सदस्य:Deepak jose panadan/दि टेस्ट आफ मै लैफ

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दि टेस्ट आफ मै लैफ: फ्रम क्रिकेट टू क्यान्सर आन्ड ब्याक  
लेखक युवराज सिंह
देश भारत
भाषा अंग्रेज़ी
विषय आत्मकथा
प्रकार आत्मकथा
प्रकाशक रैंडम हाउस इंडिया / एबरी प्रेस
प्रकाशन तिथि १९ मार्च, २०१३
मीडिया प्रकार प्रिंट
पृष्ठ २१६
आई॰एस॰बी॰एन॰ 818400298X

परिचय[संपादित करें]

दि टेस्ट आफ मै लैफ: फ्रम क्रिकेट [1]टू क्यान्सर आन्ड ब्याक [The Test of My Life: From Cricket to Cancer and Back], भारतीय क्रिकेट खिल्लाडि युवराज सिंह का आत्मकथा है। ये आत्मकथा १९ मार्च, २०१३ को जारी किया गया था। ये किताब शारदा उगरा और निशांत जीत अरोरा के सह लेखक के द्वार किया गया है। ये स्कोरबोर्ड के बारे में एक किताब नहीं है लेकिन ये किताब युवराज सिंह ने अपनी माताजि, शबनम सिंह के लिए समर्पित किया है। युवराज सिंह विश्व कप २०११ के सबसे अच्छा खिलाड़ी थे। युवराज सिंह भारतीय क्रिकेट के पोस्टर बॉय थे, वो आदमी जो स्टुअर्ट ब्रॉड (इंग्लैंड के तेज गेंदबाज) को टी-ट्वेन्टी विश्व कप के एक मुकाब्ला में एक ओवर में ही छह छक्कों को मारा था। इस पुस्तक के पहले २० प्रतियां पांच सौ रुपये के लिये ९ मार्च २०१३ कोल्लेक्टाबिल्लिया.कोम [Collectabillia.com] नामक एक ऑनलाइन वेब सैट पर नीलाम किया गया।

किताब के बारे[संपादित करें]

दि टेस्ट आफ मै लैफ, युवराज सिंह [2] की आत्मकथा है जिसमें उन्होने अपनी जीवन व्यवसाय के उतार-चढ़ाव के बारे में वर्णन किय है। इस आत्मकथा में ये भी बताया है, जिस तरह युवराज सिंह ने एक जीवन के लिये खतरा कैंसर से लड़ाई करके अपने जीवन को बछाया। ये पुस्तक में युवराज सिंह के परेशानी बचपन के बारे बताया है। युवराज सिंह को अपनी बचपन में क्रिकेटर बनना पसन्द नहीं था, परंतु उसके पिता योग्राज सिंह के परेशानी से एक क्रिकेटर बनना पडा था। इस पुस्तक में दो कहानिया है, एक, युवराज सिंह भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल क्रिकेटर बनना और दो, इंडियानापोलिस, अमेरिका में कैंसर से लड़ते, लाखों लोगों के लिए एक रोल मॉडल बनने। इस आत्मकथा में पहले युवराज सिंह ने एक क्रिकेटर के रूप में अपने विकास का वर्णन करता है और एक क्रिकेटर के रूप में  उसके परिपक्वता के बारे में बताया है। इस आत्मकथा के दूसरे भाग में जिस तरह युवराज सिंह ने व्यक्तिगत जीवन को जैसे एक परिपक्व जीवन बनने के बरे में बताया गया है। इस आत्मकथा में युवराज ने अपनी रणजी ट्रॉफी अभियान, २००१ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने प्रथम क्रिकेट की प्रतियोगिता, अपने वन्डे करियर और असफल टेस्ट करियर के बारे में लिखते हैं। इस आत्मकथा  के अंतिम अध्याय में युवराज क्रिकेट के लिए अपने भावनात्मक वापसी के बारे में बात करती है। पूरे देश विशाखापत्तनम में भारत और न्यूजीलैंड के बीच एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में युवराज के वापसी के लिए सख्त इंतजार कर रहे थे लेकिन उनकी निराशा को बढ़ाते हुए वो मैच बारिश से नहीं खेला था।

संदेश[संपादित करें]

युवराज सिंह के इस आत्मकथा से मानव को यह संदेश मिलता है, एक मानव के जीवन में बहुत अतिकटिन घटने होति है, लेकिन वो घटने को हम दूर हट कर जीना चाहिए, जिस तरह युवराज सिंह ने अपने जीवन में कैंसर [3] को दूर हटाते हुए क्रिकेट को फिर खेलने लगी।

संदर्भ[संपादित करें]