सदस्य:Parakhtimessharma/प्रयोगपृष्ठ

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== मोटे अक्षर ==मेलेे की कौन कहे मजार से भी महरूम रहे अख्तियार

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160वीं शहादती सालगिरह पर सत्तावनी शहीद का स्मरण 29 मई 1857 के दिन ब्रज में फूँथा था आजादी का बिगुल

मथुरा,

‘शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मिटनेवालों का यही बाकी निशाँ होगा’ जैसी कालजयी पंक्तियों की अनुगूँज पर जंगे आजादी के भले ही कितने दीवाने मरमिटे हों। मगर वह हसरत किस्मतवालों को ही नसीब हो सकी, वरना बदकिस्मतों को मेले तो दूर चिराग के लिए मजार तक मयस्सर नहीं हो सके। यह सवाल डॉ0 रमेश चन्द्र शर्मा स्मारक शोध एवं सेवा संस्थान के तत्वावधान में 4 मार्च 2018 के दिन गणेशधाम कॉलोनी स्थित संस्थान परिसर में सत्तावनी क्रांति के डेढ़ सौ वर्षों तक गुमनाम रहे ब्रजमण्डल के मंगल पाण्डे अख्तियार खाँ की 160वीं शहादती सालगिरह पर श्रद्धांजलि सभा में उठाया गया। संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष एवं सत्तावनी शहीद स्मारक के प्रस्तावक डॉ0 सुरेश चन्द्र शर्मा ने आरोप लगाया कि 1857 के डेढ़ सौ वर्ष पूरे होने पर स्थानीय प्रशासन ने महज प्रदर्शन के लिए आयोजनों की औपचारिकतायें पूरी कर दिखाई किन्तु सत्तावनी शहीदों की याद में उनसे कोई ठोस कार्य नहीं किया गया। आगे कहा कि शहीदों की स्मृति को अजर-अमर बनाने के लिए जिलाधिकारी के नाम सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपने के 8 वर्ष बाद भी कोई प्रगति नहीं हो सकी। इसी बीच मथुरा में सत्तावनी क्रान्ति के शुरूआती दिन 29 मई 1857 को अख्तियार खाँ की गोली के शिकार 67वीं नेटिव इन्फैंट्री के लेफ्टिनेंट पी0 एच0 सी0 बर्लटन की मजार का स्मारक पत्थर भी चोरी हो गया। कहा कि यदि प्रशासन गंभीर रहा होता तो अख्तियार खाँ और बर्लटन के बीच टकराव के गवाह सदर क्षेत्र के कचहरी घाट स्थित घटना स्थल को शानदार स्मारक का दर्जा मिल गया होता और उसी के साथ मथुरा मण्डल के अमर शहीदों के नाम भी स्मारक पर अंकित हो गये होते। डॉ0 शर्मा ने रोष जताया कि बदकिस्मती से अख्तियार खाँ के साथ न तो जीते जी और न ही शहादत के बाद इंसाफ किया गया और क्रान्ति दमन के दौरान सिकन्दर बेग की पहचान पर उसे दिल्ली से गिरफ्तार कर मथुरा लाया गया, जहाँ आई0 के0 बेस्ट की अदालत ने 4 मार्च 1858 के दुर्भाग्यशाली दिन फाँसी का हुक्म दे दिया। आगे कहा कि अख्तियार खाँ की तर्ज पर सत्तावनी क्रान्ति के महात्मा गाँधी स्वामी विरजानन्द के धार्मिक स्वरूप को तो प्रचारित किया गया लेकिन उनका आन्दोलनकारी चेहरा छिपा दिया गया और यह तथ्य इतिहास के गर्भ में ही रह गया कि उन्होंने 1857 की क्रान्ति शुरू होने से पूर्व मथुरा के जंगलों में बगावती सभा की अध्यक्षता की थी। दस्तावेजों के मुताबिक उस सभा में बहादुरशाह जफर द्वितीय के शाहजादे, नाना साहब, मौलवी अली मुल्ला खाँ, रंग बापू , सांई मियां महमूदन शाह ने भागीदारी की थी। बताया कि अख्तियार खाँ की तरह छाता सराय में गुर्जरों के विद्रोह, नौहझील और राया में जाटों के नेता देवीसिंह और कुरसण्डा के देवकरन समेत हरिद्वार क्षेत्र में स्वामी दयानन्द की सक्रियता के साक्ष्य मिटते गये और जयसिंहपुरा क्षेत्र में नाना साहब की जब्त सम्पत्तियां आजादी के बाद भी यादगार नहीं बन सकीं। डॉ0 शर्मा ने आक्रोश जताया कि मथुरा और आसपास के क्षेत्रों में चाहे सराय आजमाबाद की जहाँगीरकालीन नगर की पहली मस्जिद के विध्वंश का मामला हो या भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में दर्ज चामुण्डा टीले का विलुप्तीकरण या फिर परिक्रमा मार्ग स्थित महादेव घाट कब्जाने के दुष्प्रयास हों, सरकारें हर मामले में दबंगों से निपटने में नाकाम रहीं हैं। लिहाजा संस्कृति के नाम पर संस्थाओं ने नाच-गाना शुरू कर दिया और संस्कृति मंत्री समेत सूबे के मुखिया उसमें रस लेने लगे। डॉ0 शर्मा ने मुख्यमंत्री समेत प्रधान मंत्री के नाम प्रेषित ज्ञापन में अख्तियार खाँ समेत सत्तावनी शहीदों की स्मृति में सदर क्षेत्र के कचहरी घाट स्थित घटना स्थल पर सत्तावनी क्रान्ति स्मारक की माँग की। चेतावनी दी कि यदि प्रस्ताव अमल में नहीं लाया गया तो सरकारों के खिलाफ आन्दोलन भी चलाया जायेगा। बैठक में प्रो0 धर्मचन्द विद्यालंकार, डॉ0 महेन्द्र कुमार, सचिन कुमार, मोहम्मद शाहिद समेत जहीर ने भागीदारी की।