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वैसाखी
खालासा का जन्मस्थल

बैसाखी त्योहार्[संपादित करें]

बैसाखी को किसानी से सम्ब्ंधित पंजाब् क्षेत्र के एक ब्ंडा त्योहार माना जाता हैं। इस त्योहार को वैसाखी, वैशखी, वासाखी के नाम से बी पुकारा जाता हैं। पांजाबी के नाए साल गिरने पर वैसाखी के पेहला दिन होता हैं। पांजाब कैलेंडर के अनुसार इस त्योहर को पेहला सैर मास केहते हैं। सिख सामुदाय के संस्थापन पर इस त्योहार मनाया जाता हैं। जिसे खालसा के रूप सें जाना जाता हैं। प्रत्येक साल १४ अप्रैल बैसाखी का त्योहार मनाया जाता हैं।

बैसाखी के इतिहास[संपादित करें]

बैसाखी के दिन १६९९ पर, गुरु गोबिंद सिंह ने पूरे भारत से सिखों कों आन्ंदपुर साहिब के शेहर में आने का बुलाव किया था। इस सभा में। गुरु सिखों से आह्वान किया कि उनके विश्वास बनाए रखें और उनकी धर्म की रक्षा करते रहैं। उस बारी सभा में गुरु गोबिंद सिंह ने अपना तलवार उठाकर सबकों दिखातें हुए पुछा कि यह कोई हैं जो अपना जीवन त्याग करने के लिए तयार हैं और अपनी आस्था के आगे खडें रहा ने के लिए तत्पर हैं । इस् प्रशन का उतर था सभा में एक बडा सन्नाट लेकिन गुरु दोहराते हुए अपनी माग्ं उनके सामने फिर से रका और अत्ं मे एक सिख आगे जाता हैं गुरु के पिछे पालन करते हुए उनके तम्बू के भीतर चला जाता हैं। कुछ समय बाद गुरु पुनः अकेले दिखाई देते हैं अपने तलवार के साथ जो खून से ढका हुआ था और बाद में दूसरें स्वय्ंसेवक के बारे में पूछते हैं तो एक और सिख आगे कदम बडाकर गुरु के साथ तम्बू में चल जाता हैं। बाद में गुरु फिर से अपनी तलवार के साथ बाहर आ कर तीसरे स्व्ंयसेवक के बारें में पूछ्ते हैं। इस तरह और पांच सिखो ने अपना प्राणो का त्याग करकें गुरु के सामने अपने शीर्ष का बलिदान कर देते हैं। अंत में गुरु नीले रंग के वस्त्र् पेहन कर पवित्रता से सभी पांच पुरुषों के साथ तम्बू से प्रकट होते हैं। बाद में उन पांच सिखों को प्रिया लोगों के रूप में प्ंज प्यारे के नाम से पुकारा जाता हैं।

बैसाखी का महत्व[संपादित करें]

पंज प्यारो को नाम् धारन के वासते एक अद्वितीय समारोह आयोजन करते है जिस का नाम था पाहुल इस समारोह में गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी लघु इस्पात तलवार से एक कटोरी में अमुत तयार करते हैं। बाद में गुरु के पत्नि माता सुन्दरी ने अमुत के कटोरी मे पतशस डालते हैं। सारी पूजा होने के बाद उन पांच व्यक्तियों के सिर पर अमुत छिडकते हैं। इन सब होने के बाद गुरु ने उन पांच व्याक्तियों के सामने गुठनो मे आकर नाम धारण करवाने कि प्रार्थना करते हैं। अत्ं मे गुरु ने घोषित किया कि पंज प्यारें खुद गुरु का अवतार होगें। जहां पज्ं प्यारे होते हैं, वहाँ में बी रेहता हूँ। जब पांच प्यारे मिलते है तब पूजा से बी अधिक पवित्रता उत्पन्ना हो जाता हैं। पंज प्यारे खालसा समुदाय के पहले नई सिख सदस्य माने जाते थें। गुरु गोबिंद सिहं ने पवित्रता और साहस के पांच विशिष्ट प्रतीकों के साथ खालसा को एक अद्वितीय् पहचान दिया हैं। आज उनकों पांच राजाओ के समान माना जाते हैं। गुरु उन साहसी ओ को चेतावनी के रूप में सिंह का उपनाम दिया हैं। और महिला ओं ने उनकी गरिमा बड़ाने के वजा से कौर के उपनाम से पुकार ने शूरु किया था। खालसा नाम का अलग पहचान के साथ गुरु गोबिंद सिंह सभी सिखों को साहस, बलिदान और समानता के जीवन जीने का अवसर दिया। इन सिखों को दूसरों की सेवा और न्याय करवा ने के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए कहते हैं।

बैसाखी मेला[संपादित करें]

पंजाब में बैसाखी मेले काफी लोकप्रिय हैं। यह पूरे वर्ष के दौरान सबसे बहुत प्रतीकक्षित समारोहों में से एक हैं। लोग दूर दूर से अपने परिवार और दोस्तों के साथ् आते है ताकि उन रंगीन मेलों में भाग ले सके इन बैसाखी के सबसे लुभावना सुविधा यह है की लोग भांगड़ा और गिद्द प्रदर्शन करते हैं। इस के अलावा अन्य गतिविधियों बी देखने के लिए मिल सकता है जैसे की दौड़, कुश्ती, मुकाबला, गायन और कलाबाजी बी करते हैं। कुछ ग्रामीण कलाकारों ने अपने उपकरणों के साथ जैसे की वञोलि और अल्गोज़ा ओ से लोगों को मनोरंजन करते हैं। बैसाखी मेला में अधिक सुंदर से बने स्थानीय हस्तशिल्प और चूड़ियां, खिलौने और अन्य घरेलू उपयोगी सामान मिलते हैं। इस दिन पर सिख लोग अमृतसर यात्रा करके वहा की स्वर्ण मदिंर में दर्शन पाकर अपने पवित्र ग्रंथ पढ़्ते हैं। बैसाखी भारत के प्रमुख धार्मिक समूहों में से दो के लिए विशेष महत्व हैं। हिंदुओं के लिए, यह नए साल की शुरुआत है और अपेक्षित स्नान, पार्टीबाजी और पूजा के साथ मनाया जाता हैं। इनका मनना है की हजारों साल पहले देवी ग्ंगा ने पृथ्वी पर आए थें उन है सम्माअन के साथ स्वागत किया गया था। उस दिन कई हिंदूओ ने अनुष्ठान के साथ गंगा नदी मे स्नान किए थें। हिंदुओं ने अपने गरों के सामने संय्ंत्र्ं डंडे और शीर्ष पर पीतल, तांबा या चांदी के बर्तन लटकाते थें। इस तरह बैसाखी की त्योहार प्ंजाब मे मनाया जाता हैं । <[1] [2] [3]

  1. http://www.baisakhifestival.com/baisakhi-festival.html
  2. http://www.india.com/news/india/baisakhi-2016-why-and-how-do-we-celebrate-vaisakhi-1103565/
  3. http://www.indiaparenting.com/indian-culture/70_4062/festival-of-baisakhi.html