सदस्य:Yguharay

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'कथक'[संपादित करें]

भुमिका[संपादित करें]

भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से सबसे पुराना कथक नृत्य जिसका उत्पत्ति उत्तर भारत में हुआ । कथक एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ कहानी से व्युत्पन्न करना है। यह नृत्य कहानियों को बोलने का साधन है। इस नृत्य के तीन प्रमुख स्कूलों या के घराने होते हैं। कछवा के राजपुतों के राजसभा में जयपुर घराने का, अवध के नवाब के राजसभा में लखनऊ घराने का और वाराणसी के सभा में वाराणसी घराने का जन्म हुआ। सभी तीन पूर्ववर्ती घरानों सके तकनीको को समामेलित एवं अपने अपनी विशिष्ट रचनाओं के लिए प्रसिद्ध एक कम प्रमुख, रायगढ़ घराने भी वहाँ है।

इतिहास[संपादित करें]

  1. प्राचीन काल से कथाकास,नृत्य के कुछ तत्वों के साथ महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं से कहानियां सुनाया करते थे। कथाकास के परंपरा वंशानुगत थे। यह नृत्य पीढ़ी दर पीढ़ी उभारने लगा। तीसरी और चौथी सदियों के साहित्यिक संदर्भ से हमें इन कथाकास के बारे में पता चलता है। मिथिला के कमलेश्वर के पुस्तकालय में ऎसे बहुत साहित्यिक संदर्भ मिले थे।
  2. तेरहवी सदी तक इस नृत्य में निश्चित शैली में उभर आया था। स्मरक अक्षरों और बोल की भी तकनीकी सुविधाओं का विकास हो गई। भक्ति आंदोलन के समय र।सलीला कथक पर एक जबरदस्त प्रभाव पड़ा। इस तरह का नृत्य प्रदर्शन कथावछकास मंदिरों में भी करने लगे। कथक राधा कृष्ण की के जीवन के दास्तां बयान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। श्री कृष्ण के वृंदावन की पवित्र भूमि में कारनामे और कृष्ण लीला (कृष्ण के बचपन) के किस्से का लोकप्रिय प्रदर्शन किया जाता था। इस समय नृत्य आध्यात्मिकता से दुर हटकर लोक तत्वों से प्रभावित होने लगा था।
  3. मुघलों के युग में फ़ारसी नर्तकियों के सीधे पैर से नृत्य के कारण और भी प्रसिद्ध हो गया।पैर पर १५० टखने की घंटी पहने कदमों का उपयोग कर ताल के काम को दिखाते थे।इस अवधि के दौरान चक्कर भी शुरु किया गया। इस नृत्य में लचीलापन आ गया।तबला और पखवाज इस नृत्य में पुरक है।

इसके बाद समय के साथ इस नृत्य में बहुत सारी महत्वपूर्ण हस्ती के योगदान से बदलाव आए।

नृत्य प्रदर्शन[संपादित करें]

  • नृत्त:-वंदना, देवताओं के मंगलाचरण के साथ शुरू किया जाता है।
      -ठाट, एक पारंपरिक प्रदर्शन जहां नर्तकी  चक्कर के साथ नाटक कर सम पर आकर एक मुद्रा लेकर खड़ी होती है।
      -आमद, अर्थात 'प्रवेश' जो  तालबद्ध बोल का पहला परिचय होता है।
      -सलामी ,मुस्लिम शैली में दर्शकों के लिए एक अभिवादन होता है।
      -कवित्, कविता के अर्थ को नृत्य में प्रदर्शन किया जाता है।
      -पड़न, एक नृत्य जहां केवल तबला का नहीं बल्कि पखवाज का भी उपयोग किया जाता है।
      -परमेलु,एक बोल या रचना जहां प्रकृति का प्रदर्शनी होता है।
      -गत,यहां दैनिक जीवन के सुंदर चाल-चलन दिखाया जाता है।
      -लड़ी , एक विषय पर बदलाव फुटवर्क की रचना ।
      -तिहाई,एक रचना जहां फुटवर्क तीन बार दोहराया जाती है और सम पर नाटकीय रूप से समाप्त हो जाती है।
  • नृत्य:-भाव को मौखिक टुकड़े की एक विशेष प्रदर्शन शैली में दिखाया जाता है। मुगल दरबार में यह अभिनय शैली की उत्पत्ति हुई। इसकी वजह से यह महफिल या दरबार के लिए अधिक अनुकूल है ताकि दर्शकों को कलाकार और नर्तकी के चेहरे की अभिव्यक्त की हुई बारीकियों को देख सके।क ठुमरी गाया जाता है और उसे चेहरे, अभिनय और हाथ आंदोलनों के साथ व्याख्या की जाति है।

घराना[संपादित करें]

  1. लखनऊ घराना-अवध के नवाब वाजिद आली शाह के दरबार में इसका जन्म हुआ।लखनऊ शैली के कथक नृत्य में सुंदरता ,प्राकृतिक संतुलन होती है। कलात्मक रचनाएँ, ठुमरी आदि अभिनय के साथ साथ होरिस (शाब्दिक अभिनय) और आशु रचनाएँ जैसे भावपूर्ण शैली भी होती हैं। वर्तमान में, पंडित बिरजु महाराज (अच्छन महाराजजी के बेटे) इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।
  2. जयपुर घराना-राजस्थान के कच्छवा राजा के दरबार में इसका जन्म हुआ। शक्तिशाली फुटवर्क, कई चक्कर, और विभिन्न ताल में जटिल रचनाओं के रूप में नृत्य के अधिक तकनीकी पहलुएँ यहाँ महत्वपुर्ण है।यहाँ पखवाज का बहुत उपयोग होता है।
  3. बनारस घराना-जानकीप्रसाद ने इस घराने का प्रतिष्ठा किया था।यहाँ नटवरी का अनन्य उपयोग होता है एवं पखवाज और तबला का इस्तेमाल कम होता है। यहाँ ठाट और ततकार में अंतर होता है। न्यूनतम चक्कर डाएं और बाएँ दोनों पक्षों से लिया जाता है।
  4. रायगड़ घराना-छत्तिसगड़ के महाराज चक्रधार सिंह इस घराने का प्रतिष्ठा किया था। विभिन्न पृष्ठभूमि के अलग शैलियों और कलाकारों के संगम और तबला रचनाओं से एक अनूठा माहौल बनाया गया था। पंडित कार्तिक राम,पंडित फिर्तु महाराज,पंडित कल्यानदास महांत,पंडित बरमानलक इस घराने के प्रसिद्ध नर्तकें हैं।

घुँघरू[संपादित करें]

घुँघरू छोटी घंटी जो नर्तकी अपने टखने के चारों ओर बांधती है। यह घंटियाँ एक मोटी स्ट्रिंग साथ बुना रहता है। सीखते समय बच्चों को २५ या ५० घंटियाँ पहनने का अनुमति मिलता है। लेकिन १०० घंटियाँ सामान्य संख्या है। परंतु अधिक से अधिक १५० घंटियाँ स्वीकार किया जाता है।

पोशाक[संपादित करें]

आमतौर पर घूंघट के साथ, एक लेहेंगा-चोली संयोजन है। लेहेंगा ढीला और टखने तक की है। दोनों अत्यंत सुशोभनता कशीदाकारी किया हुआ रहता है। मुगलों में महिलाओं के लिए पोशाक एक अंगरखा होता हैं।वह डिजाइन एक चुड़ीदार कमीज के समान है। इस शैली को एक विशिष्ट नर्तकी ने अनारकली' के रूप और नाम से लोकप्रिय कर दिया।वैकल्पिक सामान के रूप में एक छोटे नुकीला टोपी और एक बांदी या छोटे वास्कट पहनते हैं।जरी या कीमती पत्थरों का बना एक बेल्ट भी कमर पर पहना जाता है।

कथक और फ्लमेनको[संपादित करें]

जिप्सी का रोमांस या फ्लमेनको और कथक में बहुत समानताएँ हैं।सबसे विशेष रूप से ऊर्ध्वाधर अक्ष, टकराता हुआ फुटवर्क, और (कभी कभी जटिल) तालबद्ध चक्कर पर निर्भरता। घुमंतू रोमानी उनके साथ उनके भारतीय कला रूपों परंपराएँ ले गए और कथक भारत में निहित रह गया और फारसी प्रभाव पड़ता रहा।

प्रमुख हस्ती[संपादित करें]

  1. शंभु महाराज
  2. बैजनाथ प्रसाद 'लच्छु महाराज'
  3. सुंदर प्रसाद
  4. मोहन राव कल्यानपुरकार
  5. बिरजु महाराज
  6. दमयंति जोशी
  7. सितारा देवी
  8. गौरी शंकर देवीलाल
  9. रौशन कुमारी
  10. रोहिणी भाटे
  11. कार्तिक राम
  12. कुमूदिनी लखिया
  13. दुर्गा लाल
  14. उमा शर्मा
  15. रेबा विद्यार्थी
  16. रामलाल बारेथ
  17. रानी कर्ना
  18. सुंदरलाल सत्यनारायन गनगनी
  19. शोवना नारायन