सदस्य:Shreya8899/प्रयोगपृष्ठ

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पृष्ठभूमि[संपादित करें]

मेरा नाम श्रेया है। मेरा जन्म ८ अगस्त १९९९ को तमिल नाडु के कोयंबतूर नामक शहर में हुआ था। सन् २०११ से २०१६ तक मैं मुम्बई में रहती थी। मैं जैन धर्म की अनुयायी हूँ।

परिवार[संपादित करें]

मेरे परिवार में मेरे अलावा और पांच सदस्य है। मेरे पिता एक सनदी लेखाकार है और मेरी माँ गृहनी है। मेरी बहन बाईस वर्ष की है और वह के.पी.एम्.जी. में काम करती है। मेरे दादा दादी बडे रंगीन और उल्लासपूर्ण है। मेरे पिता अनुशासित है, माँ शान्त है और बहन हंसमुख है। पिताजी वोल्टास में काम करते हैं। माँ ने अपना डिप्लोमा होम साइंस में किया था। मेरे दादा की अपनी दुकान थी पर कुछ साल पहले उन्होंने दुकान बंद कर दी और रिटायर हो गए। वे अब मेरी दादी के साथ कोयंबतूर में रहते हैं। मेरी बहन मॅनेजमेन्ट स्टडीज़ में स्नातक है। मेरा परिवार एकजुट और समन्वित है।

शिक्षा[संपादित करें]

छठी कक्षा तक मैंने अपनी पढाई कोयंबतूर के भारतीय विद्या भवन नामक विद्यालय में की थी। सातवीं से दसवीं कक्षा की पढाई मैंने दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालय, मुम्बई में पूरी की थी। ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में मैं जय हिंद कॉलेज में भर्ती हुइ थी। अब मैं क्राइस्ट विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में बी.ए. कर रही हूँ।

रुचि[संपादित करें]

मेरी रुचि संगीत में है। मुझे नए स्थानों पर जाना और जगहों का इतिहास जानना पसंद है। मुझे किताबें, पत्रिकाएं, समाचार पत्र या कुछ ऐसी चीजें पढ़ना पसंद है जो मुझे दिलचस्प लगती है। यह मुझे उच्च स्तर की शांति देता है और मेरे पूरे दिन को उपयोगी बनाता है। मुझे सूर्योदय और सूर्यास्त देखने में आनंद मिलता है। हर शाम मैं अपने दोस्तों के साथ सैर पर जाती हूँ। मुझे खाना बनाना भी पसंद है। मनोरंजन के लिए, मुझे टी.वी. देखना पसंद है।

लक्ष्य[संपादित करें]

ज़िंदगी में मैं एक सफल मनोवैज्ञानिक बनना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि मेरे माता-पिता गर्वित हो। मैं समाज में अपना योगदान देना चाहती हूँ और अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये मैं मन लगाकर प्रयास और महनत करूँगी।

आसाम के त्यौहार[संपादित करें]

आसाम

आसाम की रंगीन विरासत और समृद्ध संस्कृति विभिन्न प्रकार के त्यौहारों और समाहारों को प्रदर्शित करती है। इस पूर्वोत्तर राज्य में मनाए जाने वाले त्यौहार और मेले मनोरंजक, आकर्षक और जीवंत होते है। जो कोई जनजाति आसाम को अपना घर मानती है, वह अपनी संस्कृति और रीति-रिवाजों को अनूठी और सुंदर तरीके से श्रद्धांजलि देती है।

बिहु[संपादित करें]

आसाम के सभी सांस्कृतिक और जीवंत उत्सवों में सबसे महत्वपूर्ण बिहु त्यौहार है। बिहु आसाम के लोगों को उनके धर्म, पंथ, लिंग या जाति में अन्तर होने के बावजूद एक साथ मिलाकर लाता है। आसाम के लोग अपने सर्वोच्च भगवान, ब्राइ शिब्राइ, पर अपना विशवास रखते हैं। स्थानीय तौर पर वे पिता शिब्राइ के नाम से जाने जाते हैं। लोग अपनी पहली फसल भगवान के प्रति कृतज्ञता की भावना से पेश करते हैं और आने वाले वर्षों में शांति और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। बिहु अप्रैल के आसपास मनाया जाता है और यह एक पूरे महीने तक चलता है। यहाँ लोग रंग बिरंगे कपड़ो में नाचते हैं, पारंपरिक लोकगीत गाते हैं और भोज की मेज के लिए तैयारी करते हैं। बफेलो झगड़े, रंगोली उत्सव और गहनों की प्रदर्शनी का आयोजन आसाम के पर्यटन विभाग द्वारा किया जाता है।

अंबुबाशि मेला[संपादित करें]

अंबुबाशि मेला हर साल वर्षा ऋतु के समय गुवहाटि के कामख्या देवी मंदिर में आयोजित किया जाता है। यह चार दिनों के लिए मनाया जाता है और इसमें आसाम के तांत्रिक संस्कृति को दर्शाया जाता है। इस उद्वितीय मेले के पीछे की कथा बताती है कि उत्सव के पहले तीन दिनों में कामख्या देवी अपने मासिक धर्म चक्र से गुज़रती है। इसके कारण सारे भक्त खाना नहीं पकाते और स्नान भी नहीं करते। इन तीन लगातार दिनों तक लोग न तो पवित्र पुस्तकें पढ़ते हैं और न ही पूजा करते हैं। जब ये दिन खत्म हो जाते है, कामख्या देवी को पानी और दूध से साफ किया जाता है। इस भव्य समारोह के बाद मंदिर के दर्वाज़े भक्तों के लिये खोले जाते है और वे पवित्रता और समृद्धि पाने के लिये कामख्या देवी की पूजा करते हैं। इस चार दिवसीय उत्सव में कई तांत्रिक अपनी शक्तियां और चालें दिखाने आते हैं। इस अनोखे त्यौहार के समय पूरे शहर में कई स्टॉल स्थापित किये जाते है जो खाना, रंगीन कलाकृतियां आदि बेचते हैं। शहर को नवविवाहित दुल्हन की तरह सजाया जाता है और लोग अपने घरों से बाहर, सडकों पर समारोह का आनंद लेने आते हैं।

देईंग पटकाई[संपादित करें]

देईंग पटकाई का खुशहाल पर्व आसाम की सुन्दरता को और भी आकर्षित करता है। इस त्यौहार का नाम नदी देईंग और श्रृंखला पटकाई के आधार पर दिया गया है। यह जनवरी के महीने में तिन्सुकिया जिले में आसाम सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है। राज्य कई साहसी खेलों को संयोजित करती है जैसे कयाकिंग, पैरासेलिंग आदि। देईंग पटकाई सिर्फ खेल-कूद और रंगीन जश्न से संबंधित नहीं है बल्कि इसमें हाथियों को बचाने की आवश्यकता के बारे में भी बताया जाता है। इस त्यौहार में सरकार घटते हुए वन-जंगल के समस्या के बारे में जागरुकता फैलाने की कोशिश करती है। आसाम के जंगलों की छान-बीन करने के लिए हाथि सफारी की व्यवस्था भी की गई है। इस त्यौहार में दर्शकों के मनोरंजन के लिए स्वादिष्ट भोजन, शिल्प वस्तु और सांस्कृतिक क्रियाओं की व्यवस्था की जाति है।

द्री[संपादित करें]

द्री अपतानि ट्राइब का एक विशिष्ट त्यौहार है। बड़ी तेज़ी से यह पूर्वोत्तर में प्रसिद्ध हो गया। हर साल ५ जुलाई को ज़िरो घाटी के सभी जनजातियाँ इकट्ठे होकर चार देवताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इन देवताओं का नाम है दन्यि, तमु, हर्नियांग और मेटि। ऐसा माना जाता है कि इन देवताओं के आशिर्वाद से ज़िरो घाटी में शांति और प्रगति दिखाई देगी। पुरुष और महिलाएँ पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करते हैं और चारों ओर भरपूर उत्साह होता है। अपतानि औरतें स्वादिष्ट शराब को मसालेदार खीरे के साथ परोसती है।

मजुली[संपादित करें]
ब्रह्मपुत्र नदी

मजुली को आसाम के सबसे सुन्दर त्यौहारों में से एक माना जाता है। माजुली आइलैंड गहरी नदी ब्रह्मपुत्र के किनारे पर स्थित है। मजुली का त्यौहार विभिन्न जातियों को एक साथ लाता है ताकि वे अपने रिवाजों और धर्मों की सुंदरता को प्रदर्शित कर सकें। सभी लोग दिन-रात सांस्कृतिक गतिविधियों में बडे उत्साह से भाग लेते है। आसाम के कारीगरों और विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई वस्तुओं को दिखाने के लिए प्रदर्शनी आयोजित की जाती है। प्रदर्शनियों में भोजन और हस्तशिल्प से लेकर प्रामाणिक कपड़ों और लकड़ी के शोपीस तक पेश किए जाते है।

जॉन्बील मेला[संपादित करें]

हर साल जनवरी में आसाम में दयांग बेल्गुरि में जॉन्बील मेला लगता है। यह एक अद्भुत और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह मेले के शुरुआत में अग्नि पूजा की जाति है। दयांग बेल्गुरि में रहने वाले लोग मछलियाँ पकडने के लिए जॉन्बील में इकट्ठा होते हैं। मेले के दर्शक और भाग लेने वाली जनजातियाँ वस्तुओं के आदान-प्रदान में व्यस्त होते हैं। आमतौर पर पहाड़ियों से परिवार जड़ी-बूटियों, मसालें और विदेशी फल लाते हैं और फिर उन्हें चावल, मछली और पिठा मिठाई के साथ प्रतिदान करते हैं। इस तीन दिन के मेले में 1000 से अधिक जनजातियाँ भाग लेती है।

संदर्भ[संपादित करें]

१ Various festivals of assam, http://www.assaminfo.com/festivals/?recNo=10

२ Fairs and festivals in assam, https://www.indianholiday.com/fairs-and-festivals/assam/

३ Jonbeel Mela in Assam: Where money is no object, http://www.thehindu.com/news/national/other-states/jonbeel-mela-where-money-is-no-object/article२२७४४१४३.ece

चार्ल्स राय्ट मिल्स[संपादित करें]

चार्ल्स राय्ट मिल्स
पृष्ठभूमि[संपादित करें]

चार्ल्स राय्ट मिल्स एक अमरिकी समाजशास्त्री थे और वे कोलंबिया विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढाते थे। उनका जन्म टेक्सस में सन १९१६ में हुआ था। [1] बाईस साल की उम्र तक वे वहीं रहे। उनके पिता बीमा विक्रेता और मां गृहिणी थी। मिल्स जब बडे हो रहे थे तब उनका परिवार एक जगह से दूसरी जगह स्थान बदलते रहे। इसके कारण उनकी ज़िन्दगी अकेलापन में बीत गई। वाको, विचिटा फॉल्स, फोर्ट वर्थ, शेरमेन, डलास, ऑस्टिन और सैन एंटोनियो जैसी जगहों में वे रह चुके हैं।[2] टेक्सास में उनकी मुलाकात डोरोथी हेलेन स्मिथ से हुई और १९३७ में उनका विवाह हो गया। उनकी बेटी पामेला का जन्म १९४३ में हुआ था। [3]

शिक्षा[संपादित करें]

१९३४ में डलास तकनीकी हाई स्कूल से उन्होनें स्नातक की उपाधि प्राप्त की। १९३९ में टेक्सास विश्वविद्यालय से उन्होनें समाजशास्त्र और दर्शनशास्र के क्षेत्र में डिग्री प्राप्त की थी। मिल्स को १९४२ में विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी मिली। १९४१ से १९४५ तक वे मैरीलैंड विश्वविद्यालय में सहयोगी प्रोफेसर थे। इस समय अमेरिकी राजनीति में उनकी भागीदारी बढ़ी और वे रिचर्ड होफास्ट्टर, फ्रैंक फ्रीडेल और केन स्टाम्प जैसे इतिहासकारों से दोस्ती करने लगे। १९४५ में वे न्यु यॉर्क चले गये और अपनी पत्नी से अलग हो गए। अपनी अन्वेषण के लिए गुगेनहेम फाउंडेशन से उन्हें $२,५०० मिले। १९४७ में उन्होंने रुथ हार्पर से दूसरी शादी की। उनकी बेटी कैथ्रीन का जन्म १९५५ में हुआ था। १९५९ में मिल्स ने रुथ को तलाक दे दिया और अकेले कोपेनहेगन से लौट आया। मिल्स ने अपनी तीसरी पत्नी यारोस्लावा सुरमा से विवाह किया और १९५९ में न्यू यॉर्क में बस गए। उनके बेटे निकोलस चार्ल्स का जन्म १९६० में हुआ था।[4]

योगदान[संपादित करें]

१९६० मिल्स ने क्यूबा में समय बिताया जहां उन्होंने अपने पाठ 'लिसन, यान्की' को विकसित करने पर काम किया। मिल्स पर जॉर्ज हर्बर्ट मीड, जॉन डेवी, चार्ल्स सैंडर्स पीरस और विलियम जेम्स के कार्यों का काफी प्रभाव पडा था। मिल्स के कार्य मैक्स वेबर और कार्ल मैनहेम के लेखन से आधारित है। मिल्स पर मार्क्सवाद और नियो-फ्रायडियनवाद का भी सामान्य प्रभाव था। मिल्स समाजशास्त्रज्ञ बनने से पहले दर्शनशास्त्र के छात्र थे और कट्टरपंथी, समतावादी लोकतंत्र के विचार थॉर्स्टीन वेब्लेन, जॉन डेवी और मीड के कार्यों के प्रभाव का सीधा परिणाम था। विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में रहते समय मिल्स जर्मनी के समाजशास्त्र प्रोफेसर हंस गेरथ से काफी प्रभावित हुए। मिल्स ने गेरथ से यूरोपीय शिक्षा और सामाजिक सिद्धांत में अंतर्दृष्टि प्राप्त की। मिल्स ने 'दि सोशिओलॉजिचल इमॅजिनशन', 'दि थेयरी ऑफ दी लीज़र क्लास', 'पावर एलिट' और 'व्हाइट कॉलर' जैसी किताबें लिखी हैं। [5] मिल्स हमेशा जम्दी में रहता था और वह काफी हद तक अपनी लड़ाई के लिए जाना जाता था। उनके निजी जीवन और पेशेवर जीवन दोनों को "अशांत" माना गया है। अपने पूरे जीवन में मिल्स को दिल के दौरे पडते थे और १९६२ में उनके चौथे दौरे के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

संदर्भ[संपादित करें]