सदस्य:Sahni nikita28

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सुरेश गोयल[संपादित करें]

Badminton pictogram
The Vice Minister of Culture, Sport and Tourism, Vietnam, Mr. Huynh Vinh Al and the Director General, ICCR

अर्जुन पुरस्कार की शुरुआत[संपादित करें]

अर्जुन पुरस्कार भारत में युवा मामलों और खेल मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा खेल में उत्कृष्ट उपलब्धि को पहचानने के लिए दिए जाते हैं। यह १९६१ में शुरू हुआ था। इस पुरस्कार में ₹५००००० का नकद पुरस्कार,अर्जुन की कांस्य प्रतिमा और एक स्क्रॉल दिया जाता है।

सुरेश गोयल की उपलब्धियाँ[संपादित करें]

सुरेश गोयल ने(२० जून १९४३ - १३ अप्रैल १९७८) भारतीय राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियन और अर्जुन पुरस्कार प्राप्त किये थे। गोयल का जन्म १९४३ में उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में हुआ था। सुरेश गोयल ने १० साल की उम्र में बैडमिंटन खेलना शुरू किया और जब तक वह १४ तक पहुंचे तो वह १९५७ में हैदराबाद में राष्ट्रीय जूनियर चैंपियन बने। उन्होंने १९५८ में गौहती में खिताब बरकरार रखा। फिर उन्होंने लगातार तीन बार यूपी चैम्पियनशिप जीती। पहला वरिष्ठ राष्ट्रीय खिताब १९६२ में उनके पास आया और उसके बाद उन्होंने अपने करियर में चार और राष्ट्रीय खिताब का दावा किया। सुरेश गोयल ने १९६२ में अपनी इंटर कॉलेज परीक्षा उत्तीर्ण की और १९६३ में रेलवे में शामिल हो गए। १९७५ तक अपने करियर के दौरान उन्होंने घर और विदेशों में कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया।

अतंराष्ट्रीय स्तर पर सफलता[संपादित करें]

१९६०-६१ में बैंकाक में थाईलैंड के खिलाफ पहली बार थॉमस कप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और १९६९ -७० में जयपुर में इंडोनेशिया के खिलाफ भारतीय टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने कई बार इंग्लैंड चैम्पियनशिप में भाग लेने के अलावा १९६७ में कनाडा में यूएस ओपन और सेंटेनियल चैंपियनशिप में भी भाग लिया। उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में दो बार भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने १९७२ में म्यूनिख ओलंपिक खेलों में भाग लिया जहां बैडमिंटन को प्रदर्शन खेल के रूप में खेला गया था। सुरेश गोयल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर अपना आगमन शुरू किया। जूनियर रैंक में उन्होंने बैडमिंटन की दुनिया को तूफान से लिया जब उन्होंने विश्व चैंपियन और सात बार ऑल इंग्लैंड के विजेता एरलैंड कोप्स को अक्टूबर १९६० में जबलपुर में सेंट्रल इंडिया टूर्नामेंट में हराया। उन्होंने कई अवसरों पर स्ट्रिप्स के शानदार प्रदर्शन के साथ कोप्स को पकड़ा और दिशा और गति में सूक्ष्म भिन्नता। उस दिन हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उनकी बहादुरी जीत के लिए उन्हें खड़े होने का मौका दिया गया था।

भारतीय बैडमिंटन हीरे का अन्त[संपादित करें]

१९७८ में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के एम्फीथिएटर मैदानों के चल रहे ट्रैक पर व्यायाम करते हुए ३५ वर्ष की आयु में ह्रदय की गाति रुक जाने के करण उनकी मृत्यु हो गाई थी। लोग उनका बहुत आदर तथा सम्मान करते थे,उन्होने उन्के लिए कुछ शब्द भी कहे जैसे- उसे देखकर हमेशा एक खुशी मिलती है। उनके बैकहैंड और उत्कृष्ट समय के साथ स्ट्रोक के उनके सटीक और नाजुक निष्पादन उन्हें एक वर्ग अलग कर देता है। वह अपने तत्वों में दुनिया में किसी को भी हरा सकता था। वह सुरेश गोयल था। वह एक कलाकार था। इन सब चीज़ो को देखते हुए कहे सकते है कि वह एक महान खिलडी थे, और सचमुच देश ने एक हीरा खो दिया था, जिसने देश को ऊंचाइयो पर पहुंचाया।

[1] [2]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Arjuna_Award
  2. http://www.badmintonindia.org/players/awardees/3-