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तुलसी पुजा[संपादित करें]

परिचय[संपादित करें]

भार‌तीय संस्कृती[1] मे हर प्रकार की महत्त्वपूर्ण चीजो को उचित आदर तथा सम्मान प्रदान किया गया है। चाहे वह छोटा पौधा क्यो ना हो। 'तुलसी विवाह'इसी संस्कृती का एक अध्यय है। यह कार्तिक महीने की एकादशी से पोर्णिमा के बीच मे आता है।

तुलसी पुजा सामग्री[संपादित करें]

  • एक थाली
  • एक लोटा जला
  • हल्दी, सिंधुर
  • दूध,दीप,फल
  • अगरबत्ती,घं‌टी

पूजा की विधि[संपादित करें]

इसी एकादशी से विवाह का मुर्हत शुरु हो जाता है। तुलसी  का विवाहा श्रीकृष्ण भगवान से किया जाता है। विवाह हेतु तुलसी को गेरु के गमले मे दाल कर उसे सजाए। गमले के चारो ओर गन्ने का मंडप बनाया जाता है। ‌‌फिर तुलसीजी को साडी से सुशोभित किया जाता है और चुडीयाँँ पहनाकर उनका श्रृंगार किया जाता है। यह विवाह दिपावली के तुरंंत बाद आता है।

इतिहास[संपादित करें]

पुराणो मे इसका उल्लखन किया गया है। कहा जाता है कि जालंंधर नाम का एक राक्षस था जिसने तीनो लोक को जीत लिया था। स्वर्ग पर देवताओंं को भी परेशान कर दिया था।सभी देवता विष्नु जी के पास मदद के लिए पहुँँचे। वृंंदा जो राक्षस कि पत्नी थी ,वो ही विष्नु जी के कहने पर जालंंधर कि मृत्यु का कारण बनी। इसी लिये विष्नु जी ने उनसे शादी कि और धरती पर आकर इस वृंंदा का नाम तुलसी पडा। इस विवाह मे तुलसी जी और विष्नु जी की पुजा की जाती है और फिर फटाको से इस शादी को सुसज्जीत किया जाता है।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Tulsi_Vivah