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एम्टी नेस्ट सिंड्रोम[संपादित करें]

एम्टी नेस्ट सिंड्रोम दु:ख और अकेलेपन की भावना है जो माता-पिता या अभिभावक महसूस करते जब उनके बच्चे अपने दम पर रहने के लिए या किसी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में पढने के लिए(भाग लेने के लिए), पहली बार घर छोडकर जाते हैं। यह एक नैदानिक ​​स्थिति नहीं है। यह मनोवैज्ञानिक व्यवहार का एक सामान्य परिपाटी है।

एम्टी नेस्ट सिंड्रोम

युवा वयस्कों का घर से बाहर जाना आम तौर पर एक सामान्य और स्वस्थ घटना के रुप से स्वीकरा जाता है, परंतु ,एम्टी नेस्ट सिंड्रोम के लक्षण इसी दौरान, अक्सर अनदेखे हो जाता है। यह अवसाद और माता पिता के लिए 'जीवन मे उद्देश्य हानि' के प्रिणाम मे बदल सकते है, क्योकि, माता-पिता को, बच्चों के ('नेस्ट' से) प्रस्थान होने के बाद, अभी जीवन मे कई सारे बदलावो से निपटना पडता है। एम्टी नेस्ट सिंड्रोम पूर्णकालिक माताओं में विशेष रूप से आम है। [1]

लक्षण और प्रभाव[संपादित करें]

लगभग हर माता पिता, एम्टी नेस्ट सिंड्रोम के शिकार हो सकते है, परंतु कुछ कारक इसकी प्रक्रिया मै झुकाव पैदा कर सकती है। यह झुकाव एक माता पिता के शादीशुदा (विवाह) जीवन मै मुशकिले पैदा खडी कर सकती है। इसके अलावा एक अभिभावक के रूप में स्वयं की पहचान और परिवर्तन स्वीकारने में कठिनाई आ सकती है। पूर्णकालिक माता-पित (हाउस वाइफ), विशेष रूप से एम्टी नेस्ट सिंड्रोम का शिकार हो सकते है। वयस्क जो जीवन के अन्य तनावपूर्ण घटनाओ से जूज रहे है जैसे- कोई विधुर, हस्तांतरण, रजोनिवृत्ति, निवृत्ति आदि से पीड़ित लोगो का-एम्टी नेस्ट सिंड्रोम के शिकार बनने कि संभावना अधिक होती है।

एम्टी नेस्ट सिंड्रोम से पीडित माता-पिता

एम्टी नेस्ट सिंड्रोम के लक्षण है:- अवसाद, उद्देश्य के नुकसान की भावना, अस्वीकृति की भावना, तनाव (चिकित्सा) अथवा चिंता उनके बच्चों के कल्याण का। एम्टी नेस्ट सिंड्रोम से पीडित माता पिता के मन मै अक्सर यह सवाल उठता है कि यदी उन्होने स्वतंत्र एवं य्व्पर्याप्त रूप से अपने बच्चों को तैयार किया है या नहीं?

अक्सर प्राथमिक देखभाल करने वालों को एम्टी नेस्ट सिंड्रोम की पीडा ज़्यादा सताती है। हालांकि, अनुसंधान दिखाया ने प्रमाणित किया है कि कुछ पिताओ ने व्यक्त किया है कि वे भावनात्मक परिवर्तन के लिए तैयार नहीं थे जो अपने बच्चे के घर छोड़ने के बाद आता है। दूसरों ने अपराध की भावना महसूस की थी क्योकि उनहे लगता था कि उनहोने अपने बच्चो के साथ समय बिताने कि सुविधा (अवसर) खो दी है।[2]

एम्टी नेस्ट सिंड्रोम से पीड़ित माता-पिता अक्सर नई चुनौतियों का सामना करते है, जैसे-अपने बच्चों के साथ रिश्ते की एक नई तरह की स्थापना करना, अपने खाली समय को बिताने के लिए अन्य तरीके खोजना, एक दूसरे के साथ पुनःमिलान, और लोगों से सहानुभूति की कमी पाना जो सोचते है कि माता पिता को खुश रहना चाहिए जब उनके बच्चे घर छोडकर चले जाते है।

समाधान और इलाज[संपादित करें]

एम्टी नेस्ट सिंड्रोम का सामना करने के लिए सबसे आसान तरीकों में से एक है-माता-पिताओ का अपने बच्चों के साथ संपर्क में रहना। तकनीकी विकास जैसे मोबाइल फ़ोन, पाठ संदेश और अंतरजाल सभी माता पिता और उनके बच्चों के बीच वृद्धि हुई संचार के लिए अनुमति देते हैं।

शादी पर अनुसंधान करने वाले एक टीम ने दिखाया है कि बच्चों की उपस्थिति, समग्र शादी संतुष्टि और खुशी कम कर देती है।[3]

बच्चे अक्सर एक जोड़े के लिए वित्तीय तनाव, समय की कमी की थोपना एवं घर के कामो को बढाने -जैसी मुशकिले पैदा करते है।

रिश्ते का पुनर्मूल्यांकन

औसत पर, जोडे, अब, केवल एक-तिहाई समय (अकेले मे) एक दूसरे के साथ बितातते है -बच्चों के होने के पहले की तुलना मे। एम्टी नेस्ट सिंड्रोम से पीडित माता पिता, अपने रिश्ते को जागृत कर सकते है, एक साथ अधिक समय खर्च करके । कई ऐसे जोड़ों को एक साथ बेहतर समय मिला जब उनहोने अपने बच्चो के बारे मे ज़्यादा सोचना बंद कर दिया था। अतः, एम्टी नेस्ट सिंड्रोम से पीडित जोडे, अब अपने रिश्ते को और भी अधिक मज़बूत कर सकते है, एक-दूसारे के साथ समय बिताकर, बिना अपने बच्चो के बारे मै सोचकर।[4]

हाल के रुझान[संपादित करें]

पिछले दशक में, तथाकथित " बूमरैंग जनरेशन "-युवा वयस्क, जो अपने माता पिता के साथ रहने के लिए लौट आते है-पारंपरिक एम्टी नेस्ट सिंड्रोम की गतिशीलता को बदल दिया है।[5] बेरोजगारी और विवश नौकरी बाजार जैसे कारक ह्मे, इन व्यसको के इस फैसले को समझ्ने मै हमारी मदद करती है। " बूमरैंग जनरेशन " की संख्या पिछले दशक में काफी बढ गई है। भारत मै, दिन बर दिन, घर छोडकर जाने वाले ब्च्चो कि संख्या बढ गई है।


सन्दर्भ[संपादित करें]