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==इन्हें भी देखें...::: +

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

− बिजली की खोज सर्वप्रथम किसने की +

− महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। इन्हें +

− सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। ये वशिष्ठ +

− मुनि (राजा दशरथ के राजकुल गुरु) के बड़े भाई थे। +

− वेदों से लेकर पुराणों में इनकी महानता की अनेक +

− बार चर्चा की गई है, इन्होने अगस्त्य

− संहिता नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमे

− इन्होँने हर प्रकार का ज्ञान समाहित किया,

− इन्हें त्रेता युग में भगवान श्री राम से मिलने

− का सोभाग्य प्राप्त हुआ उस समय श्री राम

− वनवास काल में थे, इसका विस्तृत वर्णन

− श्री वाल्मीकि कृत रामायण में मिलता है,

− इनका आश्रम आज भी महाराष्ट्र के नासिक

− की एक पहाड़ी पर स्थित है।

− राव साहब कृष्णाजी वझे ने १८९१ में पूना से

− इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की। भारत में

− विज्ञान संबंधी ग्रंथों की खोज के दौरान उन्हें

− उज्जैन में दामोदर त्र्यम्बक जोशी के पास

− अगस्त्य संहिता के कुछ पन्ने मिले। इस संहिता के

− पन्नों में उल्लिखित वर्णन को पढ़कर नागपुर में

− संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे डा. एम.सी.

− सहस्रबुद्धे को आभास हुआ कि यह वर्णन डेनियल

− सेल से मिलता-जुलता है। अत: उन्होंने नागपुर में

− इंजीनियरिंग के प्राध्यापक श्री पी.पी. होले

− को वह दिया और उसे जांचने को कहा।

− श्री अगस्त्य ने अगस्त्य संहिता में विद्युत

− उत्पादन से सम्बंधित सूत्रों में लिखा :

− संस्थाप्य मृण्मये पात्रे

− ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।

− छादयेच्छिखिग्रीवेन

− चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥

− दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।

− संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥

− -अगस्त्य संहिता

− अर्थात् एक मिट्टी का पात्र (Earthen pot) लें,

− उसमें ताम्र पट्टिका (copper sheet) डालें

− तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में

− गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगायें, ऊपर

− पारा (mercury) तथा दस्ट लोष्ट (Zinc) डालें,

− फिर तारों को मिलाएंगे तो, उससे

− मित्रावरुणशक्ति (बिजली) का उदय होगा।

− अब थोड़ी सी हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हुई

− उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले तथा उनके

− मित्र ने तैयारी चालू की तो शेष

− सामग्री तो ध्यान में आ गई, परन्तु

− शिखिग्रीवा समझ में नहीं आया। संस्कृत कोष में

− देखने पर ध्यान में आया कि शिखिग्रीवा याने

− मोर की गर्दन। अत: वे और उनके मित्र बाग गए

− तथा वहां के प्रमुख से पूछा, क्या आप बता सकते

− हैं, आपके बाग में मोर कब मरेगा, तो उसने नाराज

− होकर कहा क्यों? तब उन्होंने कहा, एक प्रयोग

− के लिए उसकी गर्दन की आवश्यकता है। यह सुनकर

− उसने कहा ठीक है। आप एक अर्जी दे जाइये। इसके

− कुछ दिन बाद एक आयुर्वेदाचार्य से बात

− हो रही थी। उनको यह सारा घटनाक्रम

− सुनाया तो वे हंसने लगे और उन्होंने कहा,

− यहां शिखिग्रीवा का अर्थ मोर की गरदन

− नहीं अपितु उसकी गरदन के रंग जैसा पदार्थ

− कॉपरसल्फेट (नीलाथोथा) है। यह

− जानकारी मिलते ही समस्या हल हो गई और

− फिर इस आधार पर एक सेल बनाया और डिजिटल

− मल्टीमीटर द्वारा उसको नापा। परिणामस्वरूप

− 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत

− उत्पन्न हुई।

− प्रयोग सफल होने की सूचना डा. एम.सी.

− सहस्रबुद्धे को दी गई। इस सेल का प्रदर्शन ७

− अगस्त, १९९० को स्वदेशी विज्ञान संशोधन

− संस्था (नागपुर) के चौथे वार्षिक सर्वसाधारण

− सभा में अन्य विद्वानों के सामने हुआ।

− आगे श्री अगस्त्य जी लिखते है :

− अनने जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।

− एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥

− सौ कुंभों की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे,

− तो पानी अपने रूप को बदल कर प्राण वायु

− (Oxygen) तथा उदान वायु (Hydrogen) में

− परिवर्तित हो जाएगा।

− आगे लिखते है:

− वायुबन्धकवस्त्रेण

− निबद्धो यानमस्तके

− उदान : स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्। (अगस्त्य

− संहिता शिल्प शास्त्र सार)

− उदान वायु (H2) को वायु प्रतिबन्धक वस्त्र

− (गुब्बारा) में रोका जाए तो यह विमान

− विद्या में काम आता है।

− राव साहब वझे, जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिक

− ग्रंथ और प्रयोगों को ढूंढ़ने में अपना जीवन

− लगाया, उन्होंने अगस्त्य संहिता एवं अन्य

− ग्रंथों में पाया कि विद्युत भिन्न-भिन्न प्रकार

− से उत्पन्न होती हैं, इस आधार पर

− उसके भिन्न-भिन्न नाम रखे गयें है:

− (१) तड़ित् - रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न।

− (२) सौदामिनी - रत्नों के घर्षण से उत्पन्न।

− (३) विद्युत - बादलों के द्वारा उत्पन्न।

− (४) शतकुंभी - सौ सेलों या कुंभों से उत्पन्न।

− (५) हृदनि - हृद या स्टोर की हुई बिजली।

− (६) अशनि - चुम्बकीय दण्ड से उत्पन्न।

− अगस्त्य संहिता में विद्युत् का उपयोग

− इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने

− का भी विवरण मिलता है। उन्होंने

− बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर

− पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली। अत:

− महर्षि अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone)

− कहते हैं।

− आगे लिखा है:

− कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते। -शुक्र नीति

− यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥

− आच्छादयति तत्ताम्रं

− स्वर्णेन रजतेन वा।

− सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं

− शातकुंभमिति स्मृतम्॥ ५ (अगस्त्य संहिता)

− अर्थात् कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप

− को सत्कृति कहा जाता है। लोहे के पात्र में

− सुशक्त जल अर्थात तेजाब का घोल

− इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने

− या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत

− से ढंक लेता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र

− को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है।

− उपरोक्त विधि का वर्णन एक विदेशी लेखक

− David Hatcher Childress ने अपनी पुस्तक "

− Technology of the Gods: The Incredible

− Sciences of the Ancients" में भी लिखा है । अब

− दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे

− ग्रंथों को विदेशियों ने हम से भी अधिक पढ़ा है। और हमारे बहुत से ग्रंथो को भी चुरा कर ले गए। तभी वो आज हमसे आगे है।

− इसीलिए दौड़ में आगे निकल गये और सारा श्रेय

− भी ले गये। और इंडिया के लोग

− अधपकी इंग्लिश के साथ अपने आप को मॉर्डन

− समझ रहे हैँ। जबकि मोर्डन संस्कृत भाषी हमारे ऋषि मुनि (वैज्ञानिक) थें।

− आज हम विभवान्तर की इकाई वोल्ट

− तथा धारा की एम्पियर लिखते है जो क्रमश:

− वैज्ञानिक Alessandro Volta तथा André-Marie

− Ampère के नाम पर रखी गयी है,

− जबकि इकाई अगस्त्य होनी चाहिए थी।

− अतुल्य वैदिक भारत

− think.:::.::::::

− Don't forget India is best 🇮🇳