सदस्य:Pranavsuresh17/प्रयोगपृष्ठ/संध्यावन्दन

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
वैदिक पाठशाला में संध्यावंदन करते बालक। कुंभकोणम, जिला तंजावुर, तमिल नाडु

परिचय[संपादित करें]

संधिवंदन एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा है, जो ब्राह्मण प्रतिदिन करते है। उपनयनम के बाद इस परंपरा का पालन किया जाता है। उपनयनम के बाद, एक पवित्र धागा यानी "झनयू" का धारण करते है। पुराने दिनों में, एक लड़का के उपनयनम होने के बाद उसे गुरुकुल भेजा जता था ,जहां उसे वेदो का ज्ञान दिया जता था। उपनयनम के बाद लड़का, घर छोड़कर गुरू के घर रहने जाता है, ताकि वो गुरू का दिया हुआ ज्ञान प्राप्त कर सकें। गुरू जिन के पास वेदों के ज्ञान हो।

संध्ववंदन विश्व धर्म में सबसे पुराना साहित्य है। यह अनुष्ठान अग्निहोत्र के अनुष्ठान से पुराना है।

संधिवंदन का शाब्दिक अर्थ है "संधिया को नमन"। यह दिन में तीन बार किया जाता है, भोर के समय, दोपहर के समय में और फिर शाम के समय।

महत्व[संपादित करें]

संध्याकर्म का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है क्योंकि इससे मानसिक शुद्धि होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से प्राणायाम जो संध्या का अभिन्न अंग है, इससे कई रोग समाप्त हो जाते हैं। इस समस्त संसार में जो द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) अपने कर्म से भटक गए हैं, उनके हेतु संध्या की आवश्यकता है। संध्या करने वाले पापरहित हो जाते हैं। संन्ध्योपासन से अज्ञानवश किये गए पाप समाप्त हो जाते हैं। संध्या को ब्राह्मण का मूल कहा गया है। अगर मूल नहीं तो शाखा आदि सब समाप्त हो जाता है। अतः संध्या महत्वपूर्ण है।

विप्रोवृक्षोमूलकान्यत्रसंध्यावेदाः शाखा धर्मकर्माणिपत्रम्। तस्मान्मूलं यत्नतोरक्षणीयं छिन्नेमूलेनैववृक्षो न शाखा॥

जो ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्यादि संध्या नहीं करते हैं वह अपवित्र कहे गए हैं। उनके समस्त पूण्यकर्म समाप्त हो जाते हैं।

संधिवंदन में नीचे दिए गए अनुष्ठान[संपादित करें]

संधिवंदन में नीचे दिए गए अनुष्ठान का अनुसरण किया जाता है:

१ आचमंयम- नामा संकीर्णता-भगवान के नाम लेना।

प्राणायाम- आंतरिक शुद्धि, जिसमें सांस लेने के व्यायाम शामिल हैं।

३ मार्जना- आत्म- शुद्धि का एक अनुष्ठान है।

४ मंत्र प्रोकशनम- पापों के प्रायश्चित के लिए एक प्रार्थना है।

५ अगमाशना- पापों के क्षमा के लिए प्रार्थना है।

६ गायत्री जाप- गायत्री मंत्र का जाप करना।

७ उपस्तानम- हिंदू देवी मित्रा (सुबह के दौरान प्रार्थना किया गया) और वरुण की प्रार्थना है (शाम के दौरान प्रार्थना किया गया)।

८ अभिवादन- सभी देवताओं को नमन देना ,मूल रूप से दिक्पालों का नमन।

९ नवग्रह तर्पणम- नौ ग्रहों के देवता की प्रार्थना।

यह वेदों में दिया गया है जो कि यहां तक कि परिवार में मृत्यु या जन्म के दौरान भी जब सभी आसौम का निरीक्षण करते हैं, ब्राह्मण को संधिवंदन करना चाहिए, लेकिन कुशा और पानी के बिना .. केवल मंत्रों का मानसिक जप किया जाता है।ब्राह्मण एक के पेड़ तरह है, संधिवंदन जड़ है उस पेड़ का, ४ वेद उस पेड़ की ४ शाखाएं हैं, धर्म तथा कर्म (यज्ञ, दाना, तपस्या, जप, उपासना आदि) इसकी पत्तियां हैं। यदि जड़ें की म्रुत्यु हो थो, शाखाएं और पत्तियां मर जथी हैं।

संदर्भ[संपादित करें]

[1][2]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sandhyavandanam
  2. https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A5%8D