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आत्महत्या: एक भारतीय परिप्रेक्ष्य

विषय अनुच्छेद,

उपक्रम[संपादित करें]

दुनिया भर में युवाओं के बीच मृत्यु के प्रमुख तीन कारणों में से आत्महत्या एक है। डब्लु एच ओ (WHO)के अनुसार, हर एक साल एक मिलियन लोग आत्महत्या करते हैं और हर-साल २० मिलियन लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। प्रति ४० सेकण्ड में १ आत्महत्या और प्रति ३ सेकण्ड में १ आत्महत्या का प्रयास। डब्लु एच ओ के रिपोर्ट के अनुसार २००९ में आत्महत्या की दर में भारत का रैक ४३ है, जिसमें भारत में आत्महत्या का दर १०.६ व्यक्ति प्रति १००,००० है। युवाओं में आत्महत्या दर की वृद्धि हुई है। विकसित प्रजा विकासशील देशों में आत्महत्या करनेवाले कुछ लोगों में से एक-तिहाई भाग युवा होते हैं। माना जाता है कि आत्महत्या का प्रमुख कारण "उभरती हुई इन्टेर्नेट की दुनिया है, क्योंकि इन्टरनेट आत्महत्या के नए तरीकों और नूस्कों को उजागर करता है। चूँकि आत्महत्या अलग अलग देशो में अलग अलग होते हैं। यह कहना गलत है कि देश की प्रगति एवं विकास के साथ आत्महत्या की दर में कमी होती है या अविकसित एवं विकासशील देशों में आत्महत्या की दर गलत है। देश की प्रगती से आत्महत्या की दर में कभी नहीं होती पर आत्महत्या के कारण शायद अन्य फैक्टर हैं। आत्महत्या के कारणों का पता लगाना एक प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पहलू है जो शायद सभी देशों में इसके कारणों में समानता हो।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य[संपादित करें]

आत्महत्या की कहानी शायद उतनी ही पुरानी है जितनी मानव जाती। आत्महत्या को व्यवहारिक रूप में से, विभिन्न प्रेम पूर्ण ढंग से, पछ्ताने के रूप में और यहाँ तक की निन्हा के रूप में भी देखा गया है। पर भारतीय संदर्भ में साहित्यिक, धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से आत्महत्या को सराहनीय रीति से देखा गया है। प्राचीन भारती ग्रन्थों में आत्महत्या को शर्म और अपमान से बचने के लिए एक वीरता का साधन के रूप में देखा जाता था। रामायण एवं महाभारत के महाकाव्यों में भी आत्महत्या का चित्र मिलता है। जब भगवान श्री रााम का निधन हुआ तब उसके राज्य अयोध्या में ऋषि धदिचि ने अपने जीवन का बलिदान किया ताकि देवता अनके हड्डि के बने वज्र से राक्षसों का सर्वनाश सकें। भगवान गीता स्वार्थ के लिए आत्महत्या की निन्दा करता है। ब्राहमणिक काल में यह प्रचलन थी कि यदि को आत्महत्या करने का प्रयास करे तो उसके लिए निर्धारित समय तक उपवास और तपस कराया जाता था। पवित्र उपनिषद आत्महत्या का निंदा करता है, एवं में प्रस्ताव देता है कि "वह जो अपना जीवन खुद हरता है, वह मृत्यु उपरान्त सूर्य रहित कभी अन्धकार दूर न होनेवाले प्रदेश में प्रवेश करेगा। पर वेद धार्मिक कारणों के लिए आत्महत्या की अनुमति देता है एवं मानता है-सर्वश्रेष्ठ बलिदान अपने खुद के जीवन का बलिदान है।

जानपदिक रोग विज्ञान[संपादित करें]

आत्महत्या पूरे दुनिया में[संपादित करें]

विश्व स्वास्थम संगठन के अनुसार संसार भर में २००४ में मृत्यु के आठ कारणों में प्रमुख आत्महत्या रहा। १५ - ४४ वर्ष के लोगों के मृत्यु के कारणों में आत्महत्या तीसरा प्रमुख कारण रहा, १० - २४ के लोगों के मृत्यु के कारणों में आत्महत्या दुसरा प्रमुख कारण रहा। आत्महत्या के प्रयास के आँकडे इससे भी अधिक संवेदनशील है अर्धात २० गुना अधिक। बेल्रूस, एस्टोनिया, लिधुआमिला और रूसी संध के रूप में पूर्वी युरोपीय देशों में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है।

आत्महत्या भारत में[संपादित करें]

भारत में आत्महत्या की दर आँस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के तुलनीय है, और इसमें बढ़ते दर हाल के दशकों के दौरान वैद्विवक प्रवृत्ति के साथ संगत है। भारत में आत्महत्या पर आँकडा रार्ष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्युरो से उपलब्ध है। भारत में आत्महत्या का दर १९७६ में ६.३ व्यक्ति प्रति १००,००० रहा जो कि बढ़ कर १९९० ने ८. ९ व्यक्ति प्रति १००,००० हो गया। हाल ही में निकाले गए आँकडे चौकाने वाले बात उजागर करते हैं; २००९ में भारत में आत्महत्या का दर बढ़ कर १०।९ व्यक्ति प्रति १००,००० हो गया है, और सबसे अन्त २०१० के आँकडे बताते हैं कि आत्महत्या दर की वृध्दि ११.४ व्यक्ति प्रति १००,००० हो गया है, याने आत्महत्या में ५.९% की वृध्दि।

आयू[संपादित करें]

हाँलाकि आत्महत्या का द्र सामान्मत: बडे वयस्क पुरुषों के बीच अच्चप्रम थे, पर अब कम उम्र के वयस्कों के बीच की आत्महत्या के दर में भी वृध्दि हुई हैं। युवा लोगों के बीच सभी मौतों मे ६% मौत के लिए आत्महत्या जिम्मेदार है। विकसित देशों के आँकडे बताते हैं कि युवाओं के बाद सबसे ज्यादा आत्महत्या का दर बुजूर्गों (६० वर्ष के ऊपर) में हैं। एक भारतीय अध्ययन के अनुसार आत्महत्या का उच्चतम दर १५ - २९ वर्ष समूह के लोगों में सबसे ज्यादा था जोकि ३८ व्यक्ति १००,००० है और दुसरे स्थान में ४५ - ५९ वर्ष समूह के लोगों आता है जिनका दर ७ व्यक्ति प्रति १००,००० है। २००९ के एन सि आर बि आँकडे भी समान परिणाम दिखाते हैं। १५ - २९ वर्ष के युवा - समूह में आत्महत्या का दर सबसे ज्यादा ३४.५% है जबकि दुसरा सबसे ज्यादा आत्महत्या का आँकडा ३० - ४४ वर्ष के आयु के लोगों के बीच है जोकि ३४.९% है।

नवयुवक और युवा वयस्क[संपादित करें]

युवा काल आत्महत्या के जोखिम का सबसे नाजुक काल है। भारत में युवा लोगों के बीच मृत्यु का एक प्रमुख कारण आत्महत्या है। एक अध्ययन में जिसमें कि दक्षिण भारत के १०८००० आब्बादि वाले ग्रामीण क्षेत्रों का अध्ययन किया गया एव्ं १० - १९ वर्ष समूह के वयस्कों के बीच मृत्यु का कारणों क पता लगाया गया। यह आँकडा बताता है २५% पुरुष वयस्कों के मृत्यु का कारण आत्महत्या है जबकि ५०% - ७५% महिला वयस्कों के बीच मृत्यु का कारण आत्महत्या है। बालिकाओं के बीच आत्महत्या का औसत दर १४८ प्रति १००,००० एवं बलिकों के बीच आत्महत्या का औसत द्र ५८ प्रति १००,००० था। युवाओं के बीच आत्महत्या का प्रमुख कारण महिला वयस्कों से संबन्ध, स्कूल या काँलेज न जाना,शादी के पहले यौन - संबन्ध, परिवार में मानसिक प्रताडना, यौन प्रताडना इत्यादि कारण पाये गये।

बुजूर्ग अवस्था[संपादित करें]

बुजूर्ग अवस्था में आत्महत्या की ओर कदम बढ़ने का एक वैशिष्क रूाझान है, वो भी पुन: मुख्य रूप से पुरुषों में। यध्यपि ६३१२ आत्महत्या के प्रयासों के पाँच वर्ष के अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ ४७ ही ६० वर्ष के ऊपर थे जिन्होंने आमहत्या का प्रयास किया। भारत में बुजूर्गों के बीच आत्महत्या के कम व्यापकता का कारण है कि बच्चे अपने बुजूर्ग माता - पिता का ख्याल रखते हैं। पश्चिमी देशों में बुजूर्गों में आत्महत्या की दर अधिक है, इसका प्रमुख कारण यह है कि उन्हें अपने बच्चों से अलग रहना पडता जिस्से एक तरह से वे समाज से ही बाहर जो जाते हैं। फिलहाल किये गए, अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं।

शहरी बनाम् ग्रामीण निवास[संपादित करें]

आम तौर पर आत्महत्या का दर शहरी इलाकों में अधिक होने की सूचना है, इसका कारण यह है कि अधिक भीड - भाड एवं सामाजिक अलगाव जैसे तनावपूर्ण जीवनवर्या शहरों में अधिक है। चूँकि भारत में २००० में आत्महत्या का दर १०.८% रहा एव्ं शहरी इलाकों में यह दर ९.९४% रहा और बाद में आत्महत्या के दर में लगातार वृध्दि हुई हैं। २००५ में ११.४% २००६ में १३%, २००७ में १२.१% एव्ं २००८ में १२.५% । हाल ही के वर्षों में किये गए अध्ययन दे अनुसार आत्महत्या और आत्महत्या के प्रयासों के मामले शहरी इलाकों में अधिक पाये गए।

आत्महत्या के लिए प्रेरणाएँ[संपादित करें]

परोपकारिता आत्महत्या साहित्य में "नहीं सभी व्यक्तियों को जो आत्महत्या से मरने और नही सभी व्यक्तियों को जो आत्महत्या करने या मरने के लिए चाहते हैं के लिए"। परम ध्येय और आत्महत्या की मारक महत्वपूर्ण आयाम जो अधिनियम के पीछे मकसद का वर्णन कर रहे हैं। मरक आत्महत्या की विधा के एक समारोह है और पहले से ही एक पहले खंड में जांच की गई हैं। एक समूह ही है जो हैंगिंग जैसे और अधिक कठोर उपायों का उपयोग किया और सहरूग्ता शराबीपन के साथ एक मनोरोग विकार होने की संभावना थी। यध्यपि, वहाँ जो तेजी से दो या अधिक अजनबी जो इंटरनेट और शेयर समान दुनिया विचरों पर मिलने को शामिल साइबर-आधारित इंटरनेट सुविधा आत्महत्या समझौते के लिए एक उभरती हुई प्रवृत्ति है। ऐसे मामलों में प्रेस की रिपोर्ट किया गया है, लेकिन एक वैज्ञानिक ढंग अध्ययन नहीं किया गया है।

आत्महत्या साहित्य की सामान्योफ्ति यह है कि " वे जो आमहत्या करते है सब के सब मरना नहीं चाहते और वे जो मरना चाहते हैं सब के सब आत्महत्या नहीं करते हैं"। आत्महत्या के प्रयासों का अध्ययन करनेवाले भारतीय अध्ययन समिति ने आत्महत्या के प्रेरणा स्रोतों को दो समूह में वर्गीकृत किया: एक "बदलाव की इच्छा" एव्ं दुसरा "मरने की इच्छा"। पहले समूह के लोगों में कम प्राण घातकता, आत्महत्या के प्लानिंग मे कमी, एव्ं आत्महत्या के प्रयास से पहले नही की हालात मे थे। दुसरे समूह के लोगों ने फाँसी पर लटकने जैसे अधिक कठोर उपायों का उपयोग किया और वे सहरुग्ष्ता शराबीपन ने साथ एक मनोरोग विकार से पीडित थे। भारत में २००९ में आत्महत्या के १० प्रमुख कारणों में पारिवारिक समस्या (२३.७%), रोग एव्ं मनोरोग (२१%), बेरोजगारी (१.९%), प्रेम अफेयर (२.९%), मादक वस्तुओं के सेवन का आदत (२.३%), परीक्षा में असफलता (१.६%), अर्धिक अव्स्धा (२.५%), गरीबि (२.३%), दहेज प्रताडना (२.३%) इत्यादि रहे।

व्यक्तित्व विकार[संपादित करें]

जो लोग भारत में आत्महत्या की कोशिश के बीच व्यक्तित्व विकारों की दर से ७ विभिन्न मे ५०% पर्वतमाला है। सबसे आम निदान, प्रकार का पागल मनुष्य की सीमा रेखा है, और असामाजिक व्यक्तित्व विकार थे। प्रेरक और वैवाहिक जीवन मे कलह सेल्फ-इम्मोरालेटोर्स के बीच के सहयोग से बार-बार भारतीय और अन्य एशियाई अध्ययन में बताया गया है।


शारीरिक मर्ज़[संपादित करें]

जीर्ण शारीरिक बीमारी, असामन्य जोनिक स्राव और तंबाकू का प्रयोग भारत में महिलाओं के बीच आम मानसिक विकारों के लिए जोखिम कारक हैं। एक समान पैटर्न के बीच आत्मघाती उद्यमी देखा जाता है। उदर और श्रोणि क्षेत्र में दर्द अधिक बार उद्यमी के बीच बताया गया है। यह निष्कर्ष भी स्पेनी और अमेरिकियों में रिपोर्ट किया गया था।

अन्य जोखिम कारक[संपादित करें]

एक अध्यन में, अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति प्रारंभिक माता पिता के अभाव, हाल ही में शोक, और आत्मघाती व्यवहार का पारिवारिक इतिहास के साथ जुडे थे। दुसरे एक अध्यन में, आत्महत्या का प्रयास सकारत्मक अवसाद, पुरुष सेक्स, शादी होने के नाते, कार्यरत, और ३५ वर्ष की आयु से ऊपर की गंभीरता के साथ सहसंबद्ध था। शराबीपन शराबियों में आत्म्हत्या के दोनों उच्च दरों और जो आत्महत्या के लिए प्रयत्न करते है उनके बीच शराबीयों के उच्च अनुपात के साथ एक और जोखिम कारक है। आत्महत्या के जोखिम शराब का उपयोग, उपयोग के पैटर्न पर निर्भरता, शराब पर निर्भरता और अवसाद, और व्यक्तित्व विकार के पारिवारिक इतिहास की जल्दी शुरुआत के साथ अधिक है। शराबियों का जीवन साथी भी प्रयास की गई आत्महत्या का खतरा बढ़ पर हैं।

निष्कर्ष[संपादित करें]

आज के समाज में आत्महत्या एक बहुमुखी समस्या है और इसलिए आत्महत्या निवारण कार्यक्रम भी बहुआयामी हो जाना चाहिए। सहयोग, समन्वय, सहयोग और प्रतिबद्धता का विकास और एक राष्ट्रीय योजना का जरूरत है, जो लागत प्रभावी, उचित और समुदाय की जरूरतों है जो प्रासंगिकए को लागू करने के लिए हैं। आत्महत्या साहित्य की सामान्योफ्ति यह है कि " वे जो आमहत्या करते है सब के सब मरना नहीं चाहते और वे जो मरना चाहते हैं सब के सब आत्महत्या नहीं करते हैं"। आत्महत्या के प्रयासों का अध्ययन करनेवाले भारतीय अध्ययन समिति ने आत्महत्या के प्रेरणा स्रोतों को दो समूह में वर्गीकृत किया: एक "बदलाव की इच्छा" एव्ं दुसरा "मरने की इच्छा"। भारत में आत्महत्या की रोकथाम एक सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक परंपरागत व्यायाम से सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्य के अधिक है। समय में आत्महत्या की रोकथाम प्रोऐक्टिव को अपनाने के लिए मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों और नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए पका हुआ है और हजारों युवा भारतीयों की जान बचाने के लिए है।


स्ंदर्भ[संपादित करें]

https://www.iasp.info/wspd/2011_wspd.php http://www.who.int/mental_health/prevention/suicide/suicideprevent/en/ http://www.who.int/healthinfo/global_burden_disease/GBD_report_2004update_full.pdf http://www.counterpunch.org/2009/02/12/the-largest-wave-of-suicides-in-history-2/ http://apps.who.int/iris/bitstream/10665/42566/1/924156220X.pdf


नमस्ते धरिनी। तुमने एक सूचनात्मक और रोचक लेख लिखी। अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया। तुम्हारा लेख पढकर, मैंने अपने छायावाद दिनों को याद आया जब मैंने स्कूल के पुस्तकालय में 'सिक्रेत सेवन' पढ़ी गयी। तुमने विस्तारपूर्वक प्रस्तुत और पूरी तरह से इस कहानी के वातावरण, उनके अन्य किताबों का सार-सक्षेप और अन्य पात्रों के चरित्रण की। पूर्ण तौर से, यह एक बहुत ही अच्छा कृति है।


इस लेख संगीत में हमे बताया गया है की हम संगीत पे कितना निर्भर है| संगीत हमारे जीवन का एक बड़ा भाग है| इस लेख में हमे संगीत के अलग अलग प्रकार के संगीत के बारे में बताया गया है|लेकिन मुझे लगता है की इस लेख में कुछ कमी है जैसे उन्होने अपने व्यक्तिगत अनुभव के बारे में लिखा है जो वो स्किप कर सकते थे| इस लेख में हूमें यहा देखने को मिलता है की कैसे संगीत चकित कर सकता है। और कैसे अलग अलग प्रकार के संगीत होते है। हर स्थिति के लिए भिन प्रकार के संगीत होते है । और हम उस भावनाओं पूरी तरहा बहजाते है । अपने भावनाओं का बड़ी अछी तरहा से प्रदर्शन इस लेक में किया गया है । लेकिन इस तरहा अपने भावनाओं का प्रयोग हम हिन्दी विकिपीडेया पर नही कर सकते है ।इस में हमे यहा भी देखने को मिलता है की संगीत के कैसे भिन भिन प्रकार के होते है।हर मनोदशा के लिए एक संगीत । दुखी हो तो एक संगीत । खुश हो तो एक संगीत।रिक्त हो तो एक किस्म का संगीत।तो एसी तरहा हुमारे हर मनोदशा के लिए एक प्रकार का संगीत होता है।