सदस्य:Kamlanand jha/प्रयोगपृष्ठ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
कमलानंद झा

आलोचक एवं प्राध्यापक

कमलानंद झा हिंदी एवं मैथिली में  गंभीर आलोचना-कर्म से जुड़े रंगकर्मी और शिक्षाशास्त्र में रुचि रखने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने शिक्षाशास्त्र विशेषकर हाशिये का  शिक्षाशास्त्र और जिज्ञासापरक रचनात्मक शिक्षा पर लिखना आरंभ किया जो आगे चलकर हिंदी आलोचना में विस्तार प्राप्त कर लेता है।

जन्म  28 जनवरी, 1968  (मधुबनी, बिहार)

व्यवसाय  - अध्यापन

भाषा    -   हिंदी

राष्ट्रीयता -  भारतीय

उल्लेखनीय कार्य :  पाठ्यपुस्तक की राजनीति, मस्ती की पाठशाला, तुलसीदास का काव्य विवेक और मर्यादाबोध

जीवन

कमलानंद झा का जन्म बिहार के मधुबनी जिले में हुआ। इन्होंने स्नातक की पढ़ाई आर.के.कॉलेज, मधुबनी से प्राप्त करने के बाद एमए, एमफिल  एवं पीएचडी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से की। स्नातक में पढ़ते हुए ही  1987 में आई भीषण बाढ़ में  राहत वितरण में हो रही धांधली के विरोध में इन्होंने नुक्कड़ नाटक करना शुरू किया। जमघट नामक नाट्य संस्था की नींव रखी। नुक्कड़ नाटक की यह यात्रा  जेएनयू से होते हुए अध्यापक जीवन में भी जारी है। सीएम कॉलेज, दरभंगा से इन्होंने अपने अध्यापन जीवन की शुरुआत की  और इप्टा से  जुड़कर  पूरे बिहार में नुक्कड़ नाटक का अभियान चलाया। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 के अंतर्गत एनसीईआरटी और राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के लिए पाठ्यपुतक निर्माण एवं संपादन।

दरभंगा में 15 साल के अध्यापन के बाद इन्होंने नवनिर्मित हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया और हिंदी विभाग की शुरुआत की। इसके बाद 2013 में ये बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया  चले गए और वहां भी हिंदी विभाग के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में हिंदी का पाठ्यक्रम आदि बनाने में अपनी भूमिका निभाई। सम्प्रति ये अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (2017) में प्रोफेसर  के पद पर कार्यरत हैं। हिंदी के साथ-साथ मैथिली आलोचना में भी सक्रिय।

प्रकाशित कृतियां

पाठ्यपुस्तक की राजनीति (2011)

ग्रंथ शिल्पी से प्रकाशित यह पुस्तक हिंदुस्तान में पाठ्यपुस्तक  के उद्भव और विकास से लेकर उसकी राजनीति तक पर बेबाकी से बात करती है। एनसीईआरटी की हिंदी भाषा एवं समाज विज्ञान की पुस्तकों पर केंद्रित यह  पहली आलोचनात्मक पुस्तक है।  शिक्षा का सांस्कृतिक दायित्व, शिक्षा और सत्ता, पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम : समस्याएं एवं समाधान, एनसीईआरटी : परिवर्तन एवं निरंतरता इन पांच अध्यायों में  विन्यास्त यह पुस्तक शैक्षिक विमर्श के ज्वलंत सवालों से टकराती है।

मस्ती की पाठशाला (2010)

प्रकाशन विभाग, (भारत सरकार) से प्रकाशित यह पुस्तक रोचक-रचनात्मक शिक्षण की एक खोजपूर्ण यात्रा है। इसमें समाज विज्ञान के साथ-साथ हिंदी की अलग-अलग विधाओं को कैसे रोचक तरीके से पढ़ाया जा सकता है,उसके कुछ व्यावहारिक पहलुओं पर विचार किया गया है।

तुलसी का काव्य विवेक और मर्यादा बोध (2017) वाणी प्रकाशन से प्रकाशित यह पुस्तक तुलसीदास की विवेकपूर्ण आलोचना करती है। रामराज्य का सांस्कृतिक निहितार्थ, रामराज्य और  कलयुग का अंतर्द्वंद, तुलसीदास का मर्यादाबोध बजरिए आलोचक, मोहभंग : एक साक्ष्य,  आधुनिक रामकथा  में रामराज्य का स्वरूप तथा मैथिली रामायण में रामराज्य और सीता जैसे अध्यायों के माध्यम से  तुलसीदास की रचनाओं  से संवाद कायम करने की कोशिश की गई है।

संपादित पुस्तकें

राजा राधिकारमण प्रसाद की प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियां (2008)

एनबीटी से प्रकाशित इस पुस्तक को मणिपाल विश्वविद्यालय ने 'द  गांधी केप' नाम से अंग्रेजी में अनुवाद कर प्रकाशित किया है।

होती बस आंखें ही आंखें (2011)

यह नागार्जुन-यात्री की रचनाओं पर आलोचनात्मक पुस्तक है।

http://deshajman.blogspot.com/

https://www.amu.ac.in/dshowfacultydata.jsp?did=16&eid=10070254

http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6_%E0%A4%9D%E0%A4%BE

https://satyashodhak.org/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6-%E0%A4%9D%E0%A4%BE

[1]