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                                                                आयत-ए-करीमा



मुसलमानों का मानना ​​है कि इस्लाम मक्का, अरब में वर्ष 1400 से अधिक पहले पता चला था। इस्लाम के अनुयायी मुसलमान कहा जाता है। मुसलमानों का मानना ​​है कि केवल एक भगवान है। भगवान के लिए अरबी शब्द अल्लाह है। ईसा, मूसा और अब्राहम परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं के रूप में सम्मान किया जाता है। वे मानते हैं कि अंतिम पैगंबर मुहम्मद थे। मुसलमानों का मानना ​​है कि इस्लाम हमेशा ही अस्तित्व में है, लेकिन व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, मुहम्मद के प्रवास के समय से उनके धर्म की सबको समझ आयी। मुसलमान अपने पवित्र पुस्तक क़ुरआन, और सुन्नाह पर अपने कानूनों के आधार पर चलते हैं। मुसलमानों का मानना ​​है सुन्नाह पैगंबर मुहम्मद के व्यावहारिक उदाहरण है और वहाँ इस्लाम के पाँच मूल खंभे हैं। ये खंभे विश्वास की घोषणा, पाँच बार एक दिन प्रार्थना, दान करने के लिए पैसे दे, उपवास और मक्का (कम से कम एक बार) की तीर्थयात्रा करना हैं।

मुख्य त्योहार[संपादित करें]

मुसलमानो की बहुत सारे त्यहारे नही होती हैं। उनकी प्रसिद्ध और मुख्य त्योहार रमज़ान, बकरीद, मिलादुन्नबी हैं। रमज़ान मुसलमानो का सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध त्योहार हैं। रमज़ान के महीने में सुबह चार बजे से लेकर शाम के सात बजे तक उपवास रखते हैं। रमज़ान में महीने को साल का सबसे पाक महीना हैं। कहते है की इस महीने में कुछ भी आलाह से दिल से मांगो तो मिल जाती हैं। बक़रीद भी उनका एक महत्वपूर्ण त्योहार हैं। इस दिन वह बकरी की कुरबानी देते हैं और उसकी स्वादिष्ट भोजन बनके खाते हैं। एक ऐसी प्रधान हैं मुसलमानो की जो उतनी प्रसिद्ध नही है, वह है आयत-ए-करीमा।

महत्व[संपादित करें]

"आयत-ए-करीमा", यह एक परंपरा है मुसलमानो की। वे मानते है कि अगर जीवन में कोई कठिनाइयाँ हो थो अल्लाह, उनके भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए। वे कहते है कि हॄदय से माँगी हर प्रार्थना अल्लाह स्वीकारते हैं। आयत-ए-करीमा क़ुरआन की एक आयत हैं। उसको इस तरह पढ़ा जाता हैं उर्दू में - "ला इलाहा इल्लाहन्ता सुभानका इन्नी कुन्थु मिनस ज़ओलामीन" । माना जाता हैं कि इन शब्दों में कठिनाइयों को मिटा ने की शक्ति हैं।किसी एक शुक्रवार को वह आयत-ए-करीमा पढ़ते हैं।

उत्पत्ति[संपादित करें]

यह आयत युनुस्सलइस्लाम के द्वारा बोलागया था। कहते है कि एक दिन अल्लाह उनसे गुस्सा होगये और अल्लाह ने एक बड़ी सी मछली को उन्हें निगलने का आदेश दिया। जब वह मछली के पेट मे थे तब उन्होंने यह आयत बोली। इसीलिए यह आयत बोलने से हमारे मुश्किल आसान होजाते हैं। इस आयत को 1,25,000 बार पढ़ना होता हैं। मुसलमान स्त्री और पुरुष मिलकर पढ़ते हैं। यह कार्यक्रम सुबह छह बजे से शुरू होता हैं और जब तक 1,25,000 बार उसको नही पढलेते यह कार्यक्रम अन्त नही होती हैं। यह शुरू करने से पहले एक थाली में दो किलो चीनी लेते है और उसको सफेद कपड़े से ढाकदेते हैं। यह गिनती चने से कीजाती हैं।

उपयोग[संपादित करें]

कहते है कि इस आयत को मन लगाके बोलना चाहिए वरना प्रार्थना स्वीकार नही होती हैं। हर एक गिनती में श्रद्धा होनी चाहिये। यह किसीके घर मे या मज़ीद में या दरगह में होता हैं। बच्चें भी इसमें हिस्सा लेते हैं। यह कार्यक्रम कोई एक हाफ़िज़ या मौलाना करवाते हैं। स्त्री और पुरुष अलग अलाग बैठते हैं। जब पूरी 1,25,000 बार आयत पढलेते है तब वह चने किसी नदी में डाल देते है या किसी गरीब को देदेते हैं। जिस थाली में चीनी थी और उसपर सफेद कपड़ा था, यह कार्यक्रम समाप्त होता हैं तब उस सफेद कपड़े को हटाते हैं तो उस चीनी पे कलमा लिखा हुआ होता हैं। इसे हम चमत्कार कह सकते हैं या मुसलमानो का अल्लाह पर विश्वास कह सकते हैं।अंत मे सब नमाज़ पढ़ते हैं और रो रो कर अल्लाह से दुआ मांगते हैं कि उनकी सारे कठिनाईयो को धूर करदे और उन्हें सुख की जीवन प्रधान हो।नमाज़ अल्लाह की याद के लिए कारण है और अल्लाह की याद में मन और दिमाग को अनुशासित करता है, अनैतिक इच्छाओं को नियंत्रित करता है और विद्रोही आत्मा को पुन: स्थापित करता है।

निष्कर्ष[संपादित करें]

यह आयत-ए-करीमा स्वादिष्ट भोजन के साथ समाप्त होती हैं और शीरखुरमा के सात सम्पन्न होती हैं।कभी कभी आयत-ए-करीमा के पश्यात मदरसे के बच्चे आकर क़ुरआन शरीफ पढ़ते हैं। वह इसलिए क़ुरआन पढ़ते हैं क्योंकि उनको अल्लाह के नक्शे कदम पर चलने की चाह होती हैं। क़ुरआन में लिखा है, जैसा कि अल्लाह के शब्द का पालन करके, मुसलमान मानते हैं कि वे पृथ्वी पर शांति प्राप्त कर सकते हैं और मृत्यु के बाद स्वर्ग जा सकते हैं। कुरान यह निर्धारित करता है कि शैतान या शैतानी हरकतो के प्रभावों से और नरक से बचने केलिए क्या करे।इस्लाम सिखाता है कि यदि आप क़ुरआन पूरी तरह से पढ़ते हैं, तो अल्लाह आपकी प्रार्थनाए स्वीकार करेंगे। परंपरागत रूप से, मुसलमान क़ुरआन पढ़ते हैं और फिर वे अल्लाह से प्रार्थना करते हैं इस्लामी लोग क़ुरआन को मार्गदर्शन और सामाजिक कानूनों के स्रोत के रूप में देखते हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

{{टीप्पाणी सूची}

https://en.wikipedia.org/wiki/Muslim https://en.wikipedia.org/wiki/Mecca https://en.wikipedia.org/wiki/Ramadan