सदस्य:Rinucmi/प्रयोगपृष्ठ/कथकली

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

[[चित्र:

कथकली नृत्य

कथकली

कथकली मालाबार, कोचीन और ट्रावनकोर के आस पास प्रचलित नृत्य शैली है। केरल की सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला है कथकली।7 वीं शताब्दी में कोट्टारक्करा तंपुरान (राजा) ने जिस रामनाट्टम का आविष्कार किया था उसी का विकसित रूप है कथकली।यह रंगकला नृत्यनाट्य कला का सुंदरतम रूप है। भारतीय अभिनय कला की नृत्य नामक रंगकला के अंतर्गत कथकली की गणना होती है। रंगीन वेशभूषा पहने कलाकार गायकों द्वारा गाये जानेवाले कथा संदर्भों का हस्तमुद्राओं एवं नृत्य-नाट्यों द्वारा अभिनय प्रस्तुत करते हैं।इसमें कलाकार स्वयं न तो संवाद बोलते है और न ही गीत गाते है। कथकली के साहित्यिक रूप को 'आट्टक्कथा' कहते हैं।गायक गण वाद्यों के वादन के साथ आट्टक्कथाएँ गाते हैं। कलाकार उन पर अभिनय करके दि/ाते हैं।कथा का विषय भारतीय पुराणों और इतिहासों से लिया जाता है। आधुनिक काल में पश्चिमी कथाओं को भी विषय रूप में स्वीकृत किया गया है।कथकली में तैय्यम, तिरा, मुडियेट्टु, पडयणि इत्यादि केरलीय अनुष्ठान कलाओं तथा कूत्तु, कूडियाट्टम, कृष्णनाट्टम आदि शास्त्रीय (क्लासिक) कलाओं का प्रभाव भी देखा जा सकता है।

इतिहास[संपादित करें]

[1] कथकली का इतिहास केरल के राजाओं के इतिहास के साथ जुडा है। आज जो कथकली का रूप मिलता है वह प्राचीनतम रूप का परिष्कृत रूप है। वेष, अभिनय आदि में हुए परिवर्तनों को 'संप्रदाय' कहते हैं। कथकली की शैली में जो छोटे - छोटे भेद हुए हैं उन्हें 'चिट्टकल' कहते हैं।साहित्य, अभिनय और वेष के अतिरिक्त प्रमुख तत्व हैं 'संगीत' और 'मेलम'। भारतीय क्लासिकल परिकल्पना के अनुसार नवरसों की नाट्य प्रस्तुति कथकली में प्रमुखता पाती है। कथकली के इतिहास में अनेक प्रतिभावान कलाकार हैं। ये कलाकार नाट्य, गायन, वादन आदि सभी क्षेत्रों में प्रसिद्ध हुए हैं। केरल के विभिन्न मंदिरों में कार्यरत कथकली संघ (कलियोगम), कथकली क्लब और सभी ने मिलकर कथकली को जीवंत रखा हुआ है। कथकली के विकास के लिए महाकवि वल्लत्तोल नारायण मेनन द्वारा स्थापित 'केरल कलामण्डलम' और अनेक प्रशिक्षण केन्द्र कथकली का प्रशिक्षण देते हैं। कथकली का प्रादुर्भाव 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था। विद्वानों का मत है कि कोट्टारक्करा तंपुरान द्वारा रचे गये 'रामनाट्टम' का विकसित रूप ही कथकली है। कालान्तर में अनेक नाट्य कलाओं के संयोग और प्रभाव से कथकली का स्वरूप संवरता गया।समय के अनुसार कथकली की वेशभूषा, संगीत, वादन, अभिनय-रीति, अनुष्ठान आदि सभी क्षेत्र परिवर्तित हुए हैं। राजमहलों तथा ब्राह्मणों के संरक्षण में कथा की नृत्य नाट्य कला विकास के सोपानों पर चढता रहा। इसीलिए इसमें अनेक अनुष्ठानपरक क्रियाओं का प्रवेश हो गया।तिरुवितांकूर के महाराजा कार्तिक तिरुन्नाल रामवर्मा, जो आट्टक्कथा के रचयिता थे, ने कथकली का पोषण - संवर्द्धन किया। उनके निर्देशानुसार नाट्य कला विशारद कप्लिंगाट्ट नारायणन नंपूतिरि ने कथकळि में अनेक परिष्कार किये। उनका यह संप्रदाय 'कप्लिंगाडन' अथवा 'तेक्कन चिट्टा' नाम से जाना जाता है। कालान्तर में इन भिन्न भिन्न संप्रदायों के बीच का भेद लुप्त होता गया, कप्लिंगाड और कल्लडिक्कोड संप्रदायों का समन्वय कर जो शैली विकसित की गयी वह 'कल्लुवष़ि चिट्टा' नाम से प्रसिद्ध हुई है।

रंगमंच[संपादित करें]

कथकली का रंगमंच ज़मीन से ऊपर उठा हुआ एक चौकोर तख्त होता है। इसे 'रंगवेदी' या 'कलियरंगु' कहते हैं। कथकली की प्रस्तुति रात में होने के कारण प्रकाश के लिए भद्रदीप (आट्टविळक्कु) जलाया जाता है। कथकली के प्रारंभ में कतिपय आचार - अनुष्ठान किये जाते हैं। वे हैं - केलिकोट्टु, अरंगुकेलि, तोडयम्, वंदनश्लोक, पुरप्पाड, मंजुतल (मेलप्पदम)। मंजुतर के पश्चात् नाट्य प्रस्तुति होती है और पद्य पढकर कथा का अभिनय किया जाता है। धनाशि नाम के अनुष्ठान के साथ कथकली का समापन होता है

वेशभूषा[संपादित करें]

[2] कथकली में हर पात्र की अपनी अलग वेशभूषा नहीं होती है। कथा चरित्र को आधार बनाकर कथापात्रों को भिन्न-भिन्न प्रतिरूपों में बाँटा गया है। प्रत्येक प्रतिरूप की अपनी वेश-भूषा और साज श्रृंगार होता है। इस वेश-भूषा के आधार पर पात्रों को पहचानना पड़ता है। वेश - भूषा और साज - श्रृंगार रंगीन तथा आकर्षक होते हैं। ये प्रतिरूप पाँच में विभक्त हैं, - पच्चा (हरा), कत्ति (छुरि), करि (काला), दाढी और मिनुक्कु (मुलायम, मृदुल या शोभायुक्त)। कथकली में प्रयुक्त वेश-भूषा और साज - सज्जा भी अद्भुत होती है।

कथकळि संगीत[संपादित करें]

आट्टक्कथा गायक (भागवतर) द्वारा कथकळि की कथा की प्रस्तुति होती है, उसी के आधार पर नट अभिनय करते हैं। कथकळि में दो गायक होते हैं, पहले एक गायक गाता है, दूसरा गायक उसको दोहराता है। पहले गाने वाले को 'पोन्नानि' और दूसरे गायक को 'शिंकिटि' कहा जाता है। जब तक नट गीतों के भाव और अर्थ को पूर्णतः अभिनीत करते हैं तब तक गायक गाते रहते हैं। कथकळि संगीत को Mood Music भी कहा जाता है। माना जाता है कि सोपान संगीत से कथकळि संगीत का उदय हुआ। मंदिरों में वाद्यों के साथ 'गीतगोविन्द' का गायन होता रहता है, उसका भी कथकळि संगीत से संबन्ध है। कर्नाटक संगीत का भी कथकळि संगीत पर प्रभाव पड़ा है। सामान्य रूप से सोपान संगीत तथा कर्नाटक संगीत की राग - रागनियों तथा कर्नाटक संगीत के कतिपय रागों के रूपांतरण कथकळि संगीत में उपलब्ध हैं, किन्तु गायन शैली तथा ताल क्रम की दृष्टि से कथकळि संगीत कर्नाटक संगीत से भिन्न है।

मेकअप:[संपादित करें]

[3] कथकली का सबसे दिलचस्प पहलू में से एक इसके विस्तृत मेक-अप कोड है। कथकली मेक-अप एक विस्तृत प्रक्रिया के लिए तीन घंटे से अधिक स्थायी है। कथकली मेकअप में उपयोग किया पेंट हौसले से तैयार हैं और लयबद्ध घटता और परिशुद्धता की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया। कथकली वेशमं पांच प्रकार के होते हैं: 1 पाचा (हरा)-राजा भगवान राम, अर्जुन आदि की तरह आर्य मुख्य पात्र चित्रण। 2 काठी (चाकू)-महाभारत में धुरयोधन् जैसे खलनायक पात्रों का चित्रण 3 दाढ़ी-तीन प्रकार के दाढ़ी हैं।

. सफेद दाढ़ी, हनुमान की तरह या अलौकिक बंदरों के लिए सफेद दाढ़ी। 
.काला दाढ़ी- बलिवधम्, राकश्श्स, असुरास आदि के  लिए । 
.  लाल दाढ़ी है कथकली में काली तरह शिकारी के लिए काली दाढ़ी में बाली की तरह बुराई अक्षर के लिए ।

4 कारी (काला) - लेडी-राक्षसों (भारतीय महाकाव्य में चुड़ैलों) पूथना की तरह के लिए इस्तेमाल किया।

एक गहन नृत्य प्रशिक्षण के क्रम में नृत्य के पाठ्यक्रम में बुने असामान्य रूपों के लिए प्रतिक्रिया करने में शरीर को लचीला और कोमल बनाने के लिए आवश्यक है। तरलता को प्राप्त करने के लिए, एक कथकली पुतली एक कम उम्र से व्यापक और जोरदार प्रशिक्षण की प्रक्रिया।

  1. http://www.kathakali.net/history
  2. http://kathakalischool.com/kathakali-costumes.html
  3. soumyarajan.wordpress.com/2009/05/18/kathakali-make-up/