सदस्य:Kvlakshmisree/प्रयोगपृष्ठ

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संदर्भपृष्ट्भूमि [संपादित करें]

मेरा नाम लक्ष्मीश्री के वी है। मै क्राइस्ट यूनिवर्सिटी मै एक छात्र हूँ । मेरा जन्म अप्रैल १८ , १९९९ बंगलौर मे हुई थी। मैं १८ वर्ष की हूँ । मेरी सबसे पसंदीदा कवयित्री माया अंजलौ है वे एक अंग्रेजी कवयित्री है ।

शिक्षा [संपादित करें]

मैने कक्षा १ से १० की पदाई सी एम् आर नेशनल पब्लिक स्कूल से की थी और प्री-यूनिवर्सिटी ज्योति निवास कॉलेज से की थी जहां से मुझे बहुत अच्छे अनुभव हुई थी ।प्री- यूनिवर्सिटी में मैंने मानविकी  धारा ली थी , जिस मे मैंने इतिहास ,अर्थशास्त्र , नागरिक शास्त्र ,मनोविज्ञान , हिंदी और अंग्रेज़ पदी थी ।कॉलेज और स्कूल में मुझे  विभिन्न प्रकार  के लोगो को मिलने का अवसर मिला ; जिस से  मेरे व्यक्तित्व में  बडी अच्छी बदलाव  हुई ।

वर्तमान में मैं क्राइस्ट यूनिवर्सिटी मे नागरिक शास्त्र ,मनोविज्ञान  और अँगरेज़ पद रहे हूँ जो एक  ट्रिपल मेजर कोर्स है ।

परिवार [संपादित करें]

मेरी माँ  केरल से है। मेरे पिताजी केरल से है लेकिन हैदराबाद मैं पले बड़े है  । मेरा एक बड़ा  भाई है जो मुझ से ६ वर्ष बड़ा  है। मेरा भाई अपने स्टार्टअप कंपनी मै काम करता है। मै ने अपना पूरा जीवन बंगलौर मै ही बिताई है।मैं एक  एकल परिवार मैं रहती हूँ , जिसमे मैं ,मेरे माथा, पिता और भाई रहते हैं ।

उपलब्धियां [संपादित करें]

मै स्कूल  मे बहुत सारे कार्यक्रम मे भाग लेती थी । स्कुल मे योग के कार्यक्रम के नेतृत्व करने की अवसर मिली थी । मै अपनी सहेलीयो के साथ एक कठपुतली के कार्यक्रम की थी जिस से हम ने बहुत आनंद ली थी । स्कूल की समय  मे ही मै पुस्तक पदने का शौक  हुआ था । ७ वर्ष से कर्नाटक संगत पदने के बाद २०१२ मे मै ने जूनियर परीक्षा पास किया ।

प्री-यूनिवर्सिटी ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी , वहां की अनुभव मुझे स्वावलम्बी और आत्मानिर्भर  बना दी जिस के लिए मै अपने अध्यापको और मित्र के आभार रहूंगी । मै नाट्य सभा की अंग और कॉलेज यूनियन की वाईस प्रेजिडेंट थी ।

रुचियाँ [संपादित करें]

छोटे उम्र से मुझे कहानी कहने का और  गाना गाने का बड़ा  शोक था । मुझे पुस्तक पड़ना बहुत पसंद है । इन के आलावा मैं  चित्र कला मे अभिरुचि रकथी हूँ ।प्री-यूनिवर्सिटी में मुझे अपनी विशेष योग्यता दर्शानेका अनेक अवसर मिली ।

लक्ष्य [संपादित करें]

मैं १४ वर्ष के थी जब मैं  ने मेडिसिन्स सांस फ्रंटियर (एम्.इस.ऍफ़) के बारे में पदी थी । उस लेख मैं एक डॉक्टर अपने अनुभवों के बारे मे बता रहा था । डॉक्टर्स विथाउट बॉर्डर्स मे एसे डॉक्टर्स होते है जो संघर्ष क्षेत्र मे काम करते है । वे लोग अभयात्रीयों के चिकित्सा करते है । डॉक्टर्स विथाउट बॉर्डर्स खतरनाक जगहों में काम करते है ताकी लोगो को मुफ्त में इलाज दे  सके ।वे टूटे हुए सपनो को जोड़ कर लोगोको आशा देते  है ।

इस को पद कर में बहुत प्रभावित हो गई ।मै यह विश्वास करती हूँ की हर मनुष्य को स्वच्छ और सुरक्षित इलाज का हक़ है ,में एक दिन इस आदर्श के लिए योगदान करना चाहूंगी । मैं भविष्य मे ऐसे ही संस्था में काम करना चाहती हूँ ।

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कोंगनपड़ा[संपादित करें]

'कोंगनपड़ा' अर्थात "कोंगन की सेना" केरल में पालक्काड़ जिल्ला में स्तिथ चिट्टूर का एक अनोखा उत्सव है। कोंगनपड़ा चिट्टूर  के भगवती (भद्रकाली ) मन्दिर में मनाया जाता है। इस उतसव का उद्द्गाम उस जगह के इतिहास से संभंधित है| यह उतसव दो दिनों के लिए केरल के कुम्भ महीने में मनाया जाता है जो फेब्रुअरी या मार्च में आता  है ।इस दिन चिट्टूर के लोग अपने पूर्वजों की वीरता को याद करते हुए उनके त्याग का सम्मान करते है। यह केरल राज्य का एकमात्र रण उतसव है जो इतिहास और मान्यताओं को मिलाता  है। यह त्योहार कोंगु के राजधिराज की सेना पर चिट्टूर की नायर समुदाय की जीत का जश्न मनाता है। लोगों का यह मान्यताएं हैं कि चिट्टूर  की देवी ने उन्हें बचा लिया था।

कथा [संपादित करें]

यह माना जाता है की करीब ९१८ स.ई में केरल और उसके पड़ोस के अन्य राज्यों  में लगातार लड़ाइयां  होती  रहती थी।उस समय वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। कोंगन राजा तमिल नाडु राज्य के ( आज की कोइम्बटोर ) के नरेश थे , जिनकी केरल पर नज़र थी। उस समय वहां के व्यापारियों ने अपने सामान को लेकर केरल की सीमा (वालायार) और चिट्टूर से होकर केरल के अन्य क्षेत्रों में व्यापार करने जाते थे। एक दफा राजा ने अपनी कीमती चीज़ें इन व्यापारियों के द्वारा वस्तु विनिमय के लिए भेजा। इन व्यापारियों ने वे चीज़ें हड़प ली और राजा से जा कर बोले कि चिट्टूर  के देशवासियों ने सब सामान लूट लिया। यह सुनकर क्रोधित हुए राजा अपनी सेना लेकर आक्रमण करने के लिए सीमा पर पहुंचे। वहां स्थित एक परयर समुदाय के व्यक्ति द्वारा उन्होंनें आक्रमण करने का संदेश भेजा। चिट्टूर के वासी बहुत परेशान हो गये व सब चिट्टूर की देवी से प्रार्थना कर के कोंगन के राजा का सामना करने को त्य्यार हुए। यह कहा जाता है कि इस युद्ध में वहां के पुरुष व स्त्री कंधे से कंधे मिलाकर लड़ाई में भाग लिया था। घमासान युद्ध हुआ जिस में चिट्टूर की भगवति ने प्रत्यक्ष होकर कोंगन राजा का वध किया और देश वासियों को बचाया था ।इस घटना कि याद में पलक्काड़ के राजा शेखरी खोता कोरवरमा  ने देश के भिन्न परिवारों को कंगनपड़ा मनाने का निर्देश दिया और वहां के तारवाड़ों  को अलग अलग दायित्व दिए जो आज तक वे निभाते आ रहे है ।

त्योहार की विधि[संपादित करें]

कोंगनपाड़ा की उत्सव की उपक्रम महाशिवरात्रि के दिन "चिलंबु " से शुरू होता है । उस दिन चिट्टूर के लोग कोंगन राजा की युध घोषणा की खबर से घबराकर  मंदिर में स्तिथ देवी की रक्षा मांगते है ।यह माना जता है कि लोगों के प्रार्थना सुन कर देवी तलवार और पैंजनी ( वलूम चीलाम्बुम )  लेकर युध के लिए तैयार होती है। महाशिवरात्रि के बाद कि बुधवार को "कन्नियार" होता है । उस दिन चिट्टूर में एक खेत में  स्तिथ एक छोटे से मंदिर में परयर समुदाए के लोग आकर देवी से कोंगनपाड़ा उतसव मानाने की अनुमति मांगते हैं| वे प्रार्थना कर के  एक घंटी (मणि ) को फेक कर उसकी दिशा के अनुसार वे तय करते हैं कि उत्सव होना चाहिए या नहीं। चार 'मेनोन' घरों के प्रधान , देवी के प्रतिनिधि और परयर समुदाय के लोगों की उपस्थिति में यह किया जाता है| देवी की सहमती के साथ उतसव की तयारियां शुरू होती हैं| आने वाले शुक्रवार को 'कुम्माटी' होती है । उस दिन भगवती मंदिर से बाहर आकर सारे घरों में जाकर लोगों से मिलती हैं। इस सुबह जल्दी  उठ कर लड़के और लड़कियां इस प्रदर्शन में भाग लेते हैं। लड़के और भगवती  चिट्टूर के ७ पवित्र तालाब में दुब्की लगाते हैं जिस के बाद वे लड़के चित्तूर भगवती मंदिर में शाम तक रहते हैं। शाम के समय सब लड़के और देवी अलंकृत वेशभूषा पहन कर बाहर शोभायात्रा में भाग लेते है । शाम या सुबह के समय देवी कोंगन को मिलने के लिये जाती है। एक अविवाहित पुरुष कोंगन का पोशाक पहनता है। देवी कोंगन को आशिर्रवाद देती हैं।कोंगन घर के अंदर जा कर उतसव की पूर्व आधी रात का इंतज़ार होता हैं ।उत्सव कि पुर्व रात ओला वायना (ताड का पत्ते में लेखा गया सूचना ) पड़ा जथा है । | वहां कोंगन की पुरानी लिपियों को पढ़ा जाता है| उसे सुनकर चिट्टूर भगवती उस चुनोती को स्वीकार करती हैं| उत्सव के दोपहर में प्रदर्शन होता है जिसके बाद रात के समय में कोंगन के पोषक पहन कर चिट्टूर में युध प्रदर्शन करते हैं उत्देव में बनावटी योध खेला जाता है| उत्सव कि परिसमापति "कटतिल मेल शवम"  से होता है । जहाँ शहीद हुए सिपाहीयो कि आंतिम यात्रा का अभिनय किया जथा है । चित्तूर देशवासियों ही शव और उनके परिवारजन उनके शोक मानाने कि पत्र निभाते है इस तरह चिट्टूर के लोग अपने पूर्वजों की बलिदानों को याद करते हैं |

उत्सव की विशेषता   [संपादित करें]

यह उत्सव समाज आधारित है। इस में सब वर्ग के लोग भाग लेते है। चित्तूर में रहने वाले सारे परिवार और थरवड उत्सव में पत्र निभाते है । जैसे की चाम्भथ , श्रीकंडाथ , कोथाथ , चिट्टेडत्त जैसे थेरवाद  और अन्य जातियों जैसे परयर अपने अपने भूमका निभाती है।

संदर्भ[संपादित करें]

पुस्तक - दैवतीनू समिभम ,कोचु नारायणी ; गणेश प्रिंट टेक. प्रकाशन का वर्ष २००९ ।

वेब लिंक्स - https://www.youtube.com/watch?v=y4jiHJDTkxI

और शनीय लोग से साक्षात्कार