होनी चाहिए।" उसका क्या मतलब था मुझे समझ नहीं आया लेकिन दुकानदार समझ गया। क्या इससे सम्बंधित किसी शब्द को हमने निकाल दिया है? इसके आगे एक और बताता हूँ - मेरी माँ अनपढ़ हैं वो "विष्टा" शब्द को समझ जाती हैं जिसे यदि मैं हिन्दी विकी पर लिखुँगा तो आप कहोगे की यह संस्कृतनिष्ट है। वो बहुत सारे संस्कृत शब्द समझ जाती हैं जो मेरे लिए समझना मुश्किल है यहाँ तक कि एक समय मेरी संस्कृत बहुत अच्छी थी। लेकिन उनके सामने मैं "वजीर" शब्द बोलुंगा तो नहीं समझेंगी। क्या आप नहीं मानते की वजीर शब्द हिन्दी से निकाल दिया गया? उसका स्थान अंग्रेज़ी ने क्यों नहीं ली। इसके अलावा आपने लिखने और बोलने के अन्तर की बात की तो वह सब भाषाओ में होता है। आपको मलयाली भाषा के कुछ उदाहरण देता हूँ: वो लिखते "नमस्कारम्" हैं लेकिन आम बोलचाल में "वणकम" अथवा "हाय, हैलो" जैसे शब्द काम में लेते हैं। वो पर्वत को "पर्वधम्" लिखते हैं लेकिन कभी भी सुनकर समझ नहीं आयेगा। वो चाय को "चाया" बोलते हैं। मैं और भी बहुत उदाहरण दे सकता हूँ लेकिन शायद सभी उदाहरण लिखूँगा तो ३-४ घण्टे लगेंगे जो बहुत ही अधिक समय होगा। इसके अलावा आपको तमिल के बारे में बताता हूँ। उसमें "ख" का उच्चारण करने वाला कोई अक्षर नहीं था लेकिन अन्य लोगों के प्रभाव में आकर उनके बहुत से शब्द ऐसे हो गये जो यह उच्चारण देते हैं। अतः उन्होंने एक नया वर्ण बनाया और उसे "க்ஹ்" लिखने लगे और अब वह उनकी भाषा का हिस्सा बन गया। यह उन्होंने संस्कृत से लिया। यह अक्षर बढ़ने का कारण रिक्ति नहीं है बल्कि समय की मांग है। भारत में हिन्दी कहीं थोंपी नहीं गयी बल्कि परोसी गयी। यदि थोंपी जाती तो यह शायद वह विस्तार नहीं कर पाती जो अब किया है। हैदराबाद की हिन्दी थोड़ी अलग होती है क्योंकि वहाँ लोग हिन्दी नहीं बोलते बल्कि तेलुगू और उर्दू बोलते हैं। वहाँ लोग कहेंगे "तसरीफ रखिए" (शायद वर्तनी की त्रुटि) लेकिन पश्चिम भारत में ऐसा कहा गया तो सामने वाला आपसे पुछेगा कि ये कहाँ से लाउँ, मेरे पास तो तसरीफ है ही नहीं। Hunnjazal आपने जिस पश्चिम भारत की बात की वहाँ मानता हूँ कि समय के स्थान पर "टैम" शब्द का प्रयोग होता है लेकिन वहाँ समय का मतलब भी सभी समझते हैं। लेकिन वक्त का अर्थ कुछ ही लोग समझते हैं। यदि मैं मेरी माँ के सामने वक्त शब्द बोलुंगा तो वो नहीं समझ पायेंगी।
अब इससे आगे कुछ और शब्दों की चर्चा करता हूँ। जब मैंने कक्षा१० उतीर्ण की और बाद में गणित विषय चुना तो मैं हमारे गाँव के उन गिने-चुने लोगों में से था जिन्होंने १०वीं उत्तीर्ण करने के बाद गणित विषय को चुना। चूँकि गणित शब्द तो सामान्य उपयोग में आने वाला शब्द था लेकिन "भौतिक विज्ञान" और "रसायन विज्ञान" ज्यादा काम में नहीं आता। कुछ माह बाद मैंने मेरी माँ को पुछा कि यदि कोई आपको पुछे की मेरे कौन-कौन से विषय हैं तो आप क्या बताओगे? उन्होंने उत्तर दिया: तेरे एक तो फिजेस्टी है दूसरी किमेस्टी। मैंने कहा और? तो उन्होंने उत्तर दिया और तीसरी तो सबको पता ही है "गणित" है। यहाँ मैंने दो शब्द लिखे हैं जो आपने शायद ही पहले कभी सुने हों और शायद ही देखे हों। मैंने उन्हें बताया ये तो अंग्रेजी के शब्द हैं तो उन्होंने पुछा कि फिर हिन्दी में क्या हैं? जब मैंने बताया कि "भौतिक विज्ञान" और "रसायन विज्ञान" तो वो बहुत खुश हुईं और कहा तो इन्हीं को भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान बोलते हैं क्या? आज जब मैं पुछता हूँ तो वो हिन्दी और अंग्रेज़ी शब्द दोनों बता देती हैं। अब यहाँ मैं चाहता तो केवल अंग्रेज़ी शब्दों को ही मेरे घर पर प्रचलित कर सकता था। अब यहाँ आप समझने का प्रयास करें की रिक्ति क्या थी और भरा क्या? कारण क्या रहे। मैं आपको इसका निष्कर्ष बताता हूँ। आजकल सब लोग अपने बच्चे को अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा देना पसंद करते हैं जिससे उसकी अंग्रेज़ी अच्छी हो जाये और वो किसी भी अंतरराष्ट्रीय जगह में परेशानी का सामना न करे। जब बच्चा अंग्रेज़ी बोलेगा तो माता-पिता भाई-बहन पर भी असर पड़ेगा। व्यापक रूप में देखा जाये तो समाज पर असर पड़ेगा।
इसके अलावा एक और उदाहरण देता हूँ। पिछले दिनों मुझे सर्न के एक पत्र का हिन्दी अनुवाद करना था। वहाँ एक शब्द "Standard Model" था। मैंने इसका हिन्दी अनुवाद "मानक मॉडल" लिखा तो एक लड़के ने साफ कह दिया कि ये तो आप हिन्दी को कठिन बनाने का प्रयास कर रहे हो। मैंने उसे समझाया कि आपने हिन्दी का अध्ययन किस कक्षा तक किया? उसने बताया जो अनिवार्य विषय था उसके अलावा नहीं। तो फ़िर आप कैसे जानते हो कि यह संस्कृत निष्ट है अथवा हिन्दी में मैंने इसे कठिन बनाकर लिखा है, तो उसने बताया ये तो एक तकनिकी शब्द है जिसका इस तरह हिन्दी अनुवाद करना उचित नहीं है। बाद में मैंने उसे कुछ उन लोगों से मिलवाया जो हिन्दी माध्यम में से दो वर्ष भौतिकी पढ़ चुके हैं तो उसे समझ में आया कि मैंने वो शब्द हिन्दी में आवश्यकतानुसार सही लिखा था। अतः यह कभी मत सोचो कि शब्द रिक्तियों के कारण अंग्रेज़ी से आते हैं। इसका सही कारण समय की मांग और हमारी शिक्षा है। ट्रेन को रेलगाडी बोलते हैं जबकि मुम्बई में ट्रेन अधिक प्रचलित है। इसके अलावा इस बदलाव का अपनी अंग्रेज़ी से गुलामी है। जो अंग्रेज़ी में बोलेगा उससे दो और भी आदमी बात करेंगे लेकिन यदि उसे अंग्रेज़ी नहीं आती तो नहीं वो ऐसे ही है। इससे अंग्रेज़ी को बढ़ावा मिलता है।
कुछ और कारण लिखता हूँ। मैं जब टीआयएफाआर आया तो लोगों से सुना कि वहाँ तो लोग केवल अंग्रेज़ी में बात करते हैं तुम वहाँ टिके नहीं रह पाओगे, तुम्हे कोई अंग्रेज़ी से संबंधित कोर्स करना चाहिए आदि-आदि। मैं यहाँ आया और सबसे हिन्दी में बात करना आरम्भ कर दिया। शुरु में लोग अपना उत्तर अंग्रेज़ी में देते थे लेकिन आज आप यदि यहाँ मुझे देखोगे अथवा मुझसे किसी को बात करते हुए देखोगे तो आश्चर्य होगा कि तमिलनाडु का ही नहीं अमेरिकी व्यक्ति भी कुछ शब्द तो हिन्दी के बोलेगा ही। यहाँ जब मैं साथ वालों को कहता हूँ चलो भोजन करने चलते हैं तो पहले कुछ लोग हंसते थे लेकिन आज वो भी भोजन बोलने लगे हैं। अन्यथा आपको खाना शब्द अधिक सुनने को मिलेगा। तो जो हम बात कर रहे हैं कि हमने रिक्ति रखकर अपनी भाषा को बिगाड़ दिया वो गलत है।
"बाजार" - यहाँ कोई रिक्ति नहीं है। हिन्दुस्तानी में बाजार काम में लेते थे। यह एक उर्दू शब्द है। हिन्दी में भी इसे ज्यों का त्यों अपनाया। आम प्रचलन में हाट शब्द का भी उपयोग होता था। लेकिन आज इस शब्द का स्थान मार्केट ले रहा है क्यों?
शब्दों के प्रचलन में फ़िल्मे जरूर भूमिका निभाती हैं। जैसे "पाठशाला" शब्द आजकल सुनने में बहुत कम आता है लेकिन एक हिन्दी गाना है "अपनी तो पाठशाला, मस्ती की पाठशाला" बहुत प्रचलित हुआ। यदि ४-५ और गाने इस तरह के आये तो यह और अधिक प्रचलित हो जायेगा।
वैसे आपको एक और बात का ध्यान रखना चाहिए कि भारत के पश्चिमी भागो में हिन्दी भाषा नहीं बोली जाती। वह भाषा हिन्दी से काफी अलग है लेकिन हिन्दी उनको समझ आती है एवं बोलने में कोई कठिनाई नहीं होती। इसका एक उदाहरण आपको देता हूँ: राजस्थान की किसी भी मूल बोली अथवा भाषा में "श, ष, स" के उच्चारण में भिन्नता नहीं की जाती। वहाँ "ळ" का भी काफी उपयोग होता है जैसे: "होळी"। इसके अतिरिक्त "य" और "ज" का उपयोग भी अच्छी तरह से परिभाषित है। चूँकि जय को यज अथवा यय नहीं बोलेंगे लेकिन यशोदा को जशोदा भी बोलेंगे। अतः आप ये रिक्ति-सिद्धांत त्याग दें तो अच्छा है।
आप "भारत" को क्या बोलते हो? मुझे एक पाकिस्तानी ने एक दिन कहा कि हिन्दुस्तान के दो टुकड़े हुए जिनमें एक पाकिस्तान था और दूसरा भारत। चीनी में लोग भारत को आज भी हिन्द कहते हैं। लेकिन प्रचलित तो सबसे ज्यादा इण्डिया होता जा रहा है। इसका कारण कौनसी रिक्ति है?
जो भी हो हमें एक शब्द को लेकर सिद्धान्त नहीं बनाना चाहिए। हिन्दी विकी की इस हालत के लिए हिन्दी में कठिन शब्दों का होना नहीं है बल्कि आप ये देखें कि इसमें योगदान करने वाले कौन हैं। सामान्यतः मैं कहुंगा अभियन्ता हैं। अब एक अभियन्ता जो चार वर्षों तक लगातार अंग्रेज़ी के साथ पीसता रहेगा और उसका आगे का भी पूरा काम अंग्रेज़ी में होने वाला है तो क्या बह हिन्दी में योगदान कर पायेगा? जो हिन्दी लेखक हैं जैसे क्रान्त जी हैं, जगदीश जी हैं जो अच्छी हिन्दी जानते हैं और योगदान भी करना चाह्ते हैं। उन्हें किसी बहाने से दबा दिया जाता है। मैं देख रहा हूँ क्रान्त जी कई दिनों से मांग कर रहे हैं कि वो कठपुतली नहीं हैं। इसकी जाँच हो। लेकिन शायद ही ऐसा कोई सदस्य है जिसने उन्हें उत्तर देना उचित समझा हो। मैं वैसे इस संबंध में अधिक जानकारी नहीं रखता। मयूर जी ने योगदान दिया उनके साथ क्या हुआ वो शायद आपको पता ही होगा। इसके अलावा भारत में जो अच्छे हिन्दी भाषी हैं आज भी शुद्ध हिन्दी बोलते हैं उनके पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है। आप अटल बिहारी वाजपेयी जी की हिन्दी सुनिए तब ऐहसास होगा कि कौनसे शब्द प्रचलन में हैं।☆★संजीव कुमार (बातें) 18:40, 6 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]
कृपया लम्बे लेखों को बिन्दुओं में प्रस्तुत करें ताकि पढ़ना आसान हो - धन्यवाद। उत्तर:
  • आपका कथन सही है। यह मेरा मत ही है और मैने यह शुरू से ही स्पष्ट किया है। इसपर बात करना आवश्यक नहीं लेकिन अनुनाद जी ने बात उठाई तो इसपर चर्चा से झिझकने की भी कोई वजह नहीं है। इन मतों का विकिनीति पर प्रभाव नहीं है -यह केवल हमारे बीच में विचारों का आदान-प्रदान है। यानि मैं बिलकुल भी इसमें कोई भी आधिकारिक बात कहने का दावा नहीं कर रहा। इसे केवल हिन्दी-शुभचिंतकों का आपसी अनौपचारिक वार्तालाप ही समझा जाए।
  • भाषा में कई बदलाव एक साथ चलते हैं। आप जिन प्रक्रियाओं का बखान कर रहें हैं, वह भी चल रहीं हैं। इनसे कोई भाषा सुरक्षित नहीं। मसलन फ़्रान्सीसी में भी 'le weekend' आ गया है। लेकिन हिन्दी में शुद्धिकरण अभियान के कारण बहुत सी रिक्तियाँ पैदा हो गई हैं जो इसे और भी असुरक्षित करती हैं। आपने जिस शॉर्टेज शब्द की बात करी वह मैने भी सुना है और इस स्थान पर पहले 'किल्लत' और 'कमी' दो शब्द प्रचलित था। 'किल्लत' जाता रहा, लेकिन 'आभाव' दैनिक भाषा में कम ही जगह पाया है - उसकी बजाय अंग्रेज़ी-विस्तार का स्थान बन गया। महरबानी > प्लीज़, शुक्रिया > थैन्क्स, बेवकूफ़ > स्टूपिड, मुजरिम > क्रिमिनल, दाख़िला > ऐडमिशन, गुज़ारिश > रिक्वेस्ट, जहाज़ > शिप, मुमकिन > पौसीबल, इंतज़ार > वेट, इमारत > बिल्डिंग, मंज़िल > फ़्लोर, मेहमान > गेस्ट, परेशान > डिस्टर्ब, ऐसे सैंकड़ों हैं। हाँ, मंत्री टिक गया है - आप सही कह रहे हैं। जल, पाठशाला, और भी शब्द हैं। लेकिन आप सहमत हों चाहे न हों, मेरी बात तो समझ रहे हैं न? मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से यह एक हिन्दी के लिए संकट प्रतीत होता है। कुछ अरसे पहले मैने एक अंग्रेज़ी की तुलना देखी थी कि अगर उसमें से फ़्रान्सीसी मूल के शब्द निकाल दें तो उसकी क्या दुर्दशा हो। उसे ढूंढने का प्रयास करूँगा।
  • बाज़ार तो मुझे बहुत सुरक्षित लगता है। मेरे जान-पहचान का तो कोई भी इसे मार्किट नहीं कहेगा। हो सकता है कि कुछ क्षेत्रों में ऐसा हो रहा हो।
  • मैं मानक खड़ीबोली की बात कर रहा हूँ, राजस्थानी की नहीं। आप देखें तो पूर्वी हिन्दी में 'श' है ही नहीं और ग्रामीण क्षेत्रों में न ही 'व' है। विश्वेश्वर > बसेसर, इत्यादि तो आपने सुने होंगे। जिस प्रक्रिया की मैं बात कर रहा हूँ वह मानक हिन्दी प्रयोग की जड़े खोद रही है।
  • जो चीज़ें नई हैं उनके लिए नए शब्द तो बनाने होंगे। अंग्रेज़ी इस मामले में अक्सर आविष्कारक का शब्द ही अपना लेती है। yoga, zen, kanban, keiretsu, shampoo (हिन्दी 'चम्पी' से), djinn/genie, mogul, ketchup (चीनी से), harakiri, yin-yang, caravan, sultan, ऐसे हज़ारों हैं और इन्हें हटाने की कोई चेष्टा नहीं की जाती है। अंग्रेज़ी का रवैया है कि पूरी दुनिया की भाषाएँ हमारी नौकरी में हैं - उनमें जो पसन्द आएगा, हम ले लेंगे और वह हमारा हो जाएगा। हमारी हिन्दी भी कभी ऐसी ही थी। लेकिन अब कृत्रिम होकर सिकुड़ रही है। मेरा व्यक्तिगत मत है लेकिन कृप्या इस सम्भावना पर ग़ौर करें।
  • अंग्रेज़ी में मानक शब्दावली एक लोक-प्रतियोगिता से बनती है। ज़िप्पर या कार नए शब्द थे। अक्सर देखिए कि अनुवाद की क्रिया हिन्दी शब्दों को लम्बा बनाती है।
  • आपका अभियन्ता वाली बात मैं समझा और सम्भव है कि आप सही हों। लेकिन यही लोग हिन्दी गाने गाते हैं - लेकिन उसके बोल उनकी दैनिक भाषा से मिलते हैं। 'दोस्त दोस्त न रहा, प्यार प्यार न रहा, ज़िन्दगी हमे तेरा ऐतबार न रहा'।

धन्यवाद --Hunnjazal (वार्ता) 06:13, 7 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

Hunnjazal जी के उत्तर से आगे[संपादित करें]

Hunnjazal जी हमें नये हिन्दी शब्द बनाने की आवश्यकता नहीं है। भाषा अपना विकास स्वयं कर लेती है। हमें तो बस इसके साथ चलना है। आज आप देख सकते हैं स्कूल, टेबल, मार्केट, यूनिवर्सिटी, 'ओ माय गोड', टैम (टाइम का बदला हुआ रूप), कमरा जैसे शब्द हिन्दी का हिस्सा बन चुके हैं। आप हिन्दी को संकीर्ण मत समझो। हिन्दी बहुत व्यापक भाषा है। आप ये भी मत समझो कि वक्त शब्द को हिन्दी ने निकाल दिया है। लेकिन समय, काल, अवधि आदि शब्द अधिक व्यापक अर्थ देते हैं अतः हिन्दी ने उन्हें स्वीकार किया है। टाइम शब्द हिन्दी में अभी प्रवेश नहीं कर पाया। इसके अलावा आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हिन्दी में तत्सम, तद्भव देशज, विदेशी शब्द होते हैं।
अब आपसे एक और प्रश्न है: आजकल मैं दिल्ली के लोगों से बात करते समय सुनता हूँ कि वो दिल्ली कम, देहली अधिक बोलते हैं। आजकल कृष्ण कम, लेकिन कृष्णा अधिक सुनता हूँ। जबकि शब्दों को ध्यान से पढ़ने पर इनका अर्थ एकदम बदल जाता है। क्या आप सोचते हैं कि यह किसी रिक्ती का प्रभाव है? हाँ और ना दोनों अवस्थाओं में अपना कारण दें।☆★संजीव कुमार (बातें) 10:09, 7 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

नमस्ते संजीव जी। उत्तर:
  • देहली तो दिल्ली का पुराना रूप था। मैं यह नाम वृद्धों से अधिक सुनता हूँ और उत्तर प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली के पुराने लोग इसका अधिक प्रयोग करते हैं जबकि वहाँ बसे हुए पंजाबी लोग नया 'दिल्ली' नाम अधिक प्रयोग करते हैं। पुरानी हिन्दी पुस्तकों में भी 'देहली' अधिक दिखता है। फ़ारसी में हमेशा 'दिल्ली' था - 'हनोज़ दिल्ली दूर अस्त' (अभी दिल्ली दूर है) - और खड़ी में 'देहली'। नेताजी सुभाष की आज़ाद हिन्द फ़ौज में 'हम देहली-देहली जाएँगे, हम बिगड़ा हिन्द बनाएँगे' था।
  • कृष्णा और रामा मुझे दक्षिण भारतीय प्रभाव लगता है, जो दिल्ली में विस्तृत है। हिन्दी की लय में पुरुषों के नामों के अन्त में 'अ' नहीं आता - यह हिन्द-आर्य का श्वा विलोपन है। तमिल, इत्यादि में आता है। हिन्दीभाषी इसे खींचकर 'आ' कर देते हैं क्योंकि यह उनके लिए अधिक प्राकृतिक है। यह हिन्दी-उर्दू-कश्मीरी-सिन्धी-हिमाचली-गढ़वाली सभी में एक शक्तिशाली लय है जिसे लोग चाहकर भी नहीं बदल पाते। आप यदि पाकिस्तानी मौलवियों को भी सुनें वे 'अरबी' को 'अर्बी' और 'रोशनी' को 'रोश्नी' उच्चारित करेंगे हालांकि यह उनके हिसाब से ग़लत है। उसी तरह ग़लती का रूप ग़ल्ती ही हिन्दी में सही उच्चारण बैठता है। अगर किसी पुरुष का वास्तविक नाम 'कृष्ण' हो तो दिल्ली में उसका बिगड़ा उच्चारण 'किशन' है। बिहारी व अन्य पूर्वी हिन्दीभाषी 'किसन' बोलते हैं। तमिल की लय में शब्द के अन्त पर 'अ' आना ठीक है। हम 'right' को 'राइट्' कहेंगे और वे 'राइट' (यानि अन्त में अ का स्वर)। इस से हमारा इस शब्द का उच्चारण अंग्रेज़ी-मातृभाषियों से मिलता है जबकि उनका हमें हिन्दी-लयानुसार 'राइटा' प्रतीत होता है (लेकिन उन्हें नहीं)।
  • टाइम > टैम भी प्राकृतिक हिन्दीकरण है। का उच्चारण भारत के पूर्व और पश्चिम में तथा फ़ारसी और अरबी बोलने वालों सभी में 'अइ' है। केवल उत्तर भारतीय हिन्दी तथा उस से मिलने वाली आर्य भाषाओं के लोग ही इसे प्राकृतिक रूप से सिकोड़कर 'बैल' वाले 'ऐ' जैसा करते हैं। दक्षिण भारत, फ़ारसी, अरबी, अफ़ग़ान, बंगाली और पूर्वी हिन्दी सभी में यह स्वर बहुत कम आता है। केवल उत्तर भारतीय और उनसे मिलते पाकिस्तानी ही इसका 'ऐ' उच्चारण करते हैं और यह उत्तरी व उत्तरमध्य हिन्द-आर्य की एक विशेष पहचान है। इसी तरह 'Hyderabad' का सही अरबी व फ़ारसी उच्चारण 'हइदराबाद' है। दक्षिणी भाषाओं में द > ड हो जाता है लेकिन स्वर उच्चारण अरबी से मिलता है। केवल हमारे हिन्दी लहजे में ही इसे बैल से मिलता किया जाता है और श्वा विलोपन के साथ मिलाकर यह 'हैद्राबाद' बन जाता है। भाषा-लय बदलना लगभग असम्भव है और करी जाए तो एक तरह से भाषा का वध किया जा रहा होता है। अगर टाइम आना ही है, तो टैम ही ठीक है। उसी तरह स्कूल > इस्कूल प्राकृतिक है और मैं कभी भी किसी हिन्दीभाषी द्वारा इसे ऐसे उच्चारित करने पर बुरा नहीं मनाता। मेरे लिए हिन्दी की प्राकृतिक भाषालय बोलचाल के लिए पवित्र है - उसमें किसी सुधार की ज़रूरत नहीं। पंजाबी 'सकूल' कहते हैं और वह उनके लिए ठीक है। उसी तरह 'रहन-सहन' > 'रॅहॅन-सॅहॅन' भी ठीक है और इसमें हिन्दीभाषी '' डालते हैं, जबकि तमिल, बंगाली-प्रभावित पूर्वी हिन्दी, गुजराती, इत्यादि में यह नहीं डलता। आप यूट्यूब पर यह हिन्दी विज्ञापन देखिये और लगभग १० सैकिंड पर देखेंगे की वह जो 'बुलंदशहर' कह रहा है, हिन्दीभाषी इसे हमेशा 'बुलंदशॅहॅर' कहते। यह नि:सन्देह एक दक्षिण भारतीय है जो हिन्दी बोल रहा है (और अच्छी भी बोल रहा है, लेकिन हिन्दीभाषियों की मातृ-लय के साथ नहीं)।
धन्यवाद --Hunnjazal (वार्ता) 15:46, 7 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]
Hunnjazal जी हम रिक्ती-सिद्धांत की बात कर रहे हैं। मैं भी इस तरह के उदाहरण दे सकता हूँ। मेरा भी सभी भारतीय भाषाओं सहित फ्रांसीसी, तुर्की, चीनी (सरलीकृत एवं पारम्परिक), कोरियाई, जर्मन, अल्प मात्रा में जापानी से पाला पड़ चुका है। आप चाहो तो विभिन्न शब्दों का संबंध बता दूँ। आपकी ही भाष में बात कर सकता हूँ। लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि हम अपने रिक्ती-सिद्धांत से हटकर दुनिया की यात्रा पर निकल पड़ें। अतः मेरा निवेदन है कि सही मुद्दे पर आने का प्रयास करें।☆★संजीव कुमार (बातें) 16:05, 7 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]
ठीक है। लेकिन मुझे रामा और कृष्णा रिक्ती से सम्बन्धित नहीं लगे इसलिए उनपर और उस से सम्बन्धित विषयों पर चर्चा करी। बात इतनी सी थी कि भाषा में कई कारणों से बदलाव होते हैं। हिन्दी में यह क्या हैं:
  1. अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव - हिन्दी भाषा भारत में कई अहिन्दी-क्षेत्रों की द्वितीय भाषा बन गई है। इस से उन भाषाओं के कुछ शब्द भी हिन्दी में प्रवेश कर गए हैं। 'वेला' (निठल्ला), बिन्दास, आदि।
  2. अन्य उच्चारणों का प्रभाव - किसी पाकिस्तानी ने कहा है कि भारत में पाकिस्तान के क्षेत्रीय लहजे आराम से छुप जाते हैं जबकि पाकिस्तान में लोग भारतीय लहजा आसानी से पकड़ लेते हैं क्योंकि भारत में अब हिन्दी बोलने के कई लहजे हैं (गुजराती, मराठी, बंगाली, तमिल, पंजाबी), जबकि पाकिस्तान में गिनती के हैं। भारतीय सोचता है कि 'यार होगा कहीं का, मैं क्या जानू' जबकि पाकिस्तनी सोचता है 'यार यह थोड़ा अलग ही लहजे में बोल रहा है'। आपके रामा, कृष्णा इसी श्रेणी के लगते हैं।
  3. विश्वव्यापी अंग्रेज़ीकरण - नई प्रथाओं और नए आविष्कारों में, जो अक्सर अंग्रेज़ी क्षेत्रों से उत्पन्न हुए हैं - weekend, rocket, fax, email, computer, bus, rail/railway। यह लगभग सभी भाषाओं में है।
  4. रिक्तीपूर्ती - यह अंग्रेज़ी द्वारा उन शब्दों के स्थान पर है जो किसी शुद्धीकरण के कारण रिक्त कर दिए गए हैं। यह केवल हिन्दी में नहीं है। ईरान में अरबी शब्दों के विरुद्ध अभियान चला था और उन्होने 'शुक्रिया' से मिलता 'तशकर' शब्द हटा दिया। उस समय मध्य-पूर्व में फ़्रान्सीसी का बोलबाला था और अब ईरानी 'मेरसी' (merci) बोलते हैं। लेकिन यह हिन्दी और उर्दू में बहुत ही व्यापक है। मैं इसी की बात कर रहा हूँ और सरलता से आपको दर्ज़नों उदाहरण दे सकता हूँ (कई दिए भी हैं)।

धन्यवाद --Hunnjazal (वार्ता) 16:58, 7 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

  • Hunnjazal जी मैं आपके प्रथम तीन बिन्दुओं से वैसे तो सहमत हूँ लेकिन आपको एक बात का ध्यान दिला देना चाहुँगा कि पाकिस्तानी और भारतीय में अधिक अन्तर नहीं है। पाकिस्तान में भी उर्दू हिन्दी से बहुत प्रभावित है जिसके कुछ कारण निम्न प्रकार हैं: (१) वहाँ राष्ट्र भाषा उर्दू है लेकिन शिक्षा में केवल निम्नस्तरीय कक्षाओं के अलावा इसका प्रचलन नहीं है। (२) वहाँ का फ़िल्म उद्योग लगभग ठप पड़ा है और इसके अभाव में बहुत से लोग छुपकर भारतीय सिनेमा देखते हैं।
  • इसके अलावा पाकिस्तान में लहजे में बहुत अन्तर आता है। मैं पाकिस्तान के चारों सुबों के लोगों के साथ रहा हूँ। उनमें बहुत अन्तर आता है। पिछले वर्ष तो दो महीने तक मेने एक पाकिस्तानी के साथ ही मकान साझा किया था। अतः हमारी हर क्षेत्र में चर्चा होती थी। हाँ कासाब के मामले में हमारे मध्य एक विवाद रहा था जिसके अनुसार मैं कहता था कि कासाब पाकिस्तान का है और वो कहते थे कि कासाब का पाकिस्तान से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन कासाब को फाँसी होने के बाद हमने यह मुद्दा छोड़ दिया।
  • अब हमारे मूल मुद्दे पर आते हैं। रिक्ती-सिद्धांत: आप मुझे यह बताओ कि बोलने में समय, टैम (टाइम) और वक्त में से सबसे सुगम शब्द कौनसा है एवं लिखने में कौनसा सुगम है? टैम आम बोलचाल में प्रचलन में है लेकिन वह शब्द आप अंग्रेज़ी का न माने तो अच्छा है। शायद आपको पता होगा कि मराठी में साफ को "नीट" कहते हैं क्यों? क्या यह किसी रिक्ती के अभाव में मराठी में आया? यदि मराठी में आया तो हिन्दी में क्यों नहीं? "merci" शब्द के उच्चारण में आपने एक गलती की है। आप जिस तरह भाषाओं के बारे में बात करते हो उसके अनुसार आपको उच्चारण "मेरसी" तो नहीं लिखना चाहिए था। लेकिन हो सकता है कि ईरानी में इसे मेरसी बोलते हों अतः आपने लिखा है। लेकिन फ्रांसीसी में इसका उच्चारण भिन्न है। फ्रांसीसी भाषा में शब्द के बीच में आने वाले आर "r" को वो लोग लगभग चुप कर देते हैं। पेरिस जैसे कुछ शब्द इसके अपवाद हैं। बिल जी फ्रांसीसी भाषा का भी कुछ ज्ञान रखते हैं चाहो तो उनसे इस बारे में चर्चा कर सकते हो। इसी प्रकार फ्रांसीसी में merci का उच्चारण लगभग "मेसी" या "मेस्सी" किया जाता है।☆★संजीव कुमार (बातें) 18:35, 7 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

संजीव जी, उत्तर:

  • पाकिस्तानी हिन्दी से बिलकुल प्रभावित हैं। किसी ने कहा है कि उर्दू और हिन्दी के अलगाव में यह ज़ोर कम है कि फ़लाँ शब्द प्रयोग करों और यह ज़ोर अधिक है कि फ़लाँ शब्द प्रयोग मत करों। पाकिस्तानी लगभग सभी प्रचलित संस्कृत वाले हिन्दी शब्द समझते हैं - पवित्र, शुभ, समय, स्थान, इत्यादि।
  • मेरा कहने का मतलब यही था कि पाकिस्तान में केवल चार सूबे हैं और चार मुख्य लहजे हैं जिन्हें सभी जानते हैं। अगर आप इन चार से हटकर किसी लहजे में बोल रहें हैं तो आप शायद पाकिस्तानी नहीं हैं। भारत में दो दर्ज़न राज्य हैं और उससे भी अधिक लहजे हैं। किसी औसत भारतीय को इन सभी का ज्ञान होना असम्भव है। विस्तृत समाज में बाहरी आदमी का विलय होना आसान है। यह मैने इसलिए उल्लेख किया था कि भारत में हिन्दी के फैलाव के साथ लहजों में बहुत विविधता हो गई है और वे एक-दूसरे को भी प्रभावित कर रहे हैं। यह भी बदलाव का एक स्रोत है।
  • आपने सही कहा, ईरानी मेरसी का उच्चारण फ़्रान्सीसी 'म्यॅग़्सी' या 'म्यॅसी' से अलग है। मैं कुछ-कुछ काम-चलाऊ फ़्रान्सीसी बोल लेता हूँ।
  • मराठी का ज्ञान मुझे नहीं है इसलिए 'नीट' पर टिप्पणी नहीं दे सकता। हाँ, हिन्दी में प्रचलित हर अंग्रेज़ी शब्द रिक्ती से दाख़िल नहीं हुआ है, लेकिन रिक्ती की सहायता से दाख़िल हुए शब्दों की संख्या बहुत है। टैम इसी श्रेणी में आता है - मैं इसे हिन्दी का प्राकृतिक शब्द नहीं समझता क्योंकि यह पिछ्ले ३-४ दशकों में ही प्रवेश करा है और एक मूल अर्थ की जगह ले रहा है। यानि किसी नए आविष्कार या धारणा के लिये नहीं है।
  • जो शब्द हिन्दी में रिक्ती से प्रवेश करते हैं या नई धारणाओं के कारण प्रवेश करते हैं उनपर कोई नियंत्रण या मानकीकरण दबाव नहीं होता इसलिए वह हिन्दी की प्राकृतिक लय के अनुसार बदल जाते हैं। टैम, इस्कॉलरशिप (scholarship, वज़ीफ़ा वाली रिक्ती), पर्मीशन (permission, इजाज़त की रिक्ती), बर्डे (birthday, सालगिरह), बूके (bouquet, गुलदस्ता)।

धन्यवाद --Hunnjazal (वार्ता) 01:29, 8 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

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जो भी हो पाकिस्तान और फ्रांस की टिप्पणी में तो सहमति हो ही गयी।

  • अब आप किस हिन्दी की बात कर रहे हो वो तो मैं नहीं जानता लेकिन जैसा कि आप बार बार कहते हो कि वह लेख मेरी माँ को समझ में आना चाहिए उसी के अनुसार लिखता हूँ। टैम शब्द हमारे घर पर बोला जाता है। वज़ीफा और स्कॉलरशिप शब्द को हमारे गाँव के पढ़े हुए लोगो में से भी कुछ ही समझ पायेंगे लेकिन छात्रवृत्ति को सभी समझ जायेंगे।
  • इजाज़त शब्द हमारे गाँव में सभी समझते हैं। पर्मीशन पिछले कुछ वर्षों में उत्पन्न हुआ है (कारण: सभी परीक्षाओं के प्रवेश पत्रों पर अंग्रेज़ी में लिखा होता है: permission letter) लेकिन गाँव के आधे से ज्यादा लोग इसे नहीं समझ पायेंगे। हमारे गाँव और आस-पास के इलाकों में इजाज़त एवं अनुमति दोनो प्रचलित शब्द हैं। जब हिन्दी की बात आती है तो अनुमति शब्द का ही उपयोग होता है।
  • बर्थडे एवं सालगिरह दोनों शब्द न ही तो मेरे गाँव में प्रचलित हैं और ना ही कोई महत्व रखते हैं। जन्मदिन बहुत अच्छे से काम में लिया जाता है। यहाँ तक कि सालगिरह शब्द तो मैंने देश के पश्चिमी भागों में सुना ही बहुत कम है। बर्थडे रिक्ती के कारण नहीं आया बल्कि कम्प्यूटर काल में अंग्रेज़ी के बढ़ते महत्व का प्रतीक है।
  • बूके नामक शब्द मैंने मेरे राजस्थान में निवास के दौरान नहीं सुना। गुलदस्ता शब्द जानता भी था लेकिन उसका भी कोई ज्यादा उपयोग नहीं किया जाता था। सबसे अधिक "पुष्प गुच्छक/फूलों का गुच्छा" आज भी काम में लिया जाता है।

मुझे नहीं लगता कि कोई भी शब्द किसी रिक्ती को भरने के लिए अंग्रेज़ी से लिए गये। लेकिन टेलीविजन धारावाहिक, फ़िल्में आदि का प्रभाव बहुत अधिक है। आपको इसका एक उदाहरण देता हूँ: "दबंग" नामक फ़िल्म के निर्माण से पूर्व यह शब्द मैंने मेरे जीवन में कभी काम में नहीं लिया और न ही कभी सुना था लेकिन अब मेरे गाँव में बच्चा-बच्चा इस शब्द का ज्ञान रखता है। आप ई-मेल, इंटरनेट, कंप्यूटर जैसे शब्दों की बात करो तो अपने रिक्ती-सिद्धांत को लागू कर सकते हो लेकिन वहाँ भी आपको इसका स्वरूप बदलना पड़ेगा, चूँकि ये शब्द पहले न ही तो अपनी हिन्दी में था और न ही उर्दू में एवं न ही अन्य किसी भारतीय भाषा में। जब तक इन भाषाओं के अपने शब्दों का उपयोग आरम्भ हुआ उससे पूर्व ये शब्द आम जनता में घुस गये। लेकिन हिन्दी हमें इन शब्दों के उपयोग करने से मना भी नहीं करती।☆★संजीव कुमार (बातें) 02:13, 8 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]

कहीं न कहीं आप एक अहम बात भूल रहें हैं। किसी भी समृद्ध भाषा को एक चीज़ के लिए दो या उस से अधिक शब्द चाहिए होते हैं। इस से भाषा में लचक और अभिव्यक्ति-शक्ति आती है।
  • क्या आप टैम को इतना हिन्दी का शब्द मानते हैं कि उसके विकिपीडीया पर प्रयोग का समर्थन करेंगे?
  • permit/allow और अन्य शब्द अंग्रेज़ी में सभी प्रचलित हैं। आप हिन्दी में इसके लिए कौनसे २-४ शब्दों को ठीक मानेंगे? ध्यान दें कि स्वीकृति/मंज़ूरी इत्यादि के अर्थ अलग होते हैं।
  • अंग्रेज़ी में ४ प्रचलित शब्द - endowment, scholarship, stipend, fellowship - सरलता से सूझते हैं। आप हिन्दी में इसके लिए कौनसे २-४ शब्द सुझाएँगे?
  • गुलदस्ता तो बहुत ही पुराना शब्द है जो शायद सभी हिन्दीभाषियों को आता होगा। गूगल खोज में गुलदस्ता व गुलदस्ते को ९६३००+२२७०० और पुष्प गुच्छक, पुष्पगुच्छक, पुष्पगुच्छ, फूलों का गुच्छा को ४+०+५७२००+३९९०० नतीजे मिले। ध्यान दें कि 'फूलों का गुच्छा' (bunch of flowers) और 'गुलदस्ता'/'पुष्पगुच्छ' (bouquet) के अर्थ अलग हैं। यह तो नहीं कहा जा सकता कि गुलदस्ता कम प्रचलित है। सम्भव है कि आपके क्षेत्र में कम हो। यह तो हिन्दी से भी आगे अन्य भाषाओं में भी मिलता है - इस नाम की एक मराठी फ़िल्म भी बनी थी।
अन्य लेखों में व्यस्तता के कारण देर से जवाब/उत्तर (response, reply, answer) देने के लिये क्षमा-याचना। धन्यवाद। --Hunnjazal (वार्ता) 08:54, 11 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]
मैनें कभी नहीं कहा कि एक चीज़ के लिए दो शब्द मत रखो। लेकिन प्रत्येक शब्द के लिए दो शब्द होना आवश्यक नहीं है। हिन्दी में पर्यायवाची शब्द मैंने पढ़े हैं। क्या मैंने कभी उन्हें अपनाने से नकारा है?
  • नहीं, मैं टैम को हिन्दी शब्द नहीं मानता। यदि राजस्थानी में टैम शब्द काम में लिया जाये तो मैं इसे स्वीकार करुँगा। हिन्दी में न ही तो टैम शब्द उपयुक्त है और न ही टाइम। इसके लिए हिन्दी में पहले से ही बहुत शब्द हैं जैसे: समय, काल, अवधि, अवसर, क्षण, पल, फ़ुरसत, वक़्त, अरसा, बेर आदि।
  • permit/allow के लिए हिन्दी में अनुज्ञा, अनुमति, आज्ञा, इजाज़त जैसे बहुत शब्द हैं। आपको जरुरत हो तो कम से कम १० शब्द तो बता ही दुंगा। Acceptance/Sanction आदि शब्द इनसे भिन्न हैं।
  • मैंने इस बात से मना नहीं किया कि गुलदस्ता शब्द को हिन्दी में काम में मत लो। मैंने लिखा है कि इसका अर्थ मैं जानता था। लेकिन राजस्थान में इस शब्द का उपयोग बहुत कम होता है ऐसा मैंने लिखा था। जहाँ तक फ़िल्मों की बात है वो तो हिन्दी में फ़ुकरे, थ्री इडियट्स जैसे नामों से भी बनती हैं लेकिन ये हिन्दी शब्द नहीं हैं। हिन्दी में पुरानी फ़िल्में भी मैं बहुत देखता हूँ उस जमाने में भी हाफ-टिकट जैसे नाम फ़िल्मों के होते थे। इसका अर्थ यह नहीं है कि ये शब्द हिन्दी के हैं।
वैसे आपको जानकारी के लिए बता दूँ कि जबाब शब्द बोलचाल में मैं स्वयं भी काम में लेता हूँ अतः मुझे इससे कोई ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ता। लेकिन कोशिश हमें यह करनी चाहिए की मानक हिन्दी को भी सरल लहजे में लिखें।☆★संजीव कुमार (बातें) 09:36, 11 अगस्त 2013 (UTC)[उत्तर दें]