सदस्य:Hindu sangh/प्रयोगपृष्ठ

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||ॐ नमः शिवाय|| ||ॐ नमः शिवाय|| ||ॐ नमः शिवाय|| =

मक्का हिन्दुओ का प्राचीन तीर्थ है.

हर हर महादेव 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 ==

"<<<<<<" राजा मिहिर भोज का मक्का मेंमक्केश्वर पूजन ">>>>>

२०६९ वर्ष से पहले राजा मिहिर भोज ने मक्का मेंजाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केशावर का पूजन किया था , इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-

"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं ! गंगाजलैश्चसंस्नाप्य पंचगव्य समन्विते : चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !

इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!गन्तव्यम भोजराजेन महाकालेश्वर स्थले !!

अध्ययनकरने पर कुछ बातें स्वतः ही स्पष्ट होती हैंजैसे कि प्राचीन काल में विक्रमादित्य का साम्राज्य अरब देशों तक फ़ैला हुआ था और विक्रमादित्य ही वह पहला राजा था जिसने अरब में अपना परचम फ़हराया, क्योंकि उल्लिखित शिलालेख कहता है कि “राजा विक्रमादित्य ने हमें अज्ञान के अंधेरे से बाहर निकाला…”अर्थात उस समय जो भी उनका धर्म या विश्वास था, उसकी बजाय विक्रमादित्य के भेजे हुए विद्वानों ने वैदिक जीवनपद्धति का प्रचार तत्कालीन अरब देशों में किया। अरबों के लिये भारतीय कला और विज्ञान की सीख भारतीय संस्कृति द्वारा स्थापित स्कूलों, अकादमियों और विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों के द्वारा मिली। इस निष्कर्ष का सहायक निष्कर्ष इस प्रकार हैं कि दिल्ली स्थित कुतुब मीनार विक्रमादित्य के अरब देशों की विजय के जश्न को मनाने हेतु बनाया एक स्मारकभी हो सकता है। इसके पीछे दो मजबूत कारण हैं, पहला यह कि तथाकथित कुतुब-मीनार केपास स्थित लोहे के खम्भे पर शिलालेख दर्शाता है कि विजेता राजा विक्रमादित्य की शादी राजकुमारी बाल्हिका से हुई। यह “बाल्हिका” कोई और नहीं पश्चिम एशिया केबाल्ख क्षेत्र की राजकुमारी हो सकती है। ऐसा हो सकता है कि विक्रमादित्य द्वारा बाल्ख राजाओं पर विजय प्राप्त करनेके बाद उन्होंने उनकी पुत्री का विवाह विक्रमादित्य से करवा दिया.

अरब हमेशा से रेगिस्तानी भूमि नहीं रहा है.. कभी वहाँ भी हरे-भरे पेड़-पौधे लहलाते थे,ले किन इस्लामकी ऐसी आँधी चली कि इसने हरे-भरे रेगिस्तान को मरुस्थल में बदल दिया. इस बात का सबूत ये है कि अरबी घोड़े प्राचीनकाल में बहुत प्रसिद्ध थे..भारतीय इसी देश से घोड़े खरीद कर भारत लाया करते थे और भारतीयों का इतना प्रभाव था इस देश परकि उन्होंने इसका नामकरण भी कर दिया था -अर्ब-स्थान अर्थात घोड़े का देश. अर्ब संस्कृत शब्द हैजिसका अर्थ घोड़ा होता है.{वैसे ज्यादातर देशों का नामकरण भारतीयों ने ही किया है. जैसे सिंगापुर, क्वालालामपुर, मलेशिया, ईरान, ईराक, कजाकिस्थान, तजाकिस्थान, आदि..}.

घोड़े हरे-भरेस्थानों पर ही पल-बढ़कर हृष्ट-पुष्टहो सकते हैं बालू वाले जगहों पर नहीं..इस्लाम की आँधी चलनी शुरु हुई और मुहम्मद के अनुयायियों ने धर्म परिवर्त्तनना करने वाले हिंदुओं का निर्दयता-पूर्वककाटना शुरु कर दिया..पर उन हिंदुओंकी परोपकारिता और अपनों के प्रति प्यार तो देखिए कि मरने के बाद भी पेट्रोलियम पदार्थों में रुपांतरित होकर इनका अबतकभरण-पोषण कर रहे हैं वर्ना ना जाने क्या होता इनका..! अल्लाह जाने..! चूँकि पूरे अरब में सिर्फ हिंदुसंस्कृति ही थी इसलिए पूरा अरब मंदिरों सेभरा पड़ा था जिसे बाद में लूट-लूट कर मस्जिद बना लिया गया जिसमें मुख्य मंदिर काबा है. इस बात का ये एक प्रमाण है कि दुनिया में जितने भी मस्जिद हैं उनसबका द्वार काबा की तरफ खुलना चाहिए पर ऐसा नहीं है. ये इस बात का सबूत हैकि सारे मंदिर लूटे हुए हैं.. इन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर काबा का है क्योंकि ये बहुत बड़ा मंदिर था. ये वही जगह है जहाँ भगवान विष्णु का एक पग पड़ा था तीन पग जमीन नापते समय.. चूँकि ये मंदिर बहुतबड़ा आस्था का केंद्र था जहाँ भारत सेभी काफी मात्रा में लोग जाया करतेथे.. इसलिए इसमें मुहम्मद जी का धनार्जन का स्वार्थ था या भगवान शिव का प्रभाव कि अभी भी उस मंदिर में सारे हिंदु-रीति रिवाजों का पालन होता है तथा शिवलिंग अभी तक विराजमान है वहाँ..

यहाँ आने वाले मुसलमान हिंदु ब्राह्मण की तरह सिर के बाल मुड़वाकर बिना सिलाई किया हुआ एक कपड़ा को शरीर पर लपेट कर काबा के प्रांगण में प्रवेश करते हैं और इसकी सात परिक्रमा करतेहैं. यहाँ थोड़ा सा भिन्नता दिखाने के लिए ये लोग वैदिक संस्कृति के विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं अर्थात हिंदु अगर घड़ी की दिशा में करते हैं तो ये उसके उल्टी दिशा में.. पर वैदिक संस्कृति के अनुसार सात ही क्यों.? और ये सब नियम-कानून सिर्फ इसी मस्जिद में क्यों? ना तो सर का मुण्डन करवाना इनके संस्कार में है और ना ही बिना सिलाई केकपड़े पहनना पर ये दोनो नियम हिंदु के अनिवार्य नियम जरुर हैं. चूँकि ये मस्जिद हिंदुओं से लूटकर बनाई गई है इसलिए इनके मन में हमेशा ये डर बना रहता है कि कहीं ये सच्चाई प्रकटना हो जाय और ये मंदिर उनके हाथ से निकल ना जाय इस कारण आवश्यकता सेअधिक गुप्तता रखी जाती है इस मस्जिद को लेकर..

अगर देखा जाय तो मुसलमान हरजगह हमेशा डर-डर कर ही जीते हैं और ये स्वभाविक भी है क्योंकि इतनेज्यादा गलत काम करने के बाद डर तो मनमें आएगा ही…अगर देखा जाय तो मुसलमान धर्म का अiधार ही डर पर टिका होता है .हमेशा इन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए भयानक नर्ककी यातनाओं से डराया जाता है.. अगरकुरान की बातों को ईश्वरीय बातें ना मानेतो नरक,अगर तर्क-वितर्क किए तो नर्क, अगर श्रद्धा और आदरपूर्वक किसी केसामने सर झुका दिए तो नर्क.पल-पलइन्हें डरा कर रखा जाता है क्योंकि इसधर्म को बनाने वाला खुद डरा हुआथा कि लोग इसे अपनायेंगे या नहीं औरअपना भी लेंगे तो टिकेंगे या नहीं इसलिएलोगों को डरा-डरा कर इस धर्म मेंलाया जाता है और डरा-डरा कर टिकाकररखा जाता है..जैसे अगर आप मुसलमान नहीं हो तो नर्क जाओगे,अगर मूर्त्ति-पूजा कर लिया तो नर्क चलजाओगे,मुहम्मद को पैगम्बर ना मानेतो नर्क;इन सब बातों से डराकर येलोगों को अपने धर्म में खींचने का प्रयत्नकरते हैं.पहली बार मैंने जब कुरान केसिद्धान्तों को और स्वर्ग-नरककी बातों को सुना था तो मेरी आत्मा काँपगई थी..उस समय मैं दसवीं कक्षा मेंथा और अपनी स्वेच्छा से ही अपने एकविज्यान के शिक्षक से कुरान के बारे मेंजानने की इच्छा व्यक्त की थी..उस दिनतक मैं इस धर्म को हिंदु धर्म के समानया थोड़ा उपर ही समझता था पर वो सबसुनने के बाद मेरी सारी भ्रांति दूर हुई औरभगवान को लाख-लाख धन्यवाददिया कि मुझे उन्होंने हिंदु परिवार में जन्मदिया है नहीं पता नहीं मेरे जैसे हरेक बात परतर्क-वितर्क करनेवालों की क्या गति होती…!एक तो इस मंदिर को बाहर से एक गिलाफसे पूरी तरह ढककर रखा जाता है ही(बालूकी आँधी से बचाने के लिए) दूसरा अंदर मेंभी पर्दा लगा दिया गया है.मुसलमान में पर्दा प्रथा किस हद तक हावी है ये देखलिजिए.औरतों को तो पर्दे में रखते ही हैंएकमात्र प्रमुख और विशाल मस्जिदको भी पर्दे में रखते हैं.क्या आपकल्पना कर सकते हैं कि अगर ये मस्जिदमंदिर के रुप में इस जगह पर होता जहाँ हिंदुपूजा करते तो उसे इस तरह से काले-बुर्केमें ढक कर रखा जाता रेत की आँधी सेबचाने के लिए..!! अंदर के दीवार तो ढके हैंही उपर छत भी कीमती वस्त्रों से ढके हुएहैं.स्पष्ट है सारे गलत कार्य पर्दे के आढ़में ही होते हैं क्योंकि खुले मेंनहीं हो सकते..अब इनके डरनेकी सीमा देखिए कि काबा के ३५ मील के घेरेमें गैर-मुसलमान को प्रवेश नहीं करनेदिया जाता है,हरेक हज यात्री को येसौगन्ध दिलवाई जाती है कि वो हजयात्रा में देखी गई बातों का किसी सेउल्लेख नहीं करेगा.वैसे तो सारेयात्रियों को चारदीवारी के बाहर सेही शिवलिंग को छूना तथा चूमना पड़ता हैपर अगर किसी कारणवश कुछ गिने-चुनेमुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति मिलभी जाती है तो उसे सौगन्ध दिलवाईजाती है कि अंदर वो जो कुछ भी देखेंगेउसकी जानकारी अन्य को नहीं देंगे..कुछ लोग जो जानकारी प्राप्त करने केउद्देश्य से किसी प्रकार अंदर चले गएहैं,उनके अनुसार काबा के प्रवेश-द्वार परकाँच का एक भव्य द्वीपसमूह लगा हैजिसके उपर भगवत गीता के श्लोक अंकितहैं.अंदर दीवार पर एक बहुतबड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्रबना हुआ है जिसे वे ईसा औरउसकी माता समझते हैं.अंदर गाय केघी का एक पवित्र दीपसदा जलता रहता है.ये दोनों मुसलमान धर्मके विपरीत कार्य(चित्र और गाय केघी का दिया) यहाँ होते हैं..एक अष्टधातु सेबना दिया का चित्र में यहाँ लगा रहा हूँजो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुईहै..ये दीप अरब से प्राप्त हुआ हैजो इस्लाम-पूर्व है.इसी तरह का दीपकाबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमानरहता है .ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैंकि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इसमंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्यको जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयासकिया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मारडाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वेभी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्तनहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़नेमें सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्टहो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने केकारण पता नहीं चल पाता है कि ये किसपत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण मेंजो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैंवो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव हैकाबा भी केसरिया रंग के पत्थर सेबना हो..एक बात और ध्यान देने वाली हैकि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिदनहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे…ये तो सिर्फ मस्जिद की बात है पर मुहम्मदसाहब खुद एक जन्मजात हिंदु थे येकिसी भी तरह मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा हैकि अगर वो पैगम्बर अर्थात अल्लाह केभेजे हुए दूत थे तो किसी मुसलमान परिवारमें जन्म लेते एक काफिर हिंदु परिवार मेंक्यों जन्मे वो..?जो अल्लाह मूर्त्ति-पूजकहिंदुओं को अपना दुश्मन समझकर खुलेआम कत्ल करने की धमकी देता है वो अपनेसबसे प्यारे पुत्र को किसी मुसलमान घरमें जन्म देने के बजाय एक बड़े शिवभक्त केपरिवार में कैसे भेज दिए..? इस काबा मंदिरके पुजारी के घर में ही मुहम्मद का जन्महुआ था..इसी थोड़े से जन्मजात अधिकारऔर शक्ति का प्रयोग कर इन्होंनेइतना बड़ा काम कर दिया.मुहम्मद के माता-पिता तो इसे जन्म देते ही चल बसे थे(इतना बड़ा पाप कर लेने के बाद वो जीवितभी कैसे रहते)..मुहम्मद के चाचा ने उसेपाल-पोषकर बड़ा किया परंतु उसचाचा को मार दिया इन्होंने अपना धर्म-परिवर्त्तन ना करने के कारण..अगर इनकेमाता-पिता जिंदा होतेतो उनका भी यही हश्र हुआ होता..मुहम्मदके चाचा का नाम उमर-बिन-ए-ह्ज्जामथा.ये एक विद्वान कवि तो थे ही साथही साथ बहुत बड़े शिवभक्तभी थे.इनकी कविता सैर-उल-ओकुल ग्रंथमें है.इस ग्रंथ में इस्लाम पूर्वकवियों की महत्त्वपूर्ण तथा पुरस्कृतरचनाएँ संकलित हैं.ये कविता दिल्ली मेंदिल्ली मार्ग पर बने विशाल लक्ष्मी-नारायण मंदिरकी पिछली उद्यानवाटिका मेंयज्यशाला की दीवारों पर उत्त्कीर्ण हैं.येकविता मूलतः अरबी में है.इस कविता सेकवि का भारत के प्रति श्रद्धा तथा शिवके प्रति भक्ति का पता चलता है.इसकविता में वे कहते हैं कोईव्यक्ति कितना भी पापी हो अगरवो अपना प्रायश्चित कर ले औरशिवभक्ति में तल्लीन हो जायतो उसका उद्धार हो जाएगा और भगवानशिव से वो अपने सारे जीवन के बदलेसिर्फ एक दिन भारत में निवास करनेका अवसर माँग रहे हैं जिससे उन्हेंमुक्ति प्राप्त हो सके क्योंकि भारतही एकमात्र जगह है जहाँ की यात्रा करनेसे पुण्य की प्राप्ति होती है तथा संतों सेमिलने का अवसर प्राप्त होता है..देखिए प्राचीन काल मेंकितनी श्रद्धा थी विदेशियों के मन मेंभारत के प्रति और आज भारत केमुसलमान भारत से नफरत करते हैं.उन्हेंतो ये बात सुनकर भी चिढ़हो जाएगी कि आदम स्वर्ग से भारत मेंही उतरा था और यहीं पर उसेपरमात्मा का दिव्य संदेशमिला था तथा आदम का ज्येष्ठ पुत्र“शिथ” भी भारत में अयोध्या मेंदफनाया हुआ है.ये सब बातें मुसलमानों केद्वारा ही कही गई है,मैं नहीं कह रहा हूँ..और ये “लबी बिन-ए-अख्तब-बिन-ए-तुर्फा” इस तरह का लम्बा-लम्बा नामभी वैदिक संस्कृति ही है जो दक्षिणी भारतमें अभी भी प्रचलित है जिसमें अपनेपिता और पितामह का नाम जोड़ा जाता है..कुछ और प्राचीन-कालीन वैदिक अवशेषदेखिए… येहंसवाहिनी सरस्वती माँ की मूर्त्ति हैजो अभी लंदन संग्रहालय में है.यह सऊदी अर्बस्थान से ही प्राप्त हुआ था..प्रमाण तो और भी हैं बस लेख को बड़ा होनेसे बचाने के लिए और सब का उल्लेखनहीं कर रहा हूँ..पर क्या इतने सारे प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं यह सिद्ध करने के लिएकि अभी जो भी मुसलमान हैं वो सब हिंदु ही थे जो जबरन या स्वार्थवश मुसलमानबन गए..कुरान में इस बात का वर्णनहोना कि “मूर्त्तिपूजक काफिर हैंउनका कत्ल करो” ये ही सिद्ध करता हैकि हिंदु धर्म मुसलमान से पहले अस्तित्वमें थे..हिंदु धर्म में आध्यात्मिक उन्नति केलिए पूजा का कोई महत्त्व नहीं है,ईश्वर केसामने झुकना तो बहुत छोटी सी बातहै..प्रभु-भक्ति की शुरुआत भर है ये..परमुसलमान धर्म में अल्लाह के सामने झुकजाना ही ईश्वर की अराधना का अंतहै..यही सबसे बड़ी बात है.इसलिए ये लोगअल्लाह के अलावे किसी और के आगेझुकते ही नहीं,अगर झुक गए तो नरकजाना पड़ेगा..क्या इतनी निम्न स्तरकी बातें ईश्वरीय वाणी हो सकती है..!.?इनके मुहम्मद साहब मूर्ख थे जिन्हेंलिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..अगरअल्लाह ने इन्हें धर्म की स्थापना के लिएभेजा था तो इसे इतनी कम शक्ति के साथक्यों भेजा जिसे लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..या अगर भेजभी दिए थे तो समय आने पर रातों-रातज्यानी बना देते जैसे हमारे काली दासजी रातों-रात विद्वान बन गए थे(यहाँ तो सिद्धहो गया कि हमारी काली माँ इनके अल्लाहसे ज्यादा शक्तिशाली हैं)..एक बात औरकि अल्लाह और इनके बीच भी जिब्राइलनाम का फरिश्ता सम्पर्क-सूत्र के रुप मेंथा.इतने शर्मीले हैं इनके अल्लाह या फिरइनकी तरह ही डरे हुए.!.? वो कोई ईश्वर थेया भूत-पिशाच.?? सबसे महत्त्वपूर्णबात ये कि अगर अल्लाह को मानव के हितके लिए कोई पैगाम देना ही था तो सीधे एकग्रंथ ही भिजवा देते जिब्राइल केहाथों जैसे हमें हमारे वेद प्राप्त हुए थे..!येरुक-रुक कर सोच-सोच कर एक-एकआयत भेजने का क्या अर्थ है..!.? अल्लाहको पता है कि उनके इस मंदबुद्धि के कारणकितना घोटाला हो गया..! आने वाले कट्टरमुस्लिम शासक अपने स्वार्थ के लिएएक-से-एक कट्टर बात डालते चले गएकुरान में..एक समानता देखिए हमारे चारवेद की तरह ही इनके भी कुरान में चारधर्म-ग्रंथों का वर्णन है जो अल्लाह नेइनके रसूलों को दिए हैं..कभी ये कहते हैंकि धर्म अपरिवर्तनीय है वो बदलही नहीं सकता तो फिर ये समय-समय परधर्मग्रंथ भेजने का क्या मतलब है??अगरउन सब में एक जैसी ही बातें लिखी हैं तो वेधर्मग्रंथ हो ही नहीं सकते…जरा विचारकरिए कि पहले मनुष्यों की आयुहजारों साल हुआ करती थी वो वर्त्तमानमनुष्य से हर चीज में बढ़कर थे,युगबदलता गया और लोगों केविचार,परिस्थिति,शक्ति-सामर्थ्य सबकुछ बदलता गया तो ऐसे मेंभक्ति का तरीका भी बदलना स्वभाविकही है..राम के युग में लोग राम को जपना शुरुकर दिए,द्वापर युग मेंकृष्ण जी के आने के बाद कृष्ण-भक्ति भी शुरु हो गई.अब कलयुग मेंचूँकि लोगों की आयु तथा शक्ति कम हैतो ईश्वर भी जो पहले हजारों वर्षकी तपस्या से खुश होते थे अब कुछवर्षों की तपस्या में ही दर्शन देने लगे..धर्म में बदलाव संभव है अगर कोई ये कहेकि ये संभव नहीं है तो वो धर्महो ही नहीं सकता..यहाँ मैं यही कहूँगा कि अगर हिंदु धर्मसजीव है जो हर परिस्थिति में सामंजस्यस्थापित कर सकता है(पलंग पर पाँवफैलाकर लेट भी सकता है और जमीन परपाल्थी मारकर बैठ भी सकता है)तो मुस्लिम धर्म उस अकड़े हुए मुर्देकी तरह जिसका शरीर हिल-डुलभी नहीं सकता…हिंदु धर्म संस्कृति मेंछोटी से छोटी पूजा में भी विश्व-शांति की कमना की जाती है तो दूसरी तरफमुसलमान ये कामना करते हैंकि पूरी दुनिया में मार-काट मचाकरअशांति फैलानी है औरपूरी दुनिया को मुसलमान बनाना है…हिंदु अगर विष में भी अमृत निकालकरउसका उपयोग कर लेते हैं तो मुसलमानअमृत को भी विष बना देते हैं..मैं लेख का अंत कर रहा हूँ और इन सबबातों को पढ़ने के बाद बताइएकि क्या कुरान ईश्वरीय वाणी हो सकती हैऔर क्या इस्लाम धर्म आदि धर्महो सकता है…?? ये अफसोस की बात हैकि कट्टर मुसलमान भी इस बात को जानतेतथा मानते हैं कि मुहम्मद के चाचा हिंदु थेफिर भी वो बाँकी बातों से इन्कार करते हैं..इस लेख में मैंने अपना सारा ध्यान अरबपर ही केंद्रित रखा इसलिए सिर्फ अरब मेंवैदिक संस्कृति के प्रमाण दिएयथार्थतः वैदिक संस्कृति पूरे विश्व मेंही फैली हुई थी..इसके प्रमाण के लिए कुछचित्र जोड़ रहा हूँ…-ये राम-सीता और लक्षमण के चित्र हैंजो इटली से मिले हैं.इसमें इन्हें वन जाते हुएदिखाया जा रहा है.सीता माँ के हाथ मेंशायद तुलसी का पौधा है क्योंकि हिंदु इसपौधे को अपने घर में लगाना बहुत ही शुभमानते हैं…..यह चित्र ग्रीस देश के कारिंथ नगर केसंग्रहालय में प्रदर्शित है.कारिंथ नगरएथेंस से ६० कि॰मी॰ दूर है.प्राचीनकाल सेही कारिंथ कृष्ण-भक्ति का केंद्र रहा है.यहभव्य भित्तिचित्र उसी नगर के एक मंदिरसे प्राप्त हुआ है .इस नगर का नाम कारिंथभी कृष्ण का अपभ्रंश शब्द ही लगरहा है..अफसोस की बात ये कि इस चित्रको एक देहाती दृश्य का नाम दिया हैयूरोपिय इतिहासकारों ने..ऐसे अनेकप्रमाण अभी भी बिखरे पड़े हैं संसार मेंजो यूरोपीयइतिहासकारों की मूर्खता,द्वेशभावपूर्णनीति और हमारे हुक्मरानों की लापरवाही केकारण नष्ट हो रहे ह › अरब के मक्का नामक स्थान परस्थित है 'मक्केश्वरलिंग' (मक्केश्वर महादेव) .....अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है'मक्केश्वर लिंग' (मक्केश्वर महादेव)ग्रन्थ 'रामावतारचरित' के युद्धकांडप्रकरण में उपलब्ध एक अत्यंत अद्भुत औरविरल प्रसंग 'मक्केश्वर लिंग' से संबंधित हैं,जो प्राय: अन्य रामायणों में नहीं मिलता है।वह प्रसंग जितना दिलचस्प है,उतना ही गुदगुदानेवाला भी। शिव रावणद्वारा याचना करने पर उसे युद्ध मेंविजयी होने के लिए एक लिंग (मक्केश्वरमहादेव) दे देते हैं और कहते हैं कि जा, यहतेरी रक्षा करेगा, मगर ले जाते समय इसेमार्ग में कहीं पर भी धरती पर नहीं रखना।लिंग को अपने हाथों में आदरपूर्वक थामकररावण आकाशमार्ग द्वारा लंका की ओरप्रयाण करते हैं। रास्ते में उन्हेंलघुशंका की आवश्यकता होती है। वे आकाशसे नीचे उतरते हैं तथा इस असमंजस में पड़तेहैं कि लिंग को कहाँ रखें? तभी ब्राह्मण वेश मेंनारद मुनि वहाँ पर प्रगट होते हैं, जो रावणकी दुविधा भाँप जाते हैं। रावण लिंग उनकेहाथों में यह कहकर पकड़ाकर जाते हैं कि वेअभी निवृत्त हो कर आ रहे हैं।... रावण लघु-शंका से निवृत्त हो ही नहीं पाता! संभवत: वहप्रभु की लीला थी। काफ़ी देर तकप्रतीक्षा करने के उपरांत नारद जी लिंगधरती पर रखकर चले जाते हैं। तब रावण केखूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान सेहिलता नहीं है और इस प्रकार शिवद्वारा प्रदत्त लिंग की शक्ति का उपयोगकरने से रावण वंचित हो जाता है।(पृ.-295-297)यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब केमक्का नामक स्थान पर स्थित हैसऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्यभी है इसका उल्लेख श्रीमद्भागवत मेंमिलता है श्री कृष्ण ने कालयवन नामकराक्षस के विनाश किया था यह यमन राज्यउसी द्वीप पर स्थित हैभगवान शिव के जितने रूप और उपासना केजितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वेअवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवानशिव की प्रतिष्ठा पूरे संसार में ही फैली हुईहै। उनके विविध रूपों को पूजने का सदा सेही प्रचलन रहा है। शिव के मंदिरअफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकरमिस्र, ब्राजील, तुर्किस्तान के बेबीलोन,स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका, चीन,जापान, कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा तक हरजगह पाए गए हैं। अरब में मुहम्मद पैगम्बर सेपूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था।मक्का के कावा में संग अवसाद के यप मेंजिस काले पत्थरकी उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराणमें उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है।इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल औरअन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जानेके स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। ऐसे प्रमाणभी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनस मंदिर केसामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था।यूरोपियन फणिश और इबरानी जाति केपूर्वज बालेश्वर लिंड के पूजक थे। बाईबिलमें इसका शिउन के रूप में उल्लेख हुआ है।कई वर्ष बीत गए है मक्केश्वर महादेवकी पूजा बिल्वपत्र व गंगा जल से नही हुई है । ||ॐ नमः शिवाय|| ||ॐ नमः शिवाय|| ||ॐ नमः शिवाय||