सदस्य:Meena Chaudhry/प्रयोगपृष्ठ/2

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कार्बनिक यौगिकों के शोधन की विधियाँ[संपादित करें]

किसी प्रकृतिक स्रोत से निष्कर्षण अथवा प्रयोगशाला में संश्लेषित कार्बनिक यौगिक का शोधोन के लिए आवश्यक होता है। शोधोन के लिए प्र्युक्त विभिन्न तरीकों का चुनाव यौगिक की प्रकृति तथा उसमें अशुद्धियों के अनुसार किया जाता है। शोधन के लिए साधाणत :निम्नलिखित तरीको के उपायोग मे लाई जाती है-

  1. ऊर्ध्वपातन
  2. क्रिस्टलीकरण
  3. आसवन
  4. विभेदी निष्कर्षण
  5. क्रोमेटोग्राफी अथाव वर्णलेखन [1]
अंततः यौगिक का  नलनांक अथवा ज्ञात करके उसकी शुद्धता की जांच की जाती है

अधिकांश शुद्ध यौगिकों का गलनांक या क्वथनांक सुस्पष्ट,अर्थात् तीक्क्षा होता है। शुद्धता की जांच की नवीन विभिन्न प्रकार के वर्णलेखन तथा स्पेक्ट्र्मिकी तलकनीकों पर आधारित है।


ऊर्ध्वपातन[संपादित करें]

३२०*३२०px नेफ़थलीन का ऊर्ध्वपातन
कुछ टोस पदार्थ गरम करने पर बिन द्रव अवस्था में आए,वाष्प में परिवर्तित हो जाते है।उपरोक्त सिध्दांत पर अधारित शोधन तकनीक को 'ऊर्ध्वपातन' कहते हैं।ईसका उपयोग ऊर्ध्वपातनीय यौगिक का दुसरे विशुध्द यौगिकों (जो ऊर्ध्वपातनीय नहीं होते)से पृथक करने में होता है।

क्रिस्टलन[संपादित करें]

यह टोस कार्बनिक पदर्थो के शोगन की प्रायुक्त विधि है।यह विधि कार्बनिक यौगिक तथा अशुध्दि की किसी उपयुक्त विलायक में इन्की विलेयताओं में निहित अंतर पर आधारित होती है [2]।अशुध्द यौगिक को किसी एसे विलायक में घोलते है,जिसमें यौगिक सामान्य ताप पर अल्प-विलेय होते है,परंतु उच्चतर ताप पर यथेष्ट मात्र में वह घुल जाता है।तत्पश्चात् विलयन को इतना सांद्रित करते हैं कि वह लगभग संत्रुप्त हो जाए।विलयन को टांडा करने के बाद शुध्द पदर्थ क्रिस्टालित हो जाता है,जिसे निस्यंदन द्वारा पृथक् कर लेते हैं।निस्यंडद (मात्रा द्रव)में मुख्य रुप से अशुध्दियां तथा यौगिक कि अल्प मात्रा रहा जाती है।यदि यौगिक किसी एक विलायक में अत्यधिक विलेय तथा किसी अन्या विलायक में अल्प विलेय होता है,तब क्रिस्टलन उचित मात्रा में इन विलायकों की मिश्रण करके किया जाता है।सक्रियित काष्ट कोयले की सहायता से रंगीन अशुध्दियां निकाली जाती हैं।यौगिक तथा अशुध्दिओं की विलेयताओं में कम अंतर होने की दशा में बार-बार क्रिस्टलन द्वरा शुध्द यौगिक प्राप्त किया जाता है।

आसवन[संपादित करें]

इस महत्त्वपूर्ण विधि की सहायता से वाष्पशील द्रर्वों को अवाष्प्शील अशुध्दियों एवं एसे द्रवों ,जिनके क्व्थनांकों में पर्याप्त अंतर हो,को पृथक् कर सकते है।भ्भिन क्व्थनांकों वलो द्रवों को भ्भिन ताप पर वाष्पित होते है। वाष्पो को ठंडा करने से प्राप्त द्रवों को अलग-अलग एकत्र कर लेते हैं। क्लोरोफार्म(क्व्थनांक ३३४ केलविन)और एनिलीन (क्व्थनांक ४५७ केलविन)को आसवन विधि द्वारा आसानी से पृथक् कर सकते हैं। द्रव -मिश्रण को गोल पेंदे वलो फ्लस्क में लेकर हम सावधानीपुर्वक गरम करते हैं।उबालने पर कम क्व्थनांक वलो द्रव की वाष्प पहले बनती है।वाष्प को संघनित्र की सहायता से संघनित करके प्राप्त द्र्व को दुसरे ग्राही में एकत्र कर लेते हैं।

प्रभाजी आसवन[संपादित करें]

३२०*२४०px प्रभाजी आसवन तंत्र

दो द्रवों के क्वथनांकों में पर्याप्त अंतर न होने की दाशा में उन्हें साधारण आसवन द्वारा पृथक नहीं किया जा सकता।एसे द्रवों के वाष्प इसी ताप परस में बन जाते हैं तथा साथ-साथ संघनित हो जाते हैं।[3]एसी दशा में प्रभजी आसवन कि तकनीक का उपयोग किया जाता है।इस तकनीक में गोल पेंदे वाले फ्लास्क के मुख में लगे हुए प्रभाजी कॅलम से द्रव मिश्रण की वाष्प को प्र्वहित करते हैं। उच्चतर क्वथनांक वाले द्रव के वाष्प निम्नतर क्वथनांक वाले द्रव के वाष्प की तुलना में पहले संगनित होती है।इस प्रकार प्रभजी कॅलम में ऊपर उटने वाले वाष्प में अधिक वाष्पशील पदर्थ की मात्रा अधिक होती जाती है।प्रभजी कॅलम के शीर्ष तक पहुंचते-पहुंचते वाष्प में मुख्यत:अधिक वाष्प्शील अवयव ही रह जाता है।विभिन्न डिजाइन एंव आकार के प्रभाजी कॅलम जात है।भूगर्भ से निकाले गये खनिज तेल से शुद्ध पेट्रोल, डीज़ल, मिट्टी का तेल आदि इसी विधि द्वारा पृथक किया जाता है।[4] जलीय वायु से विभिन्न गैसें भी इसी विधि द्वारा पृथक्‌ किये जाते हैं।

निम्न दाब पर आसवन[संपादित करें]

यह विधि उन द्र्वों के शोधन के लिए प्र्युक्त की जाती है,जिनके क्वथनांक अति उच्च होते हैं अथवा जो अपने क्वथनांक या उनसे भी कम ताप पर अपघटित हो जाते है।एसे द्रवों के प्रुट पर दाब कम करके उनके क्वथनांक से कम ताप पर उबाला जाता है।कोई भी द्र्व उस ताप पर उबलता है,जिसपर उसका वाष्प दाब बाह्रा दाब के समान होता है।दाब कम करने के लिए जल पंप अथवा निर्वात पंप का उपयोग किया जाता है।साबुन उद्योग में युक्त शेष लाई से ग्लिसरॅल पृथक करने के लिए इस विधि का उपयोग किया जाता है।

  1. http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80_%E0%A4%86%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%A8
  2. http://amrita.olabs.edu.in/?sub=79&brch=7&sim=110&cnt=1&lan=hi-IN
  3. http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80_%E0%A4%86%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%A8
  4. http://yexpress.blogspot.in/2015/09/blog-post_98.html