सदस्य:Kajolchugh

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काजोल चुघ
— Wikimedian —
Nameकाजोल चुघ
Born२५ दिसंबर
बैंगलूरु
Languagesअंग्रेज़ी, हिंदी
CountryFlag of इंडिया इंडिया
Education and employment
Occupationछात्रा
Educationबी.ए थियटर, अंग्रेज़ी, साईकॉलजी
Contact info
Websitehttps://www.instagram.com/kaajolchugh/

नमस्ते! मेरा नाम काजोल है और मैं १८ साल की हूँ। मैं क्रिस्ट युनीवर्सिटी में बी.ए. कर रही हूँ। इसके पहले मैं माँट कार्मेल में थी। माँट कार्मेल में मैंने अपनी ग्यारहवीं और बारहवीं मे वाणिज्य पढा। फिल्हाल तो मैं यह सब अपने हिंदी कार्यभार के लिये लिख रही हूँ। यहाँ क्रिस्ट युनीवर्सिटी में विकिपीढिया को बहुत महत्व दिया जाता है। इस बार हमें कार्यभार के रूप में विकिपीढिया पर एक अनुछेद लिखना है- जो हमारे बारे में होना चाहिए। यह सबसे कठिन कार्य है, अपने बारे मैं लिखना। वो भी वर्ल्ड वाइद वेब पर जहाँ कोइ भी आपका अनुछेद पढ सकता है। इसके कारण मैंने यह अनुछेद लिखने में बहुत समय बिताया। लिखना सब कुछ नहीं है, इसमें कईं और आयाम हैं। इसमें विचार या धारणा के मूल तत्व के अलावा कईं और भी पहलूएँं हो सकती है। इस अनुछेद में मैं आपको अपने बारे में बताना चाहती हूँ।

मैंने अपनी आरंभिक शिश्रा सिंधी हाइ स्कूल और माँट कार्मेल में पुरी की। दोनो ही शैश्रिक संस्थाओं में मेरा परीश्राफल अच्छा निकला। स्कूल में मैं बहुत अच्छी तरह से पढाई किया करती थी। कॉलेज आते ही मेरा मन कहीं दूर भटका चला जा रहा हैं। इसी भटकने में ही मैं वासना और अभिलाषा से टकरा गयी। यह एक लंबी कहानी हैं। कॉलेज आते ही बहुत कुछ बदलने लगा- दोस्त, सँवरने का ढंग, बोलने का ढंग, सोचने का तरीका, आदि। कहते हैं कि कॉलेज का समय सबसे महत्व होता है क्योंकि इस समय के आस-पास ही हम अपने भविष्य के बारे में सबसे ज्य़ादा सोचने लगते हैं। हमारा पूरा जीवन इस समय के विचारों पर निर्भर रहता हैं। हमारे आस पास जो लोग रहते हैं उनका भी प्रभाव गहरा होता है। मेरी लंबी कहानी को संक्षिप्त बनाते हुए मैं प्रस्तुत करना चाहती हूँ- ग्यारहवीं से मुझे अभिनय में दिलचस्पी होने लगा। वह साल हमेशा यादगार रहेगा। मैंने अपने अंदर ही खुशी पा ली थी। मंच पर खड़े हो कर, नाटक पेश करना और सबसे ज़रूरी चीज़- दर्शकों का मनोरंजन करना मेरे लिये खुशी की नई परिभाषा बन गई थी। ग्यारहवीं में हमने कईं कॉलेज में उचित नाटक का मंचन किया परंतु हम मान्यता प्राप्त नहीं कर पाए। बारहवीं में हमने एक नया मोड़ देखा। हमें मान्यता के साथ साथ यश भी प्रप्त हुआ। उस वक्त हमें खुद पर विश्वास होने लगा, कि हम कुछ करने के लयक हैं। हम में फिर से एक नई जोश उत्पन्न हुई। इस बार यह जोश स्थायी थी। और वह आज तक रहा है। जिसके कारण मैं आज इधर नाटक कला के बारे में सीख रही हूँ।

आप को भी बाहर जाकर अपनी खुशी ढ़ँंढनी चाहिए। यह दुनिया की सबसे बड़ी देन हैं।

धन्यवाद।