सदस्य:Er. Shubham Kumar

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आस्तिक' और 'नास्तिक' दोनों एक दूसरे के विपरीत अर्थ रखते हैं। आज के इस आधुनिक युग में इन दोनों शब्दों का प्रयोग मूल अर्थ से हटकर हो रहा है। इसे समझने के पूर्व हम इन दोनों शब्दों के मूल अर्थ को समझते हैं।

             'आस्तिक' का अर्थ होता है- 'वह जो ईश्वर में विश्वास करता हो' एवं 'नास्तिक' का अर्थ होता है- 'वह जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता हो।'

             'आस्तिक', अर्थात 'जो ईश्वर में विश्वास करता हो', का अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि वह धार्मिक कर्म-काण्डों में भी विश्वास करता हो या 'नास्तिक' का अर्थ यह कतई नहीं है कि वह धार्मिक कर्म-काण्डों में विश्वास नहीं करता हो। इन दोनों हीं शब्दों का बाह्यडंबर अर्थात धर्म, पूजा-पाठ, देवी-देवता एवं कर्मकांड से कोई संबंध नहीं है अपितु इन दोनों शब्दों का निर्माण ईश्वर में विश्वास करने और न करने वाले को संबोधित करने के लिए किया गया था परंतु वर्तमान युग ठीक इसके विपरीत है।

              पूजा-पाठ न करने का यह अर्थ नहीं है कि वह 'नास्तिक' हो या उसमें ईश्वर के प्रति विश्वास नहीं हो एवं पूजा-पाठ करने का यह अर्थ नहीं कि वह 'आस्तिक' हो।निस्संदेह यह सत्य है लेकिन अफसोस कि आज के इस बाह्यडंबरी समाज ने जिस आवरण का निर्माण किया है उसमें इन दोनों शब्दों का प्रयोग इसके मूल अर्थ में न होकर इस समाज के अनुरूप हो रहा है एवं लोग असत्य का शिकार हो रहे हैं। अतः इन दोनों शब्दों का प्रयोग मूल अर्थ में हीं करें।