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Kota
कोटा जनजाति की महिलाएँ

कोटा जनजाति (कोव या कोठर जनजाति), एक ऐसी स्वदेशी जन की समुदाय है जो ज़्यादातर दक्षिण भारत मे तमिल नाडु की नीलगिरि पहाड़ियों मे रेह्ते है. वह दक्षिण भारत के अन्य मुख्य जनजातियों मे से सबसे प्रमुख जनजाति मानी जाती है. कोटा जनजाति तथा टोड़ा जनजाति की अनुसंधान के कारण भारत मे मानवविज्ञान की जड़ें और मज़बूत हो गयी है. ऐसी कई अनुसंधनों के कारण मानवविज्ञान के शेत्र मे प्रगती हुई है जो उन्नीस्वी सदी से चली आ रही है. कोटा जनजाति के लोग बहुत ही छोटे समूह मे पाए जाते है क्यूंकी उनकी संख्या १,५०० से पिछले १५० वर्षों मे कभी भी नही बड़ी.इस जनजाति के लोग अधिकतर परंपरागत कारीगरों की तरह काम करते है, जैसे की काई लोग कुम्हार, किसान, संगीतकार,लोहार आदि है. लेकिन अँग्रेज़ औपनिवेशिककाल के बाद इन लोगों की जीवन शैली मे बहुत बदलाव आया है.जैसे की इनकी सामाजिक-आर्तिक स्थिति और विद्या शेत्र मे अधिकतर प्रगती हुई है.और वह अब किसी भी परंपरागत कारीगरी पर अपने रहस्या के लिए निर्भर नही है. इस जनजाति का नाम एक शब्द 'को' से लिया गया है, जिसका मतलब है 'राजा'.इन लोगों का मानना है की उनके पितर राजएँ थे.उन्के रहने की जगह को 'कॉककल' कहा जाता है. कोटा जनजाति के लोगों की अद्वितीया भाषा है जो द्रविड़ भाषा के अतर्ग माना जाता है.
इस जनजाति के लोग अधिकतर गैर लय उत्पादों पर, अपने खाने,ईन्धन और दवाइयाँ के लिए निर्भर होते है. वह नकदी फसल उगते है जैसे की: रागी, गेंदें के फूल,समाई, चोआल्म,आदि.यह लोग दूसरे जनजाति के लोगों से ज़्यादा मिलते जुले नहीं है. इनकी भारत मे वर्तमान संख्या सिर्फ़ २००० है, जो की तीव्र तेज़ी से गिरता जा रहा है. कोटा जनजाति के लोग सजाति जनजाति है. दूसरे जातियों से अपने आप को दूर रखने के कारण, आजकल आंतरिक प्रजनन हो रहा है.

पहचान[संपादित करें]

भरतिय सरकार कोटा जनजाति को अनुसूचित जनजाति मानती है. यह पद भारत के सभी जनजातियों को दिया जाता है, जिनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति समाज के दूसरे लोगों से कम होती है. फिर भी, कोटा जनजाति एक अपेक्षाकृत सफल समूह है जो किसान, डॉक्टेर,पोस्ट मास्टर,आदि के व्यवसायों मे लगी है. कुछ मानवविज्ञानी और स्थानिया समुदाय के सदस्यों का मानना है की वह लोग दूसरों की सेवा करने के लिए नीलगिरि मे है जिसलिए उन्होने कोटा जनजाति को सेवा जाती कहते है. तथापि, कोटा जनजाति के लोग अपनेआप को नीलगिरि के मूल निवासी मानते है. इस जाती का नाम भी दूसरे समूह के लोगों से दिया गया है; कोटा जनजाति के लोग अपनेआप को 'कोव' कहलाते है. सन १९३० से, एक कोटा अध्यापक, समाज सुधारक और कार्यकर्ता जिसका नाम सुल्ली कोटा था, अपने अनुयायितो के साथ काई असमानताओं को मिटाया है. उदाहरण: इन्होने पुराने पारंपरिक कारया जैसे की दूसरे बड़े जाती लोगों को पारम्परिक संबंध के अनुसार उनकी सेवा करना, आदि को मिताड़िया है.[1]कोत जनजाति के लोग अभी भी, इस आधुनिक काल मे, अपने पारंपरिक रीतियाँ निभाते है.

समाज[संपादित करें]

नीलगिरि के पहाड़ियाँ जहाँ कोटा जनजाति रहते है.

निवास[संपादित करें]

कोटा जनजाति के लोगों के सात कॉलोनियँ है, नमक:१.कॉककल( नीलगिरि डिस्ट्रिक्ट मे);२. कुंदाःकोतागिरी कॉककल(उथगमंडलम तालुक); ३.तरिचिगड़ी और ४.कोल्लीमलाई(कूनूर तालुक);५.कओठागिरी(आगगल);६.केज़कोतागिरी(कोटगिरी तालुक);७. कॉकस (गुडलूर तालुक) वर्तमान काल मे कॉककल कॉलोनी की जनसंख्या १९९ पुरुषों तथा १८३महिलाओं से बनता है जो की ७८ घरों मे रेहराहे है.यह लोग २२५ एकर की ज़मीन मे अपना जीवन बिता रहे है।इनकी भाषा मे,कोटा गाओं को कॉककल कहा जाता है. हर गली मे बसे हुवे कबीले को कर या केररी कहा जाता है.एक ही कबीले, एक ही गाओं मे रहने वाले लोगों के बीच विवाह विषिद्ध है, परंतु वह अपने ही कबीले के सदस्यों से जो किसी दूसरे गाओं मे बसे लॉसों से विवाह कर सकते है.लेकिन ऐसी कोई अन्या कबीलों के बीच संबंध का या किसी तरह का सामाजिक वर्गीकरण की जानकारी नही मिली है.

धर्म[संपादित करें]

वर्तमान मे, कोटा जनजाति के लोग अपने आप को हिंदू मानते है. पहले वह हिंदू धर्म से अपना अस्तित्वा नही जोड़ते थे, लेकिन अँग्रेज़ों के आक्रमण के बाद उनका मानना बदलगया था.[2] अब उनके प्रमुख देवताए है: आ-यनो-र जिसका भेद बड़ा या डोडा-यनोर तथा छोटा या कुँआ-यनो-र मे किया गया है. दूसरे है: पिता परमेश्वर और अमनो-र या देवी मा.पिता परमेश्वर कोकमति-क्वारा या कामत्रा-या भी कुछ गाओं मे कहा जाता है. हालाँकि इनके २ पुरुष भगवान है, इनकी सिर्फ़ एक महिला भगवान है.यह लोग काई तरह के त्योहार भी मानते है जिसमे वे वर्षा देवता कन्नात्रा-या और देवता कामत्रा-या की पूजा करते है,आदि. कोटा के लोग यह भी मानते है की,एक पुरुष बनने के लिए उसके अंदर के बच्चे की मृत्या आवश्यक होनी चाहिए. इस आस्था के आधार पर, कोटा जनजाति के लोग अपने मूह को नीले रंग से रंगते है.यह नीला रंग एक मनुष्या के बचपन की मौत का प्रतीक है. पहले, पढ़ाई हनी के बाद,इस अवसर पर जंगली जानवरों को त्याग दिया जाता था, लेकिन अब इसकी जगह मे धन दान मे दिया जाता है.

महिमाओं की स्थिति[संपादित करें]

दूसरी भारती स्त्रियों की तुलना मे इस जनजाति की महिलाओं को अपने जीवन साथी चुनने मेओर कई आर्थिक गतिविधियाँ मे काफ़ी स्वतंत्रता दी गयी है. इसके कारण से हर एक शेत्र मे इन महिलाओं की प्रगती ऐवम समाज मे सुधार भी हुआ है. भाईचारे के बहूपतित्व से कोटा जनजाति की महिलाएँ अपने पति के भाइयों से भी यौन संबंध रखती है. इन्हें अपने पति को तलाक़ देने का हक़ भी दिया गया है.[3] वह अधिकतर समय मिट्टी के बर्तन बनाने की कारीगरी किया करते थे. कोटा पंडितों की पत्नियाँ भी पूजा पाठ मे शेष भूमिका निभाते थि.जो महिलाएँ बासुरी संगीत की अधीन हो जाती थी , उन्हे 'पेम्बकॉल' कहा जाता था और उनसे गाओं के महत्वपूर्णनिर्णयों मे परामर्श माँगा जाता था.[4]ईस प्रकार, कोटा जनजाति की स्त्री खेती, घरेलू कामकाज,सामाजिक कार्यों, आदि का काम संभालती थी.

खाना[संपादित करें]

तोड़ा जनजाति के विपरीत, कोटा जनजाति के लोग माँस खाते थे, और बहुत आक्ची सेहत मे थे जब वो पहले के मानवविज्ञयानों से मिले थे.इन्क पारंपरिक खाना एकप्रकार का इतालवी बाजरा है जो अस्वात्ांक के नाम से जाना जाता है. शुभ त्योहारों पर वातांक परोसा जाता है, लेकिन यह लोग चावल अपने रोज़ के भोजन मे खाते है. इस चावल के साथ एक प्रकार के साम्बर,उड़क नमक है जिसे काई तरह के दाल, सब्ज़ी और ईमली के रस से बनाया जाता है. अधिकतर समय, यह लोग अंडे,मुर्गा, रंडी किसी भी सब्ज़ी या फलियान के साथ खाते है.

  1. Mendelbaum 1971
  2. Mendelbaum 1941
  3. Mendelbaum 1941
  4. Mendelbaum 1941