सदस्य:Radheshyam Athwal

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

मेरा नाम राधेश्याम अठवाल हनुमानगढ़ राजस्थान के छोटे से गावं दूधवाली ढाणी के पास चक 2R का रहने वाला हु मुझे लिखने और पढ़ने का बहूत शौंक है

मेरी आजकल youtube में ज्यादा ध्यान है मैंने खुद का चैंनल बना रखा है मेरे ही नाम ""Radheshyam athwal "" से जिस पर 500 suscriber और 57000 viewer हो गए है

My connect no.85030-43364 /+91-63758-58136

विकिपीडिया संसार की सबसे उत्तम वेबसाइट है मुझे उम्मीद है की में जो भी कमी या फालतू की वस्तु को देखूगा तो आप तक साँजा करने का प्रयास करुगा


राजस्थानी भाषा क्या है... राजस्थानी भाषा की सामान्य विशेषताएँ संपादित करें राजस्थानी भाषा की सामान्य विशेषताएँ निम्न हैं-

(1) राजस्थानी में "ण", "ड़" और (मराठी) "ळ " तीन विशिष्ट ध्वनियाँ (Phonemes) पाई जाती हैं।

(2) राजस्थानी तद्भव शब्दों में मूल संस्कृत "अ" ध्वनि कई स्थानों पर "इ" तथा "इ" "उ" के रूप में परिवर्तित होती देखी जाती हैं-"मिनक" (मनुष्य), हरण (हरिण), क"मार (कुंभकार)।

(3) मेवाडी और मालवी में "च, छ, ज, झ" का उच्चारण भीली और मराठी की तरह क्रमश: "त्स, स, द्ज, ज़" की तरह पाया जात है।

(4) संस्कृत हिंदी पदादि "स-ध्वनि" पूर्वी राजस्थानी में तो सुरक्षित है, किंतु मेवाड़ी-मालवी-मारवाड़ी में अघोष "ह्ठ" हो जाती है। हि. सास, जैपुरी-हाडौती "सासू", मेवाड़ी-मारवाड़ी "ह्ठाऊ"

(5) पदमध्यगत हिंदी शुद्ध प्राणध्वनि या महाप्राण ध्वनि की प्राणता राजस्थानी में प्राय: पदादि व्यंजन में अंतर्भुक्त हो जाती है-हिं. कंधा, रा. खाँदो; हि. पढना, रा. फढ-बो।

(6) राजस्थानी के सबल पुलिंग शब्द हिंदी की तरह आकारांत न होकर ओकारांत है :-हि. घोड़ा, रा. घोड़ी, हिं. गधा, रा. ग"द्दो, हिं. मोटा, रा. मोटो।

(7) पश्चिमी राजस्थानी में संबंध कारक के परसर्ग "रो-रा-री" हैं, किंतु पूर्वी राजस्थानी में ये हिंदी की तरह "को-का-की" हैं।

(8) जैपुरी-हाड़ौती में "नै" परसर्ग का प्रयोग कर्मवाच्य भूतकालिक कर्ता के अतिरिक्त चेतन कर्म तथा संप्रदान के रूप में भी पाया जाता है-"छोरा नै छोरी मारी" (लड़के ने लड़की मारी); "म्हूँ छोरा नै मारस्यँू" (मैं लड़के को पीटूँगा;-चेतन कर्म); "यो लाडू छोरा नै दे दो" (यह लड्डू लड़के को दे दो-संप्रदान)।

(9) राजस्थानी में उत्तम पुरुष के श्रोतृ-सापेक्ष "आपाँ-आपण" ओर श्रोतृ निरपेक्ष "महे-म्हें-मे" दुहरे रूप पाए जाते हैं।

(10) हिंदी की तरह राजस्थानी के वर्तमानकालिक क्रिया रूप सहायक क्रियायुक्त शतृप्रत्ययांत विकसित रूप न होकर शुद्ध तद्भव रूप हैं। "मूँ जाऊँ छूँ" (मैं जाता हूँ)।

(11) सहायक क्रिया के रूप पश्चिमी राजस्थानी में "हूं-हाँ-हो-है" (वर्तमान) और "थो-थी-था" (भूतकाल) हैं, किंतु पूर्वी राजस्थानी में "छूँ-छाँ-छो-छै" (वर्तमान) और "छो-छी-छा" (भूतकाल) हैं।

(12) राजस्थानी में तीन प्रकार के भविष्यत्कालिक रूप पाए जाते हैं :-जावैगो, जासी, जावैलो। इनमें द्वितीय रूप संस्कृत के भविष्यत्कालिक तिङंत रूपों का विकास हैं-"जासी" (यास्यति), जास्यूँ (यास्यामि)।

(13) राजस्थानी की अन्य पदरचनात्मक विशेषता पूर्वकालिक क्रिया के लिए "-र" प्रत्यय का प्रयोग है : -"ऊ-पढ़-र रोटी खासी" (वह पढ़कर रोटी खाएगा)।

(14) राजस्थानी की वाक्यरचनागत विशेषताओं में प्रमुख उक्तिवाचक क्रिया के कर्म के साथ संप्रदान कारक का प्रयोग है, जबकि हिंदी में यहाँ "करण या अपादान" का प्रयोग देखा जाता है1"या बात ऊँनै कह दो" (यह बात उससे कह दो)। पूर्वी राजस्थानी में हिंदी के ही प्रभाव से संप्रदानगत प्रयोगके अतिरिक्त विकल्प से कारण-अपादानगत प्रयोग भी सुनाई पड़ता है-"या बात ऊँ सूँ कह दो