सदस्य:Mahesh Kumar Siyana

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महेश कुमार जी
Profile
Sadi 2015
महेश संग अर्चना

परिचय[संपादित करें]

Mobile No. 9719695053, महेश का जन्म सितम्बर 1988 दिन शुक्रवार को लोधी राजपूत परिवार में, उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की तहसील स्याना के गाँव घनसुरपूर में हुआ था. महेश बचपन से ही सीधा, शर्मीला एवं गर्म स्वभाव का लड़का था, इनके पिता का नाम श्री कृपाल सिंह तथा माता का नाम श्रीमती रामेश्वरी देवी है उसके दो भाई है जिनमे सबसे बड़े योगेन्द्र सिहं और छोटे मनोज कुमार है इनमे महेश दुसरे नंबर के है. महेश के बचपन का नाम मोनू था, मोनू को फिल्मे एवं टीवी देखने का बहुत शौक था.

जीवन कथा:-[संपादित करें]

महेश का पालन पोषण एक अच्छे और मिडिल परिवार में हुआ. उसकी प्रारंभिक शिक्षा डोली के मान्टेसरी स्कूल में हुई जोकि उनके ही घेर में खुला हुआ था. वही पर महेश के कुछ खास दोस्त मुकेश प्रजापति, राजू चौहान, दीपांशु मालिक इत्यादि बने. महेश को बचपन से ही बनावटी या काल्पनिक कहानिया लिखने का बहुत शोक था इस काम में उसका साथ मुकेश नाम का लड़का देता था. बनावटी कहानियो की उन्होंने एक नोटबुक भी बना रखी थी इस स्कूल से उन्होंने कक्षा 1 से कक्षा 5 तक की शिक्षा प्राप्त की.

       आगामी शिक्षा के लिये उनके पिता जी ने उन्हें पब्लिक इंटर कॉलेज स्याना में दाखिला दिलवा दिया. महेश का मन पढाई में नही था इसलिये वो 6वी क्लास में एक बार फेल भी हुआ. इस दौरान उनका एक दोस्त बना जिसका नाम पंकज शर्मा था जोकि स्याना का रहने वाला था उसका नाम दोस्तों की लिस्ट में आज तक भी शामिल है.

इसी बीच महेश की जिन्दगी में एक लड़की आयी जिससे महेश ने सच्चा प्यार किया किन्तु शर्म के कारण कभी उससे अपने प्यार का इजहार नही किया, जब भी घर से बाहर निकलता उसी के घर की तरफ देखता उस लड़की का जिक्र महेश की पर्सनल डायरी में भी है.

जब महेश कक्षा 10 में था तब उसके बड़े भाई योगेन्द्र कुमार की शादी उषा देवी से हुई जोकि ग्राम नवादा खुर्द जिला हापुड़ की रहने वाली थी. 10वी क्लास पास करने के बाद महेश ने कक्षा 11 में साइंस साइड ली जिसमे महेश एक बार फेल हुआ उसके बाद कक्षा 11 में ही आर्ट साइड ले ली जिसमे महेश अच्छे नम्बरों से पास हुआ और 12वी क्लास में भी पास हुआ. फिर योगेन्द्र ने उसे कमप्युटर क्लास ज्वाइन करवा दी, तब महेश के कम्प्यूटर टीचर सतेन्द्र चौहान बने उन दोनों का रिश्ता बहुत गहरा हो गया था अगर दोनों में से किसी घर पर कोई फंगशन होता तो दोनों मिल बाँट कर कार्य करते. इस दौरान महेश ने अपने गाँव के कॉलेज (स्याना डिग्री कॉलेज घनसूरपुर) में बी.कॉम में दाखिला लिया. कॉलेज में क्लास करने के बाद महेश कम्प्यूटर क्लास में जाता था. कुछ दिनों बाद महेश का कम्प्यूटर कोर्से पूरा हो चूका था.

महेश ने बी.कॉम की क्लास में पढाई करने के बजाये दादागिरी सुरु कर दी इसी दौरान उसने एक दिन इकोनोमिक्स के प्रवक्ता को गाँव के कुछ लड़को के साथ मिलकर पिटवा दिया, फिर महेश को कॉलेज से निकाल दिया गया. उसके बाद महेश ने बी.बी. नगर के एक छोटे से स्कूल (आर्य पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल) में कंप्यूटर टीचर का कार्य किया वहां पर उसने 6वी क्लास से 10वी क्लास तक के लड़के एवं लडकियों को कंप्यूटर सब्जेक्ट पढाया, लगभग 2 महीने बाद अशोक ने महेश जी जॉब पारस डेरी के सेंटर शमशाबाद आगरा में लगवा दी. वहाँ पर उसका कार्य कंप्यूटर से दूध का वजन करना होता था, इसी बीच महेश ने अपने भाइयो (योगेन्द्र, राजू, अशोक) को ताजमहल भी दिखाया. यहाँ पर भी महेश को एक 18 साल की लड़की अमृता पसंद आई किन्तु महेश ने उससे अपने प्यार का इजहार नही किया. वह लड़की बहुत गरीब थी उसके पिता जी उट गाड़ी चलाकर पैसा कमाते थे तथा अमृता भेड़ और बकरी चराती थी, जन्माष्टमी के दिन महेश कुमार ने प्योर दूध से बनी खीर जोकि मेवे से लवालव थी उसके घर भिजवाई उसे खुश करने के लिए। इस बात का पता हमारे बॉस को लगा उन्होंने सभी स्टाफ की एक मीटिंग बुलाकर उस शहर में किसी से ज्यादा मेलजोल रखने से मना किया!

देखते ही देखते 1 साल बीत गया उसके बाद मैने उस को नोकरी छोड़कर जेटकिंग कंप्यूटर हार्डवेयर एंड नेटवर्किंग इंजिनियर इंस्टिट्यूट बुलंदशहर में दाखिला ले लिया, वहां पर मेरे कुछ दोस्त बने जैसे सुशील शर्मा, पुष्पेन्द्र शर्मा, सोनू, योगेश, प्रशांत राघव इत्यादि. अब मैं रोजाना अपने गांव से 40 किलोमीटर दूर बुलंदशहर कंप्यूटर की क्लास करने जाने लगा लगभग 3 महीने बाद जेटकिंग बुलंदशहर की शाखा बंद हो गयी और हमसे कहा गया कि सभी स्टूडेंट अपनी सुविधा अनुसार दूसरी शाखा पर ट्रान्सफर ले सकते है, मैंने गाज़ियाबाद जेटकिंग की शाखा को चुना, अब में शहरी लडको के बीच पहुच गया वहां पर मैंने किराये का कमरा लिया जिसका किराया 1000 रूपये महीने था. अब पढाई ठीक ठाक चल रही थी इसी बीच हमारे बैंच की एक लड़की जिसका नाम नीलम था वह मेरे पास बैठने लगी, क्योंकि मुझे कंप्यूटर की नॉलेज और लड़कों से कहीं अधिक थी क्योंकि मैं गाजियाबाद से पहले दो जगह कंप्यूटर का कोर्स कर चुका था, धीरे धीरे हमारी दोस्ती गहरी होती चली गयी किन्तु मैंने उससे किसी भी तरह की गलत बात या बत्तममिजी नही की, कंप्यूटर क्लास की छुट्टी होने के बाद रास्ते में पैदल पैदल बस स्टैंड पर वह मेरे साथ ही आती थी, 1 दिन नीलम मेरे साथ आ रही थी रास्ते में एक गन्ने के जूस की दुकान मिली उसने गन्ने का जूस पीने की इच्छा मुझसे की किन्तु पैसा ना होने के कारण मैं उसे ₹10 का एक गिलास जूस ना पिला सका, फिर भी वह मेरी दोस्ती से खुश थी इसलिए कि हम दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त थे! एक दिन में रविवार की छुट्टी में गाँव आया हुआ था मनोज ने मेरे फ़ोन से नीलम का मोबाइल नम्बर ले लिया बाद में योगेन्द्र के साथ मिलकर उसे फ़ोन किया और उसे उल्टा सीधा कहकर महेश से दोस्ती तोड़ने को कहा और यह भी कहा कि ये घर से पैसे ले जाकर तुझी पर उड़ा रहा है, उसके बाद ना तो वो मेरे पास बैठी और ना ही मुझसे बोली, उसके बाद उसने मुझसे दोस्ती तोड़ कर एक मुस्लिम लड़के से दोस्ती कर ली फिर मैंने भी अपने कदम पीछे खींच लिए!

अब मेरे कमरे के बराबर वाले कमरे में नये किरायेदार आते है. उनकी एक बड़ी लड़की (डिंपल) मेरी तरफ आकर्षित थी उसके पिता जी मजदूरी तथा माता दुसरे के घर में झाड़ू पोछा का कार्य करती थी जब में पढाई करता था तब वह मेरे कमरे के इर्दगिर्द घुमती रहती थी इससे पहले की मैं उससे कुछ कह पाता उसके पापा की लड़ाई मकान मालिक से हो गयी, मकान मालिक ने उनसे कमरा खाली करवा दिया जब डिंपल जा रही थी उसकी आखो में आसू थे इसलिए नही कि कमरा छोड़ना पड़ रहा है इसलिए कि वो मुझसे प्यार करने लगी थी, क्योकि वो मुझसे कहकर गयी थी कि मैं आपसे बहुत प्यार करती हु, आप मुझे अपना नंबर दे दीजिये मैंने उसे अपना नंबर दे दिया किन्तु अगले दिन मेरा फोन नोकिया 3110 फॉर्मेट हो गया. जिसके कारण मोबाइल के सारे फोन नंबर डिलीट हो गए और उन लोगों ने नया कमरा कहां पर लिया था यह भी मुझे मालूम नहीं था! अतः यह प्रेम कहानी भी यहीं समाप्त हो गई, पता नही भगवान क्या चाह रहे थे कोई भी लड़की जिन्दगी में आ ही नही रही थी. दुसरो की गर्लफ्रेंड को देखकर मुझे अपने आप से नफरत सी होने लगी थी. कि पता नही किस लड़की का सोमवार का व्रत मुझे औरत जात से दूर रखे हुए था. कुछ महीने बाद मेरी पढाई समाप्त हो गयी उसके बाद मैं गाज़ियाबाद को छोड़कर अपने गाँव आ गया.

अब में नौकरी की तलास करने लगा, नॉएडा जेसे शहर में 10-15 इंटरव्यू देने के बाद भी किसी कंपनी से कॉल नही आई इस बात से हतास होकर  सन 2011 में मैंने दोबारा से अपनी पुरानी कंपनी पारस डेरी गुलावठी में इंटरव्यू दिया वहां पर मेरा सलेक्सन SAP एग्जीक्यूटिव की पोस्ट पर हो गया. मैं कमरा लेकर गुलावठी में ही रहने लगा. वहां के पड़ोसियों से में काफी घुलमिल गया था जिनमे सतपाल गौतम और रामकुमार गौतम का परिवार था.

 शादी:-[संपादित करें]

लगभग 1 साल बाद मेरी शादी की बाते चलने लगी कई जगहो से रिश्ते भी आ रहे थे सबसे पहले बड़े भाई की सुसराल ग्राम नवादा खुर्द से किन्तु वहां के रिश्ते से मैंने साफ इंकार कर दिया क्योकि मैं अलग रिश्तेदारी बनाना चाहता था कुछ दिनों बाद हमारी मम्मी के मामा जी अपने गाव नगला मायापुर खानपुर से एक रिश्ता लेकर आये उस रिश्ते के लिये लड़की को बगेर देखे ही घरवालो ने रिश्ते के लिए हा कर दिया. गोद भरने की तेयारी हो रही थी हम सब अपनी गाड़ी (जीप) से नगला मायापुर पहुचे, उस लड़की से बातचीत करने के बात पता चला कि उसका नाम ऋतू है, और वह खानपुर के किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी, किन्तु वो लड़की मेरे परिवार वालो को पसंद नही थी इसलिए बिना गोद भरे ही हम वापिस आ गये. उसके बाद भी काफी रिश्ते आये किन्तु मैं लड़की देखने नही गया मैंने पापा और भाई पर ही ये जिम्मेदारी सौप दी, उन्हें भी लडकिया पसंद नही आ रही थी. एक दिन सदरपुर जिला हापुड में शादी में कुछ लोग नवादा और कुछ टीकमपुर के लोग आये. मैं गुलावठी में था और घर के कुछ सदस्य भी उस शादी में गये. वहां पर सोने की जगह का अभाव था इसलिए कुछ महमान हमारी गाड़ी में बैठकर हमारे घर पर ही आ गये. उन महमानों में हमारी भाभी की बुआ की लड़की अर्चना भी थी जोकि टीकमपुर से अपने पापा के साथ आई हुई थी. जब हमारे पापा जी ने अर्चना को देखा तो उसके पापा से कहा कि कनछिद सिंह आपकी लड़की तो काफी बड़ी हो गयी जब हमने इसे 4 साल पहले देखा था तब तो बहुत छोटी थी, तभी उस लड़की के पापा ने कहा कि कोई अच्छा सा लड़का बताओ, अगले दिन सुबह को सभी महमान विदा हो गये उसके बाद पापा ने योगेन्द्र से कहा कि अर्चना मोनू के लिए कैसी रहेगी तब घर के अन्य सदस्यो का जवाब भी ठीक में ही मिला. फिर योगेन्द्र ने तुरंत मुझे फ़ोन किया और घर पर घटी समस्त घटना विस्तार रूप में बतायी मैंने कहा कि मैंने वो लड़की देखी नहीं है उसे किसी तरह घर पर बुलाओ, भाई ने कहा कि अपनी छोटी बेटी कशिश के जन्मदिन पर उसे बुलायेंगे. इसी बीच मैंने अपने छोटे भाई मनोज को फ़ोन किया और उससे अर्चना के बारे में पुछा उसने भी ठीक है कह दिया अब मुझे अर्चना को देखने की लालसा बढ़ गयी. 7 मार्च को कशिश यानि मेरी छोटी भतीजी का जन्मदिन आ ही गया मैं भी छुट्टी लेकर गाँव आ गया. उस जन्मदिन में कई जगह से महमान आये जैसे- नवादा, हाजीपुर, कप्सायी इत्यादि किन्तु मुझे तो टीकमपुर से आने वाली लड़की अर्चना का इंतजार था. लगभग शाम के 5 बजे इंतजार खत्म हुआ और मोटरसाईकिल पर अर्चना और उसके पापा आ गये किन्तु मैंने उसे पहले कभी देखा नही था इसलिए मैंने भाभी से पूछा कि ये लड़की कौन है भाभी ने कहा कि यही अर्चना है रात को उसने मुझे चाय भी दी, केक भी दिया फिर सभी महमान एक ही कमरे में सोए फिर भी अपना नसीब देखिये उससे एक शब्द भी नही बोला. सुबह को मेरे बड़े भाई की साली सरिता ने मुझसे सभी महमानों के सामने पूछा कि जीजा जी क्या आपको अर्चना पसंद है तभी मैंने सबके सामने कहा कि हाँ मुझे अर्चना पसंद है.... क्योकि मुझे तो शादी की जल्दी थी.

दो दिन बाद मैंने अपने घरवालो से कह दिया कि मुझे अर्चना पसंद है, फिर में गुलावठी आ गया वहां से मैंने मनोज को फ़ोन करके टीकमपुर गाँव का मोबाइल नंबर ले लिया. अगली सुबह डरते डरते मैंने उस नंबर पर काँल लगा दी फोन अर्चना की बहन मौसमी से रिसीव किया किन्तु वे लोग किसी महेश को जानते नही थे क्योकि मेरा गाँव का नाम मोनू था. काफी देर बाद उन्हें पता चल ही गया की मोनू ही महेश है. मौसमी के बाद उसकी मम्मी और फिर अर्चना से बात हुई. उन बातो की रिकार्डिंग मेरे इंटेक्स के फ़ोन में हो चुकी थी. मेरे लिए वो रिकार्डिंग बहुत ही खास बन चुकी थी हर रोज उस रिकार्डिंग को लगभग दो तीन बार जरुर सुनता था. फिर तो मौसमी मेरे नंबर पर मिस कॉल मारती और अर्चना से मेरी बात करवाती. धीरे धीरे बातो का सिलसिला बढता चला गया दिन और रात दोनों टाइम बाते होने लगी, जब तक एक दुसरे के बारे में दोनों पूछ नही लेते दोनों को चैन नही मिलता. आखिरकार गोद भराई एवं अंगूठी की रसम अप्रेल 2014 मे संपन्न हुई. इसी बीच महेश ने दीपावली और नयी साल पर अपने कुछ फोटो एवं ग्रीटिंग कार्ड डाकखाने से गाँव टीकमपुर अर्चना को भेजे, जिन्हें पाकर उसे बहुत ख़ुशी हुई.

अब धीरे धीरे शादी की तारीख नजदीक आ रही थी कभी कभी तो पूरी रात ही फोन पर बात करते करते बीत जाती. एक दिन फ़रवरी आ ही गयी. 6 फ़रवरी को मेरी सगाई थी जिसमे काफी सारे महमान आये, कुछ लडकिया भी आयी जिनमे मौसमी, काजल, लता, उमा इत्यादि थी. 10 फ़रवरी को हम बारात लेकर टीकमपुर रवाना हो गये शादी का कार्यकर्म ठीक ठाक संपन्न हुआ. शादी में कुछ लोग मेरे कंपनी के स्टाप के भी गये जिनमे मनोज प्रताप, चन्द्रजीत शिशोदिया जी, मो. नाजिम, पंकज जयसवाल, रोहतास, अमित शर्मा, श्रीपाल इत्यादि थे. अगले दिन ठीक 9 बजे हम दुल्हन को लेकर अपने घर आ गये. किन्तु अर्चना पुरे रास्ते उलटियाँ करती हुई आई. रात को मैंने अपनी सैज को गुलाब के फूलो और गुब्बारों से सजाया. दुल्हन को हमारी भाभी मेरे कमरे मे छोड़ने आई, दुल्हन कमरे की सजावट देखकर बहुत खुश हुई. उसके बाद जो गिफ्ट शादी में मिले थे वो खोले गये...........

महेश को छोटी मोटी एक्टिंग करने का शौक भी था, खासकर विडियो ग्राफी का. महेश ने यू ट्यूब पर एक चैनल बनाया जिसका नाम महेश कुमार स्याना रखा. उस चैनल पर मोबाइल से बनी खुद की एवं बच्चो की विडियो डाल दी. इसके साथ जीवन सरलता से चलने लगा.

शादी के बाद:-[संपादित करें]

शादी को दो महीने बीत चुके थे एक दिन अर्चना अपने गाँव गयी और गाँव से अपनी बुआ के यहाँ गंगावास चली गयी अगले दिन अर्चना चक्कर खा कर गिर गयी. फिर अगले दिन हमारे परिवार के लोग उसे दखने मोटरसाईकिल से गंगावास जाने लगे किन्तु वहां पहुचने से पहले मम्मी मोटरसाईकिल से गिर गयी. उन्हें सिर में चोट आई जिसके कारण शारदा हॉस्पिटल नॉएडा में 8 दिन तक ICU में रहीं. जिसके कारण मम्मी के सिर की हड्डी निकलवानी पड़ी जिसके कारण उनका सीधा हाथ चलना बंद हो गया.

कई महीने बीत गए फिर अर्चना को उसके गाँव से गुलावठी लेकर गया और साथ में काजल (उसकी छोटी बहन) भी आयी. वे दोनों 15 दिन तक गुलावठी में रहे. उसके बाद तो अर्चना कभी गाँव में तो कभी गुलावठी में, ये सिलसिला 1.5 साल तक चलता रहा.

सन 2017 में हम दोनों मथुरा, वृन्दावन, बरसना & आगरा घुमने गये. इसी बीच उसने माँ बनने की खुशखबरी दी. दिसम्बर माह में उसका आशा की ट्रेनिग का लेटर आया और उसे रोज बुलंदशहर जाना पड़ता. जोकि मुझको बिलकुल भी रास नही आ रहा था. मैं उससे आशा की ये नोकरी करवाना नही चाह रहा था. समय धीरे धीरे बीत रहा था, नयी साल 2018 आ चुकी थी और उसके बाद होली भी निकल चुकी थी. उसके बाद हम अपने छोटे भाई की शादी में जुट गए क्योकि अप्रैल में मनोज की शादी रिनू से होने वाली थी. 27 अप्रेल को सगाई तथा 28 अप्रेल को शादी धूम धाम से संपन्न हुई. इस सगाई और शादी मौसमी नहीं आई क्योंकि वह उन दिनों में मुझसे नाराज थी, इस पूरे कारज मे मौसमी की कमी खलती रही।

मनोज की शादी के एक महीने बाद यानी 5 जून 2018 12:35 am पर अर्चना ने लड़के को जन्म दिया. जिसका 13 जून 2018 को गर्व नाम रखा गया.

इसी बीच महेश ने कुछ छोटी फिल्मो का निर्माण किया जिनमे सेव वाटर, बाहुबली, काजल, जादू , ट्रेक्टर का स्टंट इत्यादि. महेश की इस तरह फिल्मो से खुश होकर अर्चना के भाई जीतेन्द्र ने भी यु ट्यूब पर अपना चैनल बनाया जिसपर उसने कुछ गाने डाले जोकि हिट रहे. उन गानों से खुश होकर महेश ने भी एक गाना बनाने की सोची जिसमे महेश का साथ जीतेन्द्र ने दिया. महेश ने भी सन 2018 में पिया जी मेरी मोटी चुंदरी, नामक गाना बनाया जिसमे महेश, पिंकी चौधरी, ब्रह्म प्रधान जी, अशोक, सोनू, उषा और अर्चना मुख्य भूमिका में रहे. इस गाने ने यू ट्यूब पर खूब ग़दर मचाया.

समय बहुत ही खुशहाली से बीत रहा था, इसी बीच हमारे परिवार पर दुखो का पहाड़ तब टूट पड़ा, जब हार्ड फेल हो जाने के कारण हमारे पापा जी 4 दिसम्बर 2020 सुबह 03:30 am को इस पापी दुनिया को छोड़कर चले गए. इस घटना के कारण पूरा परिवार शोक में डूब गया. किन्तु समय किसी के लिए नही रुकता और समय से बड़ा मरहम कोई नही होता, समय धीरे-धीरे बीतता रहा हर त्योहार पर पापा जी की याद आती रही और जिन्दगी में भी उनकी कमी महसूस होती रही.